फिल्म: काऊबॉयज एंड एलियंस (अंग्रेजी)
निर्देशक: जॉन फेवरॉउ
कास्ट: डेनियल क्रेग, हैरिसन फोर्ड, ओलिविया वाइल्ड, सैम रॉकवेल, पॉल डेनो
स्टार: तीन, 3.0
पहले ही दृश्य में जब पथरीले खाली लैंडस्केप में कैमरा शांति से मूव कर रहा होता है। अचानक से फ्रेम में डेनियल क्रेग ठिठक आता है। बेहोशी से जागा हुआ। फिर तीन काऊबॉयज उसे परेशान करने लगते हैं और वह करारा जवाब देता है। अच्छा सीन है। एक और सीन में कर्नल बने हैरिसन के मवेशियों को चराने वाला नदी किनारे दारू के नशे में हल्का होने को होता है कि बड़ा धमाका होता है। वह नदी में गिर जाता है। बाहर आकर देखता है तो सारी गायें और मवेशी जल रहे होते हैं। इन दो सीन में जो गैर-मशीनी रोचक बात है, वह मूवी में आगे भी जारी रह पाती तो मजा आ जाता। हालांकि ये एलियंस से न्यूक्लियर हथियारों के साथ लडऩे वाली फिल्मों से काफी दूर है और हमारा टेस्ट बदलती है। मेरे लिए यही खास है। इस जॉनर की कहानियों में इस तसल्लीबख्श फिल्म को फ्रेंड्स को साथ देख सकते हैं। फैमिली के साथ भी। बस अति-महत्वाकांक्षी होकर न जाएं।
चरवाहों और एलियंस की शत्रुता
एरिजोना के बंजर रेगिस्तान की बात है। जेक लोनरगन (डेनियल क्रेग) की बेहोशी एकदम से टूटती है। याददाश्त गायब है। कलाई पर एक रहस्यमयी चीज बंधी है। वह अगले टाउन में घुसता है। धीरे-धीरे पता चलता है कि वह बड़ा लुटेरा है। इस टाउन के सबसे ताकतवर आदमी कर्नल डॉलराइड (हैरिसन फोर्ड) का सोना भी उसने लूटा था। ये सब अपने पुराने हिसाब चुकता करें, उससे पहले इन पर एलियन विमानों का हमला होता है। कर्नल के बेटे पर्सी (पॉल डेनो) को भी बाकी लोगों की तरह ये विमान उड़ा ले जाते हैं। अब जेक, कर्नल और एक घूमंतू लड़की एला (ओलिविया वाइल्ड) अपने दोस्तों-दुश्मनों सबसे मिलकर इन एलियंस से टक्कर लेते हैं।
कंसेप्ट हमें खींचता है
मॉडर्न अमेरिका में एलियन अटैक हमने बहुत देख लिए। 'बैटलफील्ड: लॉस एंजेल्स', 'इंडिपेंडेंस डे', 'वॉर ऑफ द वल्ड्र्स', 'प्रिडेटर' और 'मैन इन ब्लैक' जैसी दर्जनों फिल्में हमारे सामने हैं। ये जो एलियन-काऊबॉय की लड़ाई है यहां कोई अत्याधुनिक हथियार और फाइटर प्लैन नहीं है। काऊबॉयज को लडऩा है तो ले-देकर अपने घोड़ों पर चढ़कर और पिस्टल-राइफल्स के सहारे। बिल्कुल नया और तरोताजा करने वाला ये कंसेप्ट है। साथ ही गुजरे दौर की तासीर वाले 'बॉन्ड' ब्रैंड डेनियल क्रेग हैं और 'इंडियाना जोन्स' छाप (बूढ़े होते) हैरिसन फोर्ड हैं। चूंकि बात 1873 की है, इसलिए एलियंस को सोना चाहिए।
कहानी के वक्त से न्याय
डेनियल ने उस दौर के हिसाब से अपना वजन कम किया है। एलियंस जानवरों की तरह भागते और शैतानों की तरह दिखते हैं, जो कहानी के टाइम के साथ न्याय करता है। लोकेशन और कॉस्ट्यूम्स में कोई नुक्स नहीं हैं। बस कहानी में बहुत सी जगहों पर गैप नजर आते हैं। इंतजार करना पड़ता है। इसे कमी भी माना जा सकता है और शोर-शराबे से दूर एक पीसफुल अलग टेस्ट वाली एलियन मूवी भी। क्लाइमैक्स में भी ज्यादा खौफ और डर पैदा करने की कोशिश नहीं की गई है। आखिर हमारे हीरो लोगों को अजेय जो बताना है भई। जैसे हमारी साउथ की फिल्मों में होता है। हीरो एक भी मुक्का नहीं खाता है। इस फिल्म पर आते हैं। एलियंस किसी लेजर रोशनी से इंसानों को नहीं सोखते हैं, बल्कि जंजीरों और हुक से खींचकर उड़ा ले जाते हैं। इस तथ्य को भी फिल्म के प्लस में रख लीजिए।
***************
गजेंद्र सिंह भाटी