फिल्मः बोल बच्चन
डायरेक्टरः रोहित शेट्टी
कास्टः अजय देवगन, अभिषेक बच्चन, प्राची देसाई, असिन, कृष्णा अभिषेक, अर्चना पूरण सिंह, असरानी, नीरज वोरा
स्टारः डेढ़, 1.5
सुझाव: दो-तीन एक्शन सीन के अलावा थियेटर जाकर देखने लायक कुछ नहीं। टीवी पर आने का इंतजार कर सकते हैं। फिल्म को डेढ़ स्टार भी इसलिए कि सिंगल स्क्रीन वाले दर्शक टेक्नीकल खामियों पर ध्यान नहीं देते हुए फिल्म को कुछ हद तक एंजॉय कर पाते हैं।
‘बोल बच्चन’ देखने के बाद आपका पूरा दिन खराब रहता है। न कॉमेडी सर्कस वाले कृष्णा की मसखरी हंसाती है, न अर्चना पूरण सिंह के होने का कोई फायदा होता है। देखकर लगता है कि इस फिल्म से दोनों का अभिनय दस कदम पीछे लुढ़क गया है। अजय देवगन की डायलॉग डिलीवरी और डांस इतना बुरा है कि आंखें फोड़ लेने को मन करता है। हालांकि गलत अंग्रेजी बोलने वाले उनके तमाम सीन्स में दर्शक हंसते हैं, मगर ‘माई चेस्ट हैज बिकम ब्लाउज’ जैसे घटिया जुमलों पर हंसने का मुझे कोई कारण नहीं नजर आता है। जो हर पल और भी घटिया होते जाते हैं। स्क्रिप्ट नाम की जो सबसे इज्जतदार चीज फिल्म में होती है, उसे इस फिल्म के मुहुर्त शॉट के दौरान ही दरबान के साथ बाहर बिठा दिया गया होगा। मसलन, पुरानी ‘गोलमाल’ में अमोल पालेकर के डबल रोल की तरह इस फिल्म में अभिषेक भी दो हमशक्ल भाई होने का नाटक करते हैं। पूरी फिल्म इसी के सहारे आगे बढ़ती है, मगर बहकी-बहकी सी, लगता है कि कहानी थी ही नहीं और रोज सेट्स पर ही सोच लिया जाता होगा कि आज ये कर लेते हैं।
फिल्म में असिन हैं, प्राची देसाई हैं... मगर उन्हें देखकर न नयनसुख होता है, न ब्रेनसुख। गानों में इधर-उधर वो जहां भी हैं, वहां अजय देवगन और अभिषेक ओवरटेक कर लेते हैं। प्राची देसाई का ‘रॉक ऑन’ में कितना सटीक संदर्भात्मक इस्तेमाल हुआ था, जैसा ‘गजनी’ में असिन का हुआ था।
इस फिल्म का सबसे मजबूत रिएक्शन दर्शकों की तरफ से तब आता है जब पहला बड़ा फाइट सीक्वेंस आता है। अजय की बहन प्राची को उसका चचेरा भाई ही उठा ले जाता है, इस दौरान अभिषेक और अजय के किरदार तमाम पहलवान सरीके बुरे लोगों की हवा में उछाल-उछालकर धुलाई करते हैं। चूंकि सारा एक्शन बड़ा पावरफुल और हैरतअंगेज होता है इसलिए ऑडी में पीछे बैठा लड़का दोस्त से कहता है ‘रोहित शेट्टी की फिल्म है भई...’ ऐसा वो इम्प्रेस होकर और इस फैक्ट को स्वीकारकर कह रहा होता है कि डायरेक्टर अगर रोहित शेट्टी है तो बेसिर-पैर का जादुई एक्शन तो होगा ही। दिक्कत क्या रही इस फिल्म में भी बड़ी खामियां वही हैं, जो होती हैं। स्क्रिप्ट पर मेहनत नहीं हुई। अजय देवगन से कॉमेडी नहीं होती। अभिषेक-कृष्णा से होती भी है तो डबिंग के दौरान उनकी आवाज और सीन का माहौल मैच नहीं करता। लगता है रोहित शेट्टी सीन्स को शानदार बनाने के लिए एक्टर्स से कड़ी मेहनत नहीं करवा पाए। रहा-सहा भट्टा बिठा दिया एडिटिंग ने। फिल्म की प्रस्तुति बेजान है तो इसी वजह से।
भोला पृथ्वीराज और गोलमाल अब्बास: कहानी
दिल्ली के करोलबाग में अपनी बहन सानिया (असिन) के साथ रहता है अब्बास अली (अभिषेक बच्चन)। प्रॉपर्टी केस हार जाने और नौकरी खो देने के बाद उनके शास्त्री चाचा सुझाते हैं कि राजस्थान में उनके गांव रणकपुर चले चलो, वहां काम जरूर मिलेगा। यहां के बड़े आदमी हैं पृथ्वीराज रघुवंशी (अजय देवगन), जो बेहद गुस्सैल, मगर भले दिल के हैं। अब्बास को काम तो मिल जाता है पर किन्हीं वजहों से उसे झूठ बोलना पड़ता है कि उसका एक हमशक्ल जुड़वा भाई भी है। ये एक झूठ अब्बास से हजार झूठ बुलवाता है, जाहिर है झूठ से सख्त नफरत करने वाला रघुवंशी जब जानेगा तो इनका क्या हाल करेगा।
***** ***** *****
गजेंद्र सिंह भाटी
डायरेक्टरः रोहित शेट्टी
कास्टः अजय देवगन, अभिषेक बच्चन, प्राची देसाई, असिन, कृष्णा अभिषेक, अर्चना पूरण सिंह, असरानी, नीरज वोरा
स्टारः डेढ़, 1.5
सुझाव: दो-तीन एक्शन सीन के अलावा थियेटर जाकर देखने लायक कुछ नहीं। टीवी पर आने का इंतजार कर सकते हैं। फिल्म को डेढ़ स्टार भी इसलिए कि सिंगल स्क्रीन वाले दर्शक टेक्नीकल खामियों पर ध्यान नहीं देते हुए फिल्म को कुछ हद तक एंजॉय कर पाते हैं।
‘बोल बच्चन’ देखने के बाद आपका पूरा दिन खराब रहता है। न कॉमेडी सर्कस वाले कृष्णा की मसखरी हंसाती है, न अर्चना पूरण सिंह के होने का कोई फायदा होता है। देखकर लगता है कि इस फिल्म से दोनों का अभिनय दस कदम पीछे लुढ़क गया है। अजय देवगन की डायलॉग डिलीवरी और डांस इतना बुरा है कि आंखें फोड़ लेने को मन करता है। हालांकि गलत अंग्रेजी बोलने वाले उनके तमाम सीन्स में दर्शक हंसते हैं, मगर ‘माई चेस्ट हैज बिकम ब्लाउज’ जैसे घटिया जुमलों पर हंसने का मुझे कोई कारण नहीं नजर आता है। जो हर पल और भी घटिया होते जाते हैं। स्क्रिप्ट नाम की जो सबसे इज्जतदार चीज फिल्म में होती है, उसे इस फिल्म के मुहुर्त शॉट के दौरान ही दरबान के साथ बाहर बिठा दिया गया होगा। मसलन, पुरानी ‘गोलमाल’ में अमोल पालेकर के डबल रोल की तरह इस फिल्म में अभिषेक भी दो हमशक्ल भाई होने का नाटक करते हैं। पूरी फिल्म इसी के सहारे आगे बढ़ती है, मगर बहकी-बहकी सी, लगता है कि कहानी थी ही नहीं और रोज सेट्स पर ही सोच लिया जाता होगा कि आज ये कर लेते हैं।
फिल्म में असिन हैं, प्राची देसाई हैं... मगर उन्हें देखकर न नयनसुख होता है, न ब्रेनसुख। गानों में इधर-उधर वो जहां भी हैं, वहां अजय देवगन और अभिषेक ओवरटेक कर लेते हैं। प्राची देसाई का ‘रॉक ऑन’ में कितना सटीक संदर्भात्मक इस्तेमाल हुआ था, जैसा ‘गजनी’ में असिन का हुआ था।
इस फिल्म का सबसे मजबूत रिएक्शन दर्शकों की तरफ से तब आता है जब पहला बड़ा फाइट सीक्वेंस आता है। अजय की बहन प्राची को उसका चचेरा भाई ही उठा ले जाता है, इस दौरान अभिषेक और अजय के किरदार तमाम पहलवान सरीके बुरे लोगों की हवा में उछाल-उछालकर धुलाई करते हैं। चूंकि सारा एक्शन बड़ा पावरफुल और हैरतअंगेज होता है इसलिए ऑडी में पीछे बैठा लड़का दोस्त से कहता है ‘रोहित शेट्टी की फिल्म है भई...’ ऐसा वो इम्प्रेस होकर और इस फैक्ट को स्वीकारकर कह रहा होता है कि डायरेक्टर अगर रोहित शेट्टी है तो बेसिर-पैर का जादुई एक्शन तो होगा ही। दिक्कत क्या रही इस फिल्म में भी बड़ी खामियां वही हैं, जो होती हैं। स्क्रिप्ट पर मेहनत नहीं हुई। अजय देवगन से कॉमेडी नहीं होती। अभिषेक-कृष्णा से होती भी है तो डबिंग के दौरान उनकी आवाज और सीन का माहौल मैच नहीं करता। लगता है रोहित शेट्टी सीन्स को शानदार बनाने के लिए एक्टर्स से कड़ी मेहनत नहीं करवा पाए। रहा-सहा भट्टा बिठा दिया एडिटिंग ने। फिल्म की प्रस्तुति बेजान है तो इसी वजह से।
भोला पृथ्वीराज और गोलमाल अब्बास: कहानी
दिल्ली के करोलबाग में अपनी बहन सानिया (असिन) के साथ रहता है अब्बास अली (अभिषेक बच्चन)। प्रॉपर्टी केस हार जाने और नौकरी खो देने के बाद उनके शास्त्री चाचा सुझाते हैं कि राजस्थान में उनके गांव रणकपुर चले चलो, वहां काम जरूर मिलेगा। यहां के बड़े आदमी हैं पृथ्वीराज रघुवंशी (अजय देवगन), जो बेहद गुस्सैल, मगर भले दिल के हैं। अब्बास को काम तो मिल जाता है पर किन्हीं वजहों से उसे झूठ बोलना पड़ता है कि उसका एक हमशक्ल जुड़वा भाई भी है। ये एक झूठ अब्बास से हजार झूठ बुलवाता है, जाहिर है झूठ से सख्त नफरत करने वाला रघुवंशी जब जानेगा तो इनका क्या हाल करेगा।
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गजेंद्र सिंह भाटी