Monday, February 27, 2012

अपनी सबसे सपनीली फंतासी मैरिलिन मनरो को जीता, पीता, बूझता नौजवान कॉलिन

फिल्मः माई वीक विद मैरिलिन (अंग्रेजी)
निर्देशकः साइमन कर्टिस
लेखकः एड्रियान हॉजेस
कास्टः ऐडी रेडमेन, मिशेल विलियम्स, कैनेथ ब्रनॉ, जो वानामेकर, ड्यूग्रे स्कॉट, जूडी डेंच, एमा वॉटसन
स्टारः चार, 4.0/5

मैरिलिन मनरो के लिए कॉलिन की आंखों और चेहरे में जो व्याकुलता, अबूझपन और एक बच्चे सी बैचेनी है, वह फिल्म के सबसे जादुई पल हैं। ये पल ही 'माई वीक विद मैरिलिन’ का सार हैं। ऐडी रेडमेन की कद-काठी, होठ, चेहरे का रंग, कपड़े और अभिनय, मिलकर उन्हें कॉलिन बनाते हैं। उनका काम बेहतरीन है। श्रेय जाता है निर्देशक साइमन कर्टिस को, जिन्होंने इस बायोग्राफिकल फिल्म को बड़ा चुस्त बनाया है। एक फिल्म में जो सम्मोहन होना चाहिए, वो इसमें है। हरेक एक्टर जानदार है। मनरो बनी मिशेल विलियम्स खुद में लाखों फैन्स में हसरतें जगाने वाली मादकता भी समेटे है और नशे की गोलियों में डूबी रहने वाली बेहोश आंखें भी। उनका काम अच्छा है। हमने कभी मैरिलिन को नहीं देखा पर जब वह कॉलिन को जवाब देती है कि मैं कोई गॉडेस नहीं हू, मैं चाहती हूं कि मुझे भी कोई एक आम लड़की की तरह प्यार करे तो हम मैरिलिन को देख-समझ लेते हैं। कैनेथ ब्रनॉ एक ऐसे डायरेक्टर-एक्टर लॉरेंस ऑलिवियर की त्वचा में घुसते हैं, जिसकी परेशानियां फिल्म में बढ़ती ही जाती है। उसकी ब्रिटिश फिल्म में स्टारडम से भरी अमेरिकी मैरिलिन को लिया गया है। जो रोज देर से आती है, पूरी यूनिट को घंटों इंतजार करना पड़ता है, वह मैरिलिन को अपने अंदाज में डायरेक्ट करना चाहता है, पर एक्टिंग कोच पॉला (जो वानामेकर) उसपर हावी रहती है। उधर उसकी वाइफ भी है जो जानती है कि कहीं उसका हस्बैंड अपनी एक्ट्रेस के प्यार में न पड़ जाए। उलझी स्थितियों में वह अपने थर्ड असिस्टेंट कॉलिन को खुद के संदर्भ में कहता है,याद रखना लड़के, तुम्हारी उम्र चाहे कितनी भी हो जाए, एक औरत कभी भी शर्मिंदगी उठाने पर मजबूर कर सकती है।" एड्रियान हॉजेस ने फिल्म लिखी है और बिना कसर के लिखी है।

किसी बायोपिक को कितना असली बनाया जा सकता है, ये निर्देशक साइमन और उनकी टीम सिखाती है। बेहद एफर्टलेस और सरल लगती इस बांधने वाली फिल्म को बिल्कुल देख सकते हैं।

मैरिलिन के साथ कॉलिन का एक हफ्ता
ऑक्सफोर्ड से पढ़कर निकला नौजवान कॉलिन क्लार्क (ऐडी रेडमेन) संपन्न सभ्रांत परिवार से है। उसे फिल्ममेकर बनना है इसलिए ब्रिटिश फिल्मकार लॉरेंस ऑलिवियर (कैनेथ ब्रनॉ) से मिलता है। बाद में लॉरेंस उसे अपनी आने वाली फिल्म 'द प्रिंस एंड द शोगर्ल’ में थर्ड असिस्टेंट डायरेक्टर रख लेता है। जिसमें अमेरिकन एक्ट्रेस मैरिलिन मनरो (मिशेल विलियम्स) भी काम कर रही हैं। मैरिलिन का राइटर हस्बैंड आर्थर (ड्यूग्रे स्कॉट) जब कुछ दिनों के लिए अमेरिका लौट जाता है तो कॉलिन को अपने सपनों की लेडी के साथ वक्त गुजारने का मौका मिलता है। इस दौरान कॉलिन की नजरों से फिल्म की शूटिंग, माहौल, एक्टिंग, रिश्ते और उलझाव के गहन भावों से भरी मैरिलिन आगे की कहानी बनती जाती है।

कुछ छिड़की-छिड़की सी बातें...
# कुछ दिन पहले आई फिल्म ' वूमन इन ब्लैक में हैरी पॉटर के हैरी, डेनियल अच्छा काम करते दिखे थे, अब इस फिल्म में हमारी हरमाइनी, ऐमा वॉटसन भी वॉर्डरोब असिस्टेंट लूसी के अपने छोटे से रोल में तारीफ बटोर ले जाती हैं।
# कॉलिन क्लार्क की दो किताबों 'द प्रिंस द शोगर्ल एंड मी’ और 'माई वीक विद मैरिलिन’ पर आधारित है फिल्म की कहानी।
# पूरी कास्ट के लिए ड्रेस बनाई और जुटाई हैं महिला कॉस्ट्यूम डिजाइनर जिल टेलर ने। इसमें 1950 के ब्रिटेन का फैशन भी सही से है और मैरिलिन मनरो की तब की अमेरिकी ड्रेसेज भी।
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गजेंद्र सिंह भाटी

बेरंग बेआवाज हो फिल्म बनाने निकले मिशेल हैजेनिविशस की ऐतिहासिक चिट्ठी 'कलाकार'

फिल्मः आर्टिस्ट (मूक, श्वेत-श्याम, अंग्रेजी)
निर्देशकः मिशेल हैजेनिविशस
कास्टः जॉन दुजॉर्दों, बेरनीस, जॉन गुडमैन, जेम्स क्रॉमवेल, अगी (कुत्ता)
स्टारः साढ़े तीन, 3.5/5

ऐसा सिर्फ मिशेल हैजेनिविशस ही कर सकते थे। उस वक्त में जब मार्टिन स्कॉरसेजी जैसे पारंपरिक सिनेमा के दिग्गज ने रिटायर होने की उम्र में 'ह्यूगो बनाई, वो भी थ्रीडी में, फ्रेंच निर्देशक मिशेल ने एक साइलेंट फिल्म बनाई, वो भी बिना कलर की। इस बात की पूरी गांरटी के साथ कि फिल्म ज्यादा से ज्यादा लोग नहीं ही देखेंगे। मगर लोग देख रहे हैं। हिम्मत और जोखिम उठाना काम आया और फिल्म तमाम पुरस्कारों में छाई ही। मैंने ऑस्कर समारोह से पहले ही कहा था कि 'ह्यूगो’ को हरा 'द आर्टिस्ट’ बेस्ट पिक्चर हो जाएगी। तो युवाओं आपकी जिंदगी की पहली मूक फिल्म हो सकती है, क्योंकि लैपटॉप पर तो आप देखेंगे नहीं। बीच में फिल्म रोककर सो जाएंगे। तो, करीब के सिनेमाघरों में देख आइए।

खैर, फिल्म बहुत अच्छे से लिखी और बनाई गई है। बाकियों की क्या बात करें, आप तो जॉर्ज के पपी जैक (यूगी) की अदाकारी भी नहीं भूल पाएंगे। जॉर्ज अपनी अंगुली कनपटी पर लगाकर ठांय करता है और दोनों पैरों पर खड़ा जैक मजाकिया अंदाज में एक ओर लुढ़क जाता है। निर्देशक मिशेल ने कई प्रयोग-प्रस्तुतियां बहुत अच्छी की हैं। पेपी सुपरस्टार कैसे बनती है, ये दिखाने के लिए क्रेडिट्स का इस्तेमाल किया जाता है। पहले उसका नाम सबसे नीचे लिखा होता है और आखिर में सबसे ऊपर। जॉर्ज अपने होम थियेटर के प्रोजैक्टर के सामने खड़ा है औ उसकी परछाई परदे पर पड़ रही है। फिर ये परछाई भी परदे से चली जाती है। यानी दुर्भाग्य में साया भी साथ छोड़ जाता है। शराब पीते हुए टेबल पर गिराते जाना। ऐसी बहुत सारी कमाल की चीजें है। जॉं दुजॉर्दों इस बार बेस्ट एक्टर होंगे, कहा था और वो हो गए। वो कमाल हैं। अद्भुत टैप डांस करते हैं। लंबी सी स्माइल के साथ साइलेंट दौर के स्टार लगते हैं। चलना-फिरना एकदम बेदाग। फिर कंगाली के दौर में तनाव और दुख से भरा चेहरा। भंयकर गुस्सा, जब वो अपनी फिल्मों की रील निकाल-निकालकर जलाने लगते हैं। फ्रेंच अदाकारा बेरनीस की एक्टिंग और किरदार ने मुझे 'अकेले हम अकेले तुम’ की मनीषा कोइराला याद दिला दी। वह सुपरस्टार बनने के बाद कार में से जैसे अपने नाकामयाब पति को देख दुखी होती है, आंसू छलकाती है, ठीक वैसे ही बेरनीस भी करती है। अपनी पहली फिल्म में वह टुच्चा सा रोल करती है पर उसे देखने के लिए थियेटर जाती है, हमारी 'द डर्टी पिक्चर’ की रेशमा की तरह। और जब सीन आता है तो वो फ्रेम में होती ही नहीं है।

एक सीन जो साथ लाया: जॉर्ज पेपी को सफलता का मूलमंत्र देता है, अंग्रेजी में कहता है कि अगर तुम एक एक्ट्रेस बनना चाहती हो तो तुममे कुछ ऐसा होना चाहिए जो दूसरों में न हो। फिर वह उसके गाल पर होठों के करीब एक काला टीका लगा देता है। मुझे लगता है कि ये फिल्म का सबसे शानदार सीन था, जिसपर सबसे कम बात की गई। बताइए, कौन कहता है कि हम सब अलग-अलग हैं, या स्क्रिप्ट या कहानियां या भाव सीमा रेखाओं के साथ ही भिन्न हो जाते हैं। जो काले टीके वाली बात मैं बरसों से हिंदी फिल्मों में देखता हूं, जो काला टीका मेरी मां अपनी दोहिति (बेटी की बेटी) के गाल पर उसे नहलाकर बड़े अनुशासन, ममता और अपणायत के साथ हमेशा लगाती है, उसी काले टीके के बारे में फ्रांस में बैठा एक फिल्मकार सोचता है और अपनी फिल्म के नायक-नायिका के बीच एक दृश्य में रखता है।

कलाकार खुद से या कला सेः द आर्टिस्ट
1927 का वक्त है। साइलेंट फिल्मों का सुपरस्टार है जॉर्ज वैलेंटीन (जॉं दुजॉर्दों)। अपनी फिल्म 'द रशियन अफेयर’ के प्रीमियर पर उससे उसकी बड़ी फैन पेपी मिलर (बेरनीस) टकरा जाती है। वह जॉर्ज को किस करती है और ये तस्वीर अगले दिन सब अखबारों की मुख्य खबर बनती है। इन दिनों कीनोग्राफ स्टूडियोज का मालिक ऐल (जॉन गुडमैन) साइलेंट फिल्मों को अलविदा कह, बोलने वाली फिल्में बनाने का फैसला करता है। पर जॉर्ज इसे स्वीकार नहीं करता और अपनी खुद की साइलेंट फिल्म बनाकर सबको गलत साबित करने की कोशिश करता है। पेपी जूनियर आर्टिस्ट से स्टार एक्ट्रेस बनती जाती है, और जॉर्ज कंगाल हो जाता है। दोनों के बीच शुरू से ही एक अनजाना सा प्यार है। आगे की कहानी गहरे इमोशंस और उतार-चढ़ाव से गुजरती है।

मूक रंगों और स्वरों के निर्माता
# अमेरिकी कॉस्ट्यूम डिजाइनर मार्क ब्रिजेस ने 70 साल पहले के हॉलीवुड फैशन को जिंदा किया।
# फ्रेंच कंपोजर लुडविक बोर्स ने 24 गाने बनाए। सभी बैकग्राउंड स्कोर हैं और फिल्म की नब्ज की तरह बजते चलते हैं।
# कैमरे की प्रति सैकेंड फ्रेम दर कम रखी गई, जैसी कि पुरानी फिल्मों में होती थी। इसे 24 तस्वीर प्रति सैकेंड की बजाय 22 फ्रेम प्रति सैकेंड रखा गया। इससे किरदार ज्यादा तेजी से हिलते हैं जैसा कि चार्ली चैपलिन की श्वेत-श्याम मूक फिल्मों में होता था।
# सिनेमैटोग्राफर गियोम शिफमैन ने अपने कैमरे की आंखें बनने में काफी माथा-पच्ची की है, इस वजह से फिल्म सीन दर सीन बहुत क्लीन और सरल बनी है।
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गजेंद्र सिंह भाटी

मन प्रसन्न और चित्त निर्मल करती मैट किंग जैसे नायक की मूल्यों से भरी अमेरिकी कहानी

फिल्मः डिसेंडेंट्स (अंग्रेजी)
निर्देशकः एलेग्जेंडर पेइन
आधारितः काउवी हैमिंग्स के उपन्यास 'द डिसेंडेंट्स' पर
कास्टः जॉर्ज क्लूनी, पैट्रिशिया हेस्टी, शैलीन वूडली, एमरा मिलर, मैथ्यू लिलियर्ड, निक क्राउज
स्टारः साढ़े तीन, 3.5/5' डिसेंडेंट्स' एक सुलझी, सार्थक और सुंदर फिल्म है। उन कुछेक अमेरिकी फिल्मों में से जो वहां की सोसायटी के करीब हैं। हार्डकोर मनोरंजन चाहने वालों को कुछ बैचेनी होगी, कि क्या यार, जितना हो-हल्ला है फिल्म को लेकर, उतना तो कुछ है ही नहीं? पर फिल्म की खासियत उसके इरादे, नजरिए, ईमानदारी, महीन इमोशंस और स्मार्ट फिल्ममेकिंग में है। पूरी फिल्म में जॉर्ज क्लूनी पत्तीदार प्रिंट वाले शर्ट और हाफ पेंट में बहुत औसत क्षमताओं वाले बाप के रोल में दिखते हैं तो 'ओशियंस सीरिज' वाले उनके फैन उन्हें कुछ कोस सकते हैं, मगर मोटी बात ये है कि किसी एक्टर या दर्शक के लिए ऐसे रोल बहुत जरूरी हैं। ये फिल्म जरूर देखें। ऐसे वक्त में जब हमारी फिल्में हमें पशु बनाने पर तुली हैं, ये बिना साइड इफैक्ट्स वाली सुकूनभरी फिल्म आई है। अपनों को माफ करने, भीतर के इंसान को नहीं मरने देने, सही फैसले लेने और धैर्य रखने की सीख देती है। देखें, देखें।

कहानी हवाई में रहने वाले वकील मैट किंग (जॉर्ज क्लूनी) की है। वाइफ एलिजाबेथ (पैट्रिशिया हेस्टी) एक बोट एक्सीडेंट के बाद कोमा में चली गई है। चूंकि अब वो कोमा से बाहर नहीं आएगी इसलिए एलिजाबेथ की वसीयत के मुताबिक उसका लाइफ सपोर्ट हटाना है। मैट के सामने चुनौतियां कई हैं। 10 साल की बद्जबान हो रही छोटी बेटी स्कॉटी (एमरा मिलर) और 17 साल की एलेक्स (शैलीन वूडली) की पैरेंटिंग उसे अकेले ही करनी है। एलेक्स उसे बताती है कि मां का किसी और से (मैथ्यू लिलियर्ड) अफेयर चल रहा था। वह उसे तलाक देने तक का सोच रही थी। इन उलझनों के बीच कुवाई नाम के टापू पर मैट की खानदानी 25000 एकड़ की अमूल्य जमीन है, उसके ट्रस्ट का ट्रस्टी वह है और सात साल में ट्रस्ट खत्म हो जाएगा, इसलिए उसके भाई और फैमिली मेंबर जमीन को बेचना चाहते हैं। आखिरी फैसला मैट को करना है।

काउइ हार्ट हेमिंग्स के नॉवेल 'द डिसेंडेंट्स' पर बनी इस फिल्म की कहानी, किरदार और बर्ताव जितना सिंपल है, क्वालिटी उतनी ही ऊंची है। जॉर्ज क्लूनी इस बार बेस्ट एक्टर का ऑस्कर जीते न जीते पर वाकई में उन्होंने मैट किंग को जिंदा कर दिया है। उनका रोना, कन्फ्यूज होना और सपाट चेहरे के साथ दिमाग में मची उथल-पुथल को दिखाना ऐसी कुछेक बातें हैं। डायरेक्टर एलेंग्जेंडर पेइन अमेरिकी समाज जैसा है और जैसा होना चाहिए, दोनों दिखाते हैं। 'इलेक्शन', 'अबाउड शिमिड' और 'साइडवेज' जैसी फिल्मों में वह ऐसा कर चुके हैं। 'द डिसेंडेंट्स' में भी उनका नायक आदर्श अमेरिकी है। ससुर उसे बुरा पति और अपनी बेटी को वफादार वाइफ कहता है पर वह पलटकर उन्हें हकीकत नहीं बताता। आखिर में कुवाई की अरबों की जमीन बेचने के फैसले में भी वह बोल्ड कदम उठाता है। एलेक्स का ब्रॉयफ्रेंड सिड (निक क्राउज) भोंदू है लेकिन वह इसी तरह स्वीकार्य है, ऐसा कितनी फिल्मों में होता है? फिल्म की पृष्ठभूमि में हवाई का म्यूजिक बजता रहता है, उस पर हंसे नहीं, समझें और उसे कहानी का मूड तय करने दें।
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गजेंद्र सिंह भाटी

सब स्पेशल एजेंटों में हीरोइज्म से भरी बस एक, मैलोरी

फिल्मः हेवायर
निर्देशकः स्टीवन सोडरबर्ग
कास्टः जीना कैरेनो, चैनिंग टेटम, माइकल एंगरैनो, माइकल फासबैंडर, माइकल डगलस, एंटोनियो बैंडारेस, इवॉन मैकग्रेगर
स्टारः तीन, 3.0/5
एक लड़की मैलोरी (जीना कैरेनो) अपस्टेट न्यू यॉर्क के एक कैफे में आई है। थोड़ी देर में एरॉन (चैनिंग टेटम) बाहर से आता है और उसके सामने अलसाए चेहरे के साथ बैठ जाता है। बीयर मांगता है, पर वहां मिलती नहीं इसलिए कॉफी ऑर्डर करता है। मैलोरी को अपने साथ चलने के लिए कहता है, पर वह मना कर देती है। और वह सर्व होती गर्मागर्म कॉफी एकदम से मैलोरी के चेहरे पर फैंक देता है और उसे बुरी तरह पीटना और लात-घूसे चलाना शुरू करता है। वहीं कुछ दूर बैठा एक लड़का स्कॉट (माइकल एंगरैनो) उसे पीछे से पकड़कर रोकने की कोशिश भी करता है। खैर, यहां फिल्म आपकी हलक सुखा देती है। कि कोई एक लड़की को ऐसे कैसे पीट सकता है। जब लगता है कि लड़की तो अधमरी हो गई तभी वो पलटती है और लपेट-लपेट कर एरॉन को पीटती है। उसे गोली लगी है पर बिना किसी ऊह-आह के फौलाद की तरह वह स्कॉट के साथ उसकी कार लेकर चली जाती है। यहां तक आते-आते अंदाजा हो जाता है कि जरा कमर सीधी करके बैठ जाइए, ये कोई ऐसी-वैसी फिल्म नहीं है। तो 'हेवायर' अच्छी फिल्म है। जरूर देखें। चूंकि ये थोड़ी गैर-पारंपरिक ट्रीटमेंट वाली फिल्म है इसलिए धीमी लग सकती है। कम नाटकीय लग सकती है। इसका बैकग्राउंड स्कोर आपके रौंगटे खड़े नहीं करता और इसकी हीरो जीना मर्मस्पर्शी एक्टिंग नहीं करती, पर देखते वक्त तारीफ के लहजे में जरूर सोचेंगे कि फिल्म का डायरेक्टर कौन है?

ये
अमेरिकी फिल्मों के कमर्शियल हीरोइज्म को बागी तरीके से इंसानी बनाने में जुटे निर्देशक स्टीवन सोडरबर्ग की फिल्म है। उनके तेवर भी ऐसे ही हैं। उनकी फिल्मों में बड़े-बड़े चेहरे (यहां माइकल डगलस, एंटोनियो बैंडारेस, माइकल फासबैंडर) होते हैं, पर उन स्टार्स को उतना ही भाव मिलता है जितनी स्क्रिप्ट में जरूरत होती है। एक्ट्रेस और पूर्व मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स फाइटर जीना कैरेनो को लेकर बनाई उनकी ये फिल्म अब तक की सबसे रियल लगती स्पेशल एजेंट मूवी है। हर एक स्टंट वैसा है जैसा कि इंसानी क्षमताओं में संभव है। बार्सिलोना की सड़कों पर मैलोरी के दौड़ने वाला लंबा सीन, मैलोरी और एरॉन का ओपनिंग फाइट सीन और उसका होटल की छत की दूसरी छतों पर होते हुए बच निकलने का सीन... ये सब बेहतरीन फाइट कॉर्डिनेशन है। जो बहुत ही कच्चे, रॉ और रफ लगते हैं। आखिरी कितनी स्पेशल एजेंट फिल्मों में ऐसा होता है कि हीरो (यहां मैलोरी) गाड़ी तेजी से बैक लेकर पुलिस से बच रहा है और पीछे से अचानक कोई जानवर (बारहसिंगा) आ टकरा घुसे। ऐसा सोडरबर्ग की फिल्मों में होता है। 'मिशन इम्पॉसिबल' या 'रा.वन' या 'एजेंट विनोद' में संभवत नहीं।

'हेवायर' मैलोरी नाम की एक स्पेशल एजेंट की कहानी है जो एक प्राइवेट कंपनी में कॉन्ट्रैक्टर है। ये कंपनी गवर्नमेंट के लिए काम करती है और उनके गुप्त मिशन ठेके पर लेती है। कंपनी के एक मिशन के तहत मैलोरी और उसकी टीम बार्सिलोना में किडनैप किए गए जियांग (एंथनी ब्रैंडन वॉन्ग) को बचाती है और उसे कॉन्ट्रैक्ट देने वाले रॉड्रिगो (एंटोनियो बैंडारेस) को सौंप देती है। इसके बाद कंपनी का डायरेक्टर और मैलोरी का एक्स-बॉयफ्रेंड कैनेथ (इवॉन मैकग्रेगर) उसे एक आसान का काम करने को मनाता है, पर बाद में उसे पता चलता है कि उसे फंसाया गया है। इस धोखे का बदला लेने के लिए मैलोरी लौटकर एक-एक से हिसाब चुकता करती है।*** *** *** *** ***
गजेंद्र सिंह भाटी

Sunday, February 26, 2012

बेसबॉल और ब्रैड पिट का कुछ विरला इस्तेमाल करती ये तकड़ी फिल्म

फिल्मः मनीबॉल
निर्देशकः बैनेट मिलर
कास्टः ब्रैड पिट, फिलिप सेमूर हॉफमेन, जोना हिल, कैरिस डॉर्सी
सिनेमैटोग्रफीः वॉली पीफिस्टर
एडिटिंगः क्रिस्टोफर टेलेफसन
म्यूजिकः माइकल डाना
स्टारः साढ़े तीन, 3.5/5'मनीबॉल में परंपरागत स्पोट्र्स मूवी वाली बात नहीं है। 'चक दे इंडिया’ का शाहरुख सा कोच, उसके मेहनत करवाने के अलग तरीके, फैन्स, परेशानियां, मैच, हार और फिर आखि में जीत... ये सब अमेरिकी बेसबॉल मूवीज में भी होता आया है। मगर इस फिल्म में बात मैदान के भीतर की कम और एक जनरल मैनेजर बिली की प्रशासनिक कुशलताओं और पैशन की ज्यादा है। वह फोन पर दूसरे स्पोट्र्स एजेंटों से डील करता है, अपने खिलाडिय़ों से कम मिलता है, कोच को निर्देश देता है, प्लेयर्स का सौदा करता है, गुस्से में कुर्सियां इधर-उधर फेंकता है और फ्लैशबैक में अपने बेसबॉल नहीं जीत पाने के दिनों को याद करता है। फिल्म दिल से जरा सा ज्यादा दिमाग के लिए है। मुझे बहुत अच्छी लगी। खासतौर पर बिली बने ब्रैड पिट का एकाकीपन और गहनता। उनके किरदार के प्लेयर्स मैदान प उतना नहीं जलते जितना वह भीतर-भीतर जलता है। अपनी बेटी केजी (कैरिस डॉर्सी) से बात करते हुए वह बिल्कुल अलग हो जाता है। फिल्म का क्लाइमैक्स बहुत अलग और नया है। मोटे ऑफर को अस्वीकार कर अपने लक्ष्य को फिर से पूरा करने में उसका जुटना ही 'मनीबॉल’ को स्वीकार करने लायक बनाता है 2003 में आई माइकल लुइस की किताब 'मनीबॉल’ पर आधारित इस स्क्रीनप्ले के पीछे हैं 'सोशल नेटवर्क’ लिखने वाले एरॉन सॉर्किन और स्टीवन जिलियन। फिल्म की रीढ़ ये स्क्रीनप्ले, बैने मिलर का यंग निर्देशन और ब्रैड पिट-फिलिप सेमूर हॉफमैन जैसों की अक्षुण्ण एक्टिंग है। फिल्म जरूर देखें।

टीम बनाने का सूत्र
ओकलैंड एथलैटिक्स बेसबॉल टीम का जनरल मैनेजर है बिली बीन (ब्रैड पिट)। 2001 में उसकी टीम न्यू यॉर्क यैंकीज से हार गई है। अब जब उसके तीन स्टार खिलाड़ी टीम से बाहर जाने हैं, मैनेजमेंट के पास अच्छे प्लेयर्स खरीदने का पैसा नहीं है। अच्छी टीम खड़ी करने की कोशिशों में वह येल यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स पढ़े पीटर ब्रैंड (जोना हिल) से मिलता है और उसे अपना असिस्टेंट बना लेता है। दोनों मिलकर ऐसे खिलाडिय़ों को ढूंढते हैं, जिनके टेलंट को बड़े क्लबों ने नहीं पहचाना है। बाकी मैनेजमेंट के सदस्य और कोच आर्ट हॉवी (फिलिफ सेमूर हॉफमेन) उनके फैसलों से सहमत नहीं हैं। मगर बिली को जीतना है और खुद को साबित करके दिखाना है।*** *** *** *** ***
गजेंद्र सिंह भाटी

वीरेन को मिली, जीवन से भरी, मिनी

फिल्मः तेरे नाल लव हो गया
निर्देशकः मनदीप कुमार
कास्टः रितेश देशमुख, जेनेलिया डिसूजा, ओम पुरी, स्मिता जयकर, टीनू आनंद, चित्राशी रावत, नवीन प्रभाकर
सिनेमैटोग्रफीः चिरंतन दास
एडिटिंगः मनीष मोरे
म्यूजिकः सचिन-जिगर
स्टारः तीन, 3.0निर्देशक मनदीप कुमार ने अपनी इस पहली हिंदी फिल्म से निराश नहीं किया है। स्क्रिप्ट, आइडिया और संगीत के स्तर पर हम सबकुछ बहुतों बार देख चुके हैं। फिर भी 'तेरे नाल लव हो गया’ ऐसी है कि आप बेझिझक जा सकते हैं। फैमिली या फ्रेंड्स के साथ। जिनेलिया में जितनी तरह की मासूमियत और चंचलता इस फिल्म में समेटी गई है उतनी पहले कभी नहीं। 'पहले डांस करके दिखाओ और 'या लगाऊं कान के नीचे एक जैसे संवाद वही इतने चुलबुलेपन से निभा सकती थीं। ओमपुरी फिल्म में जान ले आते हैं। उनका हरियाणवी एक्सेंट बेदाग लगता है। बहुत अच्छा। जैसे एक सीन में मिनी के पिता बने टीनू आनंद फिरौती के पैसे लेकर आए हैं और वो जाना नहीं चाहती, सबसे कह रही है कि मुझे रोक लो, यहां ओम पुरी के किरदार की आंखें लाल और गीली हो जाती हैं। आमतौर पर टाइमपास फिल्मों में ऐसी बातों पर कोई ध्यान नहीं देता है। पर यहां दिया गया, जो खूबसूरत बात है। स्मिता जयकर को हरियाणवी औरत की वेशभूषा में देख अच्छी हैरत होती है। उनका किरदार जब जिनेलिया को रसोई में कहता है कि 'ले, खड़े प्याज काट दे’ तो यकीन हो जाता है कि मनदीप हल्के फिल्मकार नहीं हैं। उनको जमीनी चीजों का ज्ञान है। ऐसा कई जगहों पर है। वीरेन का मुंह अंधेरे ऑटो चलाने जाना, चौधरी के लिए खाने की थाली लेकर गई मिनी का बातें करते वक्त आंगन में नीचे बैठ जाना और कसौली की सड़कों पर एक बूढ़ी औरत का वीरेन को अखबार से पीटते हुए कहना कि 'क्यों, लड़की लेकर भागता है, लड़की लेकर भागता है। कुछ ढर्रे वाली चीजें भी हैं। मसलन, जिनेलिया का लाल लंगोट पहने पहलवानों को ऐरोबिक्स करवाना। फिल्म कुल मिलाकर लव करने वालों को खासतौर पर हंसाती-लुभाती है।

प्यार की हैपी-हैपी कहानी
भट्टी (टीनू आनंद) के यहां किराए का ऑटो चलाता है वीरेन (रितेश देशमुख)। साठ हजार जुटा चुका है, चार पहियों वाली टैक्सी लेना चाहता है। उधर भट्टी अपनी बेटी मिनी (जिनेलिया डिसूजा) की शादी एक रईस मगर नाकारा पंजाबी लड़के से करना चाहता है। उस लड़के को मिनी के कैनेडा वाले ग्रीन कार्ड में इंट्रेस्ट है। फिर वीरेन की परेशानियां शुरू होती हैं। उसके पैसे चले जाते हैं और चुलबुली मिनी उससे खुद को किडनैप करवा लेती है। दोनों भाग रहे हैं, प्यार हो रहा है और सरप्राइज हमारा इंतजार कर रहे हैं। कहानी में दमदार से चौधरी (ओम पुरी), चौधराइन (स्मिता जयकर), धानी (चित्राशी रावत) और नायडू (नवीन प्रभाकर) भी हैं।

तौले-मोले कुछ और बोल
# पंजाबी सिंगर और एक्टर दिलजीत दोसांझ का 'पी पा पी पा’ गाने में एंट्री लेना पंजाबी दर्शकों के लिए जोरदार फन बन जाता है।
# वीना मलिक का आइटम सॉन्ग 'मैं तेरी फैन बन गई’ फिल्म की सबसे बुरी-बेकार चीज है।
# पेट्रोल पंप पर अंगूठी वाले सीन में पंजाबी एक्टर राणा रणबीर मुझे जॉनी लीवर की याद दिलाते लगे, पर चलो हिंदी फिल्मों में उनकी एंट्री ठीक रही।
# चौधरी किडनैपिंग का कारोबार करते हैं। उनका अगुवा हाउस मुझे सीधे 'फंस गए रे ओबामा’ की याद दिला देता है। हूबहू वैसा। संयोग है कि प्रेरणा, फिल्मकार जाने।
# अभिजीत संधू की स्टोरी उतनी अभिनव या ताजी नहीं है जितना कि डायरेक्टर मनदीप कुमार का फिल्म के प्रति नजरिया। ताजेपन की ऐसी ही कमी सचिन-जिगर के संगीत में है। बस काम चलाऊ है।*** *** *** *** ***
गजेंद्र सिंह भाटी