मंगलवार, 26 जुलाई 2011

'मेरे सिवा धीरज पांडे का किरदार कोई भी नहीं कर पाता'

अगर प्रशां 'चाणक्य' जैसी क्लासिक टीवी सीरिज में कॉस्ट्यूम डायरेक्टर रहे हैं तो उन्होंने श्याम बेनेगल, गोविंद निहलानी और सुभाष घई जैसे डायरेक्टर्स की फिल्मों का आर्ट डायरेक्शन भी संभाला है। वह गाने भी लिखते हैं, गाते हैं, म्यूजिक भी देते हैं। टीवी पर वह 'फुलवा' कर रहे हैं। हाल ही में फिल्म 'ये साली जिंदगी' और 'भिंडी बाजार' में नजर आए। इतना सब करने के बावजूद ज्यादातर लोगों ने उन्हें नोटिस किया 'मर्डर-' में धीरज पांडे का रोल करने के बाद। वह कहते हैं कि इस फिल्म में लोगों ने उनकी तुलना मशहूर हॉलीवुड एक्टर एंथनी हॉपकिन्स तक से कर डाली। बेहद मुंहफट और संजीदा प्रशांत नारायणन से ये बातचीत।

बहुत बरसों से अच्छा काम कर रहे हैं, पर नोटिस हुए 'मर्डर-२' में।
मुझे लगता है मैं आज तक गरीबों और दोस्तों के साथ काम करता आया हूं। इन्होंने न मुझे कभी ढंग के पैसे नहीं दिए और न ही उनके पास अपनी मूवी रिलीज करने के पैसे थे। चाहे आप 'छल' देख लो, 'वैसा भी होता है' देख लो। ऐसी काफी अच्छी फिल्में में बुरी प्लानिंग वाले लोगों के साथ कर चुका हूं। अब कोई पॉइंट प्रूव नहीं करना चाहता हूं, कि अच्छा रोल है तो कर लेता हूं।

1992 से लेकर अब तक आपने टीवी और मूवीज दोनों को बदलते देखा है। डीडीवन के प्रोग्रैम्स से 'बंदिनी' और 'फुलवा' तक। पैरेलल और मैनस्ट्रीम मूवीज की फिक्स कैटेगरी से आज की बदलती लेंग्वेज वाली फिल्मों तक। इस सबको कैसे देखते हैं?
दुख ये होता है कि इतने सालों में हमारे पास तीन-चार अच्छे एक्टर्स ही हैं। इस दौरान न कोई विश्वस्तरीय एक्टर निकला है न कोई टेक्नीशियन। एक ए.आर.रहमान है जो बाहर की चीजें कर रहा है। मैं हूं, इरफान है। हम लोग बाहर की फिल्में करते हैं। टेक्नॉलजी, प्रैशर और मनी सब कुछ बढ़ गया है। पर पहले हम लोगों के पास टीवी में जो क्वालिटी होती थी, वह सेडली कम हुई है।

तो अपने काम के बारे में आगे क्या सोचा है?
मेरा काम आप बीस-तीस साल बाद भी देखेंगे तो वही फ्रैशनेस, जोश और जज्बा पाएंगे। मैं चाहता हूं कि मेरा माइंडब्लोइंग डीवीडी क्लेक्शन बने जो कोई भी इंडियन एक्टर सपने में ही देखे। यही लक्ष्य है। मुझे बस स्टूपिड मनी नहीं कमानी है। ये सारे एक्टर लोग तेल वेल बेच रहे हैं। कच्छे, बनियान, दारु और पान पराग बेच रहे हैं। अरे यार क्या करोगे, कितना पैसा डालोगे, कहां डालोगे। अगर जरा सी एक्टिंग की तमीज होती तो ये सब नहीं करते। मैं यार सिर्फ एक्टिंग ही बेचता आया हूं। इन लोगों को मेरे लेवल तक पहुंचते-पहुंचते लाइफ में काफी टाइम लगेगा।

भट्ट कैंप की 'मर्डर-2 में आपका चेहरा नहीं जुड़ता तो फिल्म में देखने लायक कुछ था नहीं?
मैं तो कहता हूं न यार, कि अगर किसी और ने किया होता तो ये रोल वो बर्बाद कर चुका होता। क्योंकि इस रोल में बर्बादी के बहुत चांसेज हैं। जो भी एक्टर थोड़ी समझदारी से काम नहीं लेगा तो वो सिर्फ बेवकूफ दिखेगा यहां। इसमें खुल के मूर्खता करने का मौका है और कहीं-कहीं उससे आप जितना बचोगे उतना ही दिखोगे।

कैरेक्टर के स्पेस में कितना घुसना है, कैसे घुसना है, क्या एड करना है, कैसे तय करते हैं?
बस अपने राइटर और डायरेक्टर पर भरोसा करो। आप उनसे मिलते हैं, बात करते हैं, उनका लहजा सुनते हैं। ये सब ऑब्जर्व करना पड़ता है। मैं पूरा स्लिप याद रखता हूं कि सीन 26 में क्या है और सीन 23 का ए सेक्शन कहां 72 बी में कनेक्ट करता है। यहां लोग सिर्फ अपनी डायलॉग कॉपी मंगवाते हैं, मेरे पास काफी टाइम से स्लिप पड़ा होता है। मेरा मैथड एक्टिंग से दूर-दूर का कोई रिश्ता नहीं है। मुझे बकवास किस्म का काम लगता है वो। अब सिर मुंडवाने और ये वो करवाने से एक्टिंग हो जाती तो क्या बात थी।

अपने बारे में कुछ बताइए?
मैं मूलत: केरल से हूं, जो दिल्ली का है और मुंबई का हो गया है। चौथी क्लास में दिल्ली आ गया। फादर डिफेंस में रहे। ग्रेजुएशन किरोड़ीमल कॉलेज से की, फिर दिल्ली स्टेट बैडमिंटन प्लेयर रहा। फिर ये सब छोड़-छाड़ के इस लाइन में आ गया प्रॉड्यूसर बनने। एक्टिंग नहीं करनी थी यार। बहुत साल खो दिए अपने। कॉस्ट्यूम डायरेक्शन किया, डायरेक्शन किया, चीफ असिस्टेंट डायरेक्शन किया। गोविंद निहलानी की फिल्म में असिस्टेंट आर्ट डायरेक्टर था। 'रुकमावती की हवेली', फिर 'सौदागर', फिर 'सरदार पटेल'। केतन मेहता का भी असिस्टेंट रहा एक साल।

सिर्फ प्रॉड्यूसर ही क्यों बनना चाहते थे?
हमारे साथ प्रॉब्लम ये है कि ज्यादातर प्रॉड्यूसर्स योग्य नहीं हैं। वो निगरानी नहीं रख सकते कि डायरेक्टर क्या कर रहा है। मतलब सेट पर, स्क्रिप्ट, थोड़ा कमांडिंग आदमी होना चाहिए, क्योंकि प्रॉड्यूसर का हाथ सिर्फ पैसे बांटने में नहीं जाता है। उसे तो ये भी पता है कि कैमरे में कौनसा लेंस लगा है। मतलब मैं उस किस्म का क्रिएटिव हैड बनना चाहता था।

अब क्रिएटिव हैड बनेंगे या एक्टिंग करनी है?
मैं सब कुछ करना चाहता हूं। कंपोजर भी हूं। गाने लिखता हूं। कुछ फिल्मों की स्क्रिप्ट भी तैयार है। एक शॉर्ट स्टोरी बुक और कॉफी टेबल बुक लिख रहा हूं।

इन बरसों में कितनी बार बहुत निराश हुए?
जब भी हुआ अपनी नॉन प्लानिंग की वजह हुआ। इसमें गैर-भरोसेमंद लोगों पर भरोसा करना भी शामिल है। पर कभी ऐसा नहीं हुआ कि आर अब क्या करेंगे।

डिफेंस फैमिली से हैं तो पेरंट्स कहते नहीं कि ये तू क्या कर रहा है?
नहीं 'मर्डर-२' केरला में भी रिलीज हुई। तो बड़े खुश थे, पिक्चर देखी भी उन्होंने। मेरे डैड ने धीरे से मेरी मां को बोला, किसी को कानों कान खबर नहीं होनी चाहिए कि ये हमारा बेटा है। फिर फिल्म जैसे ही खत्म होगी, चुपचाप से चले जाएंगे। (ठहाके लगाते हैं)

****************
गजेंद्र सिंह भाटी