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Monday, February 27, 2012

अपनी सबसे सपनीली फंतासी मैरिलिन मनरो को जीता, पीता, बूझता नौजवान कॉलिन

फिल्मः माई वीक विद मैरिलिन (अंग्रेजी)
निर्देशकः साइमन कर्टिस
लेखकः एड्रियान हॉजेस
कास्टः ऐडी रेडमेन, मिशेल विलियम्स, कैनेथ ब्रनॉ, जो वानामेकर, ड्यूग्रे स्कॉट, जूडी डेंच, एमा वॉटसन
स्टारः चार, 4.0/5

मैरिलिन मनरो के लिए कॉलिन की आंखों और चेहरे में जो व्याकुलता, अबूझपन और एक बच्चे सी बैचेनी है, वह फिल्म के सबसे जादुई पल हैं। ये पल ही 'माई वीक विद मैरिलिन’ का सार हैं। ऐडी रेडमेन की कद-काठी, होठ, चेहरे का रंग, कपड़े और अभिनय, मिलकर उन्हें कॉलिन बनाते हैं। उनका काम बेहतरीन है। श्रेय जाता है निर्देशक साइमन कर्टिस को, जिन्होंने इस बायोग्राफिकल फिल्म को बड़ा चुस्त बनाया है। एक फिल्म में जो सम्मोहन होना चाहिए, वो इसमें है। हरेक एक्टर जानदार है। मनरो बनी मिशेल विलियम्स खुद में लाखों फैन्स में हसरतें जगाने वाली मादकता भी समेटे है और नशे की गोलियों में डूबी रहने वाली बेहोश आंखें भी। उनका काम अच्छा है। हमने कभी मैरिलिन को नहीं देखा पर जब वह कॉलिन को जवाब देती है कि मैं कोई गॉडेस नहीं हू, मैं चाहती हूं कि मुझे भी कोई एक आम लड़की की तरह प्यार करे तो हम मैरिलिन को देख-समझ लेते हैं। कैनेथ ब्रनॉ एक ऐसे डायरेक्टर-एक्टर लॉरेंस ऑलिवियर की त्वचा में घुसते हैं, जिसकी परेशानियां फिल्म में बढ़ती ही जाती है। उसकी ब्रिटिश फिल्म में स्टारडम से भरी अमेरिकी मैरिलिन को लिया गया है। जो रोज देर से आती है, पूरी यूनिट को घंटों इंतजार करना पड़ता है, वह मैरिलिन को अपने अंदाज में डायरेक्ट करना चाहता है, पर एक्टिंग कोच पॉला (जो वानामेकर) उसपर हावी रहती है। उधर उसकी वाइफ भी है जो जानती है कि कहीं उसका हस्बैंड अपनी एक्ट्रेस के प्यार में न पड़ जाए। उलझी स्थितियों में वह अपने थर्ड असिस्टेंट कॉलिन को खुद के संदर्भ में कहता है,याद रखना लड़के, तुम्हारी उम्र चाहे कितनी भी हो जाए, एक औरत कभी भी शर्मिंदगी उठाने पर मजबूर कर सकती है।" एड्रियान हॉजेस ने फिल्म लिखी है और बिना कसर के लिखी है।

किसी बायोपिक को कितना असली बनाया जा सकता है, ये निर्देशक साइमन और उनकी टीम सिखाती है। बेहद एफर्टलेस और सरल लगती इस बांधने वाली फिल्म को बिल्कुल देख सकते हैं।

मैरिलिन के साथ कॉलिन का एक हफ्ता
ऑक्सफोर्ड से पढ़कर निकला नौजवान कॉलिन क्लार्क (ऐडी रेडमेन) संपन्न सभ्रांत परिवार से है। उसे फिल्ममेकर बनना है इसलिए ब्रिटिश फिल्मकार लॉरेंस ऑलिवियर (कैनेथ ब्रनॉ) से मिलता है। बाद में लॉरेंस उसे अपनी आने वाली फिल्म 'द प्रिंस एंड द शोगर्ल’ में थर्ड असिस्टेंट डायरेक्टर रख लेता है। जिसमें अमेरिकन एक्ट्रेस मैरिलिन मनरो (मिशेल विलियम्स) भी काम कर रही हैं। मैरिलिन का राइटर हस्बैंड आर्थर (ड्यूग्रे स्कॉट) जब कुछ दिनों के लिए अमेरिका लौट जाता है तो कॉलिन को अपने सपनों की लेडी के साथ वक्त गुजारने का मौका मिलता है। इस दौरान कॉलिन की नजरों से फिल्म की शूटिंग, माहौल, एक्टिंग, रिश्ते और उलझाव के गहन भावों से भरी मैरिलिन आगे की कहानी बनती जाती है।

कुछ छिड़की-छिड़की सी बातें...
# कुछ दिन पहले आई फिल्म ' वूमन इन ब्लैक में हैरी पॉटर के हैरी, डेनियल अच्छा काम करते दिखे थे, अब इस फिल्म में हमारी हरमाइनी, ऐमा वॉटसन भी वॉर्डरोब असिस्टेंट लूसी के अपने छोटे से रोल में तारीफ बटोर ले जाती हैं।
# कॉलिन क्लार्क की दो किताबों 'द प्रिंस द शोगर्ल एंड मी’ और 'माई वीक विद मैरिलिन’ पर आधारित है फिल्म की कहानी।
# पूरी कास्ट के लिए ड्रेस बनाई और जुटाई हैं महिला कॉस्ट्यूम डिजाइनर जिल टेलर ने। इसमें 1950 के ब्रिटेन का फैशन भी सही से है और मैरिलिन मनरो की तब की अमेरिकी ड्रेसेज भी।
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गजेंद्र सिंह भाटी

Saturday, July 16, 2011

हैरी की जादुई महाभारत खत्म

फिल्म: हैरी पॉटर एंड द डैथली हैलोज पार्ट-टू
डायरेक्टर: डैविड येट्स
कास्ट: डेनियल रेडक्लिफ, रुपर्ट ग्राइंट, एम्मा वॉटसन, राल्फ फिएन्स, मैथ्यू लुईस, माइकल गैम्बॉन, हैलेना बॉनहैम कार्टर, मैगी स्मिथ
स्टार: तीन 3.0

जाहिर है कि नन्हे हैरी की इस आखिरी फिल्म को अश्रु भरे नैनों से विदाई मिलेगी। हां, इसने कमर्शियली बड़ी सफलता पाई, प्रॉड्यूसर्स को सोने में तौल दिया पर इस आठवीं फिल्म में अच्छाई के विषय में कुछ खास होता है। जब लॉर्ड वॉलडिमॉर्ट अपने मैनईटर्स के साथ आता है और उसके साथ हैरी का शरीर होता है तो सब रो रहे होते हैं, डर जाते हैं। उन्हें लगता है कि बुराई जीत गई। पर सब सहमों के बीच से आगे आता है सदा डरपोक दिखने वाला नेवाइल लॉन्गबॉटम (मैथ्यू लुईस)। ग्रिफिनडोर की तलवार उठाए वह वॉलडिमॉर्ट के डर को दुत्कारते हुए कुछ ऐसा ही कहता है, 'मैं किस बात से डरूं। मरने से? जो एक न एक दिन हर किसी को है।' फिल्म यहीं पर आकर सार्थक हो जाती है। डैथली हैलोज-2 में ऐसी ही अच्छी बातें हैं। पूरी सीरिज में लॉन्गबॉटम की तरह रॉन भी कुछ बुद्धू सा लगता है, पर यहां आकर उसकी होशियारी की कायल हरमाइनी भी हो जाती है। क्लाइमैक्स उन लोगों के लिए बहुत खास है जिन्होंने पहली फिल्म और बुक से हैरी की चिंता की है और उसे अपनी जिंदगी का हिस्सा माना है।

आखिरी अध्याय!
डैथली हैलोज-एक में हैरी (डेनियल रेडक्लिफ), रॉन (रुपर्ट ग्राइंट) और हरमाइनी (एम्मा वॉटसन) मारे मारे फिर रहे होते हैं। हॉगवड्र्स स्कूल के कर्ता-धर्ता डम्बलडोर (माइकल गैम्बॉन) की हत्या के बाद लॉर्ड वॉलडिमॉर्ट (राल्फ फिएन्स) का सामना इन्हीं को करना है। तीनों के बीच लव टाइएंगल भी नजर आता है। फिर फिल्म के आखिर तक प्यारा सा डॉबी अपनी जान देकर हैरी की जान बचाता है। भाग दो में डॉबी को दफनाने के बाद हैरी ग्राइपहुक गोबलिन से ग्रिंगॉट्स में जाने का रास्ता पूछता है। हैरी को लगता है कि हॉरक्रक्स (वॉलडिमॉर्ट की जान हॉरक्रक्सेज में छिपी है) यहीं छिपाया हुआ है। इस तरह एक-एक करके उसे कुल तीन हॉरक्रक्स नष्ट करने हैं और वॉडडिमॉर्ट का सामना करना है। हॉगवट्र्स स्कूल तहस-नहस हो चुका है, हैरी के बहुत सारे साथी अपने प्राण गवां चुके हैं। इस दौरान हैरी को अपने अस्तित्व और पहचान के लेकर भी बहुत सी नई बातें पता चलती हैं। फिल्म का अच्छा अंत उस चक्र को पूरा करता है, जहां से कहानी शुरू हुई थी।

जब बुराई बहुत बुरी हो
प्रफेसर मैकगॉन्गल (मैगी स्मिथ) का ये सीन इम्प्रेसिव है, जब हैरी को हॉरक्रक्स ढूंढने के लिए वक्त चाहिए तो वह हॉगवड्र्स की सुरक्षा के लिए 'पारतोतम लोकोमोतोह' बोलती हैं और ऊपर से कूद जमीन पर आ खड़े होते हैं पत्थर के सैनिक। ये बहुत विशेष मंत्र है जो गहरे सकंट के वक्त यूज किया जाता है। इस टेंस मौके में भी (बदमाशी भरे हंसोड़ अंदाज में) वह कहती हैं, 'मैं इस शब्द का हमेशा से इस्तेमाल करना चाहती थी।' फिल्म में अच्छाई के पक्ष में दर्शक तभी हो पाते हैं जब उस फिल्म की बुराई बहुत बुरी हो। यहां भी बुराई का भय वॉलडिमॉर्ट के उच्चारण में बने ठहराव और नजाकत की वजह से ही हो पाता है। जब सेवक माई लॉर्ड बोलते हैं और उसके गुस्से को भांपकर सिर झुकाकर दो कदम पीछे हो जाते हैं तो असर ऑडियंस पर दिखता है। उनका मंत्र 'अवाडा केडाव्रा' उनके सबसे स्पेशल डायलॉग्स में से एक रहेगा।

संदर्भ भगवद्गीता के
वॉलडिमॉर्ट से हैरी की पहली भिडं़त के बाद वह अचेत हो जाता है और अपने मानस में डंबलडोर से मिलता है। पॉटर फिल्मों के तिलिस्म, रोशनी और जादू के बीच ये बहुत सुकून भरा सीन है। इसे बड़ी आसानी से गीता के ज्ञान और महाभारत के अर्जुन-कृष्ण संवाद से जोड़कर देख सकते हैं। सीन के मायने भी महाभारत के संदर्भ से बहुत मिलते जुलते हैं। दूसरा लेखिका जे.के.रॉलिंग का इंडिया के पौराणिक ग्रंथों और कहानियों से प्रेरित होना भी इसका एक कारण है। हैरी को यहां एक बूढ़े भ्रूण की तरह खून से लथपथ जीव दिखाई देता है। ये संदर्भ जीवन और मृत्यु के दर्शन का है। वह निर्णायक लड़ाई से पहले अपने मन की उथल-पुथल के सवाल डंबलडोर से पूछता है। ये बड़े शांत तरीके से होता है। शुरू में डंबलडोर पूछता है, 'हैरी तुम्हें क्या लगता है ये कौन सी जगह है' और हैरी बोलता है (सब हंस पड़ते हैं), 'मुझे तो किंग्स क्रॉस स्टेशन जैसा लग रहा है। बस उससे ज्यादा क्लीन है।' फिल्म में इसी किस्म का ह्यूमर साथ-साथ चलता रहते है, जिससे फिल्म भारी नहीं होती।

आखिर में
मुझे लगता है कि कहानी अभी खत्म नहीं हुई। ये फिल्म उस दरवाजे को खुला छोड़ आई है, जहां से बहुत सारे रोचक, मजेदार और हैरी के शुरुआती दिनों जैसे भोले सीक्वल दर्शकों के लिए अंदर आएंगे।

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गजेंद्र सिंह भाटी