फिल्म: कंटेजियन (अंग्रेजी)
निर्देशक: स्टीवन सोडरबर्ग
कास्ट: मैट डेमन, केट विंस्लेट, ग्वेनैथ पॉल्ट्रो, जूड लॉ, मेरियन कोटिलार्ड, लॉरेंस फिशबर्न
स्टार: तीन, 3.०
'कंटेजियन' को देखने से पहले मैं फिल्म के बारे में कुछ भी नहीं जानता था, तो उसे बिना किन्हीं उम्मीदों के देख पाया। चूंकि निर्देशक स्टीवन सोडरबर्ग के सिनेमा से भी वाकिफ हूं तो यहां उनके उस एफर्ट को समझ पाया जो उन्होंने 'बबल', 'सेक्स लाइज एंड वीडियोटेप्स' और 'चे' बनाकर किया था। संक्रमण, वायरस या फ्लू पर बनने वाली हॉलीवुड़ फिल्मों में लोगों के डर और मानवता पर खतरे के इमोशन को फिल्म में लार्जर देन लाइफ बनाकर भुनाया जाता है। लोगों को जॉम्बी बनाकर, सूने हो चुके शहर की सड़कें दिखाकर, न्यूक्लियर यूज के साथ आर्मी को लाकर और एक-दो लोगों को हीरो बनाकर एक धांसू एंटरटेनिंग फिल्म बना दी जाती है। जो कोई बुरी बात नहीं है, पर यहां ऐसा नहीं है। केट विंस्लेट, ग्वेनैथ पॉल्ट्रो और मेरियन कोटिलार्ड यूं आती और चली जाती हैं जैसे सोडरबर्ग के लिए उनकी फिल्म की कहानी से जरूरी और ऊंचा कोई नहीं है। इस फिल्म में हम ऐसी भयावह बीमारियों के उभरने और फैलने के प्रोसेस को समझते हैं। जान पाते हैं कि कैसे गवर्नमेंट एजेंसियां काम करती हैं। कितनी बेइमानी और ईमानदारी से। ये भी कि सरकारों के लिए मुश्किल वक्त आने पर जनता कितनी कम जरूरी हो जाती है। ऐसे किरदार भी दिखते हैं जो हकीकत जानते हैं और लोगों की मदद कर सकते हैं पर उन्हें दबा दिया जाता है। मसलन यहां जूड लॉ का किरदार, जो मल्टीनेशनल कंपनियों पर कमेंट करता है और लगातार बोलता रहता है। इतनी जानकारी देने और मानवता पर आन पड़ी आपदा को सरल तरीके से दिखाने के गुण के बावजूद फिल्म कोई डॉक्युमेंट्री नहीं लगती, एक संपूर्ण हॉलीवुड फिल्म लगती है। पहली बात ये कि 'कंटेजियन' बोरिंग नहीं है, दूसरी ये कि ये मसाला एंटरटेनर भी नहीं है। हां, इतना जरूर है कि '28 डेज लेटर', 'रेजिडेंट ईविल' और 'आउटब्रेक' जैसी फिल्मों के बीच हमें इस फिल्म जैसी बेहद ईमानदार कोशिश नजर आती है। डैनी बॉयेल की '28 डेज लेटर' में हम देखते हैं कि चिंपाजिंयों पर हुए क्रूर मानवीय प्रयोगों से पैदा हुआ वायरस कैसे 28 दिन बाद शहर को खाली कर देता है, वहीं इस फिल्म में उन 28 दिन तक हम कैसे पहुंचते हैं, ये देखते हैं। सुलझी हुई इस बेहद मैच्योर फिल्म को एक बार जरूर देखना चाहिए।
जमीन से जुड़ी कहानी
हॉन्ग कॉन्ग में अपनी बिजनेस ट्रिप से अमेरिका लौटी बैथ (ग्वेनैथ पॉल्ट्रो) अगले दिन अपने घर में बेहोश होकर गिर जाती है। हस्बैंड मिल्च (मैट डेमन) अस्पताल ले जाता है पर डॉक्टर उसे मृत घोषित कर देते हैं। धीरे-धीरे अमेरिका और दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी लोग इस वायरस से इन्फैक्टेड होने लगते हैं और मौतें होने लगती हैं। चमगादड़ और सूअर के जरिए फैले इस वायरस की तह तक जाने में डब्ल्यूएचओ, अमेरिकी डिजीज कंट्रोल और प्रिवेंशन सेंटर और बाकी एजेंसियां एक्टिव हो जाती हैं। फिर कहानी में एक ब्लॉगर-जर्नलिस्ट एलन (जूड लॉ) आता है, जो शुरू से सब कुछ जानता है पर कोई उसकी सुनता नहीं। वैकल्पिक मीडिया में उसके लाखों फॉलोवर बनते हैं और साथ ही साथ गवर्नमेंट की फेल हो चुकी लीडरशिप, ध्वस्त शहरी ढांचा और बेबस अमेरिकी जनता दिखती है। फिल्म की कहानी में मौजूद हर मैलोड्रमैटिक संभावना को कम से कम बढ़ाने-चढ़ाने की कोशिश की गई है।
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गजेंद्र सिंह भाटी