शनिवार, 5 नवंबर 2011

क्या हम लुटने के लिए बने हैं

फिल्मः लूट
निर्देशकः रजनीश ठाकुर
कास्टः गोविंदा, सुनील शेट्टी, जावेद जाफरी, महाक्षय चक्रवर्ती, रवि किशन, प्रेम चोपड़ा, महेश मांजरेकर, दिलीप ताहिल
स्टारः दो स्टार, 2.0

ऑडी का रिबन हटने का इंतजार करते आपके कदम 'लूट' के पोस्टर के आगे ठिठक जाते हैं। सब किरदार हाथ में पटाखे थामे पोज दे रहे हैं। फिल्म दीपावली रिलीज के लिहाज से प्लैन की गई थी, हो नहीं पाई। ये फिल्म इन दिनों आ रही ज्यादातर मसाला फ्लॉप फिल्मों का मसाला लेकर आई है। अफसोस होता है कि करोड़ों रुपये और बेशकीमती संसाधन खर्च होते हैं और दर्शक ढाई घंटे बाद ठगा हुआ महसूस करते हैं। 'लूट' में सबसे बेस्ट है इसके डायलॉग। इन्हें बोलने में अव्वल रहते हैं अकबर के किरदार में जावेद जाफरी जो 'शोले' में अपने पिता जगदीप की याद दिलाते हैं। बेहतरीन। उसके बाद हैं पंडित बने गोविंदा। ऐसा लगता है कि 'आमदनी अठन्नी खर्चा रुपय्या' में उनके नॉर्थ इंडियन डायलॉग फैंकू रोल की तर्ज पर ये रोल बुना गया। ये और बात है कि कैमरा और डायरेक्टर इन डायलॉग और सिचुएशंस को उतने ड्रमैटिक ढंग से नहीं कैप्चर कर पाते, जितना एक औसत फिल्म में भी होता है। कहीं शॉट ओके करने में, तो कहीं पटाया की गलियों में घूमते मीका और किम शर्मा को हैंडल करने में नए डायरेक्टर रजनीश ठाकुर साफतौर पर नौसिखिया लगते हैं। हां, जब रवि किशन गुलजार की लिखी मिर्जा गालिब पढ़ते हैं और प्रेम चोपड़ा 'पाकीजा' और 'वो कौन थी' जैसी फिल्मों की डीवीडी मंगवाते दिखते हैं तो लगता है कि ये फिल्ममेकर डफर तो नहीं हो सकता। बस उनका कॉमिक सेंस फिल्मी सेंस में कैरी नहीं हो पाता। क्या हमारे पास ऐसी कहानियों की कमी पड़ गई है जिसमें चंद रुटीन हीरो चोरी-चकारी और रास्कलगिरी न करते हों और जिन्हें पटाया बैंकॉक न जाना पड़ता हो? लगता तो यही है। फिल्म के म्यूजिक और एडिटिंग से बिल्कुल भी उम्मीद न करें। जरा सी डायलॉगबाजी पसंद करते हों तो जा सकते हैं, अन्यथा ये एक कंप्लीट एंटरटेनर नहीं है।

क्या है लूट की कहानी
ये ऐसी कहानी है जिसके राइटर का नाम भी ताउम्र दर्शकों को पता नहीं चल पाता। आगे बढ़ें। बिहारी एक्सेंट बोलते पंडित (गोविंदा) और कुछ सूरमा भोपाली-हैदराबादी सी जबान में अकबर (जावेद जाफरी) मुंबई में चोरियां करते हैं, बाटलीवाला (दिलीप ताहिल) के लिए। चोरियां कम होती हैं, गलतियां ज्यादा। इन्हें मूर्ख समझ बाटलीवाला अपने आदमी बिल्डर (सुनील शेट्टी) के साथ एक चोरी करने पटाया, बैंकॉक भेजता है। पटाया से परिचित मूर्ख से गुंडे विल्सन (महाक्षय चक्रवर्ती) को भी बिल्डर साथ ले लेता है। यहां ये चोरी गलती से कुख्यात पाकिस्तानी डॉन लाला उर्फ तौफीक उमर भट्टी (महेश मांजरेकर) के यहां कर लेते हैं। मुझे माफ करिएगा पर मैं कहानी का ये मोड़ भी बता रहा हूं। चोरी के इस माल में वो टेप भी होती हैं जिनमें बैंकॉक के सबसे बड़े लेकिन बुजुर्ग होते डॉन खान साहब (प्रेम चोपड़ा) की हत्या की साजिश रिकॉर्ड है। अब इन चारों के पीछे लाला के आदमी, इंडियन इंटेलिजेंस एजेंट वीपी सिंह (रवि किशन) और कुछ दूसरे लोग पड़े हैं। जाहिर है इन्हें बच निकलना है।

डायलॉग बाजी वैसे बुरी नहीं
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अगर अपने ही इज्जत नहीं करेंगे तो बाहर वाले क्या खाक करेंगे, और बिना इज्जत के भाईगिरी वैसे ही है जैसे बिना मीना कुमारी के 'पाकीजा।'
# अबे इसकी भैंस की तिल्ली मारूं।
# जब तिल्ली से काम चल सकता है तो तलवार की क्या जरूरत है।
# (तुम जानते नहीं मैं कौन हूं?) ... चोरी क्या जान पहचान के लिए की जाती है क्या।
# पचास साल पहले हिंदुस्तान को दिलाई गांधी जी ने आजादी और पचास साल बाद हिंदुस्तान की हो गई 100 करोड़ आबादी।
# लोग तो खजूर में अटकते हैं ये तो खजुराहो में अटक गए।
# गन्ना हिला के लपुझन्ना बना गई लौंडिया। (चीप डायलॉग्स वाले एक लंबे सीन में से एक नमूना)
# सूचना के लिए आभारी हैं, मगर हम चार इस शहर पर भारी हैं।
# मुकर जाने का कातिल ने अच्छा बहाना निकाला है, हर एक को पूछता है इसको किसने मार डाला है।


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गजेंद्र सिंह भाटी