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Friday, October 12, 2012

मृत्यु की लोरी गाता वहः किलिंग देम सॉफ्टली, विलक्षणता की विवेचना

Killing Them Softly, Director: Andrew Dominik, Cast: Brad Pitt, Ray Liotta, Richard Jenkins, Scoot McNairy, Ben Mendelsohn, James Gandolfini, Vincent Curatola
 किलिंग देम सॉफ्टली (Killing Them Softly) एक विलक्षण फिल्म है। रोड टु परडिशन, पल्प फिक्शन, किल बिल, नो कंट्री फॉर ओल्ड मैन और गॉडफादर सीरिज जैसी बहुत सारी फिल्में हैं जो विषय-वस्तु में अलग हो सकती हैं, पर लूट-अपराध-हिटमैन वाले संदर्भों में निर्देशक एंड्रयू डॉमिनिक की इस फिल्म के समानांतर हैं। विलक्षण शब्द का इस्तेमाल और इन फिल्मों का जिक्र इसलिए क्योंकि 'किलिंग देम सॉफ्टली' उनके समानांतर होते हुए भी बिल्कुल अलग है। इसमें ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड मूल के एंड्रयू की अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर निराली टिप्पणी है, फिल्म में पिरोए गए इतने असामान्य तंतु हैं। हिगिन्स के हथाइयों (बातें और बातें) भरे उपन्यास ‘कोगन्स ट्रेड’ (Cogan’s Trade) पर फिल्म बनी है। इसे उपन्यास अनुरूप 1974 का नहीं अपितु 2008 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से पहले का समय संदर्भ दिया गया है। एक ढहती अर्थव्यवस्था के साथ-साथ चलते अपराधों को देखने का तरीका है। मृत्यु के हत्यामय और मोक्षमय स्वरूप को समझाने के जिए जॉनी कैश का गाया अपरिमेय गाना “वैन द मैन कम्स अराउंड” डाला गया है। गुजरे जमाने के ऐसे सभी गीत आह्लादित करने वाले हैं। एंड्रयू और फिल्म के तत्वों पर बात करने से पहले कहानी की रूपरेखा जान लेते हैं।

अमेरिका की अर्थव्यवस्था भरभराकर गिर रही है। ये राष्ट्रपति बनने का ख्वाब देख रहे सेनेटर बराक ओबामा भी जानते हैं, अमेरिकन ड्रीम की मृगमरीचिका तले जी रहे देश के आम नागरिक भी जानते हैं, कानूनन मंजूर मगर बगैर नियमन चल रहे जुआघर और उसमें खेलने वाले जानते हैं, रईसों के महंगे डॉग-बिच को चुराने वाले नशेड़ी जानते हैं, छोटे-मोटे कारोबार तले अपराध में लीन बॉस लोग जानते हैं। नहीं जानते हैं तो बस पूंजीवादी राह पर निकले तीसरी दुनिया से दूसरी और पहली का हो जाने को अतिआतुर लोग, खैर, जैकी कोगन (ब्रेड पिट) एक हिटमैन है, एनफोर्सर है। सभ्रांतों की आपराधिक गंदगी जब एक हद से फैल जाए तो उसे समेटने-साफ करने आने वाला। बदमाशों के एक ताश के खेल को दो टुच्चे हथियार तान लूट लेते हैं। शक जुआघर चलाने वाले मार्की (रे लियोटा) पर भी है, जिसने पिछली बार ऐसी ही लूट खुद करवाई थी। सीधे तौर पर न कोई सबूत है, न कोई तरीका। अब विस्तृत परिपेक्ष्य में जिनका पैसा और गर्दन दाव पर है उन्हें बिखरे वाकये को समेटना और निपटाना है। ये काम करना है जैकी को। यही कहानी है।

मगर जैकी का व्यक्तित्व ही फिल्म को ‘कोगन्स ट्रेड’ की उपन्यास वाली छवि से बाहर निकालकर ‘किलिंग देम सॉफ्टली’ नाम की मौलिक फिल्म बनाता है। ये फिल्म के कई दृश्यों में होने वाली मैराथन हथाइयों से समझ में आता है। कार में जैकी और उससे इस कार्रवाही के लिए लगातार मिल रहे ड्राइवर (रिचर्ड जेनकिंस) के बीच तमाम पहलू डिस्कस होते हैं। डाका डालने वाला कौन हो सकता है? क्या मार्की? क्या उससे पूछा जाए? कैसे? उसने नहीं किया होगा तो? जब ड्राइवर कहता है कि मार्की से उगलवाओ। इस उगलवाने में जो उसे पीटने-पीड़ा देने की प्रताड़ना है, उसे भांप जैकी अनमना होकर कुछ ऐसे बोलता है, “छोड़ो भी उस बेचारे को। उसे ठोकने से तुम्हें कुछ नहीं मिलने वाला। वह ऐसा कर नहीं सकता। उसने दूसरी बार नहीं किया होगा। और वैसे भी उसे ठोककर तुम्हारे सेठों को क्या मिलेगा”। यहां तक आते-आते हमें एक हिटमैन या हत्यारे का मानवीय (विडंबना) पहलू नजर आता है कि वह लोगों को पीड़ा देने से बचना चाहता है। अंत में जब ड्राइवर कहता है कि चलो उसे कुछ पीट दो, ज्यादा सीरियसली मत मारना। देखो, क्या पता वह कुछ कहे। तब जैकी मानता है।

ऐसी ही एक और वार्ता में जब जैकी को पता चल जाता है कि फ्रैंकी (स्कॉट मैकनायरी) और रसेल (बेन मेंडलसन) ने लूट की है तो वह जेनकिंस के किरदार को यह बताता है। दोनों में फिर मैराथन बातें होती हैं। यहां गप्पें इस बात पर होती हैं कि इन दोनों का नाम कैसे पता चला? रसेल ने दारू पीकर उगल दिया? कोई इतना मूर्ख कैसे हो सकता है! गधा, अपना मुंह भी बंद नहीं रख सकता! इनका क्या किया जाए? कैसे मारा जाए? इस दौरान जैकी की सोच में से फिल्म का शीर्षक निकलता है, ‘किलिंग देम सॉफ्टली’
 

 वह जो कहता है उसके भाव कुछ यूं निकलते हैं,
“मैं अपने सब्जेक्ट्स के ज्यादा करीब नहीं जाना चाहता हूं। कमऑन यार, वो पसीने से लथपथ हो जाते हैं, पैरों में पड़कर गिड़गिड़ाने लगते हैं। मैं ये नहीं कर सकता। मैं उन्हें सॉफ्टली मारता हूं। मैं पता नहीं लगने देना चाहता कि उनका मरना तय है”।

फिल्म में उनका संवाद ये होता है,
You ever kill anyone?
They get touchy-feely,
emotional,
a lot of fuss.
They either plead or beg.
They call for their mothers.
I like Killing them softly.

जैकी कोगन यहां एक विलक्षण किरदार बनता है। वह एक अपराधी है, हत्यारा है इसमें कोई संदेह नहीं। पर जब भी आप एक अमेरिकी गैंगस्टा, हिटमैन या अंडरवर्ल्ड की पृष्ठभूमि वाली फिल्म देखते हैं तो अजीब-अजीब सनकी हत्यारों और हत्याओं से मिलते हैं। तो खून, खूनी और वीभत्सता को आपको न्यूनतम पैमाना मानकर आगे बढ़ना होता है और फिल्म देखनी होती है। हम जैकी कोगन के बारे में बात करते हुए उस पैमाने पर ही खड़े हैं पर सहज हो सकते हैं। वह सच में ऐसा ही है। उसकी मार्की को पीटने या मारने की स्थिति को टालने की कोशिश कोई मजबूरी नहीं है, पर ये एक विडंबना भरा सरोकार, एक विडंबना भरी भलमनसाहत है। जैकी का ऐसा होना फिल्म के निर्देशक एंड्रयू से आता है, क्योंकि बाद में जब दो गुर्गे मार्की को घेरते हैं, उससे पूछताछ करते हैं, तो ऐसा करते हुए उन्हें ही बहुत कष्ट हो रहा होता है। दोनों एक तरह से गिड़गिड़ाकर, अनुनय करते हुए उससे कहते हैं कि मार्की ऐसा मत करो, हमें मजबूर मत करो, हमें बता दो। दोनों बैचेन और विह्अल हो रहे होते हैं। हालांकि बाद में उन्हें मार्की को धोना ही पड़ता है। पूरी फिल्म में परिदृश्य कुछ ऐसा है कि जो पेशेवर हत्यारे हैं वो हत्याओं को आखिर तक टालते हैं और जो हत्याएं करवाना चाहते हैं वो इस पर अड़े हुए हैं। जैसे इन दो गुर्गों का मार्की को पीटने से पहले-पहल बचना। जैकी का एक हत्या के लिए माइकी (जेम्स गैंडॉलफिनी) को बाहर से बुलवाना, ये जानते हुए कि ऐसा करने से पैसा बंटेगा जो वह खुद कर सकता है। माइकी भी शराब पीने और होटल के डबलबेड पर लड़कियों के साथ सलवटें डालने के बाद आखिरकार काम करने से मना कर देता है।

अभी की हिंदी फिल्मों के बड़े सितारों के साथ दिक्कत ये है कि उन्हें कद्दावर फिल्में नहीं मिल रही, न ही वे अपने बूते ऐसी छोटी मगर बहादुर परियोजनाओं से जुड़ पा रहे हैं। यश चोपड़ा की ‘जब तक है जान’ का प्रोमो देखते हुए ये शाहरुख खान की फिल्मों की निराशाजनक श्रंखला में लिया एक और गलत फैसला नजर आता है। ब्रेड पिट के साथ सही बात ये रही कि उन्होंने ‘चॉपर’ के बाद से ही एंड्रयू डॉमिनिक की प्रतिभा में भरोसा किया और उनकी दूसरी फिल्म ‘द असेसिनेशन ऑफ जेसी जेम्स बाय द कावर्ड रॉबर्ट फोर्ड’ से जुड़े। उस फिल्म के बाद व्यावसायिक लालसाओं वाले किसी सितारे ने एंड्रयू के साथ काम नहीं किया, पर ब्रेड से संभवतः ‘जेसी जेम्स...’ की महत्ता को समझा। इस फिल्म से जुड़ने के उनके फैसले ने उन्हें ‘किलिंग देम...’ जैसा सार्थक नतीजा दिया। अपनी सीमित अदाकारी के साथ भी वह इस साल की महत्वपूर्ण फिल्मों में से एक दे पाए, सिर्फ अपने सही चयन की वजह से।

ठीक ऐसा ही इस फिल्म और एंड्रयू से साथ है। अगर इस फिल्म के साथ ब्रेड पिट का नाम न जुड़ा होता तो लोगों तक इसे पहुचाना या फिर जैकी कोगन के किरदार और उसकी कहानी में लोगों को एंगेज कर पाना तकरीबन नामुमकिन होता। शुरू से ही हमें पता होता है कि ब्रेड फिल्म में जल्द ही दिखेंगे, तभी हम इंतजार करते हुए फ्रैंकी के रोल में स्कॉट मैकनायरी के नए चेहरे को भी पर्याप्त सम्मान और अपना वक्त देते हैं। ऑस्ट्रेलियन एक्सेंट वाले बेन मेंडलसन बेहतर नक्काश अभिनेता है, अतिउत्तम, पर वो भाव कि फिल्म में ब्रेड भी नजर आएंगे, हमें उनकी इज्जत करने की वजह देता है। ये स्टार्स की शख्सियत तो होती ही है पर उससे भी ज्यादा होता है उनके चेहरे और फिल्मों से हमारा परिचित होना। हमें पता है कि महज स्टार ही नहीं ब्रेड ‘ट्रॉय’, ‘लैजेंड्स ऑफ द फॉल’, ‘मनीबॉल’ और ‘फाइट क्लब’ जैसा भरोसे वाला काम दे चुके हैं।

‘किलिंग देम सॉफ्टली’ में किरदार बहुत कम हैं, बंदूक की गोलियां बहुत कम है पर बातें बहुत ज्यादा हैं। किरदार बस बातें ही करते रहते हैं। ऐसी-ऐसी बातें जो हम करते तो हैं पर फिल्मों की पटकथाओं के बाहर ही छोड़ दी जाती हैं या फिर वीडियो संपादक उन्हें बेकार समझकर काट देता है, जबकि वो ही लंबी बातें फिल्म को अनूठा एहसास देती हैं। जैसे जैकी होटल में माइकी के पास गया है उसे कहने कि हत्या कहां और कब करनी है। और माइकी नवयुवतियों के साथ देहसुख भोगने में वक्त काट रहा होता है। बातें चलती हैं, चलती हैं, चलती हैं।

विषय क्या है, ये माइकी के डायलॉग में टटोलिए जिसमें वह युवतियों के जिस्म की बात कर रहा है,
you know,
I’ve seen all the a**** in the world
and let me tell you this,
there is no a** in the whole world
like a Jewish girl
who’s hooking.

आखिर में जब जैकी और ड्राइवर खड़े होते हैं तब बाहर अमेरिका में पटाखे फूट रहे होते हैं और टीवी पर ओबामा का भाषण चल रहा होता है। वह अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति और स्वतंत्रता का घोषणापत्र लिखने वाले थॉमस जेफरसन के मशहूर कथन, ‘सभी इंसान भगवान ने एक बराबर बनाए हैं’, को दोहराते हुए अमेरिका के लोकतंत्र की बात कर रहे होते हैं।

सुनकर जैकी ड्राइवर से कहता है,
When this guy says we’re equals,
he makes me laugh.
We are not a community,
In here we are on our own.
America is not a country,
it is a business.

एक हत्यारे के मुंह से अपने देश की ये की गई कुछ ऐसी विचारधारापरक आलोचना है जो दूसरे मुल्क के लोग भी नहीं कर पाते। फिल्म में किरदारों के अपरंपार संवादों और एंड्रयू के इसे सही संदर्भ प्रदान करने के बीज हमें ‘कोगन्स ट्रेड’ (Cogan’s Trade) तक ले जाते हैं। जॉर्ज वी. हिगिन्स (George V. Higgins) ने इसे 1974 में लिखा था। बोस्टन में 20 साल सरकारी वकील रहे हिगिन्स ने जिदंगी में जो 25 उपन्यास लिखे उनकी यही कहकर आलोचना की जाती रही कि उनमें तो बस बातें करते लोग होते हैं। जबकि उनकी कहानियों की जान ही जिंदगी की हर बारीक बात की जुगाली करते किरदार होते हैं। असल जिदंगी में भी तो हम यह करते हैं न। जिन्हें ‘किलिंग देम सॉफ्टली’ पसंद आए वह हिगिन्स के ही उपन्यास पर 1973 में बनी फिल्म ‘द फ्रेंड्स ऑफ ऐडी कॉयल’ देख सकते हैं। शायद इसी फिल्म की मौलिक फीलिंग एंड्रयू को पसंद आई होगी कि उन्होंने कोगन्स ट्रेड को फिल्म के लिए चुना।

एंड्रयू की फिल्म सिनेमैटिकली खूब अच्छी है। जिन्हें सिनेमाई भाषा की रंग-तरंग वाली खूबसूरती लुभाती है उनके लिए फिल्म का ओपनिंग शॉट सुखद होगा। इसे देखने का एहसास कुछ ऐसा है जैसे जमीन कटे, सूने, रेगिस्तान में तेज हवा चल रही है, सब कुछ लुटा-लुटा सा है और वहां कोई धूसर रंग का छोटा अजगर अपनी पूंछ हिला रहा हो। काली स्क्रीन पर 2008 में बराक ओबामा की डेमोक्रेटिक कन्वेंशन में दी गई स्पीच सुनाई देती है। वायदों भरी। फिर आवाज टूटती है और फ्रैंकी (मैकनायरी) चलता हुआ नजर आता है। ये न्यू ओरलींस है, हरीकेन से तबाह सा। एक-आध घर नजर आते हैं बाकी मैदान बचे हैं, घर उड़ गए हैं। सड़कें खाली हैं, हवाएं चल रही हैं, कचरा उड़ रहा है। न जाने क्यों यहां मन उचाट सा हो जाता है। अमेरिका! ये अमेरिका है? पहले तो कभी अमेरिका यूं न देखा! कम से कम वेस्टर्न मीडिया ने तो नहीं दिखाया। जब भी देखा फिल्म का पहला शॉट न्यू यॉर्क की लंबी गगनचुंबी चमकदार ईमारतों का एरियल शॉट ही देखा है, जो बाद में करण जौहर एंड कंपनी और साउथ की फिल्मों के वेस्ट प्रेमी नए फिल्मकारों की फिल्मों में गर्व से दिखने लगा। ‘किलिंग देम सॉफ्टली’ का ये शुरुआती सीन अलग ही अमेरिका दिखाता है। जैसा वृहद तौर पर बेन जेथलिन की ‘बीस्ट ऑफ द सदर्न वाइल्ड’ में दिखता है। इस पहले सीन का विस्तार ही है वो पूरी की पूरी शानदार फिल्म। जरूर देखें। खैर, लौटते हैं। फ्रैंकी सड़क पर कदम बढ़ाता हुआ आगे टनल के सामने बने फुटपाथ की ओर बढ़ता है। इस दौरान सीन कट-कटकर ओबामा की स्पीच पर लौटता है, फिर, फिर से फ्रैंकी के कदमों की ओर। अंग्रेजी में जिसे कहते हैं, विसरल फीलिंग.. वो होती है इसे देखते हुए।


यहां तक अनुभूति बन जाती है कि हिटमैन फिल्मों की कोई क्लीशे अनुभूति यहां नहीं होगी। ये कैमरा एंगल, धीमी गति और लंबे शॉट विश्व सिनेमा की सिनेमाई व्याकरण को भीतर समाए होते हैं। मुख्यधारा की फिल्म के लिए ऐसा करना उत्साहित करने वाला होता है। उन दो गुर्गों को मार्की को पीटने वाला दृश्य देखिए। प्रभावशाली। मैं सीन में हिंसा की नहीं उसे फिल्माने के तरीके की बात कर रहा हूं। मार्की के मुंह पर मुक्के मारे जाते हैं और खून कब आता है, कितना आता है, रे लियोटा कैसे हमेशा की तरह बहुत अच्छे से निर्वाह कर जाते हैं, ये सब नयापन और यथार्थता हुए होता है। बाद में कार में जा रहे मार्की को गोलियां मारने वाला बेहद ही धीमी गति का दृश्य। एक तरह से फिल्म की सुर्खियों में से एक। अनूठा। जैकी कोगन जब जॉनी (विंसेंट क्यूरेटोला) को दूर से शूट करता है तो वह एक गोली भी करीने से मारी गई होती है।

ऐसा एक संदर्भ हैः कैथरीन बिगलो की ‘द हर्ट लॉकर’ में विलियम (जैरेमी रेनर) और उसके साथी फौजी का अरब रेगिस्तान में कुछ किलोमीटर दूर से बंकर में छिपे दुश्मन स्नाइपर को शूट करना।

फिल्म की जो समग्र फिलॉसफी है उसमें चुने गए गाने बहुत विविधता और सार्थकता लेकर आते हैं। सभी बीते दौर के बैंड्स और प्राइवेट एल्बम के क्लासिक हैं। ‘किलिंग देम सॉफ्टली’ ही एक ऐसी मूवी है जिसमें इन सबको साथ इस्तेमाल किया जा सके। ‘द वेलवेट अंडरग्राउंड’ का विवादों में रहा पर बहुत बरता गया गाना ‘हेरोइन’, बहुत कुछ कहता है पर देखते हुए हम इसे न चाहें तो भी हाथ की नसों में नशे का इंजेक्शन घोंप रहे रसेल के किरदार से पहले जोड़ सकते हैं। उसी तरह लालच की वजह से मारे गए मार्की (फ्रैंकी और जॉनी भी) पर ‘क्लिफ एडवड्र्स’ का ट्रैक ‘इट्स ओनली अ पेपर मून’ (ये तो बस कागज का चांद है) जंचता है। गिरती अर्थव्यवस्था और पैसे के लिए तड़प रहे इस पूरे मुल्क के लिए ‘बैरेट स्ट्रॉन्ग’ का ‘मनी दैट आई वॉन्ट’ है। ‘कैटी लेस्टर’ का ‘लव लैटर्स’ और ‘पेटूला क्लार्क’ के ‘विंडमिल्स ऑफ योर माइंड’ फिल्म के जोड़ हैं, उसे आगे बढ़ाते हैं।

इन सभी में मेरी पसंद है सिंगर जॉनी कैश का दिग्गी गाना “वैन द मैन कम्स अराउंड”। उल्लेखनीय। अद्भुत। कमाल कंपोजिशन। जॉनी कैश की आवाज की खराश और स्ट्रोक भरी खनक इसे एक फिल्मी सुपरसॉन्ग बनाती है, वहीं किंग जेम्स की बाइबल के रेवेलेशन का इस्तेमाल कुछ ऐसा है जो फिल्म की थीम ‘जीवन, माया, लालच और मृत्यु’ के रूपक का काम करता है।

देयर इज अ मैन गोइंग अराउंड टेकिंग नेम्स,
एंड ही डिसाइड्स हू टु फ्री एंड हु टु ब्लैम,
एव्रीबडी वोन्ट बी ट्रीटेड ऑल द सेम,
देयर विल बी अ गोल्डन लैडर रीचिंग डाउन,
वैन द मैन कम्स अराउंड...

क्या पंक्तियां है। बेमिसाल भय और दर्शन पैदा करने वाली।  आगे जॉनी कैश की जबान से इस पंक्ति का निकलना.. “द हेयर्स ऑन योर आर्म विल स्टैंड अप...” गाने को अंग्रेजी नहीं हिंदी में लिखा बना देता है। आखिर में मृत्यु की धार्मिक और काल्पनिक विवेचना...

एंड आई हर्ड अ वॉयस इन द मिस्ट ऑफ द फोर बीस्ट्स,
एंड आई लुक्ड एंड बिहोल्ड, अ पेल हॉर्सः
एंड हिज नेम दैट सैट ऑन हिम वॉज डेथ,
एंड हेल फॉलोव्ड विद हिम”

गाने के बोल अंग्रेजी में यूं है,  पढ़ें
And I heard, as it were, the noise of thunder,
One of the four beasts saying, Come and see
And I saw, and behold a white horse.

There's a man going around taking names
And he decides who to free and who to blame
Everybody won't be treated all the same
There will be a golden ladder reaching down
When the man comes around

The hairs on your arm will stand up
At the terror in each sip and in each sup
Will you partake of that last offered cup?
Or disappear into the potter's ground
When the man comes around?

Hear the trumpets, hear the pipers
One hundred million angels singing
Multitudes are marching to the big kettledrum
Voices calling and voices crying
Some are born and some are dying
It's Alpha and Omega's kingdom come

And the whirlwind is in the thorn tree
The virgins are all trimming their wicks
The whirlwind is in the thorn tree
It's hard for thee to kick against the pricks

'Til Armageddon, no shalam, no shalom
Then the father hen will call his chickens home
The wise man will bow down before the throne
And at his feet, they'll cast the golden crowns
When the man comes around

Whoever is unjust, let him be unjust still
Whoever is righteous, let him be righteous still
Whoever is filthy, let him be filthy still
Listen to the words long written down
When the man comes around

Hear the trumpet.... (Repeat)

In measured hundredweight and penny pound
When the man comes around

And I heard a voice in the midst of the four beasts,
And I looked and behold, a pale horse:
And his name that sat on him was Death, and Hell followed with him.

निर्देशक एंड्रयू डॉमिनिक और ब्रेड पिट की फिल्म ‘किलिंग देम सॉफ्टली’ अपराध और हत्या वाली फिल्मों में अपवाद है। इसमें शुरू, मध्य और अंत का औपचारिक हिसाब-किताब नहीं धारण किया जाता। सीधी-सपट है पर तमाम कंपोनेंट मिलकर असाधारण अनुभव सृजित करते हैं। इसमें एक बेन मेंडलसन, एक जेम्स गैंडॉलफिनी न करते हुए भी ऐसा अभिनय कर जाते हैं कि दूसरा होता तो न कर पाता। इसमें एक अभिनेता के तौर पर ब्रेड का साहस नजर आता है, कि वो लगातार ऐसे प्रोजेक्ट छू रहे हैं। इसमें एंड्रयू डॉमिनिक का बतौर फिल्मकार और बतौर ऑस्ट्रेलियाई, अमेरिकी पूंजीवादी व्यवस्था की आलोचना का गहरा विचार है, जो फिल्म के पुर्जे-पुर्जे में चिपका होता है। एक ऐसी अर्थव्यवस्था का गिराव जो कुछ नियमन न होने की वजह से है तो कुछ साजिशन। इन सबके बाद जरूरी तौर पर आती है एक फिल्मकार द्वारा अपने प्रतिभा से बनाई गई एक कृति, हिगिन्स के बाकी उपन्यासों और ‘कोगन्स ट्रेड’ की तरह वक्त के साथ जो कभी पुरानी नहीं पड़ेगी, सदा सिनेमाई और विचाराधारापरक संदर्भ प्रदान करती रहेगी।
**** **** ****
गजेंद्र सिंह भाटी

Sunday, February 26, 2012

बेसबॉल और ब्रैड पिट का कुछ विरला इस्तेमाल करती ये तकड़ी फिल्म

फिल्मः मनीबॉल
निर्देशकः बैनेट मिलर
कास्टः ब्रैड पिट, फिलिप सेमूर हॉफमेन, जोना हिल, कैरिस डॉर्सी
सिनेमैटोग्रफीः वॉली पीफिस्टर
एडिटिंगः क्रिस्टोफर टेलेफसन
म्यूजिकः माइकल डाना
स्टारः साढ़े तीन, 3.5/5'मनीबॉल में परंपरागत स्पोट्र्स मूवी वाली बात नहीं है। 'चक दे इंडिया’ का शाहरुख सा कोच, उसके मेहनत करवाने के अलग तरीके, फैन्स, परेशानियां, मैच, हार और फिर आखि में जीत... ये सब अमेरिकी बेसबॉल मूवीज में भी होता आया है। मगर इस फिल्म में बात मैदान के भीतर की कम और एक जनरल मैनेजर बिली की प्रशासनिक कुशलताओं और पैशन की ज्यादा है। वह फोन पर दूसरे स्पोट्र्स एजेंटों से डील करता है, अपने खिलाडिय़ों से कम मिलता है, कोच को निर्देश देता है, प्लेयर्स का सौदा करता है, गुस्से में कुर्सियां इधर-उधर फेंकता है और फ्लैशबैक में अपने बेसबॉल नहीं जीत पाने के दिनों को याद करता है। फिल्म दिल से जरा सा ज्यादा दिमाग के लिए है। मुझे बहुत अच्छी लगी। खासतौर पर बिली बने ब्रैड पिट का एकाकीपन और गहनता। उनके किरदार के प्लेयर्स मैदान प उतना नहीं जलते जितना वह भीतर-भीतर जलता है। अपनी बेटी केजी (कैरिस डॉर्सी) से बात करते हुए वह बिल्कुल अलग हो जाता है। फिल्म का क्लाइमैक्स बहुत अलग और नया है। मोटे ऑफर को अस्वीकार कर अपने लक्ष्य को फिर से पूरा करने में उसका जुटना ही 'मनीबॉल’ को स्वीकार करने लायक बनाता है 2003 में आई माइकल लुइस की किताब 'मनीबॉल’ पर आधारित इस स्क्रीनप्ले के पीछे हैं 'सोशल नेटवर्क’ लिखने वाले एरॉन सॉर्किन और स्टीवन जिलियन। फिल्म की रीढ़ ये स्क्रीनप्ले, बैने मिलर का यंग निर्देशन और ब्रैड पिट-फिलिप सेमूर हॉफमैन जैसों की अक्षुण्ण एक्टिंग है। फिल्म जरूर देखें।

टीम बनाने का सूत्र
ओकलैंड एथलैटिक्स बेसबॉल टीम का जनरल मैनेजर है बिली बीन (ब्रैड पिट)। 2001 में उसकी टीम न्यू यॉर्क यैंकीज से हार गई है। अब जब उसके तीन स्टार खिलाड़ी टीम से बाहर जाने हैं, मैनेजमेंट के पास अच्छे प्लेयर्स खरीदने का पैसा नहीं है। अच्छी टीम खड़ी करने की कोशिशों में वह येल यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स पढ़े पीटर ब्रैंड (जोना हिल) से मिलता है और उसे अपना असिस्टेंट बना लेता है। दोनों मिलकर ऐसे खिलाडिय़ों को ढूंढते हैं, जिनके टेलंट को बड़े क्लबों ने नहीं पहचाना है। बाकी मैनेजमेंट के सदस्य और कोच आर्ट हॉवी (फिलिफ सेमूर हॉफमेन) उनके फैसलों से सहमत नहीं हैं। मगर बिली को जीतना है और खुद को साबित करके दिखाना है।*** *** *** *** ***
गजेंद्र सिंह भाटी

Monday, November 21, 2011

हमें हैपी, हिम्मती, परोपकारी और सोशल बनाती हैपी फीट टू

फिल्मः हैपी फीट टू (अंग्रेजी, थ्रीडी, एनिमेटेड)
निर्देशकः जॉर्ज मिलर
वॉयसओवरः एलाइजा वुड, रॉबिन विलियम्स, एलिजाबेथ डेली, पिंक, ब्रेड पिट, मैट डेमन
स्टारः चार स्टार
आपको ऐसा नहीं लगता कि हम लोगों ने बहुत अरसे से एक बहुत अच्छी फिल्म नहीं देखी है? ऐसी फिल्म जो कहीं भी हमारे मनोरंजन में कमी न छोड़े, जिसमें एक पल भी उबासी न लेनी पड़े, जो आपके बच्चों पर रुई के रेशे जितना बुरा असर भी न डाले, बल्कि आपके बचपन वाली परोपकारी, हिम्मती और अच्छा बनने की सीख आपके बच्चों को भी दे और जो सिनेमैटिकली संपूर्ण हो। 'हैपी फीट टू' एक ऐसी ही फिल्म है। सबसे खास बात ये कि फिल्म हमें सोशल बनाती है। एक-दूसरे की परवाह करना सिखाती है। थियेटर में भले ही हम पलायनवादी होकर जाते हैं, पर लौटते हैं कुछ गुण खुद में लेकर। फिल्म जरूर देखें। अगर बिना उम्मीदों के देखेंगे तो ज्यादा ठीक होगा। अपनी फैमिली और बच्चों को ले जाना बिल्कुल न भूलें। साथ ही ये भी याद रखें कि फिल्म इंग्लिश में और थ्रीडी में है। फिल्म में रॉबिन विलियम्स का वॉयसओवर बहुत हंसाता है। स्क्रिप्ट बहुत कसी हुई और समझदार है। 'मैड मैक्स' फिल्मों वाली अनोखी सीरिज बनाने वाले डायरेक्टर जॉर्ज मिलर ने 'हैपी फीट' की इस सीक्वल पिक्चर में भी खरा उतरकर दिखाया है। कोई शक नहीं कि अपने समकालीन निर्देशकों के मुकाबले जॉर्ज ज्यादा सार्थक मनोरंजन रचते हैं।

कहानी जिंदगी सिखाते पेंगुइन्स की
ये एंपरर पेंगुइन लैंड है। रिद्म, नाच, गाने और खुशियों से भरी कॉलोनी। अपनी वाइफ ग्लोरिया (पिंक) और बेटे ऐरिक (एलिजाबेथ डेली) के साथ हमारा जाना-पहचाना टैप डांसर मम्बल (एलाइजा वुड) रहता है। मम्बल पिता बनना सीख रहा है तो ऐरिक बचपन के सपने और इरादे छू-तलाश रहा है। असफल कोशिशों के बाद ऐरिक के मन में न नाच पाने का डर बैठ गया है। पर उसे उडऩे वाले पेंगुइन स्वेन (हैंक अजारिया) में अपना आदर्श दिखता है। पेंगुइन उड़ नहीं सकते पर ऐरिक गलतफहमी पाले है। खैर, इसी बीच एंपरर लैंड और इसके सारे पेंगुइन बड़ी मुसीबत में फंस जाते है। अब मम्बल को कुछ करके सभी को बचाना है।

किरदारों के पीछे की वॉयस
मम्बल: 'द लॉर्ड ऑफ द रिंग्स' वाले एलाइजा वुड ने मम्बल को आवाज दी है। उन्हें सुनकर लगता भी है कि वह नए-नए पेंगुइन पिता बने हैं।
ऐरिक: एलिजाबेथ डेली ने शिशु पेंगुइन को बेमिसाल आवाज दी है। पतली सी, मासूम और दिल भर देने वाली आवाज। एलिजाबेथ ने ही 'बेब: पिग इन सिटी' में बेब पिग को चमत्कारिक आवाज दी थी।
रेमॉन: द ग्रेट रॉबिन विलियम्स। रेमॉन के साथ उन्होंने रंगबिरंगी स्वेटर वाले पेंगुइन लवलेस का वॉयसओवर भी किया है। फिल्म में जब भी रॉबिन की आवाज सुनाई पड़ती है, हर शब्द पर खासतौर पर लड़कियां हंसती है। रेमॉन के दिलफेंक आशिक के रोल को उन्होंने अमर सा किया है। बेमिसाल।
ग्लोरिया: ऐरिक की मां ग्लोरिया की आवाज बनी हैं पिंक। उनका वो सीन याद रहता है जहां वो नाराज ऐरिक को समझाने के लिए अपने हस्बैंड मम्बल को इशारे में ही दूर चले जाने को कहती है और फिर गाना गाता हैं।
विल और बिल: ये दोनों क्रिल यानी कुछ संतरी रंग के झींगे बड़े खास हैं। इवॉल्यूशन और प्रकृति को किसी क्रांतिकारी नजर से देखते पहले झींगे विल को आवाज देते हैं ब्रैड पिट और उनके भोले-पक्के दोस्त बिल बनते हैं मैट डेमन। यकीन जानिए, पूरी फिल्म में इन दोनों की आवाज ऐसी रहती है कि हम पहचान नहीं पाते कि वॉयसओवर किसका है। हां, कहीं-कहीं मैट डेमन की आवाज पकड़ में आती है।

बहुत सी कहानियां और रिश्ते
फिल्म में कई कहानियां चलती हैं। नन्हे ऐरिक से पिता का अलग रिश्ता चलता है तो मां उसे अलग तरीके से सिखाती, शांत करती है। ठीक वैसा ही जैसा हमारे घरों में होता है। फिर अपनी मुश्किलों के बीच मम्बल का पहले एलीफेंट सील की मदद करना। उसकी जान बचाना। यहां से इन दोनों का एहसान वाला रिश्ता बन जाता है। यहां तक कि सील के दो बच्चों से नन्हे पेंगुइन ऐरिक का भी नजर ही नजर में दोस्ताना हो जाता है। रेमॉन अपनी प्रेमिका ढूंढ रहा है। पहले-पहल हमें लगता है कि वह बस फ्लर्ट करने और जगह-जगह मुंह मारने वाला मूर्ख है, पर हम गलत साबित होते हैं। आखिर में वह खुद को बड़बोला मगर सच्चा साबित करता है। स्वेन पेंगुइन होकर भी उड़ता है इसके दीवाने पूरे एडली लैंड वाले पेंगुइन हैं, पर वह मन ही मन किसी उलझन से गुजर रहा है। जो मुसीबत एंपररलैंड के पेंगुइन्स पर आती है, तो सबकी कलेक्टिव कहानी बनती है। फिर दूसरे लैंड से पेंगुइन्स का एक आवाज पर मदद के लिए चले आना कमाल है।

अविस्मरणीय हैं पल
# नाचते हुए नन्हा ऐरिक फिसलकर गिर जाता है और औंधे मुंह बर्फ में धंसता है। किसी शिशु की तरह डर के मारे वह सुसु कर देता है। सब हंसते हैं और शर्म के मारे वह कांपने लगता है। विस्मयकारी। अब कांपते हुए वह हिचकियां सी लेने लगता है, जैसे अब वह फूट-फूटकर रोने लगेगा। वह खाई में छिप जाता है और उसे मां ग्लोरिया, पिता मम्बल, दोस्त बॉडिका और एटिकस और यहां तक कि रेमॉन भी अपने-अपने तरीके से मनाते हैं।
# जब वह फिर फिल्म में दूसरी बार रोने को होता है तो मां ग्लोरिया अपने पति को आंख के इशारे से दूर भेज देती है ताकि वह अकेले में एक मां की तरह उसे शांत कर सके। बताइए ऐसा आपने कितनी बार हमारी फिल्मों में देखा है।
# बीच मास्टर नाम का एलीफेंड सील जब खाई में गिर जाता है तो उसके दो बच्चे अपनी पतली सी मासूम आवाज में डैडी-डैडी पुकारते हैं। ये वॉयसओवर ऐसा है कि आपकी आंखें नम हो जाती है।
# पहले मदद के लिए हजारों पेंगुइन्स का आना और फिर सैंकड़ों एलीफेंट सील का, अद्भुत इमेज रचता है। कुछ ऐसा ही होता है जब उसी बर्फ के नीचे समंदर में लाखों झींगे रंगीन जगमगाहट पैदा करते हैं।
# मूवी में हर सॉन्ग और उसका विजुअल पिक्चाराइजेशन सम्मोहित कर देने वाला है। जिन्हें अंग्रेजी नहीं भी आती वो भी गानों की रिद्म को अपने शरीर में महसूस करते हैं।
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गजेंद्र सिंह भाटी