फिल्मः मैक्सिमम
डायरेक्टरः कबीर कौशिक
कास्टः नसीरुद्दीन शाह, सोनू सूद, नेहा धूपिया, अमित साध, विनय पाठक, स्वानंद किरकिरे
स्टारः दो, 2.0
संक्षिप्त टिप्पणी
कबीर कौशिक को हर कोई उनकी पहली फिल्म ‘सहर’ से पहचानता है। फिल्म अपने नाम के अनुरूप सीरियस और ताजी थी। पर ‘मैक्सिमम’ जैसे फिल्मी टाइटल तक पहुंचते-पहुंचते जो उम्मीदें बंधती हैं, फिल्म देखने के बाद टूट जाती हैं। डायलॉग बड़े औसत हैं, जैसे हम आपस में बात करते हैं। एक फिल्म के लिए ये अच्छा भी है और बुरा भी। जैसे, अरुण ईनामदार के रोल में नसीरुद्दीन शाह का 'ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार...’ बोलना। फिल्ममेकिंग की भाषा में किरदारों को स्थापित करना फिल्म के लिए बहुत जरूरी होता है। मसलन, सोनू सूद के किरदार ने 44 के करीब एनकाउंटर किए हैं, मगर फिल्म में उसे दिखाया जाता है दो-चार सीन में खड़े-खड़े, अपराधी को गोली मारते हुए। कहीं भी, किसी एनकाउंटर सीन में उन्हें टीम के साथ रणनीति बनाते और भागते-दौड़ते नहीं दिखाया गया है। नसीर भी खड़े-खड़े ही दो-चार गोलियां मार देते हैं पूरी मूवी में, बस। जबकि कहने को ये मुंबई के शीर्ष ऑफिसर्स हैं। पहले और आखिरी सीन में सोनू सूद को खून से लथपथ सफेद शर्ट में भागते दिखाया जाता है, जो पूरी फिल्म में उनके मिजाज से अलग दिखता है।
अपने आइडिया लेवल पर ‘मैक्सिमम’ जितनी एक्साइटिंग कॉप ड्रामा लगी होगी, उतनी ही बिखरी हुई बनने के बाद है। मुंबई की राजनीति, पुलिस और मीडिया में उत्तर भारतीयों की मौजूदगी की परत को भी भीना-भीना छुआ गया है जो थ्रिलिंग हो सकता था। इन तमाम तत्वों पर बनी एक ठीक-ठाक फिल्म ‘गंगाजल’ है, जिसे दर्जनों बार देखा जा सकता है। पिछले दिनों रामगोपाल वर्मा की 'डिपार्टमेंट भी आई थी, जो इतनी ही दिशाहीन थी। फिल्म में अगर अच्छा लगते-लगते भी नसीर, सोनू, नेहा, विनय पाठक और अमित साध का अभिनय अधपकी सब्जी सा लगता है जो इल्जाम जाता है निर्देशक कबीर और उनकी एडिटिंग टीम को। तो थियेटर न जाएं, पर डीवीडी या टीवी रिलीज के दौरान देखें।
कहानीः मुंबई पुलिस के दो सीनियर ऑफिसर तकरीबन एक ही वरिष्ठता लेवल के हैं। उनके अपने अलग-अलग राजनीतिक और आपराधिक खेमे हैं। ग्राउंड लेवल पर एक ऑफिसर का खास है ऑफिसर प्रताप पंडित (सोनू) और दूसरे का अरुण ईनामदार (नसीरुद्दीन शाह)। दोनों ने दर्जनों एनकाउंटर किए हैं। अब मैक्सिमम पावर पाने के लिए लड़ाई चल रही है। खून खराबे और साजिशों के बीच।
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गजेंद्र सिंह भाटी
डायरेक्टरः कबीर कौशिक
कास्टः नसीरुद्दीन शाह, सोनू सूद, नेहा धूपिया, अमित साध, विनय पाठक, स्वानंद किरकिरे
स्टारः दो, 2.0
संक्षिप्त टिप्पणी
कबीर कौशिक को हर कोई उनकी पहली फिल्म ‘सहर’ से पहचानता है। फिल्म अपने नाम के अनुरूप सीरियस और ताजी थी। पर ‘मैक्सिमम’ जैसे फिल्मी टाइटल तक पहुंचते-पहुंचते जो उम्मीदें बंधती हैं, फिल्म देखने के बाद टूट जाती हैं। डायलॉग बड़े औसत हैं, जैसे हम आपस में बात करते हैं। एक फिल्म के लिए ये अच्छा भी है और बुरा भी। जैसे, अरुण ईनामदार के रोल में नसीरुद्दीन शाह का 'ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार...’ बोलना। फिल्ममेकिंग की भाषा में किरदारों को स्थापित करना फिल्म के लिए बहुत जरूरी होता है। मसलन, सोनू सूद के किरदार ने 44 के करीब एनकाउंटर किए हैं, मगर फिल्म में उसे दिखाया जाता है दो-चार सीन में खड़े-खड़े, अपराधी को गोली मारते हुए। कहीं भी, किसी एनकाउंटर सीन में उन्हें टीम के साथ रणनीति बनाते और भागते-दौड़ते नहीं दिखाया गया है। नसीर भी खड़े-खड़े ही दो-चार गोलियां मार देते हैं पूरी मूवी में, बस। जबकि कहने को ये मुंबई के शीर्ष ऑफिसर्स हैं। पहले और आखिरी सीन में सोनू सूद को खून से लथपथ सफेद शर्ट में भागते दिखाया जाता है, जो पूरी फिल्म में उनके मिजाज से अलग दिखता है।
अपने आइडिया लेवल पर ‘मैक्सिमम’ जितनी एक्साइटिंग कॉप ड्रामा लगी होगी, उतनी ही बिखरी हुई बनने के बाद है। मुंबई की राजनीति, पुलिस और मीडिया में उत्तर भारतीयों की मौजूदगी की परत को भी भीना-भीना छुआ गया है जो थ्रिलिंग हो सकता था। इन तमाम तत्वों पर बनी एक ठीक-ठाक फिल्म ‘गंगाजल’ है, जिसे दर्जनों बार देखा जा सकता है। पिछले दिनों रामगोपाल वर्मा की 'डिपार्टमेंट भी आई थी, जो इतनी ही दिशाहीन थी। फिल्म में अगर अच्छा लगते-लगते भी नसीर, सोनू, नेहा, विनय पाठक और अमित साध का अभिनय अधपकी सब्जी सा लगता है जो इल्जाम जाता है निर्देशक कबीर और उनकी एडिटिंग टीम को। तो थियेटर न जाएं, पर डीवीडी या टीवी रिलीज के दौरान देखें।
कहानीः मुंबई पुलिस के दो सीनियर ऑफिसर तकरीबन एक ही वरिष्ठता लेवल के हैं। उनके अपने अलग-अलग राजनीतिक और आपराधिक खेमे हैं। ग्राउंड लेवल पर एक ऑफिसर का खास है ऑफिसर प्रताप पंडित (सोनू) और दूसरे का अरुण ईनामदार (नसीरुद्दीन शाह)। दोनों ने दर्जनों एनकाउंटर किए हैं। अब मैक्सिमम पावर पाने के लिए लड़ाई चल रही है। खून खराबे और साजिशों के बीच।
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गजेंद्र सिंह भाटी