फिल्मः मेडागास्कर 3 – यूरोप्स मोस्ट वॉन्टेड (थ्रीडी-अंग्रेजी)
डायरेक्टरः ऐरिक डार्नेल, टॉम मेकग्राथ और कॉनराड वर्नन
आवाजः बेन स्टिलर, क्रिस रॉक, डेविड श्विमर, जेडा पिंकेट स्मिथ, साशा बैरन कोहेन
स्टारः तीन, 3.0
संक्षिप्त टिप्पणी
बच्चों के लिए दुनिया भर में बनने वाली फिल्में तकरीबन सभी अच्छी होती हैं। चाहे ईरान में बनती माजिद माजिदी की ‘द कलर ऑफ पैरेडाइज’ हो या भारत में बनी रघुबीर यादव के अभिनय वाली ‘आसमान से गिरा’। हॉलीवुड की एनिमेशन और थ्रीडी फिल्में कभी निराश नहीं करती। ‘शार्क टेल’, ‘मेडागास्कर’ और ‘आइस ऐज’ बच्चों की पुराण बन चुकी हैं। ‘मेडागास्कर-3’ उम्मीद जितनी अच्छी तो नहीं है पर बच्चों को इसमें कुछ भी बोरिंग नहीं लगेगा। फिल्म में नई चीजें भी हैं। जैसे, पैरिस पहुंचे एलेक्स को पकडऩे की हैरतअंगेज कोशिशों में लगी फ्रेंच कैप्टन शॉन्तेल दुबुआ। उसका भरे बदन के साथ लाल स्कूटरों पर सवार हो फ्रेंच एक्सेंट में जानवरों की वैन का पीछा करना। साथ ही पेंगुइन्स और किंग जूलियन वाले सीन सबसे मजेदार हैं। बड़ों को फिल्म औसत लगेगी। पहली फिल्म में न्यू यॉर्क के जू से निकल शहरी जानवरों का अफ्रीका पहुंचना और वहां के ठेठ किरदारों से उनका सामना होना नई चीज थी इसलिए फिल्म रोचक बनी। इस बार उनके न्यू यॉर्क लौटने की बात में कोई चाव नहीं था इसलिए ये फिल्म मोटे तौर पर औसत हो गई। कुछ मौके थे जहां फिल्म बड़ी मजेदार हो सकती थी, पर कुछ कसर रह गई। मसलन...
‘मेडागास्कर-2’ जहां खत्म हुई थी, वहां ये कहानी शुरू होती है। न्यू यॉर्क के चिडिय़ाघर में रहने वाले एलेक्स (शेर), मार्टी (जेबरा), मेल्मन (जिराफ) और ग्लोरिया (दरियाई घोड़ी) अब अफ्रीका में हैं। पेंगुइन्स इन्हें छोड़ मोंटे कार्लो, पैरिस में जुआ खेलने गए हैं। एलेक्स को डर है कि कहीं वह अपने साथियों के साथ अफ्रीका में पड़ा-पड़ा बूढ़ा तो नहीं हो जाएगा। उसे न्यू यॉर्क के चिड़ियाघर की याद सताने लगती है जहां का वह स्टार था। अब वह अपने दोस्तों के साथ पेंगुइन्स को ढूंढने मोंटे कार्लो ही जाने की योजना बनाता है। मगर वहां जाने पर सब कुछ उल्टा पुल्टा हो जाता है। सब न्यू यॉर्क तो पहुंचते हैं पर ढेर सारे एडवेंचर के बाद।
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गजेंद्र सिंह भाटी
डायरेक्टरः ऐरिक डार्नेल, टॉम मेकग्राथ और कॉनराड वर्नन
आवाजः बेन स्टिलर, क्रिस रॉक, डेविड श्विमर, जेडा पिंकेट स्मिथ, साशा बैरन कोहेन
स्टारः तीन, 3.0
संक्षिप्त टिप्पणी
बच्चों के लिए दुनिया भर में बनने वाली फिल्में तकरीबन सभी अच्छी होती हैं। चाहे ईरान में बनती माजिद माजिदी की ‘द कलर ऑफ पैरेडाइज’ हो या भारत में बनी रघुबीर यादव के अभिनय वाली ‘आसमान से गिरा’। हॉलीवुड की एनिमेशन और थ्रीडी फिल्में कभी निराश नहीं करती। ‘शार्क टेल’, ‘मेडागास्कर’ और ‘आइस ऐज’ बच्चों की पुराण बन चुकी हैं। ‘मेडागास्कर-3’ उम्मीद जितनी अच्छी तो नहीं है पर बच्चों को इसमें कुछ भी बोरिंग नहीं लगेगा। फिल्म में नई चीजें भी हैं। जैसे, पैरिस पहुंचे एलेक्स को पकडऩे की हैरतअंगेज कोशिशों में लगी फ्रेंच कैप्टन शॉन्तेल दुबुआ। उसका भरे बदन के साथ लाल स्कूटरों पर सवार हो फ्रेंच एक्सेंट में जानवरों की वैन का पीछा करना। साथ ही पेंगुइन्स और किंग जूलियन वाले सीन सबसे मजेदार हैं। बड़ों को फिल्म औसत लगेगी। पहली फिल्म में न्यू यॉर्क के जू से निकल शहरी जानवरों का अफ्रीका पहुंचना और वहां के ठेठ किरदारों से उनका सामना होना नई चीज थी इसलिए फिल्म रोचक बनी। इस बार उनके न्यू यॉर्क लौटने की बात में कोई चाव नहीं था इसलिए ये फिल्म मोटे तौर पर औसत हो गई। कुछ मौके थे जहां फिल्म बड़ी मजेदार हो सकती थी, पर कुछ कसर रह गई। मसलन...
Maurice and King Julien |
- पहली दो फिल्मों जितना चटख ह्यूमर किरदारों में नहीं है। जैसे क्रिस रॉक और बेन स्टिलर की आवाज वाले पात्रों मार्टी और एलेक्स के बीच पिछली फिल्मों में कितनी शानदार हास्य जुगलबंदी होती थी।
- हांस जिमर का म्यूजिक तो है पर ‘आई लाइक टु मूव इट मूव इट’ जैसा एक भी फनी गाना नहीं है।
- ‘द डिक्टेटर’ जैसी फिल्म से सुर्खियों में रहे उम्दा एक्टर साशा बैरन कोहेन ने इस सीरिज के सबसे फनी किरदार किंग जूलियन को अपनी आवाज दी है। वह कमाल हैं, लेकिन जूलियन के सीन कम लगते हैं।
‘मेडागास्कर-2’ जहां खत्म हुई थी, वहां ये कहानी शुरू होती है। न्यू यॉर्क के चिडिय़ाघर में रहने वाले एलेक्स (शेर), मार्टी (जेबरा), मेल्मन (जिराफ) और ग्लोरिया (दरियाई घोड़ी) अब अफ्रीका में हैं। पेंगुइन्स इन्हें छोड़ मोंटे कार्लो, पैरिस में जुआ खेलने गए हैं। एलेक्स को डर है कि कहीं वह अपने साथियों के साथ अफ्रीका में पड़ा-पड़ा बूढ़ा तो नहीं हो जाएगा। उसे न्यू यॉर्क के चिड़ियाघर की याद सताने लगती है जहां का वह स्टार था। अब वह अपने दोस्तों के साथ पेंगुइन्स को ढूंढने मोंटे कार्लो ही जाने की योजना बनाता है। मगर वहां जाने पर सब कुछ उल्टा पुल्टा हो जाता है। सब न्यू यॉर्क तो पहुंचते हैं पर ढेर सारे एडवेंचर के बाद।
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गजेंद्र सिंह भाटी