फिल्मः तेरी मेरी कहानी
डायरेक्टरः कुणाल कोहली
कास्टः शाहिद कपूर, प्रियंका चोपड़ा, प्राची देसाई
स्टारः ढाई, 2.5
संक्षिप्त अल्पकालीन टिप्पणी...
कुणाल कोहली की ‘तेरी-मेरी कहानी’ देखें। अगर उम्मीद से कम इंट्रेस्टिंग क्लाइमैक्स और जरा ढीली स्क्रिप्ट को छोड़कर देख सकें तो। प्रेमी जोड़े और ट्विटर-फेसबुक जेनरेशन वाले युवा भी फिल्म देखने जा सकते हैं। ज्यादा उम्मीदें न करें। पर फिल्म में कहीं कुछ स्टूपिड भी नहीं है। कुणाल की कोशिश ईमानदार और मेहनत भरी है। उन्होंने बड़े भावुक तरीके से ये लव स्टोरी कही है। उनका फिल्म प्रस्तुत करने का तरीका भी ताजा है। 1960 के बॉम्बे को दर्शाने वाले सीन खास हैं। सब कम्प्यूटर एनिमेशन से बनाए गए हैं। फिल्म के आखिरी क्रेडिट जब आते हैं तो बड़े ही रोचक अंदाज में सीन कैसे बने, ये बताया जाता है। रुककर जरूर देखें।
इस दौर की कहानी में डायरेक्टर साहब ने बारीकियों पर ध्यान दिया है। चाहे वॉटसन स्टूडियो का बोर्ड हो, चाल की रखवाली करने वाले पठान चाचा हों, कॉटेज ब्रैंड वाली दियासलाई हो या हीरोइन का मेकअप करते बंगाली मेकअप दादा। मगर 1910 के लाहौर में कुछ गलतियां रह जाती हैं। मसलन, जावेद (शाहिद) के एक डायलॉग में धर्मेंद्र की मिमिक्री झलकती है। जेल में ‘हमसे प्यार कर ले तू’ गाने पर नाचते हुए भी वह धर्मेंद्र के ‘प्रतिज्ञा’ फिल्म वाले फेमस स्टेप्स इस्तेमाल करते हैं। यहां फिल्म के डायरेक्टर का ध्यान इस बात पर नहीं जाता कि प्रतिज्ञा 1975 में आई थी और आप कहानी 1910 की सुना रहे हो। यंग दर्शकों को लंदन में पढ़ रहे कृष और राधा के कपड़े और एक्सेसरीज में काफी कुछ स्टाइल फॉलो करने को मिलेगा।
जनम जनम का साथ है: कहानी
1910 के सरगोजा, लाहौर में जावेद और आराधना। 1960 के पूना में गोविंद और रुकसार। 2012 के लंदन में कृष और राधा। इन तीन जन्मों में दो जवां दिल (शाहिद और प्रियंका चोपड़ा) एक-दूसरे से मिलते हैं, फिर प्यार होता है, पर मिलन की राह में मुश्किलें आ जाती हैं। इन मुश्किलों से निकलकर इनका साथ हो पाता है कि नहीं, यहीं कहानी का ट्विस्ट है।
*** *** ***
गजेंद्र सिंह भाटी
डायरेक्टरः कुणाल कोहली
कास्टः शाहिद कपूर, प्रियंका चोपड़ा, प्राची देसाई
स्टारः ढाई, 2.5
संक्षिप्त अल्पकालीन टिप्पणी...
कुणाल कोहली की ‘तेरी-मेरी कहानी’ देखें। अगर उम्मीद से कम इंट्रेस्टिंग क्लाइमैक्स और जरा ढीली स्क्रिप्ट को छोड़कर देख सकें तो। प्रेमी जोड़े और ट्विटर-फेसबुक जेनरेशन वाले युवा भी फिल्म देखने जा सकते हैं। ज्यादा उम्मीदें न करें। पर फिल्म में कहीं कुछ स्टूपिड भी नहीं है। कुणाल की कोशिश ईमानदार और मेहनत भरी है। उन्होंने बड़े भावुक तरीके से ये लव स्टोरी कही है। उनका फिल्म प्रस्तुत करने का तरीका भी ताजा है। 1960 के बॉम्बे को दर्शाने वाले सीन खास हैं। सब कम्प्यूटर एनिमेशन से बनाए गए हैं। फिल्म के आखिरी क्रेडिट जब आते हैं तो बड़े ही रोचक अंदाज में सीन कैसे बने, ये बताया जाता है। रुककर जरूर देखें।
इस दौर की कहानी में डायरेक्टर साहब ने बारीकियों पर ध्यान दिया है। चाहे वॉटसन स्टूडियो का बोर्ड हो, चाल की रखवाली करने वाले पठान चाचा हों, कॉटेज ब्रैंड वाली दियासलाई हो या हीरोइन का मेकअप करते बंगाली मेकअप दादा। मगर 1910 के लाहौर में कुछ गलतियां रह जाती हैं। मसलन, जावेद (शाहिद) के एक डायलॉग में धर्मेंद्र की मिमिक्री झलकती है। जेल में ‘हमसे प्यार कर ले तू’ गाने पर नाचते हुए भी वह धर्मेंद्र के ‘प्रतिज्ञा’ फिल्म वाले फेमस स्टेप्स इस्तेमाल करते हैं। यहां फिल्म के डायरेक्टर का ध्यान इस बात पर नहीं जाता कि प्रतिज्ञा 1975 में आई थी और आप कहानी 1910 की सुना रहे हो। यंग दर्शकों को लंदन में पढ़ रहे कृष और राधा के कपड़े और एक्सेसरीज में काफी कुछ स्टाइल फॉलो करने को मिलेगा।
जनम जनम का साथ है: कहानी
1910 के सरगोजा, लाहौर में जावेद और आराधना। 1960 के पूना में गोविंद और रुकसार। 2012 के लंदन में कृष और राधा। इन तीन जन्मों में दो जवां दिल (शाहिद और प्रियंका चोपड़ा) एक-दूसरे से मिलते हैं, फिर प्यार होता है, पर मिलन की राह में मुश्किलें आ जाती हैं। इन मुश्किलों से निकलकर इनका साथ हो पाता है कि नहीं, यहीं कहानी का ट्विस्ट है।
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गजेंद्र सिंह भाटी