Tuesday, July 17, 2012

रॉक के दीवाने होंगे राजी, पर आम दर्शक माथा फोड़ लेंगे

फिल्मः रॉक ऑफ एजेस
डायरेक्टरः एडम शैंकमैन
कास्टः टॉम क्रूज, डिएगो बोनेटा, जूलिएन हू, पॉल जियामेटी, कैथरीन जेटा जोन्स, रसैल ब्रैंड, एलेक बॉल्डविन
स्टारः दो, 2.0
संक्षिप्त टिप्पणी

डायरेक्टर एडम शैंकमैन की ये अमेरिकी फिल्म हमारी हिंदी की ‘इंद्रसभा’ जैसी है। 1932 में आई इंद्रसभा में तकरीबन 70 गाने थे तो दो घंटों वाली ‘रॉक ऑफ एजेस’ में 20 गाने हैं। चूंकि ये एक म्यूजिकल प्ले और किताब पर बनी है, चूंकि ये 1980 के रॉक वल्र्ड को दी गई कॉमिकल श्रद्धांजलि है इसलिए हॉलीवुड फिल्मों का कोई ढांचा इसमें नहीं दिखता। इसमें बॉलीवुड वाला ढांचा है। गोविंदा वाले अंदाज में कैरेक्टर हर दूसरे-तीसरे सीन में गाना गाने लगते हैं। लीड कैरेक्टर के पीछे दर्जनों डांसर नाचने लगते हैं। ऐसी फिल्में अमेरिका में तीस-चालीस साल पहले बना करती थी। ये देख अपने देसी दर्शक चौंकते हैं, परेशान होते हैं, माथा खुजाते हैं, आगे वाली सीट पर सिर पटकते हैं और इस फिल्म में लाने के लिए दोस्तों को कोसते हैं। पर मैं इसे बुरी फिल्म नहीं मानता। सब्जेक्ट अलग है बस।

‘रॉक ऑफ एजेस’ में हमारी जान-पहचान वाला एक ही चेहरा है, टॉम क्रूज का। पर वो यहां ‘मिशन इम्पॉसिबल’ वाले अंदाज में नहीं हैं। यहां वो शराब, से-क्-स और स्टारडम के नशे में चौबीस घंटे चूर रहने वाले एक 80 के दशक के रॉकस्टार के रोल में बिल्कुल अलग लगते हैं। उनका किरदार बहुत सतही भी है लेकिन महसूस करने वाला महसूस कर सकता है कि जिंदगी में संगीत की तलाश में स्टेसी कितना सनकी और कसेला हो चुका है, कितना नियमहीन हो चुका है। फिल्म में एलेक बॉल्डविन, कैथरीन जेटा-जोन्स, रसेल ब्रैंड और पॉल जियोमेटी जैसे नामी एक्टर्स का होना भी बड़ा आकर्षण है पर ज्यादातर दर्शक उनसे परिचित नहीं हैं। स्पाइस गल्र्स के टूर कोरियोग्राफ करने और जैनेट जैक्सन के वीडियो में डांस करने वाले एडम का डायरेक्शन गहरे म्यूजिकल मिजाज वाला है, पर प्ले को फिल्म में तब्दील करते हुए वह कहानी को और पैना कर सकते थे।

रॉक के उस दौर की कहानीः 1987 के दौर में रॉक एन रोल म्यूजिक से प्यार करने वालों की कहानी है। ओकलाहोमा से सिंगर बनने शैरी लॉस एंजेल्स आती है। वहां उसे ‘द बरबन रूम’ नाइटक्लब में काम करने वाले ड्रू से प्यार हो जाता है, जो रॉक स्टार बनना चाहता है। क्लब तंगी की हालत में है। उसे उबारने के लिए क्लब का मालिक रॉकस्टार स्टेसी जैक्स को परफॉर्म करने को कहता है। स्टेसी को सच्चे प्यार और म्यूजिक की तलाश है पर वो सनकी है, नशे में रहता है। उधर मेयर की कंजरवेटिव वाइफ चर्च के साथ मिलकर इस क्लब को बंद करवाना चाह रही है। ताकि शहर से-क्-स, ड्रग्स और रॉक एन रोल से मुक्त हो जाए।
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गजेंद्र सिंह भाटी

मैक्सिमम लोग क्यों देखेंगे, मेरूदंड टूटी ऐसी फिल्म

फिल्मः मैक्सिमम
डायरेक्टरः कबीर कौशिक
कास्टः नसीरुद्दीन शाह, सोनू सूद, नेहा धूपिया, अमित साध, विनय पाठक, स्वानंद किरकिरे
स्टारः दो, 2.0
संक्षिप्त टिप्पणी

कबीर कौशिक को हर कोई उनकी पहली फिल्म ‘सहर’ से पहचानता है। फिल्म अपने नाम के अनुरूप सीरियस और ताजी थी। पर ‘मैक्सिमम’ जैसे फिल्मी टाइटल तक पहुंचते-पहुंचते जो उम्मीदें बंधती हैं, फिल्म देखने के बाद टूट जाती हैं। डायलॉग बड़े औसत हैं, जैसे हम आपस में बात करते हैं। एक फिल्म के लिए ये अच्छा भी है और बुरा भी। जैसे, अरुण ईनामदार के रोल में नसीरुद्दीन शाह का 'ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार...’ बोलना। फिल्ममेकिंग की भाषा में किरदारों को स्थापित करना फिल्म के लिए बहुत जरूरी होता है। मसलन, सोनू सूद के किरदार ने 44 के करीब एनकाउंटर किए हैं, मगर फिल्म में उसे दिखाया जाता है दो-चार सीन में खड़े-खड़े, अपराधी को गोली मारते हुए। कहीं भी, किसी एनकाउंटर सीन में उन्हें टीम के साथ रणनीति बनाते और भागते-दौड़ते नहीं दिखाया गया है। नसीर भी खड़े-खड़े ही दो-चार गोलियां मार देते हैं पूरी मूवी में, बस। जबकि कहने को ये मुंबई के शीर्ष ऑफिसर्स हैं। पहले और आखिरी सीन में सोनू सूद को खून से लथपथ सफेद शर्ट में भागते दिखाया जाता है, जो पूरी फिल्म में उनके मिजाज से अलग दिखता है।

अपने आइडिया लेवल पर ‘मैक्सिमम’ जितनी एक्साइटिंग कॉप ड्रामा लगी होगी, उतनी ही बिखरी हुई बनने के बाद है। मुंबई की राजनीति, पुलिस और मीडिया में उत्तर भारतीयों की मौजूदगी की परत को भी भीना-भीना छुआ गया है जो थ्रिलिंग हो सकता था। इन तमाम तत्वों पर बनी एक ठीक-ठाक फिल्म ‘गंगाजल’ है, जिसे दर्जनों बार देखा जा सकता है। पिछले दिनों रामगोपाल वर्मा की 'डिपार्टमेंट भी आई थी, जो इतनी ही दिशाहीन थी। फिल्म में अगर अच्छा लगते-लगते भी नसीर, सोनू, नेहा, विनय पाठक और अमित साध का अभिनय अधपकी सब्जी सा लगता है जो इल्जाम जाता है निर्देशक कबीर और उनकी एडिटिंग टीम को। तो थियेटर न जाएं, पर डीवीडी या टीवी रिलीज के दौरान देखें।

कहानीः मुंबई पुलिस के दो सीनियर ऑफिसर तकरीबन एक ही वरिष्ठता लेवल के हैं। उनके अपने अलग-अलग राजनीतिक और आपराधिक खेमे हैं। ग्राउंड लेवल पर एक ऑफिसर का खास है ऑफिसर प्रताप पंडित (सोनू) और दूसरे का अरुण ईनामदार (नसीरुद्दीन शाह)। दोनों ने दर्जनों एनकाउंटर किए हैं। अब मैक्सिमम पावर पाने के लिए लड़ाई चल रही है। खून खराबे और साजिशों के बीच।
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गजेंद्र सिंह भाटी

किंग जूलियन को छोड़ मेडागास्कर-3 में संतृप्ति कुछ भी नहीं, पर बच्चों को भाएगी

फिल्मः मेडागास्कर 3 – यूरोप्स मोस्ट वॉन्टेड (थ्रीडी-अंग्रेजी)
डायरेक्टरः ऐरिक डार्नेल, टॉम मेकग्राथ और कॉनराड वर्नन
आवाजः बेन स्टिलर, क्रिस रॉक, डेविड श्विमर, जेडा पिंकेट स्मिथ, साशा बैरन कोहेन
स्टारः तीन, 3.0
संक्षिप्त टिप्पणी

 बच्चों के लिए दुनिया भर में बनने वाली फिल्में तकरीबन सभी अच्छी होती हैं। चाहे ईरान में बनती माजिद माजिदी की ‘द कलर ऑफ पैरेडाइज’ हो या भारत में बनी रघुबीर यादव के अभिनय वाली ‘आसमान से गिरा’। हॉलीवुड की एनिमेशन और थ्रीडी फिल्में कभी निराश नहीं करती। ‘शार्क टेल’, ‘मेडागास्कर’ और ‘आइस ऐज’ बच्चों की पुराण बन चुकी हैं। ‘मेडागास्कर-3’ उम्मीद जितनी अच्छी तो नहीं है पर बच्चों को इसमें कुछ भी बोरिंग नहीं लगेगा। फिल्म में नई चीजें भी हैं। जैसे, पैरिस पहुंचे एलेक्स को पकडऩे की हैरतअंगेज कोशिशों में लगी फ्रेंच कैप्टन शॉन्तेल दुबुआ। उसका भरे बदन के साथ लाल स्कूटरों पर सवार हो फ्रेंच एक्सेंट में जानवरों की वैन का पीछा करना। साथ ही पेंगुइन्स और किंग जूलियन वाले सीन सबसे मजेदार हैं। बड़ों को फिल्म औसत लगेगी। पहली फिल्म में न्यू यॉर्क के जू से निकल शहरी जानवरों का अफ्रीका पहुंचना और वहां के ठेठ किरदारों से उनका सामना होना नई चीज थी इसलिए फिल्म रोचक बनी। इस बार उनके न्यू यॉर्क लौटने की बात में कोई चाव नहीं था इसलिए ये फिल्म मोटे तौर पर औसत हो गई। कुछ मौके थे जहां फिल्म बड़ी मजेदार हो सकती थी, पर कुछ कसर रह गई। मसलन...

Maurice and King Julien
  • पहली दो फिल्मों जितना चटख ह्यूमर किरदारों में नहीं है। जैसे क्रिस रॉक और बेन स्टिलर की आवाज वाले पात्रों मार्टी और एलेक्स के बीच पिछली फिल्मों में कितनी शानदार हास्य जुगलबंदी होती थी।
  • हांस जिमर का म्यूजिक तो है पर ‘आई लाइक टु मूव इट मूव इट’ जैसा एक भी फनी गाना नहीं है।
  • ‘द डिक्टेटर’ जैसी फिल्म से सुर्खियों में रहे उम्दा एक्टर साशा बैरन कोहेन ने इस सीरिज के सबसे फनी किरदार किंग जूलियन को अपनी आवाज दी है। वह कमाल हैं, लेकिन जूलियन के सीन कम लगते हैं।
एलेक्स को न्यू यॉर्क लौटना हैः कहानी
‘मेडागास्कर-2’ जहां खत्म हुई थी, वहां ये कहानी शुरू होती है। न्यू यॉर्क के चिडिय़ाघर में रहने वाले एलेक्स (शेर), मार्टी (जेबरा), मेल्मन (जिराफ) और ग्लोरिया (दरियाई घोड़ी) अब अफ्रीका में हैं। पेंगुइन्स इन्हें छोड़ मोंटे कार्लो, पैरिस में जुआ खेलने गए हैं। एलेक्स को डर है कि कहीं वह अपने साथियों के साथ अफ्रीका में पड़ा-पड़ा बूढ़ा तो नहीं हो जाएगा। उसे न्यू यॉर्क के चिड़ियाघर की याद सताने लगती है जहां का वह स्टार था। अब वह अपने दोस्तों के साथ पेंगुइन्स को ढूंढने मोंटे कार्लो ही जाने की योजना बनाता है। मगर वहां जाने पर सब कुछ उल्टा पुल्टा हो जाता है। सब न्यू यॉर्क तो पहुंचते हैं पर ढेर सारे एडवेंचर के बाद।
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गजेंद्र सिंह भाटी

दावा था राउडी मनोरंजन का, जो राठौड़ ने कुछ पूरा भी किया

फिल्मः राउडी राठौड़
डायरेक्टरः प्रभुदेवा
कास्टः अक्षय कुमार, सोनाक्षी सिन्हा, परेश गनतारा, नासर
स्टारः तीन, 3.0
संक्षिप्त टिप्पणी

कहानियों के मामले में तेलुगू और तमिल फिल्मों में फ्लैशबैक तो अनिवार्य चीज होती है। एक कहानी होगी, उसमें दूसरी कहानी होगी और फिर उसमें सबसे बड़ी महाकहानी होगी। कॉमेडी, क्रूरता, तुरंत न्याय और हीरोइज्म से भरी ऐसी ही एक तेलुगू फिल्म 'विक्रमारकुडू’ की हिंदी रीमेक (ऐसे चार-पांच रीमेक भिन्न-भिन्न भाषाओं में बन चुके हैं) है 'राउडी राठौड़’। इसमें मर्दानगी से भरा मूछों पर ताव देता हीरो है, तो खिलखिलाती तुरंत रीझकर प्यार कर बैठती सुंदर हीरोइन भी है। फिर एक ग्रामीण इलाके में खैनी चबाता, धोती पहनता, जाहिल सा विलेन भी है। हां, ये सब अफीम जैसे एंटरटेनमेंट वाली एक हिट फिल्म बनाने के साउथ के फिक्स फंडे हैं जो हर बार चल भी जाते हैं। अब ‘दबंग’, ‘वॉन्टेड’, ‘सिंघम’ और ‘राउडी राठौड़’ जैसी फिल्मों के जरिए हिंदी में भी आ गए हैं।

इस विश्लेषण को छोड़ दें तो ‘राउडी...’ जो दावा करती है, वो देती है। फिल्म कहती है कि एंटरटेन करूंगी और वो करती है। रंग-बिरंगी लोकेशन, खूबसूरत कॉस्ट्यूम और आसान कोरियोग्रफी भरे तीन-चार अच्छे गाने हैं। जिसमें ‘आ रे प्रीतम प्यारे’ गाने में शक्ति मोहन, मुमैद खान और मरियम जकारिया का नृत्य बेहद जानदार है। कहानी की सिचुएशन में बिल्कुल फिट। बहुत दिनों बाद आया ऐसा आइटम नंबर जिसकी कोरियोग्रफी अनूठी है, जो बिल्कुल भी वल्गर नहीं लगती। इसके अलावा अक्षय-सोनाक्षी की जोड़ी कुछ बिखरी मगर लुभाने वाली है। शिवा के कॉमिक अवतार में अक्षय एकरूप नहीं रह पाते। कभी सीरियस हो जाते हैं, कभी नॉर्मल तो कभी बहुत ज्यादा फनी। एएसपी विक्रम राठौड़ का रोल छोटा मगर दमदार है, दो-तीन सॉलिड डायलॉग और एक्शन से भरा। मगर शिराज अहमद के पास इस कहानी में धांसू डायलॉग लिखने की अच्छी-खासी गुंजाइश थी, जो उन्होंने खो दी। प्रभुदेवा के निर्देशन में मेहनत बहुत सारी है, पर उन्हें धार तेज करनी होगी। एडिटिंग पर ध्यान देकर फिल्म को और व्यवस्थित करना होगा। ये फिल्म अच्छी है पर मुझे ‘विक्रमारकुडू’ अपनी इंटेंसिटी और चुस्ती के लिहाज से ज्यादा बेहतर लगी। एक्टिंग में अक्षय से बेहतर हैं इसके तेलुगू वर्जन के हीरो रवि तेजा।

कहानीः व्यवहार में मजाकिया और अलग सा शिवा (अक्षय कुमार) मुंबई में अपने दोस्त के साथ मिलकर लोगों को ठगता और लूटता है। उसे प्रिया (सोनाक्षी सिन्हा) से प्यार हो जाता है। इस बीच उसे चोरी के बक्से में एक पांच-छह साल की बच्ची नेहा मिलती है, जो उसे अपना पापा कहती है। शिवा अपनी लाइफ में आई इस प्रॉब्लम से कन्फ्यूज है तभी उसे पता चलता है विक्रम राठौड़ नाम की एक शख्सियत का, जिसकी शक्ल हूबहू उसके जैसी है। बहादुरी, बदले और रोमांच से भरी इस कहानी में आगे ढेरों मोड़ आते हैं।
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गजेंद्र सिंह भाटी

प्रेम करने वालों को प्रिय लगेगी तेरी-मेरी कहानी

फिल्मः तेरी मेरी कहानी
डायरेक्टरः कुणाल कोहली
कास्टः शाहिद कपूर, प्रियंका चोपड़ा, प्राची देसाई
स्टारः ढाई, 2.5
संक्षिप्त अल्पकालीन टिप्पणी...

कुणाल कोहली की ‘तेरी-मेरी कहानी’ देखें। अगर उम्मीद से कम इंट्रेस्टिंग क्लाइमैक्स और जरा ढीली स्क्रिप्ट को छोड़कर देख सकें तो। प्रेमी जोड़े और ट्विटर-फेसबुक जेनरेशन वाले युवा भी फिल्म देखने जा सकते हैं। ज्यादा उम्मीदें न करें। पर फिल्म में कहीं कुछ स्टूपिड भी नहीं है। कुणाल की कोशिश ईमानदार और मेहनत भरी है। उन्होंने बड़े भावुक तरीके से ये लव स्टोरी कही है। उनका फिल्म प्रस्तुत करने का तरीका भी ताजा है। 1960 के बॉम्बे को दर्शाने वाले सीन खास हैं। सब कम्प्यूटर एनिमेशन से बनाए गए हैं। फिल्म के आखिरी क्रेडिट जब आते हैं तो बड़े ही रोचक अंदाज में सीन कैसे बने, ये बताया जाता है। रुककर जरूर देखें।

इस दौर की कहानी में डायरेक्टर साहब ने बारीकियों पर ध्यान दिया है। चाहे वॉटसन स्टूडियो का बोर्ड हो, चाल की रखवाली करने वाले पठान चाचा हों, कॉटेज ब्रैंड वाली दियासलाई हो या हीरोइन का मेकअप करते बंगाली मेकअप दादा। मगर 1910 के लाहौर में कुछ गलतियां रह जाती हैं। मसलन, जावेद (शाहिद) के एक डायलॉग में धर्मेंद्र की मिमिक्री झलकती है। जेल में ‘हमसे प्यार कर ले तू’ गाने पर नाचते हुए भी वह धर्मेंद्र के ‘प्रतिज्ञा’ फिल्म वाले फेमस स्टेप्स इस्तेमाल करते हैं। यहां फिल्म के डायरेक्टर का ध्यान इस बात पर नहीं जाता कि प्रतिज्ञा 1975 में आई थी और आप कहानी 1910 की सुना रहे हो। यंग दर्शकों को लंदन में पढ़ रहे कृष और राधा के कपड़े और एक्सेसरीज में काफी कुछ स्टाइल फॉलो करने को मिलेगा।

जनम जनम का साथ है: कहानी
 1910 के सरगोजा, लाहौर में जावेद और आराधना। 1960 के पूना में गोविंद और रुकसार। 2012 के लंदन में कृष और राधा। इन तीन जन्मों में दो जवां दिल (शाहिद और प्रियंका चोपड़ा) एक-दूसरे से मिलते हैं, फिर प्यार होता है, पर मिलन की राह में मुश्किलें आ जाती हैं। इन मुश्किलों से निकलकर इनका साथ हो पाता है कि नहीं, यहीं कहानी का ट्विस्ट है।
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गजेंद्र सिंह भाटी

Monday, July 16, 2012

कॉकटेल पर कुछ अल्पकालीन शब्द

फिल्मः कॉकटेल
डायरेक्टरः होमी अदजानिया
कास्टः सैफ अली खान, दीपिका पादुकोण, डियाना पेंटी, बोमन ईरानी, डिंपल कपाड़िया, रणदीप हुड्डा
स्टारः तीन, 3.0
अल्पकालीन सुझाव: अच्छी फिल्म है। एक बार अपने पार्टनर के साथ, फ्रेंड्स के साथ जरूर देख सकते हैं। एंजॉय करेंगे, कई बातें भा जाएंगी। कहानी एडल्ट लोगों के उलझे प्यार की है इसलिए फैमिली ऑडियंस या बच्चों के लिए ज्यादा कुछ है नहीं।

 'हम तुम’ और 'ओमकारा’ के बाद सैफ अली खान का कुछ बहुत अच्छा काम है 'कॉकटेल’ में। मसलन, उनके किरदार गौतम का केपटाउन के तट पर एकांत में बैठकर मीरा (डियाना पेंटी) को मिमिक्री करके हंसाना, या फिर मामा रैंडी (बोमन ईरानी) के साथ उनकी शुरुआती हंसी-मसखरी। ये अपनी एक्टिंग में जायका लाने की कोशिश करते हुए सैफ थे। ऐसा जितना 'बीइंग सायरस’ जैसी अच्छी फिल्म बनाने वाले होमी अदजानिया के डायरेक्शन की वजह से हुआ, उतना ही 'रॉकस्टार’ फेम डायरेक्टर इम्तियाज अली की लेखनी की वजह से भी। फिल्म के राइटर इम्तियाज और साजिद अली हैं। अब देखिए न, अंग्रेजी टोन वाली जबान और स्थिर इमोशन वाले सैफ जब मामा रैंडी को बोलते हैं कि “मामू, दिल्ली की पेचीदा गलियों में आपके राज गड़े हैं” तो लगता है कि ये किसी आम स्क्रिप्ट वाले शब्द नहीं लगते, ये किसी अलग बंदे ने डायलॉग लिखे हैं। आगे भी “यार मामा, 15 साल से यहां (लंदन) हो फिर भी सोच लाजपत नगर वाली है” ऐसे संवाद आते रहते हैं। फिल्म में अनिल मेहरा की सिनेमैटोग्राफी और श्रीकार प्रसाद की एडिटिंग कुछ जगहों पर बेहद अच्छी है।

इस मूवी की बड़ी खासियत है किरदारों को जैसे डिफाइन किया गया है। वरॉनिका (दीपिका पादुकोण) शुरू में बेपरवाह, लापरवाह, दारू-डांस में डूबी रहने वाली और बड़े कैजुअल तरीके से किसी से भी से-क्-स करने वाली बनी हैं। जो बाद में प्यार में, फैमिली में पडऩा चाहती हैं। नहीं कर पाती तो रोती हैं। मीरा शांत, शर्मीली, कृतज्ञ और आम हिंदुस्तानी लड़की है। वह हर मोड़ पर नैतिक बने रहना चाहती है, बनी भी रहती है। गौतम का शुरू में राह चलती किसी भी लड़की को फ्लर्ट करने का तरीका अनोखा है। दर्शक मान जाते हैं कि भई ऐसे बोलेगे तो लड़की का पटना जायज है। वह ऐसा ही है। मामा भी उसके मिजाज से वाकिफ हैं। बीच में इस किरदार में थोड़ा कन्फ्यूजन होता है। मीरा को गौतम की बेपनाह प्यार करने की आदत भाती है, जो लंदन में उसका कानूनी पति कुणाल (रणदीप हुड्डा) नहीं कर पाया। कहीं-कहीं दीपिका के अंदाज देख आपको लगेगा कि आप 'लव आजकल’ ही तो नहीं देख रहे, पर फिल्म अलग रहती है। बस औरतों की नैतिक बॉलीवुड छवि से अलग औरतें गढ़ती है।

'कॉकटेल’ की जान है म्यूजिक। गिप्पी ग्रेवाल और हनी सिंह का गाना 'अंग्रेजी बीट ते’ फिल्म में दीपिका का बेहद पावरफुल इंट्रो देता है। आरिफ लोहार का 'जुगनी’ फिल्म में तब के इमोशन के हिसाब से बड़ा लाउड हो जाता है, पर अलग लगता है। क्रेडिट्स में मिस पूजा का गाया 'सेकेंड हैंड जवानी’ भी आता है, पूजा की आवाज को पेंडू ठप्पे से मुक्त करते हुए।

 गौतम, मीरा, वरॉनिका का लव कॉकटेलः कहानी
लंदन में रहने वाला गौतम हर खूबसूरत कुड़ी से प्यार कर बैठता है, एक-दो दिन वाला प्यार। उसके फ्लर्ट करने की आदत का जवाब एक दिन उससे भी बड़ी बिंदास लड़की वरॉनिका (दीपिका) देती है और गौतम उसका दीवाना हो जाता है। मगर जब मां (डिंपल कपाडिय़ा) लंदन आ जाती है तो बचने के लिए कह देता है कि वरॉनिका के साथ रहने वाली भारतीय सी दिखती मीरा (डियाना) से वह प्यार करता है। पासे पलटते हैं, उसे अब मीरा से प्यार हो ही जाता है। अब मीरा कैसे उस वरॉनिका को धोखा दे पाएगी जिसने परदेसी जमीन पर उसका साथ तब दिया जब मीरा के सगे पति ने उसे धोखा दे दिया था।
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गजेंद्र सिंह भाटी