रविवार, 3 जनवरी 2010

जैम्स कैमरून का नीला सम्मोहन: अवतार

'मैं भगवान को नहीं मानता हूं, मगर जैम्स कैमरून को हमारे बीच भेजने के लिए उनका शुक्रिया अदा करता हूं। 'अवतार' में जो दुनिया कैमरून ने रची है, वैसी तो भगवान भी नहीं रच पाते। कैमरून और हमारे बीच सिर्फ एक ही सच है। यह कि कैमरून 200 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ रहे हैं और हम 2 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से। बुद्धिमानी इसी में है कि हम घर लौट आएं और अपनी वही पुरानी रोने-धोने और मारधाड़ वाली फिल्में बनाएं।'
- फिल्म निर्देशक रामगोपाल वर्मा ('अवतार' देखने के बाद)
On the set of AVATAR, James Cameron (center)
सन् 1977 में अमेरिकी फिल्मकार जॉर्ज लुकास के निर्देशन में बनी अंतरिक्ष फंतासी फिल्म 'स्टार वॉर्स' सिनेमाघरों में उतरी। इसे देखने वालों में 22 बरस का एक नौजवान जैम्स कैमरून भी था। ट्रक चलाने और ऑरेंज काउंटी के विद्यालयों में खाना पहुंचाने का काम करने वाले कैमरून ने इस दिन के बाद से 'दीवानगी' और 'जज्बा' जैसे शब्दों को नए अर्थ दिए। आने वाले 32 बरसों में कैमरून ने उन लोगों को गलत साबित कर दिया जो कहते थे कि फिल्में बनाना 'रॉकेट साइंस' नहीं होता और फिल्मकार भगवान नहीं होते।

करीब 2,000 करोड़ रुपये में बनी विश्व की अब तक की सबसे बड़ी फिल्म 'अवतार' के निर्माण के साथ कैमरून ने फिल्म निर्माण तकनीक की परिभाषा और पैमाने पूरी तरह बदल दिए हैं। 'अवतार' और 'साधना' भारतीय शब्द हैं, मगर अपने अवतार बनाने के ख्वाब को जैसे उन्होंने साधा है, वैसे किसी ने भी नहीं। 'स्टार वॉर्स' देखने के बाद से विज्ञान फंतासी और अंतरिक्ष के अंजान ग्रहों की दुनिया में खोए रहने वाले कैमरून ने 1995 में करीब 80 पन्नों की एक कहानी लिखी। यह एक अपंग हो चुके सैनिक की एक अंजान ग्रह पर बिताई जिंदगी की कहानी थी। इस अनोखे ग्रह का नाम पेंडोरा था। पेंडोरा पर बिल्ली जैसी शक्ल और स्तनधारियों जैसी पूंछ वाले 10 फुट लंबे नीली त्वचा के इंसान जैसे जीव रहते थे। इनका नाम 'नावी' था। पेंडोरा का वातावरण विषैला होने के कारण वैज्ञानिक 'नावी' के कृत्रिम अवतार वाले और इंसानी दिमाग से नियंत्रित होने वाले जीव बनाते थे। कैमरून ने इस महागाथा का नाम 'अवतार' रखा। इस कथा की प्रेरणा के बीज कहीं न कहीं लुकास की स्टार वॉर्स से निकले थे। ऐसे में कैमरून की चुनौती लुकास को मात देने की थी।
इसके लिए फिल्म निर्माण की तकनीक में ढेरों बदलाव करने की जरूरत थी। अमेरिका के सिनेमाघरों को भी थ्री-डी युक्त करने की आवश्यकता थी। कैमरून के सहयोगियों ने उनसे कह दिया था कि अगर यह फिल्म बनी तो उन्हें बर्बाद कर देगी। इसके लिए अथाह कम्पयुटर शक्ति और नई तकनीक की जरूरत थी। और ऐसी कोई तकनीक या शक्ति दुनिया में मौजूद ही नहीं थी। इसके बाद कैमरून ने एक विशाल ऐतिहासिक जहाज पर दो युवाओं के बीच पनपी प्रेम कहानी पर सफलतम फिल्म टाईटैनिक का निर्देशन किया। कमाई के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त करते हुए इस फिल्म ने फॉक्स स्टूडियोज को धन में तौल दिया। इसके बाद 12 साल तक कैमरून ने सिर्फ और सिर्फ अवतार पर काम किया।

कैमरून ऐतिहासिक युद्धपोतों पर अंडरवॉटर डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाने के बहाने अवतार के निर्माण के साधन जुटाने में लग गए थे। वर्ष 2000 में उन्होंने विंसेंट पेस को अपने साथ लिया। विंसेंट टाईटैनिक और एक अन्य फिल्म में कैमरून के साथ काम कर चुके थे। कैमरून अवतार के दर्शकों को रहस्यमयी पेंडोरा ग्रह की यात्रा पर ले जाना चाहते थे। वह दर्शकों को ग्रह के वातावरण का स्पर्श करवाना चाहते थे। वह चाहते थे कि लोग पेंडोरा की जमीन को अपनी आंखों से सूंघकर महसूस कर सके। इसी खातिर कैमरून ने पेस के साथ मिलकर ऐसा 'हाई-डेफिनिशन' कैमरा बनाने की ठानी, जो 'थ्री-डी' और 'टू-डी' दोनों ही माध्यमों में फीचर फिल्म की गुणवत्ता दे सके। दोनों ही नए कैमरे के निर्माण से जुड़ी चुनौती को भी भली-भांति जानते थे।

टोक्यो में विश्व प्रसिद्ध कैमरा व अन्य इलैक्ट्रॉनिक उपकरण बनाने वाली कंपनी 'सोनी' का दफ्तर है। कुछ हफ्ते बाद कैमरून 'सोनी' के दफ्तर में थे। उन्होंने विंसेंट को भी अमेरिका से टोक्यो बुलाया। दोनों ने सोनी के हाई-डेफिनिशन विभाग के इंजीनियरों से बात की। उन्होंने इंजीनियरों को इस बात के लिए यकीन दिलाया कि उनके कहे मुताबिक सोनी के 'प्रोफेशनल-ग्रेड हाई-डेफिनिशन' कैमरे के प्रोसेसर से लेंस और इमेज सेंसर को अलग कर दिया जाए। इससे इसके भारी-भरकम सी।पी.यू. को एक तार की दूरी पर लैंस से अलग रखा जा सकता था। अब कैमरा चलाने वाले को पुराने वजनी यंत्र से जुझने की जरूरत नहीं थी। तीन महीने में कैमरा तैयार था और परिणाम बेहद शानदार रहे।

अब बारी सिनेमाघरों की थी। इनमें बदलाव और खर्च की जरूरत थी। मगर जब तक कोई थ्री-डी फिल्म अच्छा कारोबार नहीं करती, कोई प्रदर्शक इस बदलाव का हिस्सा बनने का तैयार नहीं था। अपने बनाए कैमरे को कैमरून ने तब दूसरे निर्देशकों को इस्तेमाल करने के लिए दिया। निर्देशक रॉबर्ट रॉड्रिग्स ने वर्ष 2003 में प्रदर्शित 'स्पाई किड्स' को इस कैमरे से बनाया। मगर मुए प्रदर्शक अब भी अनिच्छुक थे। कैमरून ने मार्च 2005 में सिनेमाघर मालिकों की वार्षिक बैठक में भाग लिया। उन्होंने मालिकों को चेताया कि सही वक्त में अगर सिनेमाघर खुद में बदलाव नहीं लाए तो उन्हें आगे पछताना पड़ेगा। ये अमेरिका में बह रही अलग सी बयार थी या कैमरून की भागदौड़ कि अगले 4 वर्षों में पूरे देश में 3,000 थ्री-डी क्षमता वाले परदे और जुड़ गए। अपने सपने के पीछे किसी नन्हें मगर कटिबद्ध बच्चे की तरह दौड़ रहे कैमरून के रास्ते की एक और परीक्षा पूरी हो गई।

विशेष प्रभाव वाले दृश्यों के मामले में अमेरिकी फिल्म उद्योग का कोई जवाब नहीं था। मगर कैमरून की चाह वाले विशेष प्रभाव के दृश्य अब भी एक बड़ी चुनौती थे। वक्त अच्छा था। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जे. आर. आर. टॉल्किन के उपन्यास पर बनी महाकाव्यात्मक फिल्म-त्रयी 'लॉर्ड ऑफ द रिंग्स' आई। पीटर जैक्सन के निर्देशन में 2001 में 'द फैलोशिप ऑफ द रिंग', 2002 में 'द टू टावर्स' और 2003 में 'द रिटर्न ऑफ द किंग' परदे पर उतरी। सिर्फ एक अंगूठी को केंद्र में रख कर रची गई इस बेहद रोचक और मनोरंजक फिल्म के किरदार 'स्मीगल' उर्फ 'गोलम' ने कैमरून के दिमागी बोझ को कुछ हल्का कर दिया। इस कम्प्युटर सृजित किरदार ने सब का मन मोह लिया। स्मीगल को लॉर्ड ऑफ द रिंग्स के निर्देशक पीटर जैक्सन की वेलिंगटन स्थित विजुअल इफैक्ट्स कंपनी 'वेटा डिजीटल' ने बनाया था। अब कैमरून तैयार थे। टाईटैनिक की महासफलता के बाद से ही कैमरून के इंतजार में बैठे फॉक्स स्टूडियोज को भी तैयार कर लिया गया।

वेटा डिजीटल और जॉर्ज लुकास की कंपनी 'इंडस्ट्रियल लाइट एंड मैजिक' में सैंकडों लोगों ने विशेष प्रभाव वाले दृश्यों पर काम शुरू कर दिया था। पेंडोरा की नीली त्वचा वाले इंसानों की एक नई भाषा ईजाद करने के लिए कैमरून ने भाषा विशेषज्ञ पॉल फ्रॉमर को लिया। फ्रॉमर ने व्याकरण और उच्चारण के साथ 'स्पीक नावी' पुस्तिका तैयार की। कैमरून ने 13 महीनों में भाषा विकसित हो जाने और अन्य समानांतर कार्यों के पूरा हो जाने पर काम शुरू किया। कैमरून पेंडोरा के रचियता और इस ग्रह के भगवान थे, तो अब वह इस ग्रह पर मौजूद हर चीज को नाम और परिचय देना चाहते थे। पेंडोरा की वनस्पति, जैव विविधता, प्रकाश और प्राकृतिक संपत्ति का विवरण रचने के लिए वनस्पति और पौध विशेषज्ञ जूडी होल्ट को लाया गया। उन्होंने इस ग्रह की प्राकृतिक संपदा का वैज्ञानिक विवरण लिखा। तथ्यों और तर्कों को गढ़ा। इतने बारीक काम से बनी हर चीज परदे पर नहीं आनी थी, मगर कैमरून अपने ही आनंद में मगन थे। विशेषज्ञों की नियुक्तियां जारी रही। पुरातत्व, संगीत और अंतरिक्ष भौतिकी के विशेषज्ञों को भी नियुक्त किया गया। अब अंत में 'स्टार वार्स' के परिचय ग्रंथ की तर्ज पर संपादकों-लेखकों के एक समूह ने मिलकर 350 पन्नों की पोथी 'पेंडोरापीडिया' तैयार की। यह बस चमत्कार ही था।
जैम्स कैमरून ने पेंडोरा का एक-एक कण रचा है। जैसे कि पृथ्वी के सृजनकर्ता ने रचा होगा। पेंडोरा पर उगे एक-एक पत्ते पर एक-एक डिजीटल विशेषज्ञ ने काम किया है। 'जुरासिक पार्क' और 'द लॉस्ट वर्ल्ड' के दानवाकार डायनोसोरों से भी आगे के अलग जानवरों की दुनिया अवतार में समाई है। कैमरून का सपना भले ही 1977 में अकुंरित हुआ हो मगर जैसा कि रामगोपाल वर्मा और पश्चिम के अन्य फिल्म समीक्षक कहते हैं अवतार अपने वक्त से 30 साल आगे की फिल्म है। अंतरिक्ष की फंतासी के अलावा फिल्म में की गई आज की राजनीतिक अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों और विस्थापन की टिप्पणियां महानगरों में बसने वालों की आंखें खोलने वाली हो सकती है। सुनीता विलियम्स अगर टॉम क्रूज की फिल्म को देखकर आसमान की दुनिया में उडऩे का ख्वाब सजाती है और अंतरिक्ष के कीर्तिमान कायम करती है तो कैमरून की अवतार से विश्व भर के कितने बच्चे, युवा, कलाकार और पैशेवर प्रभावित होंगे, अंदाजा लगाना मुश्किल है।

अवतार में कहीं भविष्य नजर आएगा तो कहीं दूसरे ग्रहों की दुनिया की मानवीय कल्पना, नावी में दर्शक खुद के चेहरे की नसें ढूंढ पाएंगे तो कही अफ्रीका के कबीलों की जीवन-लय, कहीं प्रेम की बातें हैं तो कहीं आध्यात्म की अनूठी प्रस्तुति, युद्धप्रिय शक्तिशाली राष्ट्रों के सदाबहार तर्कों का ठोस जवाब है तो कहीं कमजोर मुल्कों में सरकारों की नीतियों से हो रहे विस्थापन की असलियत। दुनिया भर के सिनेमाघरों के परदे पर इस बार जैसा नीला सम्मोहन उभरा है, वैसा सिनेमा इतिहास में इससे पहले कभी नहीं महसूस किया गया।
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गजेंद्र सिंह भाटी