फिल्मः द अवेंजर्स
निर्देशकः जॉस वेडन
कास्टः मार्क रफैलो, रॉबर्ट डाउनी जूनियर, क्रिस हेम्सवर्थ, टॉम हिडलस्टन, स्कारलेट जोहानसन, क्रिस इवॉन्स, जैरेमी रैनर, सेमुअल एल. जैक्सन
स्टारः तीन, 3.0
'द अवेंजर्स’ में खूब हंसा देने वाला सीन क्लाइमैक्स से जरा पहले आता है। न्यू यॉर्क में अवेंजर्स यानी मार्वल कॉमिक्स के सुपरहीरोज और अंतरिक्ष से आए चितौरी राक्षसों के बीच जंग छिड़ी हुई है। टोनी स्टार्क की गगनचुंबी इमारत स्टार्क टावर्स में सुपरविलेन लोकी और हल्क आमने-सामने खड़े हैं। हल्क उससे भिडऩे को होता है कि लोकी एक आम मनुष्य की ऐसी जुर्रत देख गुस्से में कहता है, “रुको, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई, तुम जानते हो मैं कौन हूं? मैं देवता हूं देवता, सबका राजा!” इस डायलॉग के बाद हम सच में दो सेकंड के लिए ठिठक जाते हैं। पर हमारा हल्क भी जवाब कहां देता है, वह तो बस बदमाशी करना जानता है। लोकी को उठाकर किसी बदमाश बच्चे की तरह जमीन पर पटक-पटककर मारता है। सब शॉक में हैं। कुटाई करके वह चला जाता है और लोकी जमीन में हो चुके गढ्ढे में पड़ा है। आंखें और मुंह विस्मय से खुला है। उसे यकीन नहीं हो रहा कि वह पिट गया। और, यहीं पर दर्शकों के हंस-हंसकर पेट में बल पड़ जाते हैं। फिल्म में ऐसे पलों की कमी है।
एक और सीन याद करूं तो वह भी हल्क उर्फ डॉ. ब्रूस बैनर (मार्क रफैलो) का ही है। जब इस युद्ध में अंतरिक्ष वाले छेद से विशालकाय जीवों का आना होता है तो सुपरहीरो कुछ पिछड़ते लगते हैं। इनमें कोई ऐसा नहीं है जो उन्हें रोक सके। ऐसे में एक टूटी सी बाइक पर आते हैं डॉ. ब्रूस (फिल्म में इन्हें हम पहले कलकत्ता की झुग्गियों में भारतीय गरीबों के बीच छिपकर सेवा करते देखते हैं), उनका आना मुश्किल था ऐसे में देख सब खुश होते हैं, तब तक एक उड़ता विशाल मशीनी प्राणी करीब आ चुका होता है। एक सुपरहीरो कहता है, “क्या तुम गुस्सा होने में देर नहीं कर रहे हो” (ब्रूस को हल्क बनने में वक्त लगता है क्योंकि जैसे जैसे उसे गुस्सा आता है वह विशाल होता जाता है)। आखिरी बार पीछे मुड़कर देखते हुए ब्रूस बैनर कहते हैं, “नहीं, तुम जानते हो क्यों? क्योंकि आई एम ऑलवेज एंग्री!” इतना कहने के अगले ही पल ब्रूस हरे महामानव हल्क में तब्दील हो जाता हैं। इस सीन में ये जो थ्रिल है, पहले औचक बड़ी स्थिति फिर इसमें चतुराई भरे संवाद का आना और बाद में तुरंत उसमें बड़े एक्शन का जुड़ते हुए शुरू हो जाना, ये पूरी फिल्म में उतना नहीं है जितना ‘द अवेंजर्स’ जैसी बड़ी कहानी में होना चाहिए था।
तो आते हैं कहानी पर, जो कुछ हद तक सपाट भी है। एक अमेरिकी रिसर्च केंद्र में असीमित ऊर्जा के भंडार टैसरैक्ट (वर्गाकार चमकती चीज) पर काम हो रहा है। मगर टैसरैक्ट खुद एक्टिवेट हो जाता है और अंतरिक्ष में उससे बने रास्ते से सुपरविलेन देवता लोकी (टॉम हिडलस्टन) धरती पर आ जाता है। वह टैसरैक्ट ले जाता है, ताकि अंतरिक्ष में बड़ा रास्ता बना सके और चितौरी राक्षसों की सेना उस रास्ते से आकर धरती का विनाश करने में उसकी मदद कर सके। हालात से निपटने के लिए गुप्त एजेंसी ‘शील्ड’ का डायरेक्टर फ्यूरी (सेमुअल एल. जैक्सन) 'अवेंजर्स मिशन’ फिर शुरू करता है। मानवता और अमेरिका को बचाने में अब हल्क (मार्क रफैलो), आयरन मैन (रॉबर्ट डाउनी जूनियर) और कैप्टन अमेरिका (क्रिस इवान्स) को बुलाया जाता है। ब्लैक विडो (स्कारलेट जोहानसन) और हॉकआइ (जैरेमी रेनर) के अलावा उनका साथ देगा लोकी का भाई और देवता थोर (क्रिस हेम्सवर्थ) भी।
‘द अवेंजर्स’ शुरू होती है सैमुअल जैक्सन के किरदार निक फ्यूरी से। शुरू के काफी हिस्से तक वह सूत्रधार बने रहते हैं, सब महानायकों को जुटाते हैं, काउंसिल से बात करते हैं और बाद में जब अवेंजर्स अपने-अपने घमंडों में मिशन भूल जाते हैं तो उन्हें इमोशनल पुश देते हैं। लेकिन इन सभी चरणों में कहीं भी सैमुअल के चेहरे पर “शिफ्ट ऑफ एक्सप्रेशंस” नहीं दिखता। चेहरा सपाट बना रहता है। रिसर्च सेंटर में टैसरैक्ट में अजीब सी एक्टिविटी होने लगी है, इतनी बड़ी खतरे की घंटी है, पर सैमुअल को हैरत नहीं होती। लोकी वहां प्रकट होकर डॉ. सेलविग (स्टेलन स्कार्सगार्द) और बार्टन (जैरेमी रेनर) को अपना गुलाम बना लेता है, दोनों सैमुअल के किरदार के दो सबसे महत्वपूर्ण आदमी है, लेकिन वह चौंकते नहीं हैं, किसी बीपीओ कंपनी के दफ्तर में घूमते बॉस की तरह हल्की-फुल्की भागादौड़ करते हैं। ये भागादौड़ी शब्द भी ज्यादा ही है क्योंकि उनके कदमों की रफ्तार एक-आध जगह ही फिल्म में तेज होती है, अन्यथा उनके शारीरिक हाव-भाव में भी कहीं बदलाव नहीं आता। सैमुअल का इस लिहाज से कम सक्रिय होना फिल्म को कमजोर करता है।
तमाम किरदारों में तीन सबसे रोचक हैं हल्क, थोर और आयरन मैन। क्योंकि तीनों सबसे मजबूत व्यक्तिगत कहानियों, ताकतों और एटिट्यूड के साथ आते हैं। हल्क और उसके मानवी रूप डॉ. ब्रूस बैनर में पर्याप्त विरोधाभास हैं। और इस बार मार्क रफैलो की व्यक्तिगत एक्टिंग स्टाइल भी इस कॉन्ट्रास्ट में इजाफा करती है। रफैलो जितना शांत, कमजोर और टूटे-टूटे से रहते हैं, हल्क बनने पर उनकी ये वलनरेबिलिटी उतनी ही बड़ी ताकत और गुस्से के भंडार में तब्दील हो जाती है। टॉनी स्टार्क के बारे में उन्हीं के शब्दों में ही कहें तो प्लेबॉय, जीनियस, दानी और अरबपति होने के अलावा वह आयरन मैन भी हैं। तमाम सुपरहीरो में वह सबसे संपूर्ण हैं। क्लाइमैक्स वाली लड़ाई भी उन्हीं की ईमारत स्टार्क टावर्स में होती है, टैसरैक्ट के राज भी वही जानते हैं, उन्हें ये भी पता है कि गुप्तचर एजेंसी शील्ड के डायरेक्टर निक फ्यूरी टैसरैक्ट को लेकर जनसंहार के हथियार बनाना चाह रहे हैं। इसके अलावा सब सुपरहीरो में वह अकेले ही हैं जिनके पास रणनीति है। कैप्टन अमेरिका के पास भी है पर जमीनी स्तर वाली, वह चितौरी राक्षसों को रोकने या अंतरिक्ष में टैसरैक्ट की किरणों से हुए छेद को बंद करने में कुछ नहीं कर सकते। ये कोई कर सकता है तो सिर्फ आयरन मैन। और वह करता भी है। चाहे शील्ड का विशालकाय हवाई यान बंद हो जाने पर उसके पंखे को धक्का देकर चलाने का असंभव सा काम हो या परमाणु मिसाइल को अंतरिक्ष में हुए छेद के रास्ते ब्रम्हांड में चितौरियों के यान में फोड़ आना हो, ये विरले काम आयरन मैन ही करता है। रॉबर्ट डाउनी जूनियर लोहे जैसी धातू वाले जितने भारी लगने वाले आयरन मैन सूट को पहनते हैं, अपने व्यवहार में उतने ही नम्र हैं। कुछेक बेहद गंभीर मौकों पर ही वह गंभीर होते हैं, अन्यथा माहौल को राजभोग जितना ठंडा और हल्का-फुल्का बनाए रखते हैं। ठंडे केसर की खुशबू और हरे पिस्ते के रंग सा सुकून भरा। तभी तो न्यू यॉर्क के एक बड़े से टावर की ओट से उड़ते आते वक्त अपने तमाम सुपरहीरो साथियों को जब वह कहते हैं कि “गाइज, आई एम ब्रिंगिंग द पार्टी टु यू...” तो हम स्थिति में अंदर तक घुसे लगते हैं। और, अगले ही क्षण उनके मक्खी जैसे शरीर के पीछे पहाड़ जैसा दैत्याकार मशीनी जीव उड़ता आ रहा होता है... और अचानक से हमें महसूस होता है कि उतने आसान और आसानी से बोले गए संवाद के बाद जब लार्जर दैन लाइफ चीज की दृश्य में एंट्री हुई है तो हमें रोमांच हो आया है। क्षणिक ही सही। जब लगता है कि टोनी उर्फ आयरन मैन होश में नहीं आ रहा, मर गया है और हल्क जोर से चीखता है, तो वह एकदम से आंखें खोल देता है, कहता है, “वॉट, वॉट हैपन्ड। तुममें से किसी ने मुझे किस तो नहीं किया!”
फिल्म में जब थंडर का देवता थोर आता है तो ढेर सारी ऊर्जा और संभावनाओं के साथ। क्योंकि वह अकेला ही है जो सीधे तौर पर लोकी (हालांकि थोर लोकी का गोद लिया भाई है और उसे सही रास्ते पर लाना चाहता है) का कचूमर निकाल सकता है। उसका हथौड़ा और मर्दानगी भरी आवाज याद दिलाती है कि ये डोगा, भेड़िया और नागराज जैसे मर्दाने-गंभीर और ठोस सुपरहीरो की रेंज का है। जो विशुद्ध संग्राम किया करते थे, कोई टीनएजर जोक करना या हंसी-मजाक करना कभी इन हीरोज के मिजाज में नहीं रहा। थोर दरअसल सुपरहीरो देवताओं की आखिरी पीढ़ी की धुंधली याद की तरह है जो कोई 50 साल पहले की कॉमिक्स में हमें नजर आने लगी थी, तब जब कॉमिक्स में चित्र इतने आकर्षक और चिकनी फिनिशिंग वाले नहीं होते थे। तब भारत में फैंटम और थोर जैसे अमेरिकी सुपरहीरो कुछ अलहदा किस्म के हुआ करते थे, हालांकि तब सुपरमैन और बैटमैन वगैरह भी थे। फिल्म में थोर को निभाने वाले क्रिस हेम्सवर्थ विशुद्ध सुपरहीरो काया वाले नौजवान हैं, जिनके चेहरे पर पर्याप्त पुरुषोचित परिवक्वता है। हल्क और आयरन मैन के साथ-साथ थोर के भी कुछ हैरतअंगेज विजुअल इफैक्ट फिल्म में हैं। पहले तो हल्क से भिड़ने वाला दृश्य, जहां दैत्याकार हल्क के आगे उनके इंसानी शरीर को देखते हुए भी हमें लगता है कि हां, थोर तो बराबर की ताकत वाला है। फिर वह दृश्य भी आता है जब हल्क थोर का हथौड़ा उठाने की कोशिश करता है, लेकिन हिला भी नहीं पाता। थोर का वह दृश्य भी हिला देने वाला है जब शील्ड के यान से लोकी थोर को लौहे के चैंबर समेत आसमान से नीचे फेंक देता है। लगता है कि इस चैंबर के धरती से भिड़ते ही थोर नष्ट हो जाएगा, पर वह सेंकड भर पहले निकल जाता है।
क्रिस हेम्सवर्थ के अलावा कैप्टन अमेरिका के रोल में क्रिस इवान्स का व्यक्तित्व भी भरा-पूरा है, बस जरा सी जकड़न कहीं न कहीं महसूस होती रहती है। शायद वह दूसरे सुपरहीरो जितने प्रैक्टिकल या जुमलों के साथ नहीं हैं, या शायद उनका कोई कहानी को उत्प्रेरित करने वाल अतीत नहीं है। शायद इसलिए भी कि उनके सुपरहीरो अवतार और इंसानी रूप में कभी कोई विरोधाभास नहीं रहा। मसलन, स्टार्क इतना जिंदादिल है इस बात के उलट कि दिल की जगह उसके सीने में रिएक्टर लगा है। जैरेमी रेनर आधी फिल्म गुजर जाने के बाद सुपरहीरोज के पाले में लौटते हैं और धनुर्धारी हॉकआइ के रूप में सामूहिक ताकत बढ़ाते हैं। ठीक उसी तरह सुपरहीरोज की फौज की अतिथि सी बनी नजर आती हैं ब्लैक विडो के रोल में स्कारलेट जोहानसन। उनके स्टंट सीन पर्याप्त हैं, हल्क को लेने कलकत्ता वही तो जाती हैं।
इतनी बड़ी महामूवी में कॉमिक्स और दर्शकों के बीच के रिश्ते को संकेतात्मक श्रद्धांजलि भी है। सैमुअल के साथ काम कर रहे एजेंट फिलिप कोउलसन (क्लार्क ग्रेग) के किरदार का वह अंश जहां एक फैन के तौर पर वह कैप्टन अमेरिका से बात करता है। जब वह, कैप्टन अमेरिका और नताशा रोमानोफ (ब्लैक विडो) विमान में जर्मनी जा रहे हैं। पहली बार अपने सुपरहीरो को करीब से देख एजेंट फिलिप नर्वस हो जाता है। अच्छा सीन है यह। यहां कैप्टन अमेरिका पूछता है कि “कहीं मेरी धारियों और सितारों वाली ड्रेस ओल्ड फैशन्ड (पुरानी) तो नहीं लगेगी”। जवाब में फिलिप (और भीतर बैठे एक-एक पुरानी कॉमिक्स के फैन के रूप में हम) कहता है, “लोगों को शायद अभी कुछ ओल्ड फैशन्ड की ही जरूरत है”।
*** *** *** ***
गजेंद्र सिंह भाटी
निर्देशकः जॉस वेडन
कास्टः मार्क रफैलो, रॉबर्ट डाउनी जूनियर, क्रिस हेम्सवर्थ, टॉम हिडलस्टन, स्कारलेट जोहानसन, क्रिस इवॉन्स, जैरेमी रैनर, सेमुअल एल. जैक्सन
स्टारः तीन, 3.0
'द अवेंजर्स’ में खूब हंसा देने वाला सीन क्लाइमैक्स से जरा पहले आता है। न्यू यॉर्क में अवेंजर्स यानी मार्वल कॉमिक्स के सुपरहीरोज और अंतरिक्ष से आए चितौरी राक्षसों के बीच जंग छिड़ी हुई है। टोनी स्टार्क की गगनचुंबी इमारत स्टार्क टावर्स में सुपरविलेन लोकी और हल्क आमने-सामने खड़े हैं। हल्क उससे भिडऩे को होता है कि लोकी एक आम मनुष्य की ऐसी जुर्रत देख गुस्से में कहता है, “रुको, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई, तुम जानते हो मैं कौन हूं? मैं देवता हूं देवता, सबका राजा!” इस डायलॉग के बाद हम सच में दो सेकंड के लिए ठिठक जाते हैं। पर हमारा हल्क भी जवाब कहां देता है, वह तो बस बदमाशी करना जानता है। लोकी को उठाकर किसी बदमाश बच्चे की तरह जमीन पर पटक-पटककर मारता है। सब शॉक में हैं। कुटाई करके वह चला जाता है और लोकी जमीन में हो चुके गढ्ढे में पड़ा है। आंखें और मुंह विस्मय से खुला है। उसे यकीन नहीं हो रहा कि वह पिट गया। और, यहीं पर दर्शकों के हंस-हंसकर पेट में बल पड़ जाते हैं। फिल्म में ऐसे पलों की कमी है।
एक और सीन याद करूं तो वह भी हल्क उर्फ डॉ. ब्रूस बैनर (मार्क रफैलो) का ही है। जब इस युद्ध में अंतरिक्ष वाले छेद से विशालकाय जीवों का आना होता है तो सुपरहीरो कुछ पिछड़ते लगते हैं। इनमें कोई ऐसा नहीं है जो उन्हें रोक सके। ऐसे में एक टूटी सी बाइक पर आते हैं डॉ. ब्रूस (फिल्म में इन्हें हम पहले कलकत्ता की झुग्गियों में भारतीय गरीबों के बीच छिपकर सेवा करते देखते हैं), उनका आना मुश्किल था ऐसे में देख सब खुश होते हैं, तब तक एक उड़ता विशाल मशीनी प्राणी करीब आ चुका होता है। एक सुपरहीरो कहता है, “क्या तुम गुस्सा होने में देर नहीं कर रहे हो” (ब्रूस को हल्क बनने में वक्त लगता है क्योंकि जैसे जैसे उसे गुस्सा आता है वह विशाल होता जाता है)। आखिरी बार पीछे मुड़कर देखते हुए ब्रूस बैनर कहते हैं, “नहीं, तुम जानते हो क्यों? क्योंकि आई एम ऑलवेज एंग्री!” इतना कहने के अगले ही पल ब्रूस हरे महामानव हल्क में तब्दील हो जाता हैं। इस सीन में ये जो थ्रिल है, पहले औचक बड़ी स्थिति फिर इसमें चतुराई भरे संवाद का आना और बाद में तुरंत उसमें बड़े एक्शन का जुड़ते हुए शुरू हो जाना, ये पूरी फिल्म में उतना नहीं है जितना ‘द अवेंजर्स’ जैसी बड़ी कहानी में होना चाहिए था।
तो आते हैं कहानी पर, जो कुछ हद तक सपाट भी है। एक अमेरिकी रिसर्च केंद्र में असीमित ऊर्जा के भंडार टैसरैक्ट (वर्गाकार चमकती चीज) पर काम हो रहा है। मगर टैसरैक्ट खुद एक्टिवेट हो जाता है और अंतरिक्ष में उससे बने रास्ते से सुपरविलेन देवता लोकी (टॉम हिडलस्टन) धरती पर आ जाता है। वह टैसरैक्ट ले जाता है, ताकि अंतरिक्ष में बड़ा रास्ता बना सके और चितौरी राक्षसों की सेना उस रास्ते से आकर धरती का विनाश करने में उसकी मदद कर सके। हालात से निपटने के लिए गुप्त एजेंसी ‘शील्ड’ का डायरेक्टर फ्यूरी (सेमुअल एल. जैक्सन) 'अवेंजर्स मिशन’ फिर शुरू करता है। मानवता और अमेरिका को बचाने में अब हल्क (मार्क रफैलो), आयरन मैन (रॉबर्ट डाउनी जूनियर) और कैप्टन अमेरिका (क्रिस इवान्स) को बुलाया जाता है। ब्लैक विडो (स्कारलेट जोहानसन) और हॉकआइ (जैरेमी रेनर) के अलावा उनका साथ देगा लोकी का भाई और देवता थोर (क्रिस हेम्सवर्थ) भी।
‘द अवेंजर्स’ शुरू होती है सैमुअल जैक्सन के किरदार निक फ्यूरी से। शुरू के काफी हिस्से तक वह सूत्रधार बने रहते हैं, सब महानायकों को जुटाते हैं, काउंसिल से बात करते हैं और बाद में जब अवेंजर्स अपने-अपने घमंडों में मिशन भूल जाते हैं तो उन्हें इमोशनल पुश देते हैं। लेकिन इन सभी चरणों में कहीं भी सैमुअल के चेहरे पर “शिफ्ट ऑफ एक्सप्रेशंस” नहीं दिखता। चेहरा सपाट बना रहता है। रिसर्च सेंटर में टैसरैक्ट में अजीब सी एक्टिविटी होने लगी है, इतनी बड़ी खतरे की घंटी है, पर सैमुअल को हैरत नहीं होती। लोकी वहां प्रकट होकर डॉ. सेलविग (स्टेलन स्कार्सगार्द) और बार्टन (जैरेमी रेनर) को अपना गुलाम बना लेता है, दोनों सैमुअल के किरदार के दो सबसे महत्वपूर्ण आदमी है, लेकिन वह चौंकते नहीं हैं, किसी बीपीओ कंपनी के दफ्तर में घूमते बॉस की तरह हल्की-फुल्की भागादौड़ करते हैं। ये भागादौड़ी शब्द भी ज्यादा ही है क्योंकि उनके कदमों की रफ्तार एक-आध जगह ही फिल्म में तेज होती है, अन्यथा उनके शारीरिक हाव-भाव में भी कहीं बदलाव नहीं आता। सैमुअल का इस लिहाज से कम सक्रिय होना फिल्म को कमजोर करता है।
तमाम किरदारों में तीन सबसे रोचक हैं हल्क, थोर और आयरन मैन। क्योंकि तीनों सबसे मजबूत व्यक्तिगत कहानियों, ताकतों और एटिट्यूड के साथ आते हैं। हल्क और उसके मानवी रूप डॉ. ब्रूस बैनर में पर्याप्त विरोधाभास हैं। और इस बार मार्क रफैलो की व्यक्तिगत एक्टिंग स्टाइल भी इस कॉन्ट्रास्ट में इजाफा करती है। रफैलो जितना शांत, कमजोर और टूटे-टूटे से रहते हैं, हल्क बनने पर उनकी ये वलनरेबिलिटी उतनी ही बड़ी ताकत और गुस्से के भंडार में तब्दील हो जाती है। टॉनी स्टार्क के बारे में उन्हीं के शब्दों में ही कहें तो प्लेबॉय, जीनियस, दानी और अरबपति होने के अलावा वह आयरन मैन भी हैं। तमाम सुपरहीरो में वह सबसे संपूर्ण हैं। क्लाइमैक्स वाली लड़ाई भी उन्हीं की ईमारत स्टार्क टावर्स में होती है, टैसरैक्ट के राज भी वही जानते हैं, उन्हें ये भी पता है कि गुप्तचर एजेंसी शील्ड के डायरेक्टर निक फ्यूरी टैसरैक्ट को लेकर जनसंहार के हथियार बनाना चाह रहे हैं। इसके अलावा सब सुपरहीरो में वह अकेले ही हैं जिनके पास रणनीति है। कैप्टन अमेरिका के पास भी है पर जमीनी स्तर वाली, वह चितौरी राक्षसों को रोकने या अंतरिक्ष में टैसरैक्ट की किरणों से हुए छेद को बंद करने में कुछ नहीं कर सकते। ये कोई कर सकता है तो सिर्फ आयरन मैन। और वह करता भी है। चाहे शील्ड का विशालकाय हवाई यान बंद हो जाने पर उसके पंखे को धक्का देकर चलाने का असंभव सा काम हो या परमाणु मिसाइल को अंतरिक्ष में हुए छेद के रास्ते ब्रम्हांड में चितौरियों के यान में फोड़ आना हो, ये विरले काम आयरन मैन ही करता है। रॉबर्ट डाउनी जूनियर लोहे जैसी धातू वाले जितने भारी लगने वाले आयरन मैन सूट को पहनते हैं, अपने व्यवहार में उतने ही नम्र हैं। कुछेक बेहद गंभीर मौकों पर ही वह गंभीर होते हैं, अन्यथा माहौल को राजभोग जितना ठंडा और हल्का-फुल्का बनाए रखते हैं। ठंडे केसर की खुशबू और हरे पिस्ते के रंग सा सुकून भरा। तभी तो न्यू यॉर्क के एक बड़े से टावर की ओट से उड़ते आते वक्त अपने तमाम सुपरहीरो साथियों को जब वह कहते हैं कि “गाइज, आई एम ब्रिंगिंग द पार्टी टु यू...” तो हम स्थिति में अंदर तक घुसे लगते हैं। और, अगले ही क्षण उनके मक्खी जैसे शरीर के पीछे पहाड़ जैसा दैत्याकार मशीनी जीव उड़ता आ रहा होता है... और अचानक से हमें महसूस होता है कि उतने आसान और आसानी से बोले गए संवाद के बाद जब लार्जर दैन लाइफ चीज की दृश्य में एंट्री हुई है तो हमें रोमांच हो आया है। क्षणिक ही सही। जब लगता है कि टोनी उर्फ आयरन मैन होश में नहीं आ रहा, मर गया है और हल्क जोर से चीखता है, तो वह एकदम से आंखें खोल देता है, कहता है, “वॉट, वॉट हैपन्ड। तुममें से किसी ने मुझे किस तो नहीं किया!”
फिल्म में जब थंडर का देवता थोर आता है तो ढेर सारी ऊर्जा और संभावनाओं के साथ। क्योंकि वह अकेला ही है जो सीधे तौर पर लोकी (हालांकि थोर लोकी का गोद लिया भाई है और उसे सही रास्ते पर लाना चाहता है) का कचूमर निकाल सकता है। उसका हथौड़ा और मर्दानगी भरी आवाज याद दिलाती है कि ये डोगा, भेड़िया और नागराज जैसे मर्दाने-गंभीर और ठोस सुपरहीरो की रेंज का है। जो विशुद्ध संग्राम किया करते थे, कोई टीनएजर जोक करना या हंसी-मजाक करना कभी इन हीरोज के मिजाज में नहीं रहा। थोर दरअसल सुपरहीरो देवताओं की आखिरी पीढ़ी की धुंधली याद की तरह है जो कोई 50 साल पहले की कॉमिक्स में हमें नजर आने लगी थी, तब जब कॉमिक्स में चित्र इतने आकर्षक और चिकनी फिनिशिंग वाले नहीं होते थे। तब भारत में फैंटम और थोर जैसे अमेरिकी सुपरहीरो कुछ अलहदा किस्म के हुआ करते थे, हालांकि तब सुपरमैन और बैटमैन वगैरह भी थे। फिल्म में थोर को निभाने वाले क्रिस हेम्सवर्थ विशुद्ध सुपरहीरो काया वाले नौजवान हैं, जिनके चेहरे पर पर्याप्त पुरुषोचित परिवक्वता है। हल्क और आयरन मैन के साथ-साथ थोर के भी कुछ हैरतअंगेज विजुअल इफैक्ट फिल्म में हैं। पहले तो हल्क से भिड़ने वाला दृश्य, जहां दैत्याकार हल्क के आगे उनके इंसानी शरीर को देखते हुए भी हमें लगता है कि हां, थोर तो बराबर की ताकत वाला है। फिर वह दृश्य भी आता है जब हल्क थोर का हथौड़ा उठाने की कोशिश करता है, लेकिन हिला भी नहीं पाता। थोर का वह दृश्य भी हिला देने वाला है जब शील्ड के यान से लोकी थोर को लौहे के चैंबर समेत आसमान से नीचे फेंक देता है। लगता है कि इस चैंबर के धरती से भिड़ते ही थोर नष्ट हो जाएगा, पर वह सेंकड भर पहले निकल जाता है।
क्रिस हेम्सवर्थ के अलावा कैप्टन अमेरिका के रोल में क्रिस इवान्स का व्यक्तित्व भी भरा-पूरा है, बस जरा सी जकड़न कहीं न कहीं महसूस होती रहती है। शायद वह दूसरे सुपरहीरो जितने प्रैक्टिकल या जुमलों के साथ नहीं हैं, या शायद उनका कोई कहानी को उत्प्रेरित करने वाल अतीत नहीं है। शायद इसलिए भी कि उनके सुपरहीरो अवतार और इंसानी रूप में कभी कोई विरोधाभास नहीं रहा। मसलन, स्टार्क इतना जिंदादिल है इस बात के उलट कि दिल की जगह उसके सीने में रिएक्टर लगा है। जैरेमी रेनर आधी फिल्म गुजर जाने के बाद सुपरहीरोज के पाले में लौटते हैं और धनुर्धारी हॉकआइ के रूप में सामूहिक ताकत बढ़ाते हैं। ठीक उसी तरह सुपरहीरोज की फौज की अतिथि सी बनी नजर आती हैं ब्लैक विडो के रोल में स्कारलेट जोहानसन। उनके स्टंट सीन पर्याप्त हैं, हल्क को लेने कलकत्ता वही तो जाती हैं।
इतनी बड़ी महामूवी में कॉमिक्स और दर्शकों के बीच के रिश्ते को संकेतात्मक श्रद्धांजलि भी है। सैमुअल के साथ काम कर रहे एजेंट फिलिप कोउलसन (क्लार्क ग्रेग) के किरदार का वह अंश जहां एक फैन के तौर पर वह कैप्टन अमेरिका से बात करता है। जब वह, कैप्टन अमेरिका और नताशा रोमानोफ (ब्लैक विडो) विमान में जर्मनी जा रहे हैं। पहली बार अपने सुपरहीरो को करीब से देख एजेंट फिलिप नर्वस हो जाता है। अच्छा सीन है यह। यहां कैप्टन अमेरिका पूछता है कि “कहीं मेरी धारियों और सितारों वाली ड्रेस ओल्ड फैशन्ड (पुरानी) तो नहीं लगेगी”। जवाब में फिलिप (और भीतर बैठे एक-एक पुरानी कॉमिक्स के फैन के रूप में हम) कहता है, “लोगों को शायद अभी कुछ ओल्ड फैशन्ड की ही जरूरत है”।
*** *** *** ***
गजेंद्र सिंह भाटी