फिल्मः साहब बीवी और गैंगस्टर
निर्देशकः तिग्मांशु धूलिया
कास्टः माही गिल, जिमी शेरगिल, रणदीप हुड्डा
स्टारः तीन, 3.0
पहला शॉट। हरे पेड़ों के झुरमुट के बीच पुराने पैलेस का व्यू। ऊपर एक चीत्कारती हुई चील मंडरा रही है। यहीं से धोखे और प्यार की इस कहानी का मूड तय हो जाता है। कि यहां सब चील और बाज जैसे मांस नोचने वाले हैं। शेक्सपीयरन ड्रामा या विशाल भारद्वाज की फिल्मों में जो अंधेरा और कड़वापन होता है वो बहुत बार आम दर्शकों की समझ से बाहर होता है। ऐसी फिल्में बेहद तनाव देने वाली और मुश्किल होती हैं। यहीं पर 'साहब बीवी और गैंगस्टर' अलग हो जाती है। बेडरूम ड्रामा होते हुए भी और 'हासिल' और 'शागिर्द' जैसे ठोस निर्देशक (तिग्मांशु धूलिया) के हाथों बनी होने के बावजूद फिल्म सरल है, पर पूरी तरह स्मार्ट भी। खासतौर पर बड़े शहरों के दर्शकों के लिहाज से आराम से समझ में आने वाला ड्रामा है। स्क्रिप्ट और डायलॉग ऐसे हैं जो इन दिनों फिल्मों में दुर्लभ हो गए हैं। फिल्म के सब कैरेक्टर्स की एक्टिंग बेदाग है। ये जरूर है कि सेकंड हाफ में फिल्म की कसावट जरा ढीली हो जाती है। कुछ एडल्ट सब्जेक्ट, कुछ सेकंड हाफ का ढीलापन और कुछ जरा कम धांसू क्लाइमैक्स। इन तीन वजहों से फिल्म बहुत बेहतरीन नहीं हो पाती है। देखने की सलाह।
एक छोटी पूर्व रियासत में
उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश में कहीं एक छोटी सी रियासत है। यहां के राजा साहिब (जिमी शेरगिल) खुद को राजनीतिक और आर्थिक रूप से ताकतवर बनाए रखने में लगे हैं। रानी (माही गिल) दिमागी तौर पर प्यार की भूखी है, पर साहिब का प्यार लालबाड़ी की महुआ (श्रिया नारायण) के पास है। कन्हैया (दीपराज राणा) बरसों से साहिब की परछाई है। साहिब का लोकल दुश्मन है गेंदा सिंह (विपिन शर्मा)। फिर हवेली में बबलू उर्फ ललित (रणदीप हुड्डा) की एंट्री होती है। यहीं से कहानी में प्यार, धोखा, छल, खून और साजिशें सरल तरीके से शामिल होती हैं।
मधुर और डिफाइनिंग गाने
फिल्म के गाने कहानी के तीनों किरदारों को डिफाइन करते हैं। शुरू में ही 'जुगनी दम साहिब दा भरदी, पर ए प्यार यार नू करदी...' सुनाई देता है और जुगनी, साहब, यार की कहानी समझ आ जाती है। फिर फिल्म की दो नायिकाओं (माही और श्रिया) के मन का हाल बताने आता है 'रात मुझे ये कह के चिढ़ाए, तारों से भरी मैं, तू अकेली हाये...'। 'साहिब बड़ा हठीला...' गाने के बोल जिमी के किरदार के लिए है। अपनी रानी, अपने कस्बे को लोगों, अपने दुश्मनों और अपनी लाइफ के प्रति सरवाइव करने के हठीले रवैये को न्यायोचित करता हुआ। गैंगस्टर कहलाने वाले बबलू के हिस्से सटीक बोल आते हैं। 'मैं एक भंवरा, छोटे बागीचे का, मैंने ये क्या कर डाला...'। इन सभी गानों का संगीत गुनगुनाने लायक है। फिल्म में उनकी प्लेसिंग और भी बेहतर।
ऐसे हों डायलॉग और राइटर लोग
संजय चौहान तिग्मांशु की लेखनी से निकले नगीने...
1. और सुनो.. जिसे जान से मार रहे हो, उसे दोस्त तो नहीं कहो। (साहिब अपने दोस्त की सुपारी लेकर आए एक ठेकेदार से)
2. मार मार के खोल दूंगा इसको, और देखूंगा इसके अंदर क्या है जो मेरे अंदर नहीं है। (बबलू अपनी गर्लफ्रैंड से, उसके नए बॉयफ्रैंड को हॉकी से पीटते हुए)
3. जो भी करना तमीज से करना, यहां बदतमीजी भी तमीज से की जाती है। (साहिब की बीवी बबलू से)
4. वेजिटेरियन या नॉन वेजिटेरियन? जी मौकाटेरियन। (बबलू साहिब की बीवी से)
5. खाना क्या बनवाया है? मुर्गा मंगवाया है साहब। अबे, मुर्गी भी मंगवा लिया करो कभी। (गेंदा सिंह अपने आदमी से)
6. सोच समझ के तो इम्तिहान लिया जाता है, इंतकाम नहीं लिया जाता राजाजी। (गेंदा सिंह)
नजरअंदाज नहीं करें
# दीपल शॉ का यू.पी. के एक्सेंट में बबलू को बे, बेटा और बा बा लू कहना। उनके करियर का पहला स्मार्ट रोल, जहां वो नेचरल लगी हैं।
# मंत्री जी बने अभिनेता। उनका मुख्यमंत्री से फोन पर अपने थाइलैंड टूअर के बारे में बात करना और 'वहां' के 'उस' एक्सपीरियंस के बारे में कहना, 'सर वहां तो फील ही नहीं होता कि आप कुछ गलत कर रहे हैं। देयर इज नो फील ऑफ चीटिंग, एट ऑल सर।'
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गजेंद्र सिंह भाटी