फिल्मः दिस मीन्स वॉर (अंग्रेजी)
निर्देशकः एमसीजे (जोसेफ मेक्गिंटी निकोल)
कास्टः रीस विदरस्पून, टॉम हार्डी, क्रिस पाइन, चेल्सिया हैंडलर
स्टारः ढाई, 2.5
'चार्लीज एंजेल्स’ और 'टर्मिनेटर साल्वेशन’ वाले डायरेक्टर एमसीजी की ये फिल्म कोई कल्ट होने का दावा नहीं करती। हल्का-फुल्का एंटरटेनमेंट देना था और देकर जाती है। ये दो दोस्त लड़कों को एक ही लड़की से प्यार होने वाला फंडा भी नया नहीं है, बहुत ही घिसा-पिटा है, पर फिल्म में हमें इससे बोरियत नहीं होती। वक्त-वक्त पर हंसी के फुहारे आते रहते हैं। मसलन, खंडित दांत वाले ब्रिटिश एक्टर टॉम हार्डी का खुलकर हंसना और फिर सीरियस हो जाना। उनका एक्सेंट भी रोचक है। रीस विदरस्पून के किरदार के दोस्त ट्रिश के रोल में चेल्सिया हैंडलर बेहद खिलखिलाने वाली हैं। खासतौर पर जब वह अपने मोटे पति और अपनी मैरिड फिजिकल लाइफ पर चटपटी बातें करती हैं। मॉरीन को दोनों लड़कों के साथ रिलेशन बनाने की सलाह खुद जोर-शोर से वह देती है, लेकिन जब मामला बिगड़ जाता है और मॉरीन पूछती है तो वह कहती है कि मैंने तो पहले ही कहा था कि दो-दो लड़कों के साथ प्यार मत करो। जाहिर है आप हंसते हैं।
फिल्म में कोई अप्रत्याशित हंसी वाली बातें नहीं हैं, वही हैं जो हम सुन चुके हैं, पर फिर भी काफी हैं। पर यही तो होना भी चाहिए न। जो महाकाव्यात्मक फिल्मों के साथ मनोरंजन देने के लिए बीच-बीच में टाइमपास किस्म की फिल्में आती हैं, जो किसी पर कोई बुरा असर नहीं छोड़ती हैं और थियेटर में जाने के आपके मूलभूत उद्देश्य को पूरा करती है। मुझे लगता है और दिखता है कि फिल्म बनाने वाले एमसीजी के भीतर के निर्देशक की बुनियाद में कहीं न कहीं वो सार्वभौमिक मसाला कहानी कहने वाला और नैतिक शख्स छिपा है, जो हिंदी फिल्मों में भी है, तमिल-तेलुगू में भी और पारंपरिक अमेरिकी फिल्मों में भी। जैसे, फिल्म में संभोग पर कई सीधे मजाक हैं, जो मॉरीन और उनकी दोस्त ट्रिश के बीच होते हैं, इससे फिल्म बड़ी बोल्ड भी लगती है कि भई यहां तो ऐस-ऐसे संवाद और एडल्ट बातें हैं। एफडीआर और टक के बीच शर्त भी यही लगती है कि ठीक है हम दोनों जेंटलमैन की तरह कोशिश करते हैं, पर ईमानदारी से उस लड़की के लिए बेस्ट जो है वही उसे मिले। जिससे वो प्यार करती है, उसके लिए दूसरा रास्ता खाली कर दे। पर ये पता लगने से पहले कि मॉरीन किससे प्यार करती है दोनों के बीच मीठी लड़ाई चलती रहती है। इसमें मॉरीन को डेट पर ले जाना और उसे पहली बार किस करना भी शामिल है।
यहां तक हमें लगता है कि काफी प्रगतिशील बातें हो रही हैं, जाहिर है दोनों दोस्त में से एक की तो वह नहीं हो पाएगी, लेकिन किस तो दोनों ने ही कर लिया। फिर वह वक्त भी आता है जब दोनों के साथ वह संभोग करे। फिल्म में हीरोइन और दोनों हीरो व्यक्तिगत तौर पर इसके लिए तैयार भी दिखते हैं। पर आखिर में टक एफडीआर को बताता है कि मैंने संभोग नहीं किया था। यानि निर्देशक साहब पारंपरिक निकले। आधुनिकता कितनी भी आधुनिक कर दे, समाजों के नैतिक मापदंड और नैतिक होने से जुड़े सम्मान-असम्मान नहीं बदलते। आखिर में ट्रिश भी मॉरीन को यही करती है कि मेरा पति मोटा है, पर मेरा मोटा है। और कोई ऐसा हो जो आपको दिल-ओ-जान से चाहे तो उस मौके और प्यार को गंवाना नही चाहिए। तो वही बात है साहब। कहानी का मूल प्रारूप, मध्य और अंत वही है, और समाज को मसाला फिल्मों के बीच भी पूंजीवादी अमेरिकी फिल्म तमाम प्रायोजनों में फंसने के बाद मोक्ष पाने का और बेहतर फैसले लेने का वही साम्यवादी तरीका सुझाती है, जो सही होता है।
दो दोस्तों के बीच इश्क युद्धः कहानी
बड़े मजेदार, डैशिंग और अच्छे इंसान हैं ये दो सीआईए एजेंट दोस्त। फ्रैंकलिन उर्फ एफडीआर (क्रिस पाइन) और टक (टॉम हार्डी)। दोनों एक जर्मन क्रिमिनल हैनरिक के पीछे लगे हैं। एक भिड़ंत में हैनरिक तो भाग जाता है और पीछे कई लाशें रह जाती हैं, जबकि उन्हें ये सब अंडरकवर करना था। तो उन्हें कुछ दिन डिपार्टमेंट अडरग्राउंड कर देता है। खाली वक्त में दोनों को एक ही लड़की लॉरीन (रीस विदरस्पून) से प्यार हो जाता है। लॉरीन भी अपनी बेस्ट फ्रेंड ट्रिश (चेल्सिया हैंडलर) के सिखाने पर दोनों से ही प्यार किए जाती है। अब लॉरीन को पाने के लिए एफडीआर और टक के बीच मीठा सा वॉर शुरू हो जाता है। उधर हैनरिक भी लौटेगा, ये तय है।*** *** *** *** ***
गजेंद्र सिंह भाटी