शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011

थियेटर से खुश निकलेंगे, मेरी गांरटीः सुधीर मिश्रा

एक छोटा सा साक्षात्कार...
अब तक की बेस्ट कॉमेडी कही जाने वाली 'जाने भी दो यारों’ से सुधीर मिश्रा ने फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा। बाहैसियत स्क्रिप्टराइटर। उन्हें सबसे ज्यादा पसंद किया गया उनकी निर्देशित फिल्म 'चमेली’ और 'हजारों ख्वाहिशें ऐसी’ के लिए। कुछ खास सिनेमाई भाषा वाली फिल्में भी उन्होंने बनाई। अब सुधीर तैयार हैं अपनी फिल्म 'ये साली जिंदगी’ के साथ, जो इस शुक्रवार यानी चार फरवरी को रिलीज हो रही है। उनके मुताबिक ये उनकी सबसे एंटरटेनिंग फिल्म है। प्रस्तुत हैं उनसे मेरी बातचीत के कुछएक अंश:

अभी एक महीने पहले तक जब मैं आप तक पहुंचने की कोशिश कर रहा था, आप अपनी फिल्म 'तेरा क्या होगा जॉनी’ को रिलीज करने की तैयारी कर रहे थे। अब देखने में आया कि रिलीज हो रही है 'ये साली जिंदगी’?
हां, सही है। पहले और बाद का चक्कर था। पर मैं 'ये साली जिंदगी’ का को-प्रॉड्यूसर भी हूं। इसलिए इसकी रिलीज को लेकर श्योर हूं। ये आखिरकार चार फरवरी को रिलीज हो रही है। होर्डिंग लगे हुए हैं, पोस्टर लगे हुए हैं। प्रिंट-रिलीज सब फाइनल है। बस अब आपको थियेटर में जाकर देखनी है।

क्या ये दोनों ही फिल्में आपने साथ-साथ बनाई हैं?
नहीं, पहले मैंने 'तेरा क्या होगा जॉनी’ बनाई थी। उसमें पोस्ट प्रोडक्शन और दूसरी किस्म की दिक्कतें थीं। इसकी शूटिंग पूरी होने के बाद मैंने 'ये साली जिंदगी’ का शूट शुरू किया।

हर बार आप कुछ-कुछ डार्क और ब्लंट सी फिल्में बनाते हैं। इस फिल्म को देखना कैसा अनुभव होगा?
'ये साली जिंदगी’ के साथ मैंने पहली शर्त ही एंटरटेनमेंट की रखी। इस बार कोई एक्सपेरिमेंट नहीं, कोई डार्क शेड्स नहीं, सिर्फ एंटरटेनमेंट मिलेगा। ये लव स्टोरी और थ्रिलर है। इसमें एक डायलॉग है इसी से फिल्म को समझ सकते हैं ...लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे चू** आशिकी के चक्कर में मर गया और लौंडिया भी नहीं मिली। इश्क के खतरे क्या हैं इसी पर एक मनोरंजक टेक है। जब बुलेट और लव में से एक चीज चुननी हो तो आप क्या चुनेंगे यही सार है।

प्रोमो में अरुणोदय और अदिति के साथ वाले सीन काफी आकर्षक लग रहे हैं। इनका काम कैसा रहा है?
मूवी में इन दोनों का कपल काफी रोचक सा है। अरुणोदय ने तो बहुत ही बढिय़ा परफॉर्मेंस मूवी में दी है। देखिएगा, ये एक बहुत बड़ा स्टार बनेगा। इंडस्ट्री में ऐसा लड़का मैंने नहीं देखा। इसका बल्की और फिट शरीर भी है और गजब की एक्टिंग भी। ये लड़का छाएगा।

अदिति का 'दिल्ली-6’ में ग्लैमरस लुक नहीं था। क्या इस मूवी में भी ऐसा ही है?
यहां अदिति का कैरेक्टर बड़ा आजाद और कलरफुल है। कैरेक्टर से अलग देखें तो वो एक अच्छी डांसर है, सिंगर है, एक्ट्रेस है। बहुत आगे जाएगी। मैं हमेशा बोलता हूं, चूंकि मैं टैलेंट की कद्र करता हूं इसलिए प्रतिभा को तुरंत पहचान लेता हूं।

आप अपने हिसाब की मूवीज बनाते हैं और ऐसा लगता है कि उन्हें रिलीज करने में आपको हमेशा मुश्किलों का सामना करना पड़ता है?
देखिए, जहां तक सवाल 'ये साली जिंदगी’ का है तो उसे रिलीज करने में कोई दिक्कत नहीं हुई। क्योंकि ये एक एंटरटेनिंग मूवी थी। जब आप अपनी पसंद की फिल्म बनाएंगे तो इन दिक्कतों से तो गुजरना ही पड़ेगा।

जब एंटरटेनमेंट पर ही ध्यान दिया गया है तो फिर फिल्म का टाइटल 'ये साली जिंदगी’ कुछ एक्सपेरिमेंटल सा क्यों लगता है?
ये एक मुहावरे के तौर पर लिया है मैंने। दिल्ली की कहानी है और वहां इन्हीं मुहावरों में बात होती है। ये 'साली’ शब्द मैंने किसी गाली या गलत मतलब में नहीं लिया है। साली कोई गाली नहीं है। ये एक फनी वे में कहा गया है। जहां तक फिल्म से इसका कनेक्शन है तो मैं आपको गारंटी देता हूं कि आप थियेटर से खुश होकर, मुस्कराते और हंसते बाहर निकलेंगे।

आपकी हर फिल्म में मुंबई किसी न किसी रोल में मौजूद रहती है। क्या यहां भी है?
ये कहानी दिल्ली की है। इसलिए खासतौर पर इसमें यहीं की चीजें शूट होनी थीं। हमनें करोलबाग, गुड़गांव, हरियाणा बॉर्डर और पुरानी दिल्ली को चुना। यहां शूटिंग करके बड़ा मजा आया। मैं कह सकता हूं कि दिल्ली को इस अंदाज में आपने किसी भी फिल्म में नहीं देखा होगा।

पहले टाइटल आपने 'दिल दर-बदर’ रखा था। उसे बदल क्यों दिया?
जब फिल्म के लिए एक गाना लिख रहे थे तो ये सूझा। इसमें लाइन थीं,

जिंदगी पे तेरा मेरा किसी का न जोर है,
हम सोचते हैं कुछ वो साली सोचती कुछ और है,
हम चाहते यहां है साली जाती कहीं ओर है,
लम्हे और लम्हों के बीच ये टेढ़े मेढ़े मोड़ है,
ये जिंदगी, ये साली जिंदगी।


तो मुझे ये टाइटल पसंद आ गया। और फिर ये टाइटल मूवी की थीम को एक्सप्रेस भी करता है।

आप बड़े अंतराल लेकर फिल्में बनाते हैं। इस कहानी में ऐसी क्या बात थी कि आपने इसी पर फिल्म बनाई?
क्योंकि ये मनोरंजक थी। मैं भी काफी वक्त से ऐसी फिल्म बनाना चाहता था जिसे ज्यादा से ज्यादा लोग देख सकें। ऐसी फिल्म जो मजेदार हो। इसी वजह से मैं आकर्षित हुआ इस कहानी की तरफ। ये एक अलग सी लव स्टोरी है। इसमें थ्रिल का पहलू साथ-साथ चलता है।

इरफान, अरुणोदय, अदिति और चित्रांगदा में तो आपके दो यंग कपल हो गए। पर साथ-साथ सुशांत सिंह, यशपाल शर्मा, प्रशांत नारायणन और विपिन शर्मा जैसे मंझे हुए एक्टर भी फिल्म में हैं। क्या इसलिए कि एंटरटेनमेंट के साथ-साथ सीरियस एक्टिंग भी चलती रहे?
हां, कुछ-कुछ ऐसा ही है। सुशांत, विपिन और यशपाल फिल्म की वेल्यू और कंटेट क्वालिटी को बढ़ा देते हैं। सौरभ शुक्ला भी हैं, सौरभ तो बड़े कमाल हैं। ये सब मिलकर फिल्म को मजबूत करते हैं।

फिल्म में सितार प्लेयर निशात खां साब ने म्यूजिक दिया है। कैसा एक्सपीरिंयस रहा?
निशात साब बहुत बड़े आदमी हैं। उन्होंने कार्लोस सेनटाना, एरिक क्लेप्टन और जॉन मैकलॉफ्लिन जैसे बड़े आर्टिस्टों के साथ परफॉर्म किया है। लंदन के अलबर्ट हॉल तक उनका आर्ट पहुंचा है। म्यूजिक बहुत ही राहत भरा दिया है। क्यूं अलविदा... मेरा फेवरेट गाना है इस फिल्म के एलबम में से।
गजेंद्र सिंह भाटी (प्रकाशित)