Showing posts with label Neil Nitin Mukesh. Show all posts
Showing posts with label Neil Nitin Mukesh. Show all posts

Monday, January 9, 2012

अब्बास-मुस्तानः अपनी औसत सी फिल्मों के प्लेयर्स

फिल्म: प्लेयर्स
निर्देशक: अब्बास-मुस्तान
कास्ट: अभिषेक बच्चन, नील नितिन मुकेश, ओमी वैद्य, बॉबी देओल, सोनम कपूर, बिपाशा बसु, जॉनी लीवर, विनोद खन्ना, सिकंदर खेर
स्टार: ढाई, 2.5भला अपनी फिल्म के लिए 'प्लेयर्स' जैसा सपाट नाम सोचने में अब्बास और मुस्तान बर्मावाला को कितना वक्त लगा होगा? कितनी रचनाशीलता लगी होगी? जबकि जिस फिल्म (द इटैलियन जॉब) की ऑफिशियल रीमेक 'प्लेयर्स' है, उसके नाम में ज्यादा जिज्ञासा है। इन डायरेक्टर भाइयों की फिल्ममेकिंग में भी ऐसी किसी रचनाशीलता की कमी हमेशा होती है। पूरा ध्यान विशुद्ध एंटरटेनमेंट देने पर होता है। अगर लीड एक्टर्स में कुछ है तो वो खुद अपनी एक्टिंग को एक्सप्लोर कर लेते हैं, लेकिन अब्बास-मुस्तान इस पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं। ये उनकी इस फिल्म को देखते हुए भी साफ नजर आता है। हमें एम्सटर्डम से लेकर रूस, न्यूजीलैंड और पूरे ग्लोब की सैर कराई जाती है। हीरो और विलेन के बीच खींचतान होती है। हीरोइन नाचती हैं, हीरो से प्यार करती है और इसके बाद भी कुछ वक्त मिल जाता है तो अपने पिता के गले लगकर रोती है। खैर, ये फिल्म एक्टिंग, कंसेप्ट और डायलॉग्स के मामले में बड़ी औसत है। कहीं कोई नएपन की कोशिश नहीं। पर कहानी और घुमाव-फिराव की वजह से देखने लायक हो जाती है। कहने का मतलब, दोस्तों को साथ टाइम अच्छे से पास हो जाता है। एक बार देख सकते हैं।

दस हजार का सोना कैसे लुटा
चार्ली मैस्केरेनस (अभिषेक बच्चन) और रिया (बिपाशा बसु) साथ मिलकर चोरी और ठगी करते हैं। पर जल्द ही चार्ली रूस में दस हजार करोड़ रुपये का सोना लूटने की योजना बनाता है। इस काम में खास काबिलियत वाले लोगों की टीम बनाने में वह अपने गुरु और जेल में बंद विक्टर दादा (विनोद खन्ना) की मदद लेता है। टीम बन जाती है। इसमें रॉनी (बॉबी देओल) भ्रमित करने वाला जादूगर है, रिया ऑटोमोबाइल एक्सपर्ट है, स्पाइडर (नील नीतिन मुकेश) हैकर है, बिलाल बशीर (सिकंदर खेर) विस्फोट विशेषज्ञ है और सनी (ओमी वैद्य) प्रोस्थैटिक्स या मेकअप विशेषज्ञ हैं। अब इन लोगों की इस बड़ी लूट में मोड़ तब आता है जब टीम का ही एक मेंबर धोखा दे देता है और पूरा सोना खुद ले जाता है। अब चार्ली को फिर से ये सोना लूटना है और खुद को सबसे बड़ा प्लेयर साबित करना है।

एक्टर और उनके कैरेक्टर
अभिषेक बच्चन: चार्ली के रोल में अभिषेक को एक सेकंड के लिए भी अपनी एक्टिंग स्किल्स को पुश नहीं करना पड़ता। वो कहीं कोई यादगार पल नहीं देते, क्लाइमैक्स में विलेन को अपनी लंबी-लंबी टांगों से मारने के अलावा।
नील नीतिन मुकेश: फिल्म में अभिनय के मामले में सबसे ज्यादा नील ही चमकते हैं। उनके किरदार स्पाइडर में कई परछाइयां हैं। जहां-जहां नील आते हैं, वहां फिल्म में थोड़ी जान आती है।
सिकंदर खेर: इस बंदे में संभावनाएं तो हैं, पर वो कभी अब्बास-मुस्तान बाहर नहीं ला सकते थे। पर चूंकि उनके डायलॉग कम हैं और रोल सीरियस, तो वह दमदार लगते हैं। ओमी वैद्य को उनका 'मेहरे' कहने का अंदाज अच्छा लगता है।
ओमी वैद्य: हालांकि अब उन्हें एक जैसे एक्सेंट और रोल में देख उबासी आती है, पर फिल्म में हम हंसी को तरस जाते हैं इसलिए ओमी यहां जो भी करते हैं वो हमें रिलैक्स करता है।
बॉबी देओल: रॉनी बने बॉबी का रोल बहुत छोटा है पर प्रभावी है। उनके लिए करने को न के बराबर था।
सोनम कपूर: सुंदर-सुंदर कपड़े और एक्सेसरी पहनने में ही उनका वक्त जाता है। पर चूंकि फिल्म में किसी को एक्टिंग करने जैसा कुछ करना ही नहीं था इसलिए क्या कहूं। हां, मूवी में रोने-धोने (नकली ही सही) के जो इक्के-दुक्के सीन हैं वो सोनम और बिपाशा के हिस्से ही आते हैं।
बिपाशा बसु: एक बिकिनी में समंदर से निकलने का सीन, एक गाना और बाकी टाइम हीरो लोगों के साथ फ्रेम में रंगत बनाए रखना, बिपाशा के रोल रिया के भाग्य में ढाई घंटे बस यही लिखा था।
विनोद खन्ना: दिखने में अब बूढ़े लगने लगे हैं विनोद खन्ना। विक्टर दादा के रोल में वो फिट लगते हैं, और बाकी बस निभा जाते हैं।
जॉनी लीवर: अपने टेलंट के लिहाज से जॉनी ने फूंक मारने जितना प्रयास भी नहीं किया है पर वो माहौल खुशनुमा बनाते हैं, पर मूवी में उनके सीन दो-तीन ही हैं।****************
गजेंद्र सिंह भाटी

Saturday, February 19, 2011

इस खून की माफी नहीं मिलेगी

फिल्मः सात खून माफ
निर्देशकः
विशाल भारद्वाज
कास्टः प्रियंका चोपड़ा, विवान शाह, नील नितिन मुकेश, जॉन अब्राहम, इरफान खान, अन्नू कपूर, अलेक्जांद्र दाइशेंको, नसीरुद्दीन शाह, उषा उत्थुप, हरीश खन्ना, शशि मालवीय, कोंकणा सेन शर्मा, मास्टर अयूष टंडन, रस्किन बॉन्ड
स्टारः ढाई 2.5

लिफ्ट में उन फनलविंग यंग दोस्तों में एक मैं ही अजनबी था। 'सात खून माफ’ देखने के दौरान हर सीरियस सीन का उन्होंने मजाक उड़ाया और अब वापिस जा रहे थे। कैसी फिल्म है, इसे उन्हीं की भाषा में कहें तो ...सिर भारी हो गया, यार कुछ समझ ही नहीं आया। हां ये कुछ ऐसी ही मूवी है। विशाल भारद्वाज उन फिल्म मेकर्स में से हैं जो हिंदी फिल्मों के एक कोने में बैठे अपनी ही तरह की फिल्में बना रहे हैं। इनमें कुछ लिट्रेचर होता है, तो कुछ वर्ल्ड सिनेमा। उनकी मूवीज दर्शकों के लिए एक्सपेरिमेंटल फिल्मी भाषा वाली साबित होती हैं। कभी डार्क, डिफिकल्ट और परेशान करती तो कभी प्यारी सी 'ब्लू अंब्रैला’ जैसी। जिन लोगों को अंग्रेजी नॉवेल पढऩा और फिल्में बनाना पसंद हैं, उनके लिए 'सात खून माफ’ अच्छी फिल्म है और जो खुश होने के लिए फिल्में देखने जाते हैं उन्हें यहां खुशी के अलावा सब कुछ मिलेगा। ये फैमिली या दोस्तों के साथ जाकर देखने वाली मूवी नहीं है। ज्यादा अटेंशन रखते हैं तो अकेले जा सकते हैं। फिल्म के आखिर में सुजैना की इस शॉर्ट स्टोरी को लिखने वाले नॉवेल राइटर रस्किन बॉन्ड का भी छोटा सा रोल है.. उन्हें पहचानना न भूलें।

बात सात की
कहानी है सुजैना उर्फ सुल्ताना उर्फ एनी उर्फ सुनयना (प्रियंका चोपड़ा) की। 1964 के आस-पास की बात है। पिता की मौत के बाद सुजैना अपने पॉन्डिचेरी वाले घर में कई फैमिली मेंबर जैसे सर्वेंट्स के साथ रहती हैं। इनमें घोड़ों की देखभाल करने वाला कम कद का गूंगा (शशि मालवीय) है, एक बटलर गालिब (हरीश खन्ना) है, मैगी आंटी (ऊषा उत्थुप) है और गूंगा का गोद लिया बेटा (जिसे गूंगे ने कभी गोद में नहीं लिया) अरुण (मास्टर अयूष टंडन) है। अब आते हैं काम की बात पर और जल्दी से सब पति परमेश्वरों से मिलते हैं। सुजैना की पहली शादी होती है मेजर एडविन रॉड्रिग्स (नील नितिन मुकेश) से। मेजर साब कीर्ति चक्र विजेता हैं और ऑपरेशन ब्लू स्टार में हिस्सा ले चुके हैं। एक टांग लड़ाई में चली गई। मदाम की दूसरी शादी होती है जमशेद सिंह राठौड़ उर्फ जिमी (जॉन अब्राहम) से और तीसरी मोहम्मद वसीउल्ला खान उर्फ मुसाफिर (इरफान खान) से होती है। आगे बढ़ते हैं। पति नंबर चार हैं निकोलाइ व्रॉन्सकी (अलेक्जांद्र दाइशेंको), पांचवें हैं कीमत लाल (अन्नू कपूर) और छठवें पति हैं डॉक्टर मधुसूदन तरफदार (नसीरुद्दीन शाह), सातवां पति सरप्राइज है.. हालांकि ये सरप्राइज चौंकाता नहीं है, बस कहानी को स्पष्ट एंगल पर खत्म करता है। इस कहानी को नरेट करते हैं अरुण (विवान शाह) और सुजैना।

बेकरां हैं बेकरां
फिल्म के म्यूजिक को चतुराई से बरता गया है। इसमें हर शादी की कहानी को रियलिस्टिक बनाने के लिए कैरेक्टर के मिजाज का म्यूजिक इस्तेमाल होता रहता है। मेजर एडविन की कहानी में घुसते ही बैकग्राउंड में तानाशाह और हिंसक माहौल वाला म्यूजिक भी घुसता है। उसका गूंगे के साथ लड़ने के वक्त वो क्रूरता वाला-बेदर्दी वाला थाप, फिर मौत के वक्त चर्च का म्यूजिक और चर्च में जिमी से शादी करने से लेकर इस कहानी के अंत तक गिटार का ही खास इस्तेमाल म्यूजिक में हुई बारीक मेहनत को दिखाता है। मसलन, गिटार बजाने वाले जिमी की कहानी में ओ मामा.. जैसे गिटार आधारित गाने से फिल्म का टेस्ट बदल देना। वादियों की कहानी के दौरान कश्मीर की हवा सा पूरा फेफड़ों भरा सुकून म्यूजिक में दिखता है। बेकरां हैं बेकरां, आंखें बंद कीजे ना, डूबने लगे हैं हम, सांसें लेने दीजे नां... विशाल ने खुद गाया है। मुझे फिल्म का बेस्ट गाना लगा। जब निकोलाइ की कहानी का हिस्सा आता है तो घर की वाइन से लेकर संगीत तक पर रशियन असर आता है। डार्लिंग आंखों से आंखों को.. गाने की मैलोडी भी रूसी गाने 'कलिंका’ से ली गई है। मास्टर सलीम का गाया आवारा.... हवा पे रखे सूखे पत्ते आवारा, पांव जमी पर लगते ही उड़ लेते हैं दोबारा, आवारा... फिल्म का दूसरा सबसे अच्छा लिखा और पिरोया गाना है।

कैसे-कैसे एक्टर लोग
नील नितिन मुकेश मेजर के रोल में मेच्योर लगते हैं। प्रियंका से भी मेच्योर। एक 'मर्द’ होने का जो जरूरी भाव उनके रोल के लिए जरूरी था, वो ले आते हैं। इरफान अपने शायर वाले रोल में भले ही नया कुछ न डाल पाएं हों पर एक पति के तौर पर वो एक्सिलेंट लगे हैं। अपनी मौत को सामने देखकर जो उनकी आंखों से छिपे आंसू ढलक रहे होते हैं, उन्हें शायद ज्यादा लोगों ने नोटिस नहीं किया होगा। जॉन अब्राहम की स्टोरी में ड्रग्स से होने वाली कमजोरी से उनका ढीला पड़ा शरीर देख पाना आश्चर्य था। कैरेक्टर के लिए बॉडी में इतना बदलाव अच्छा लगा। विवान अपनी पहली फिल्म में किसी मंझे हुए एक्टर से लगते हैं। नसीर परिवार का एक और नगीना हैं वो। अन्नू कपूर को 'तेजाब’ और 'जमाई राजा’ जैसी फिल्मों के छोटे मगर सदाबहार रोल के बाद यहां कीमत लाल बने देखना लाजबाव रहा। वो एक अलग ही किस्म के आम इंसान लगते हैं। मिसाल के तौर पर सुजैना के साथ रात बिताने के बाद उनका थैंक्यू बोलने का तरीका और बाद में एक सीन में फफक-फफककर उससे शादी करने की गुहार लगाने को लिया जा सकता है। रूसी एक्टर अलेक्जांद्र और नसीरुद्दीन शाह की भी ठीक-ठाक मूमिका है। प्रियंका की बात करें तो आखिर की तीन कहानियों के दौरान उनके चेहरे के बदलाव में उम्र आगे-पीछे लगने लगती है। पहली तीन कहानियों में उनसे सहानुभूति होती है, बाद की तीन में वो विलेन लगती हैं।

कहानियों का कैलेंडर
ये फिल्म चूंकि सुजैना की लंबी जिंदगी के कई हिस्से दिखाती है ऐसे में कहानी किस साल में कही जा रही है, ये दिखाना जरूरी था। फिल्म में आउटडोर लोकेशन या पब्लिक प्लेसेज वाले सीन तो हैं नहीं, ऐसे में डायरेक्टर विशाल भारद्वाज ने कैलेंडर बना दिया भारत में हो रही तब की राजनीतिक, सामाजिक और दूसरी घटनाओं को। सबसे पहले दिखती है दूरदर्शन के प्रोग्रैम कृषि दर्शन की झलकी। उसके बाद आता है टी-सीरिज और वो दौर जब फिल्मी गानों की ट्यून पर माता के भजन गाए जाते थे। छोटे-बड़े रूप में बर्लिन की दीवार, वी पी सिंह की सरकार, बप्पीदा का गान, बाबरी विध्वंस और कश्मीर में प्रदर्शन करते पत्थरबाज लड़कों का जिक्र दिखाया जाता है। देख तो दिल के जान से उठता है... में मेंहदी हसन और गुलाम अली के रेफरेंस हल्के ही सही नजर आते है। रेफरेंस की छोटी-छोटी कई बातें आती रहती हैं। कुडानकुलम न्यूक्लियर प्रोजैक्ट का जिक्र है। सुजैना के चौथे पति निकोलाइ के मुंह से ही हमें पता चलता है कि उनकी कहानी के दौर में भारत न्यूक्लियर ताकत बनने में रूस की मदद ले रहा है। फिल्म में एंटोल फ्रैंस के नॉवेल 'द सेवन वाइव्ज ऑफ ब्लूबर्ड’ और नॉवेल अन्ना कुरेनिना की कॉपी दिखती हैं। सबसे लेटेस्ट टाइम में हम पहुंचते हैं छठवी कहानी में जब रेडियो पर मुंबई के होटल ताज और ट्राइडैंट पर आतंकवादी हमले की खबर आती है। संदीप उन्नीकृष्णन के शहीद होने की खबर सुनाई जाती है।

तवे से उतरे ताजा डायलॉग
नसीरुद्दीन शाह के बेटे विवान बने हैं अरुण कुमार। अरुण पूरी फिल्म में सूत्रधार हैं। सुजैना की कहानी बताते हैं। इनका कैरेक्टर्स से मिलवाने का तरीका बड़ा सहज और ह्यूमर की टोन वाला है। वॉयसओवर में ताजगी है। वसीउल्ला से मिलवाते वक्त ये कहना... वसीउल्ला अपनी शायरी में जितना नाजुक और रूहानी है... प्यार में उतना ही बीमार या फिर निकोलाइ से सुजैना की शादी के वक्त कहना... इंडिया का न्यूक्लियर टेस्ट सफल रहा और हिरोशिमा हुआ मेरा दिल। दो विस्फोट हुए। एक तो साहेब (प्रियंका) की शादी और दूसरा मैं मॉस्को रवाना हो गया।... दोनों ही डायलॉग के दौरान विवान अलग किस्म के कम्फर्टेबल एक्टर लगते हैं। इनकी आवाज से ये पुख्ता होता रहता है। मेजर रॉड्रिग्स बने नील सुजैना से कहते हैं, तितली बनना बंद करो, यू आर ए मैरिड वूमन तो फिल्म को यूं ही खारिज करना मुश्किल हो जाता है। ये डायलॉग गहरे अर्थों वाले हैं। इनमें चुटीला व्यंग्य हैं, जैसे कि ये डायलॉग.. यही होता है मियां, जल्दी-जल्दी शादी करो और फिर आराम-आराम से पछताओ। फिल्म की सीधी आलोचना करना शायद इसलिए भी मुश्किल है कि फिल्म के कई पहलुओं पर खासा अच्छा काम किया गया है।

मलीना देखी है...
डायरेक्टर गायसिपी टॉरनेटॉर की 2000 में आई इटैलियन फिल्म 'मलीना’ में मलीना (मोनिका बेलुची) भी कुछ ऐसी ही औरत होती हैं, जिसपर पास के एक लड़के का क्रश होता है। उस फिल्म में वो कारण स्पष्ट होते हैं जिनकी वजह से 12 साल का रेनेटो मलीना के प्रति फिल्म के आखिर तक आकर्षित रहता है। 'सात खून माफ’ में अरूण (विवान) सुजैना पर मोहित क्यों होता है इसका सिर्फ एक ही लॉजिक दिया जाता है। वो ये कि उसे नौकरों वाली जिंदगी से निकालकर सुजैना पढ़ने-लिखने स्कूल भेजती है। एक लड़के के एक बड़ी उम्र की औरत पर इस तरह फिदा होने की विश्वसनीय कहानी तो 'मलीना’ ही है 'सात खून माफ नहीं।‘

आखिर में...
आदमखोर शेर या पैंथर को पकडऩे की कहानियां सिर्फ 'सत्यकथा’ में ही पढ़ी थीं। हिंदी मूवीज में ऐसा काफी कम देखने को मिलता है। पैंथर पकड़ने के लिए बकरी बंधी है और मेजर रॉड्रिग्स सुजैना के साथ ऊंची मचान पर बैठे हैं। ऐसे कई अलग-अलग रंग सुखद हैं। (प्रकाशित)
गजेंद्र सिंह भाटी