बुधवार, 9 नवंबर 2011

देखें अपंग विंटर की हेल्दी कहानी

फिल्मः डॉल्फिन टेल (अंग्रेजी)
निर्देशकः चार्ल्स मार्टिन स्मिथ
कास्टः नाथन गैंबल, कोजी जूल्सडॉर्फ, हैरी कॉनिक जूनियर, मॉर्गन फ्रीमैन, एश्ले जूड, ऑस्टिन स्टोवल
स्टारः साढ़े तीन स्टार, 3.5

जापान में हर साल होते 20,000 मासूम डॉल्फिनों के गुप्त नरसंहार पर बनी थी 2009 में आई ऑस्कर विनर डॉक्युमेंट्री ' कोव'। कोव मतलब आड़, ओट, खंदक या खोह। इस फिल्म के डायरेक्टर और नेशनल जियोग्रैफिक के फोटोग्रफर लूई फिहोयो ने शुद्ध पानी में रहने वाली इस बेहद सेंसेटिव और सोशल मछली की करूण कहानी पर अदभुत फिल्म बनाई। दो साल बाद डायरेक्टर चार्ल्स मार्टिन स्मिथ लेकर आए हैं एक सच्ची घटना पर बनी 'डॉल्फिन टेल'। फिल्म बेहद पवित्र, सरल और सिनेमैटिकली संपूर्ण सी है। असल में विंटर नाम की वो डॉल्फिन आज भी जिंदा है और स्वस्थ है। शायद दुनिया की अकेली ऐसी डॉल्फिन जो अपनी तैरने वाली पूंछ कटने पर भी जिंदा है और जिसे कृत्रिम पूंछ लगाई गई। बच्चे खासतौर पर इस फिल्म को देखें। पानी और मछलियों को छूने के उस चाव को महसूस करने के लिए जो शायद बचपन वाले ही कर पाते हैं। मासूम बने रहने के लिए देखें। फिल्में सार्थक होती हैं ये मानने के लिए देखें। फैमिली के बड़े भी साथ इसलिए देखें क्योंकि ऐसी हेल्दी मूवीज बहुत कम आती हैं। ये कोई 'लूट', 'बॉडीगार्ड', 'रेडी' और 'गेम' नहीं है, पर इतना दावा है कि पूरे वक्त आप गाल पर अपनी कलाई टिकाए फिल्म में डूबे रहेंगे।

डॉल्फिन की टेल यूं है...
सोयर नेल्सन (नाथन गैंबल) दिखने में 9-10 साल का लड़का है। वैसे तो छोटे हैलीकॉप्टर बनाने का शौकीन है पर अपने स्वीमिंग चैंपियन कजिन ब्रदर काइल (ऑस्टिन स्टोवल) से बहुत प्रेरित है। चाहता है कि काइल ओलपिंक्स तक जाए। मगर काइल फौज में चला जाता है। अब बुझा-बुझा रहने वाला सॉयर एक दिन समंदर किनारे एक घायल बॉटलनोज डॉल्फिन को देखता है। उसका फंदा काटता है और सहलाता है। उसके बाद से उस मरीन हॉस्पिटल जाने लगता है जहां उसे रखा गया है। वैसे तो यहां के डॉक्टर क्ले (हैरी कॉनिक जूनियर) किसी सिविलियन को आने नहीं देते, पर चूंकि ये डॉल्फिन सॉयर को देख खुश होती है इसलिए उसे आने देते हैं। डॉ. क्ले की बेटी हैजल (कोजी जूल्सडॉर्फ) इसका नाम विंटर रखती है। घाव ज्यादा होने के कारण विंटर की पूंछ काटनी पड़ती है। कहानी आगे बढ़ती है तो विंटर को कृत्रिम पूंछ दिलाने के लिए, इस मरीन हॉस्पिटल को बिकने से रोकने के लिए और बिना अंगों के लोगों को प्रेरणा देने के लिए। फिल्म सच्ची कहानी पर बनी है।

मनोरंजन का अलग पैमाना
'डॉल्फिन डेल' जैसी फिल्मों का जॉनर बिल्कुल अलग होता है। ये पूरी तरह फिल्मी होती हैं लेकिन असली कहानी के हूबहू करीब। फिल्म के आखिर में क्रेडिट्स के साथ असली विंटर के विजुअल्स दिखाए जाते हैं। कि कैसे 2005 में वह फ्लोरिडा के तट से बचाई गई, कैसे पूंछ काटने के बाद वह बची और कैसे इस पूरे अभियान से फ्लोरिडा के लोग, विकलांग सैनिक और बच्चे जुड़े। थ्रीडी की वजह से ऐसे लगता है जैसे ये कहानी असल में हम होती देख रहे हैं। सॉयर का रोल करने वाले नाथन गैंबल 'ऑगस्ट रश' के मासूम से चाइल्ड एक्टर फ्रेडी हाइमोर की याद दिलाते हैं। हर एक्टर का इस फिल्म में संतुलित रोल है। इस तरह की फिल्मों को बना पाना इसलिए बहुत मुश्किल होता है क्योंकि इनमें इमोशन उभारने में सबसे ज्यादा जोर आता है। फिल्म के डायलॉग भी इसी तर्ज पर कम से कम शब्दों वाले और प्रभावी हैं। सबसे ज्यादा बोलते हैं तो मूवी के विजुअल्स।*************
गजेंद्र सिंह भाटी