"I spent a lot of time on films taking things out.
Art directors would get very cross with me. If something's not
going well, my impulse is to minimalize. The impulse of most people when something's not going well is to add — too many colors, too many items on a screen, too many lights. If you're not careful, you're lighting the lighting. American films are overlit compared to European ones. I like close-ups shadowy, in profile — which they never do these days... What's needed is
simple symmetry, but everyone wants massive coverage these
days because they don't have enough confidence in their work
and there are way too many cooks in the kitchen."
- Gordon Willis (1931 – 2014), cinematographer
End of the Road [1970], Klute [1971], The Godfather [1972], The Godfather Part II [1974], The Parallax View [1974], All the President's Men [1976], Annie Hall [1977], Interiors [1978], Manhattan [1979], Stardust Memories [1980], Pennies from Heaven [1981], Zelig [1983], Broadway Danny Rose [1984], The Purple Rose of Cairo [1985], The Godfather Part III [1990], The Devil's Own [1997]
End of the Road [1970], Klute [1971], The Godfather [1972], The Godfather Part II [1974], The Parallax View [1974], All the President's Men [1976], Annie Hall [1977], Interiors [1978], Manhattan [1979], Stardust Memories [1980], Pennies from Heaven [1981], Zelig [1983], Broadway Danny Rose [1984], The Purple Rose of Cairo [1985], The Godfather Part III [1990], The Devil's Own [1997]
पिछले इंटरव्यू में सिनेमैटोग्राफी को लेकर हुई बातों में गॉर्डन विलिस का जिक्र आया ही था। रविवार को फेलमाउथ, मैसाच्युसेट्स में उनकी मृत्यु हो गई। वे 82 बरस के थे। बेहद सीधे-सादे। जैसे सिनेमैटोग्राफर्स होते हैं। फ़िल्मों, दृश्यों और जिंदगी को लेकर उनका नजरिया बेहद सरल था। वे कहते थे कि ‘द गॉडफादर’ या ‘ऑल द प्रेजिडेंट्स मेन’ या ‘मैनहैटन’ जैसी क्लासिक्स बनाने के दौरान उन्होंने सैद्धांतिक होने की कोशिश नहीं की बल्कि सरलतापूर्वक ये सोचा कि परदे पर चीजों को दिखाना कैसे है? उनकी सबसे बड़ी खासियत थी कि आम धारणा को उन्होंने कभी नहीं माना। छायांकन के बारे में लोकप्रिय सोच है कि रोशनी जितनी होगी, तस्वीर उतनी ही अच्छी आएगी, या एक्सपोज़र ठीक होना चाहिए। मुख्यधारा की हिंदी फ़िल्मों में तो ऐसा हमेशा ही रहा है। गॉर्डन हमेशा अंधेरों में जाते थे। चाहे निर्देशक ख़फा हो, आलोचक या कोई और... वे करते वही थे जो उन्हें सही लगता था। वे कहते भी थे कि “कभी-कभी तो मैंने हद ही पार कर दी”। उनका इशारा दृश्यों में एक्सपोज़र को कम से कम करने और पात्रों के चेहरे पर और फ्रेम के अलग-अलग कोनों में परछाई के अत्यधिक इस्तेमाल से था। लेकिन ये सब वे बहुत दुर्लभ दूरदर्शिता के साथ करते थे। इसकी वजह से फ़िल्मों में अभूतपूर्व भाव जुड़ते थे। दृश्यों का मूड जाग उठता था। सम्मोहन पैदा होता था। कोई संदेह नहीं कि फ्रांसिस फोर्ड कोपोला की ‘द गॉडफादर’ अगर चाक्षुक लगती है, आंखों और दिमाग की इंद्रियों के बीच कुछ गर्म अहसास पैदा करती है तो गॉर्डन की वजह से। वे नहीं होते तो कोपोला की ‘द गॉडफादर सीरीज’ और वूडी एलन की फ़िल्मों को कभी भी क्लासिक्स का दर्जा नहीं मिलता।
इतिहास गवाह है कि बड़े-बड़े निर्देशक दृश्यों के फ़िल्मांकन की योजना बनाते वक्त सिनेमैटोग्राफर के सुझावों और उसकी कैमरा-शैली से जीवनकाल में बहुत फायदा पाते हैं। मणिरत्नम को पहली फ़िल्म ‘पल्लवी अनु पल्लवी’ में बालु महेंद्रा के सिनेमैटोग्राफर होने का व्यापक फायदा हुआ। रामगोपाल वर्मा के पहली फ़िल्म ‘शिवा’ में हाथ-पैर फूले हुए थे और एस. गोपाल रेड्डी के होने का फायदा उन्हें मिला। श्याम बेनेगल की फ़िल्मों में जितना योगदान उनका है, उतना ही गोविंद निहलाणी का। वी.के. मूर्ति न होते तो क्या गुरु दत्त की ‘काग़ज के फूल’ उतनी अनुपम होती? सत्यजीत रे को शुभ्रतो मित्रो का विरला साथ मिला। गॉर्डन ने भी अपने निर्देशकों के लिए ऐसा ही किया। उन्होंने सिनेमैटोग्राफी के नियमों का पालन करने से ज्यादा नए नियम बनाए। उन्होंने किसी फ़िल्म स्कूल से नहीं सीखा, पर जो वे कर गए उसे फ़िल्म स्कूलों में सिखाया जाता है। 70 के दशक के अमेरिकी सिनेमा को उन्होंने नए सिरे से परिभाषित किया था। वैसे ये जिक्र न भी किया जाए तो चलेगा पर 2010 में उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट का ऑस्कर पुरस्कार प्रदान किया गया था। गॉर्डन के बारे में जानने को बहुत कुछ है। कुछ निम्नलिखित है, कुछ ख़ुद ढूंढ़े, पढ़े, जानें।
“वो एक प्रतिभावान, गुस्सैल आदमी था। अपनी तरह का ही। अनोखा। सटीक सौंदर्यबोध वाला सिनेमाई विद्वान। मुझे उसके बारे में दिया जाने वाला ये परिचय सबसे पसंद है कि, ‘वो फ़िल्म इमल्ज़न (रील की चिकनी परत) पर आइस-स्केटिंग करता था’। मैंने उससे बहुत कुछ सीखा”।
- फ्रांसिस फोर्ड कोपोला, निर्देशक
द गॉडफादर सीरीज, अपोकलिप्स नाओ
द गॉडफादर सीरीज, अपोकलिप्स नाओ
“गोर्डी महाकाय टैलेंट था। वो चंद उन लोगों में से था
जिन्होंने अपने इर्द-गिर्द पसरी अति-प्रशंसा (हाइप) को वाकई में
सच साबित रखा। मैंने उससे बहुत कुछ सीखा”।
- वूडी एलन, लेखक-निर्देशक
मैनहैटन, एनी हॉल, द पर्पल रोज़ ऑफ कायरो, ज़ेलिग
मैनहैटन, एनी हॉल, द पर्पल रोज़ ऑफ कायरो, ज़ेलिग
“ये कहना पर्याप्त होगा कि अगर सिनेमैटोग्राफर्स का कोई रशमोर
पर्वत होता तो गॉर्डन का चेहरा उसके मस्तक पर गढ़ दिया जाता। ... मैं हर रोज़, हर स्तर पर काम करने वाले सिनेमैटोग्राफर्स से बात करता हूं, और सर्वकालिक महान सिनेमैटोग्राफर्स के बारे में होने वाली बातचीत में उनका जिक्र हमेशा होता है। उनकी सिग्नेचर स्टाइल थी... दृश्यों का कंपोजीशन और दृश्य के मूड वाले भाव जगाती लाइटिंग जो अकसर एक्सपोज़र के अंधेरे वाले छोर पर पहुंची होती थी। गोर्डी के शिखर दिनों में ये स्टाइल बेहद विवादास्पद थी। लेकिन बाद में कई शीर्ष सिनेमैटोग्राफर्स पर इस स्टाइल का गहरा प्रभाव रहा और आज भी है। उनके साथी उन्हें अवाक होकर देखते थे। हॉलीवुड के महानतम कैमरा पुरुषों में से एक के तौर पर उनकी विरासत सुरक्षित है”।
- स्टीफन पिज़ेलो, एडिटर-इन-चीफ, अमेरिकन सिनेमैटोग्राफर्स मैग़जीन
गॉर्डन पर लिखी जाने वाले एक किताब पर उनके साथ काम किया
गॉर्डन पर लिखी जाने वाले एक किताब पर उनके साथ काम किया
“गॉर्डन विलिस मुझ पर और मेरी पीढ़ी के कई सिनेमैटोग्राफर्स पर
एक प्रमुख प्रभाव थे। लेकिन सिनेमैटोग्राफर्स की आने वाली पीढ़ी पर भी उनके काम की समकालीनता/नूतनता उतना ही असर डालेगी”।
- डॉरियस खोंडजी, ईरानी-फ्रेंच सिनेमैटोग्राफर
माइकल हैनेके, वॉन्ग कार-वाई, वूडी एलन, रोमन पोलांस्की, जॉन पियेर जॉनेत, डेविड फिंचर और सिडनी पोलाक की फ़िल्मों में छायांकन किया
माइकल हैनेके, वॉन्ग कार-वाई, वूडी एलन, रोमन पोलांस्की, जॉन पियेर जॉनेत, डेविड फिंचर और सिडनी पोलाक की फ़िल्मों में छायांकन किया
“मैं विजुअली क्या करता हूं, ये तकरीबन वैसा ही जो सिंफनी
करती है। म्यूजिक जैसा... बस इसमें अलग-अलग मूवमेंट होते हैं। आप एक ऐसी विजुअल स्टाइल बनाते हैं जो कहानी कहती है। आप
कुछ एलिमेंट दोहरा सकते हो, और फिर कुछ ऐसा नया लाते हो जो अप्रत्याशित होता है। इसका सटीक उदाहरण मेरे गुरु गॉर्डन विलिस की फ़िल्म में है। ‘द गॉडफादर’ में हर दृश्य आंख से स्तर पर शूट किया गया है। और फिर वो पल आता है जहां मार्लन ब्रैंडो बाजार में खड़े हैं और उन्हें गोली मार दी जानी है... और आप तुरंत एक ऊंचे एंगल पर पहुंच जाते हो जो आपने फ़िल्म में पहले नहीं देखा है। फिर आपको तुरंत भय का अहसास होता है... कि कुछ होने वाला है। ये इसलिए क्योंकि आपने ऐसी विजुअल स्टाइल स्थापित कर दी है जो इतनी मजबूत है कि जब भी कुछ नया या अलग घटता है तो आप सोचते हैं, अरे... ये तो अलग है - ये तो टर्निंग पॉइंट है। अगर सबकुछ, बहुत सारे, अलग-अलग एंगल से शूट होगा तो कोई संभावना नहीं कि आप ऐसी स्टाइल रच पाओगे जो कहानी कहने के तरीके के तौर पर इस्तेमाल की जा सकेगी”।
- केलब डेशनेल, अमेरिकी सिनेमैटोग्राफर,
द पेट्रियट, द पैशन ऑफ द क्राइस्ट, द नेचुरल, द राइट स्टफ, फ्लाई अवे होम, विंटर्स टेल, माई सिस्टर्स कीपर
द पेट्रियट, द पैशन ऑफ द क्राइस्ट, द नेचुरल, द राइट स्टफ, फ्लाई अवे होम, विंटर्स टेल, माई सिस्टर्स कीपर
क्राफ्ट ट्रक वेबसाइट से बातचीत में गॉर्डन विलिस
भाग-1
भाग-2
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