Sunday, January 15, 2012

सैंटा क्लॉज को क्रिसमस की सीख देता बच्चा आर्थर

फिल्म: आर्थर क्रिसमस (थ्रीडी)
निर्देशक: साराह स्मिथ
कास्ट: जिम ब्रॉडबेंट, ह्यू लॉरी, जेम्स मेक्वॉय, एश्ले जेनसन, रमोना मारकेज, बिल नाई
स्टार: तीन, 3.0
हफ्ते की एक बेहतरीन फिल्म। क्रिसमस की पूरी सद्भावना को कवर करती हुई और ह्यूमन इमोशंस को महत्ता देती हुई। आर्थर के रोम-रोम में इतना अपनत्व और प्यार भरा है कि क्लाइमैक्स तक गालों पर दो-तीन बूंदे लुढ़क ही जाती हैं। 'बैड सैंटा' से लेकर 'होम अलोन' जैसी दर्जनों फिल्में क्रिसमस के बहाने हमें अच्छा इंसान बनने और मुश्किलों का सामना करने की बात सिखाती हैं और उनमें सबसे साधारण कहानी वाली है 'आर्थर क्रिसमस'। कहानी में कुछ भी रोमांचक नहीं है, मगर डायरेक्टर साराह स्मिथ और मूवी का एनिमेशन इसे असाधारण बना देता है। और यहीं पर ये फिल्म बाकी क्रिसमस मूवीज से अलग लगने लगती है। ग्रैंड सैंटा की पुरानी बग्घी, ऐतिहासिक रेनडियर यानी बारहसिंगे और आसमान में उड़ाने वाली जादुई रेत दिल में धुकधुकी पैदा करते हैं। हर पल आपका मन करता है कि आर्थर के साथ-साथ चलें। जरूर देखें ये फिल्म और जरूर दिखाएं अपने बच्चों को।

'आर्थर क्रिसमस' के हीरो निश्चित तौर पर आर्थर, ग्रैंड सैंटा और एल्फ ब्रायोनी हैं। ग्वेन नाम की छोटी सी बच्ची तक उसकी पिंक साइकल का गिफ्ट पहुंचाने में तीनों जिन उतार-चढ़ाव से गुजरते हैं, वो पूरी जर्नी बड़ी मजेदार है। आर्थर का मासूम टेढ़ी स्माइल भरा चेहरा और उसके बल्ब जलते नकली आंखों वाले जूते उसे सबसे साधारण बनाते हैं, फिर जब वो हीरो बनता है तो हमें खुशी होती है। ग्रैंड सैंटा की नकली बत्तीसी, चिड़चिड़ा स्वभाव और मॉडर्न टेक्नॉलजी को कोसने का तरीका फिल्म में एक नमकीन फ्लेवर लाता है। उनके बड़बड़ाने को ध्यान से सुनिएगा, उसमें बड़े मजेदार डायलॉग हैं पर वो इतना तेजी से बोलते हैं कि कान से बातें स्लिप हो जाती हैं। गिफ्ट को रैप करने वाली ब्रायोनी आखिर तक डटी रहती है कि किसी भी गिफ्ट की रैपिंग में रत्तीभर भी कसर न रह जाए।

सैंटा के ज्यादा ईमानदार बेटे की कहानी
नॉर्थ पोल की सबसे खास रात है। क्रिसमस की रात। यहां के मौजूदा सैंटा हैं मैल्कम (जिम ब्रॉडबेंट)। उनका फौजी कमांडर सा बड़ा बेटा स्टीव (ह्यू लॉरी) सोच रहा है कि इस क्रिसमस तमाम बच्चों तक गिफ्ट पहुंचाने के मिशन के बाद मैल्कम रिटायर होंगे और वह सैंटा बनेगा। वहीं उसका छोटा भाई आर्थर (जेम्स मेक्वॉय) बहुत भला और प्यारा है। गिफ्ट पहुंचाने का मिशन पूरा होने के बाद जब हजारों एल्फ, सैंटा मैल्कम और स्टीव आराम करने चले जाते हैं तो गिफ्ट रैप करने वाली बटैलियन की ईमानदार सैनिक ब्रायोनी (एश्ले जेनसन) को एक साइकल मिलती है, पता चलता है कि दुनिया में एक बच्ची ग्वेन (रमोना मारकेज) तक गिफ्ट गलती से पहुंचा ही नहीं। इस स्थिति में जब सैंटा और स्टीव लापरवाही बरतते हैं तो सैंटा क्लॉज के प्रति बच्चों के विश्वास को कायम रखने के लिए आर्थर ये गिफ्ट ग्वेन तक पहुंचाने की ठानता है। इसमें उसकी मदद करते हैं उसके दादा,
मैल्कम के पिता और रिटायर्ड चिड़चिड़े 136 साल के ग्रैंड सैंटा (बिल नाई)।

****************
गजेंद्र सिंह भाटी

Saturday, January 14, 2012

फिल्म ठीक से बनने ही नहीं दी घोस्ट ने

फिल्म: घोस्ट
निर्देशक: पूजा जतिंदर बेदी
कास्ट: शाइनी आहूजा, सयाली भगत, जूलिया ब्लिस, दीपराज राणा, तेज सप्रू
स्टार: एक, 1.0'घोस्ट' ने पूरी कोशिश की कि वह इंडिया की सबसे खौफनाक हॉरर फिल्म बने। डायरेक्टर पूजा जतिंदर बेदी ने इसमें अपने भूत को रामसे ब्रदर्स की फिल्मों वाला मेकअप भी करवाया। पीछे की ओर मुड़ी टांगों और 'घोस्ट राइडर' की तरह जले चेहरे के साथ उसे हाथों पर चलवाया। खौफ और घृणा ज्यादा से ज्यादा हो इसलिए काले-भूरे मेंढकों को लाश पर गिरा दिखाया, कबर्ड में से चढ़ते-उतरते काले कीड़े दिखाए, कसाई की दुकान पर टंगे मांस को कैमरे के सामने कटने दिया, शरीरों से धड़कते दिलों को बाहर गिरा धड़कता दिखाया और विदेशी एक्ट्रेस जूलिया ब्लिस को खून से सनकर जीसस क्राइस्ट की तरह क्रॉस पर लटकाया। और भी बहुत कुछ रहा जो हम पहले देख चुके हैं, मगर वो उतना ऑरिजिनल नहीं था, यहां तो बहुत बार शरीर से बाहर पड़े जिंदा दिल को देख लगता है कि ये तो असली है। शायद रहा भी होगा। हालांकि उसे नेगेटिव फोटो की तरह दिखाया जाता है।

तो हॉरर के मामले में जितनी चीजों की जरूरत होती है वह तो इसमें थी। बावजूद इसके मैं कहूंगा कि आने वाले दस साल में नई पीढ़ी इस फिल्म के खून-मांस को देखकर डरेगी कम और हंसेगी ज्यादा। हंसने का जहां तक सवाल है तो कहना चाहूंगा कि इस शहर में रात के आखिरी शो में किसी फिल्ममेकर को कोई सीरियस फिल्म नहीं रिलीज करनी चाहिए। क्योंकि उस वक्त मुंडे पूरी तरह हंसी के मूड में होते हैं। हर खौफ के वक्त वो कमेंट करते हैं, हंसते हैं और हंसाते हैं। एक इस कोने से बोलता है तो दूसरा दूसरे कोने से। पर इसकी एक वजह फिल्म का बड़ा कमजोर डायरेक्शन और स्क्रिप्ट रही। शुरू से लेकर आखिर तक सबकुछ बेतरतीब है। कौन भूत है? वह क्या चाहता है? डरें भूत से या फिल्म में दिखाए जा रहे मांस के लोथड़ों से? डिटैक्टिव विजय सिंह बने शाइनी आहूजा और डॉ. सुहानी बनी सयाली भगत एक सीन में घोस्ट पर सीरियस बातें कर रहे होते हैं तो अगले सीन में क्रूज पर और डिस्को में घटिया कोरियाग्रफी से भरा नाच नाच रहे होते हैं। शाइनी के लिए इस फिल्म में करने को कुछ नहीं था, तो उनके होने से फिल्म में कोई फर्क नहीं पड़ता है।

फिल्म के शुरू में सयाली को नए अस्पताल के कॉरिडोर में भटकते देख सबका ध्यान उसकी छोटी सी ड्रेस पर ही जाता है। अचरज होता है कि भला अस्पताल में ऐसे कपड़े पहनकर आने का क्या तुक। खैर, तुक की तो आप बात न ही करें। क्योंकि कहीं कोई किसी बात का तुक नहीं है। डायलॉग इतने घिसे-पिटे कि म्यूट करके देखें तो ज्यादा ठीक। म्यूजिक डायरेक्टर और सिंगर तोषी साबरी के गाने सुनकर लगता है कि भट्ट कैंप की फिल्मों के गाने सुन रहे हैं। पूरे दो घंटे ऐसे हैं जैसे किसी ने एक हॉरर फिल्म बनाने के लिए कच्चा माल जमा किया था और उसे एडिट करना और दिशा देना भूल गया। जाहिर बात है फिल्म को नहीं देखेंगे तो कुछ मिस नहीं करेंगे।
****************
गजेंद्र सिंह भाटी

Tuesday, January 10, 2012

अमेरिकी प्रपंच से दूर, एलियन हमले का नया केंद्र रूस

फिल्म: द डार्केस्ट आवर (अंग्रेजी)
निर्देशक: क्रिस गोराक
कास्ट: ऐमिल हर्श, मैक्स मिंघेला, रैचल टेलर, ऑलिविया थर्लबॉय, वरॉनिका ऑजरोवा, यूरी कुत्सेंको, जोएल किनामैन
स्टार: दो, 2.0नील ब्लॉमकांप के निर्देशन में बनी 'डिस्ट्रिक्ट 9', एलियन जीवों के धरती पर होने की अब तक की श्रेष्ठ फिल्म है। अकेली ऐसी फिल्म जिसमें चौंका देने वाले एंटरटेनमेंट के साथ बड़े गंभीर पॉलिटिकल और सोशल विमर्श भी सिमटे थे। सबसे खास बात थी कि पहली बार एलियन अमेरिका की बजाय दक्षिण अफ्रीका की जमीन पर उतरे। इसी लिहाज से निर्देशक क्रिस गोराक की 'द डार्केस्ट आवर' भी अलग होती है। इसमें भी परग्रही जीवों का हमला अमेरिका पर नहीं होकर रूस पर होता है। शायद इसलिए भी क्योंकि प्रॉड्यूसर तिमूर रूस से हैं। और शायद वो चाहते थे कि फिल्मों में ये घिसा-पिटा जुमला बदले। और एंटरनेटमेंट के इस एलियन प्रपंच की धुरी गैर-अमेरिकी, गैर-हॉलीवुडी हो। और हर बार दुनिया को एलियंस से बचाने वाले सिर्फ एक ही देश (अमेरिका) से न हों।

खैर, एलियन दिखेंगे कैसे? उनकी शक्तियां कैसी होंगी? वो इंसानों को नुकसान किस तरीके से पहुंचाएंगे? उनके आने का कारण क्या है? वो चाहते क्या हैं? और उनका मुकाबला कैसे किया जाए? ...इन सब सवालों के लिहाज से भी एलियन फिल्में एक-दूसरे से अलग हो सकती हैं। ये फिल्म अलग तो है, लेकिन जहां भी अलग है वहां संतुष्ट नहीं करती। मसलन, इसमें एलियन दिखते नहीं हैं, बस कुछ इलैक्ट्रिकल बिजली जैसी चमकीली रेखाओं जैसी आकृतियों में वो आए हैं और जिसे भी छूते हैं वो राख में तब्दील हो जाता है। ये दिखने में नई चीज है पर आखिर में जब हमें इन एलियंस का चेहरा दिखता भी है तो मजा नहीं आता। कुछ बचकाना सा लगता है।

फिल्म की एक बड़ी खामी ये है कि इसका कोई भी कैरेक्टर रोचक नहीं है। सीन (ऐमिल हर्श) फिल्म का हीरो है पर उसमें वैसी बात नहीं है। बेन (मैक्स मिंघेला) में वो बात है पर जिंदा नहीं रहता। एनी (रैचल टेलर) ग्लैमरस दिखने, सुबकने और डरने में ही अपना सारा वक्त बिता देती है। नटाली (ऑलिविया थर्लबाय) आखिर तक फिल्म में रहती है पर उन्हें देख बोरियत होती है। रूसी लड़की वाइका (वरॉनिका ऑजरोवा) इंट्रेस्टिंग लगती है पर इस किरदार पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया गया है। फिल्म में जब तरह-तरह की धातू और जाल से ढके घोड़े पर बैठे मातवेई (यूरी कुत्सेंको) और उनके साथियों की एंट्री होती है तो रूचि जागती है। पर तब तक फिल्म दूसरे किनारे तक पहुंच रही होती है।

तो एलियंस के प्रति किसी जिज्ञासा का न होना और कहानी में डायलॉग्स और इंट्रेस्टिंग किरदारों के स्तर पर बोरियत होना, फिल्म को कमजोर बनाता है। आप फिल्म देख सकते हैं, उसके साधारण होने में हो सकता है खूबियां भी पाएं, पर मोटा-मोटी दर्शकों को कुछ खास नहीं मिलता। मिली-जुली प्रतिक्रिया लेकर थियेटर से निकलेंगे। पर फिल्म बुरी नहीं है। एक बार ट्राई कर सकते हैं। एक बड़ी अच्छी बात आखिर में कही जाती है। रूसी सोल्जर सा दिखने वाला मातवेई जब बचे हुए उन लोगों को अमेरिका जाने के लिए पनडुब्बी तक पहुंचाता है और खुद अपनी मातृभूमि में ही रहकर मरना पसंद करता है तो बड़ा बदलाव नजर आता है। जो हमेशा फिल्मों में नहीं होता। मातवेई कुछ-कुछ यूं कहता है, 'मैं यहीं रुकूंगा। तुम जाओ और उन एलियंस से बचने का जो रास्ता तुमने यहां रहकर सीखा है वो बाकी मानवता को सिखाओ, ताकि वो भी लड़ सकें। सामना कर सकें।'

यूं होता है परग्रही हमला

सीन और बेन अमेरिका से रूस सोशल नेटवर्किंग के अपने आइडिया पर कोई डील करने आए हैं। दोनों जिंदगी में कुछ बनना चाहते हैं, सबकुछ हासिल करना चाहते हैं। पर जब वो तय जगह पर पहुंचते हैं तो पता चलता है कि स्काइलर (जोएल किनामैन) ने उन्हें धोखा दिया और अब वो दोनों इस योजना का हिस्सा नहीं हैं। रात किसी पब में बिता रहे ये दोनों वहां दो अमेरिकी लड़कियों एनी और नटाली से मिलते हैं। स्काइलर भी यहां होता है। तभी सारी बत्तियां चली जाती हैं और सब लोग सड़कों पर आकर देखते हैं कि आसमां से रंगीन तंतुओं और इलैक्ट्रिक किरणों सी कुछ चीजें गिर रही हैं। थोड़ी देर में सबको पता चल जाता है कि ये एलियन अटैक है। मानवता को अब इस अटैक से बचना है और इन किरदारों को भी।
*************
गजेंद्र सिंह भाटी

Monday, January 9, 2012

अब्बास-मुस्तानः अपनी औसत सी फिल्मों के प्लेयर्स

फिल्म: प्लेयर्स
निर्देशक: अब्बास-मुस्तान
कास्ट: अभिषेक बच्चन, नील नितिन मुकेश, ओमी वैद्य, बॉबी देओल, सोनम कपूर, बिपाशा बसु, जॉनी लीवर, विनोद खन्ना, सिकंदर खेर
स्टार: ढाई, 2.5भला अपनी फिल्म के लिए 'प्लेयर्स' जैसा सपाट नाम सोचने में अब्बास और मुस्तान बर्मावाला को कितना वक्त लगा होगा? कितनी रचनाशीलता लगी होगी? जबकि जिस फिल्म (द इटैलियन जॉब) की ऑफिशियल रीमेक 'प्लेयर्स' है, उसके नाम में ज्यादा जिज्ञासा है। इन डायरेक्टर भाइयों की फिल्ममेकिंग में भी ऐसी किसी रचनाशीलता की कमी हमेशा होती है। पूरा ध्यान विशुद्ध एंटरटेनमेंट देने पर होता है। अगर लीड एक्टर्स में कुछ है तो वो खुद अपनी एक्टिंग को एक्सप्लोर कर लेते हैं, लेकिन अब्बास-मुस्तान इस पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं। ये उनकी इस फिल्म को देखते हुए भी साफ नजर आता है। हमें एम्सटर्डम से लेकर रूस, न्यूजीलैंड और पूरे ग्लोब की सैर कराई जाती है। हीरो और विलेन के बीच खींचतान होती है। हीरोइन नाचती हैं, हीरो से प्यार करती है और इसके बाद भी कुछ वक्त मिल जाता है तो अपने पिता के गले लगकर रोती है। खैर, ये फिल्म एक्टिंग, कंसेप्ट और डायलॉग्स के मामले में बड़ी औसत है। कहीं कोई नएपन की कोशिश नहीं। पर कहानी और घुमाव-फिराव की वजह से देखने लायक हो जाती है। कहने का मतलब, दोस्तों को साथ टाइम अच्छे से पास हो जाता है। एक बार देख सकते हैं।

दस हजार का सोना कैसे लुटा
चार्ली मैस्केरेनस (अभिषेक बच्चन) और रिया (बिपाशा बसु) साथ मिलकर चोरी और ठगी करते हैं। पर जल्द ही चार्ली रूस में दस हजार करोड़ रुपये का सोना लूटने की योजना बनाता है। इस काम में खास काबिलियत वाले लोगों की टीम बनाने में वह अपने गुरु और जेल में बंद विक्टर दादा (विनोद खन्ना) की मदद लेता है। टीम बन जाती है। इसमें रॉनी (बॉबी देओल) भ्रमित करने वाला जादूगर है, रिया ऑटोमोबाइल एक्सपर्ट है, स्पाइडर (नील नीतिन मुकेश) हैकर है, बिलाल बशीर (सिकंदर खेर) विस्फोट विशेषज्ञ है और सनी (ओमी वैद्य) प्रोस्थैटिक्स या मेकअप विशेषज्ञ हैं। अब इन लोगों की इस बड़ी लूट में मोड़ तब आता है जब टीम का ही एक मेंबर धोखा दे देता है और पूरा सोना खुद ले जाता है। अब चार्ली को फिर से ये सोना लूटना है और खुद को सबसे बड़ा प्लेयर साबित करना है।

एक्टर और उनके कैरेक्टर
अभिषेक बच्चन: चार्ली के रोल में अभिषेक को एक सेकंड के लिए भी अपनी एक्टिंग स्किल्स को पुश नहीं करना पड़ता। वो कहीं कोई यादगार पल नहीं देते, क्लाइमैक्स में विलेन को अपनी लंबी-लंबी टांगों से मारने के अलावा।
नील नीतिन मुकेश: फिल्म में अभिनय के मामले में सबसे ज्यादा नील ही चमकते हैं। उनके किरदार स्पाइडर में कई परछाइयां हैं। जहां-जहां नील आते हैं, वहां फिल्म में थोड़ी जान आती है।
सिकंदर खेर: इस बंदे में संभावनाएं तो हैं, पर वो कभी अब्बास-मुस्तान बाहर नहीं ला सकते थे। पर चूंकि उनके डायलॉग कम हैं और रोल सीरियस, तो वह दमदार लगते हैं। ओमी वैद्य को उनका 'मेहरे' कहने का अंदाज अच्छा लगता है।
ओमी वैद्य: हालांकि अब उन्हें एक जैसे एक्सेंट और रोल में देख उबासी आती है, पर फिल्म में हम हंसी को तरस जाते हैं इसलिए ओमी यहां जो भी करते हैं वो हमें रिलैक्स करता है।
बॉबी देओल: रॉनी बने बॉबी का रोल बहुत छोटा है पर प्रभावी है। उनके लिए करने को न के बराबर था।
सोनम कपूर: सुंदर-सुंदर कपड़े और एक्सेसरी पहनने में ही उनका वक्त जाता है। पर चूंकि फिल्म में किसी को एक्टिंग करने जैसा कुछ करना ही नहीं था इसलिए क्या कहूं। हां, मूवी में रोने-धोने (नकली ही सही) के जो इक्के-दुक्के सीन हैं वो सोनम और बिपाशा के हिस्से ही आते हैं।
बिपाशा बसु: एक बिकिनी में समंदर से निकलने का सीन, एक गाना और बाकी टाइम हीरो लोगों के साथ फ्रेम में रंगत बनाए रखना, बिपाशा के रोल रिया के भाग्य में ढाई घंटे बस यही लिखा था।
विनोद खन्ना: दिखने में अब बूढ़े लगने लगे हैं विनोद खन्ना। विक्टर दादा के रोल में वो फिट लगते हैं, और बाकी बस निभा जाते हैं।
जॉनी लीवर: अपने टेलंट के लिहाज से जॉनी ने फूंक मारने जितना प्रयास भी नहीं किया है पर वो माहौल खुशनुमा बनाते हैं, पर मूवी में उनके सीन दो-तीन ही हैं।****************
गजेंद्र सिंह भाटी

Wednesday, January 4, 2012

भला, बुरा, भटका और उल्लेखनीयः सिनेमा वर्ष 2011

वो बारह महीने जो गुजर गए। वो जो अपने पीछे कुछ बड़े परदे के विस्मयकारी अनुभव छोड़ गए। वो जो ऐसे वीडियो पल देकर गए जो हमारे होने का दावा करते हुए भी हमारे लिए न थे। वो जो नुकसान की शुरुआत थे। वो जो धीरज बंधाते थे। वो जो सिनेमैटिकली इतने खूबसूरत थे कि क्या कहें, मगर पूरी तरह सार्थक न थे। वो बारह महीने बहुत कुछ थे। हालांकि मुख्यधारा की बातों में बहुत सी ऐसी क्षेत्रीय फिल्में और ऐसी फिल्में जो फीचर फिल्मों की श्रेणी में नहीं आती है, नहीं आती हैं, यहां भी नहीं है, पर कोशिश रहेगी की आगे हो।

अभी के लिए यहां पढ़ें बीते साल का सिनेमा। कुछ भला, कुछ बुरा, कुछ भटकाव को जाता और कुछ उल्लेखनीय। और भी बहुत कुछ।
****************
गजेंद्र सिंह भाटी

Saturday, December 31, 2011

पिटता, पीटता और हंसाता चलता वो जासूस शरलॉक होम्स

फिल्मः शरलॉक होम्स गेम ऑफ शैडोज (अंग्रेजी)
निर्देशकः गाय रिची
कास्टः रॉबर्ट डाउनी. जूनियर, जूट लॉ, जैरेड हैरिस, रैचल मैकएडम्स, स्टीफन फ्राई, नूमी रीपेस, पॉल एंडरसन, कैली रायली
स्टारः साढ़े तीन, 3.5डायरेक्टर गाय रिची की ये सीक्वल 'शरलॉक होम्स: गेम ऑफ शेडौज 2009 में उन्हीं के निर्देशन में आई पहली फिल्म से ज्यादा तेज, स्मार्ट और इंसानी लगती है। पूरे दो घंटे और कुछ मिनट हम आंखें परदे पर ही गड़ाए रखते हैं, कहीं बोरियत नहीं, कहीं घिसे-पिटे फिल्मी फॉर्म्युले नहीं। फिल्म का प्रस्तुतिकरण बहुत जगह रंग बदलता है, एक्सपेरिमेंटल लगता है। एक्शन सीक्वेंस में, स्लो मोशन वाले सीन में, तनाव भरे पलों में उपजते ह्यूमर में और हांस फ्लोरियन जिमर के रहस्य भरे बैकग्राउंड म्यूजिक में, फिल्म जायका बदलती चलती है। फिल्म जरूर देखें, मेरी सीधी हां है। मजा आएगा।

डाउनी जूनियर और जूड लॉ की जोड़ी पहले सी ही फ्रैश है। अब वॉटसन बने जूड की शादी का एंगल आ गया है, जिससे दोनों के बीच नोकझोंक होती है। मसलन, पुल के ऊपर से ट्रेन गुजर रही है और मारियाती के आदमियों ने हनीमून मनाने जा रहे वॉटसन और उसकी नवविवाहित वाइफ मैरी के डिब्बे पर हमला बोल दिया है। इस बीच औरत का रूप धरे होम्स आता है और मैरी को कई फुट नीचे नदी में फैंक देता है। यहां दर्शकों को हंसी आने लगती है, क्योंकि वॉटसन अपनी वाइफ को नीचे धकेलने के लिए उससे लड़ रहा है और होम्स कह रहा है कि डोंट वरी, फैंकते वक्त मेरी टाइमिंग बहुत अच्छी थी, उसे कुछ नहीं होगा। इस तरह ये शादी का रेफरेंस दोनों के बीच आता-जाता रहता है।

विलेन मारियाती बने जैरेड हैरिस लुक्स और अभिनय में गैरपारंपरिक लगते हैं। हीरो के तेज दिमाग को टक्कर देते हुए। उनका और होम्स का क्लाइमैक्स सीन देखिए। यहां दोनों दिमाग में ही गणित के मुश्किल सूत्र हल करने के अंदाज में शतरंज की चाल चल रहे हैं और लडऩे के एक-एक स्टेप को पहले ही प्रडिक्ट कर रहे हैं। हालांकि आखिर में किसका मोहरा हावी रहता है ये तो सस्पेंस है, पर तरीका इंट्रेस्टिंग है। होम्स तो सोचता भी ऐसे ही है। एक छोटे से सुराग से कुछ सेकंड में मन ही मन अगले दर्जनों स्टेप सोच लेना।

गाय रिची ने फिल्म में एक्शन सीक्वेंस में स्लो मोशन का चतुर इस्तेमाल किया है। चाहे, होम्स का हर लड़ाई से पहले स्लो मोशन में हर फाइट एक्शन को मन में सोचना हो या जंगलों में से होते हुए मारियाती के आदमियों से भागना। इस दौरान जो गोलियां और हथगोले छूट रहे हैं, वो हमें बड़ी धीमी रफ्तार में पेड़ों की छाल छीलते, मिट्टी उछालते और बाहें खरोंचते नजर आते हैं। मंत्रमुग्ध करते हुए।

डाउनी जूनियर होम्स के रोल में पानी की तरह घुले लगते हैं। हालांकि डाउनी दिखने में स्कॉटिश राइटर सर ऑर्थर कॉनन डॉयेल के इस काल्पनिक किरदार जैसे नहीं हैं। डॉयेल के स्कैच वाला होम्स ज्यादा बूढ़ा, पीछे खिसकी हेयरलाइन वाला और ज्यादा सनकी था, जबकि हमारे डाउनी जूनियर किरदार में अपने हाव-भाव डालते हैं, जो अच्छे लगते हैं। उनका बिना सोचे-समझे हर खतरे में टांग अड़ा देना, फिर कभी पिटना, कभी पीट देना, इस नामी जासूस को हमारे जैसा इंसानी ही लगता है। उनके ह्यूमर की टाइमिंग सौ साल पुराने इस किरदार को हमारे आज के टेस्ट के मुताबिक बनाती है।

फिल्म के छोटा सा सीन है, पर स्मृतियों में रह गया। होम्स के भाई माइकॉफ्ट का रोल कर रहे स्टीफन फ्राई अपने घर में सुबह-सुबह बिना कपड़ों के घूम रहे हैं और सामने वॉटसन की वाइफ मैरी आ जाती है, जो ये माजरा देख चकरा जाती है। अब खुद का नंगा होना तो माइकॉफ्ट के लिए तो जैसे कोई बात ही नहीं है, पर मैरी उसे देखने से बचते-बचाते हुए अपने पति की जानकारी उससे ले रही है।

सायों के खेल में होम्स और वॉटसन
हम 1891 के लंदन में हैं। ख्यात जासूस शरलॉक होम्स (रॉबर्ट डाउनी, जूनियर) इस बार मशहूर प्रफेसर और अपने पुराने दुश्मन मारियाती (जेरेड हैरिस) के खिलाफ सबूत जुटा रहा है। नामी डॉक्टर हॉफमैनस्टॉल और होम्स की लव इंट्रेस्ट इरीन एडलर (रैचेल मैकएडम्स) मारे जा चुके हैं। जब होम्स का दोस्त और जासूसी करतबों का साथी डॉ. वॉटसन (जूड लॉ) उससे मिलता है तो होम्स बताता है कि बहुत से कत्लों, आतंकी घटनाओं और कारोबारी अधिग्रहणों का सिरा मारियाती पर जाकर टिकता है। हालांकि वॉटसन मैरी (कैली रायली) से शादी कर रहा है, पर होम्स के मनाने पर वह इस केस में भी उसका साथ देता है और दोनों मारियाती को रोकने में जुटते हैं। इसी कहानी में एक घुमंतू लड़की सिम्जा (नूमी रीपेस), होम्स का भाई माइकॉफ्ट (स्टीफन फ्राई) और मारियाती का खास आदमी सबैश्चियन मोरान (पॉल एंडरसन) के किरदार भी आते हैं।
****************
गजेंद्र सिंह भाटी