मंगलवार, 17 जुलाई 2012

स्पाइडर शक्तियों वाला आदर्श लड़का लाए हैं मार्क वेब

फिल्मः द अमेजिंग स्पाइडरमैन
डायरेक्टरः मार्क वेब
कास्टः एंड्रयू गारफील्ड, एमा स्टोन, रायस आफन्स, इरफान खान, मार्टिन शीन, डेनिस लियरी, सैली फील्ड, क्रिस जायल्का
स्टारः साढ़े तीन, 3.5
सुझाव: भयंकर मसालेदार और टिपिकल सुपरहीरो फिल्म नहीं है। मगर जरूर देखनी चाहिए। एक-दो कमजोरियों के अलावा बेहद अच्छा सिनेमा है। बच्चों को जरूर देखनी चाहिए, खूब स्वच्छ फिल्म।
डायरेक्टर मार्क वेब की ‘द अमेजिंग स्पाइडरमैन’ में सबसे श्रेष्ठ बात जो हुई है, वो है एक सुपरहीरो का सुपरह्यूमन हो जाना। पीटर पार्कर स्पाइडर की तरह दीवारों से चिपककर चढ़ सकता है, बेहद फुर्तीला है, ताकतवर है, लेकिन कलाइयों से छूटने वाले मकडज़ाले उसने खुद बनाए हैं। यानी एक इंसानी कोशिश। वह विशाल छिपकली मानव से लड़ता है लेकिन दर्जनों फायरब्रिगेड वालों की मदद से। जब कैप्टन जॉर्ज स्टेसी (डेनिस लियरी) अपनी जान कुर्बान करते हैं तब जाकर पीटर शहर को जहरीली जैविक गैस से बचा पाता है। सुपरहीरो मूवीज में ऐसा होना बहुत जरूरी है। ताकि फिक्शन में रिएलिटी मिली रहे। कि हर बच्चा और दूसरा दर्शक महज स्पाइडरमैन के प्रॉडक्ट खरीदने की बजाय, अपने इंसानी रूप में रहते हुए ही सुपर होने की राह ढूंढ पाए।

फिल्म अगर ताजी लगती है तो कोलंबिया पिक्चर्स द्वारा मार्क वेब को डायरेक्शन सौंपने की वजह से। ‘500 डेज ऑफ समर’ जैसी हवा से हल्की और ताजी फिल्म बनाने वाले मार्क ने इस फिल्म में भी यही किया। एंड्रयू गारफील्ड के स्पाइडरमैन बनने की वजहें उन्होंने ज्यादा सच्ची बनाई हैं। उनका हीरो दर्द से कराहता है, उनके किरदारों में सेंस ऑफ ह्यूमर है और कुछ भी बिना लॉजिक के नहीं है। ये फिल्म पिछली तीन स्पाइडरमैन फिल्मों की तरह कॉमिक बुक जैसी तो नहीं है। सिर्फ मसाला एंटरटेनमेंट वाली भी नहीं है। पर स्मार्ट फिल्ममेकिंग है। क्वालिटी फिल्ममेकिंग है। पिछली फिल्मों में कहानी मोटा-मोटी चार-पांच सीन्स से ही याद रहती है, यहां इस फिल्म में कहानी कसीदाकारी की तरह है। महीन। दो घंटों में भी आपको फिल्म लंबी लगती है तो इसलिए कि इसमें बहुत कुछ है, इसलिए नहीं कि ये बोरिंग होगी। एंड्रयू गारफील्ड स्पाइडरमैन उर्फ पीटर पार्कर के रोल में टॉबी मैग्वायर से ज्यादा तरोताजा लगते हैं। वहीं मैरी जेन वॉटसन (क्रिस्टीन डनस्ट) 2002 में आई पहली स्पाइडरमैन मूवी के वक्त से धीरे-धीरे बेहद पजेसिव गर्लफ्रेंड होती गईं, वहीं इस मूवी में एमा स्टोन ऐसी नहीं हैं। वह अगर पीटर में कुछ पसंद नहीं करती तो चुप होकर आगे बढ़ जाती हैं, और मनाने पर तुरंत मुस्कुरा देती हैं।

फिल्म में आने वाले ये दो पल महज सीन होते हुए भी महान हो जाते हैं...
  • जब बिल्डिंग से सैंकड़ों मंजिल ऊपर लटकते हुए घायल स्पाइडरमैन गिरकर मरने वाला होता है, तो अब तक विशाल छिपकली मानव बनकर उससे लड़ रहा डॉ. कॉनर्स उसका हाथ थाम लेता है और उसे बचाता है। समाज अपराधियों को मारने से बेहतर नहीं होता, उन्हें भला बनाने से होता है। वी. शांताराम की ‘दो आंखें बारह हाथ’ में जो भलाई वाली आत्मा थी, अनजाने में कहीं से ऐसी ही भीतरी भलाई डॉ. कॉनर्स में भी निर्देशक ने कायम रखी, जो बड़ी अच्छी बात है।
  • पीटर को जो लड़का पहले सीन में पीटता है, सुपर पावर्स आने के बाद पीटर उसे पीटकर आगे नहीं बढ़ जाता। एक झड़प के बाद वो तथाकथित बुरा लड़का अच्छा बनता है। अंकल की मौत पर पीटर को गले लगाने और सहानुभूति जताने आता है। उनकी दोस्ती से कहानी का मसाला खत्म होता है पर भले बनने की प्रेरणा पैदा होती है।
हमारे जैसा ही लड़का है पीटर पार्करः कहानी
कॉलेज में पढ़ता है एक आम लड़का पीटर पार्कर (एंड्रयू गारफील्ड)। साथ पढऩे वाली ग्वेन स्टेसी (एमा स्टोन) के प्रति उसके मन में चाह पैदा हो रही है। पीटर अपने साइंटिस्ट माता-पिता के बारे में जानना चाहता है जो बचपन में एक आधी रात को उसे उसके अंकल-आंटी के घर छोड़ गए थे। फिर कभी लौटकर नहीं आए। हालांकि अंकल-आंटी ने भी पीटर को मां-पिता सा ही प्यार दिया। खैर, एक दिन पीटर को अपने पिता का एक बैग मिलता है, जिसमें एक जैव वैज्ञानिक फॉम्र्युला होता है और एक तस्वीर। तस्वीर में अपने पिता के साथ उसे एक साइंटिस्ट डॉ. कर्ट कॉनर्स (रायस आइफन्स) नजर आते हैं। वह अपने अतीत को जानने में जुट जाता है। इसी दौरान कुछ ऐसी घटना घटती है कि उसके शरीर में हैरतअंगेज बदलाव आने लगते हैं और पीटर के साथ पूरे शहर की लाइफ बदल सी जाती है।
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गजेंद्र सिंह भाटी