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Tuesday, January 10, 2012

अमेरिकी प्रपंच से दूर, एलियन हमले का नया केंद्र रूस

फिल्म: द डार्केस्ट आवर (अंग्रेजी)
निर्देशक: क्रिस गोराक
कास्ट: ऐमिल हर्श, मैक्स मिंघेला, रैचल टेलर, ऑलिविया थर्लबॉय, वरॉनिका ऑजरोवा, यूरी कुत्सेंको, जोएल किनामैन
स्टार: दो, 2.0नील ब्लॉमकांप के निर्देशन में बनी 'डिस्ट्रिक्ट 9', एलियन जीवों के धरती पर होने की अब तक की श्रेष्ठ फिल्म है। अकेली ऐसी फिल्म जिसमें चौंका देने वाले एंटरटेनमेंट के साथ बड़े गंभीर पॉलिटिकल और सोशल विमर्श भी सिमटे थे। सबसे खास बात थी कि पहली बार एलियन अमेरिका की बजाय दक्षिण अफ्रीका की जमीन पर उतरे। इसी लिहाज से निर्देशक क्रिस गोराक की 'द डार्केस्ट आवर' भी अलग होती है। इसमें भी परग्रही जीवों का हमला अमेरिका पर नहीं होकर रूस पर होता है। शायद इसलिए भी क्योंकि प्रॉड्यूसर तिमूर रूस से हैं। और शायद वो चाहते थे कि फिल्मों में ये घिसा-पिटा जुमला बदले। और एंटरनेटमेंट के इस एलियन प्रपंच की धुरी गैर-अमेरिकी, गैर-हॉलीवुडी हो। और हर बार दुनिया को एलियंस से बचाने वाले सिर्फ एक ही देश (अमेरिका) से न हों।

खैर, एलियन दिखेंगे कैसे? उनकी शक्तियां कैसी होंगी? वो इंसानों को नुकसान किस तरीके से पहुंचाएंगे? उनके आने का कारण क्या है? वो चाहते क्या हैं? और उनका मुकाबला कैसे किया जाए? ...इन सब सवालों के लिहाज से भी एलियन फिल्में एक-दूसरे से अलग हो सकती हैं। ये फिल्म अलग तो है, लेकिन जहां भी अलग है वहां संतुष्ट नहीं करती। मसलन, इसमें एलियन दिखते नहीं हैं, बस कुछ इलैक्ट्रिकल बिजली जैसी चमकीली रेखाओं जैसी आकृतियों में वो आए हैं और जिसे भी छूते हैं वो राख में तब्दील हो जाता है। ये दिखने में नई चीज है पर आखिर में जब हमें इन एलियंस का चेहरा दिखता भी है तो मजा नहीं आता। कुछ बचकाना सा लगता है।

फिल्म की एक बड़ी खामी ये है कि इसका कोई भी कैरेक्टर रोचक नहीं है। सीन (ऐमिल हर्श) फिल्म का हीरो है पर उसमें वैसी बात नहीं है। बेन (मैक्स मिंघेला) में वो बात है पर जिंदा नहीं रहता। एनी (रैचल टेलर) ग्लैमरस दिखने, सुबकने और डरने में ही अपना सारा वक्त बिता देती है। नटाली (ऑलिविया थर्लबाय) आखिर तक फिल्म में रहती है पर उन्हें देख बोरियत होती है। रूसी लड़की वाइका (वरॉनिका ऑजरोवा) इंट्रेस्टिंग लगती है पर इस किरदार पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया गया है। फिल्म में जब तरह-तरह की धातू और जाल से ढके घोड़े पर बैठे मातवेई (यूरी कुत्सेंको) और उनके साथियों की एंट्री होती है तो रूचि जागती है। पर तब तक फिल्म दूसरे किनारे तक पहुंच रही होती है।

तो एलियंस के प्रति किसी जिज्ञासा का न होना और कहानी में डायलॉग्स और इंट्रेस्टिंग किरदारों के स्तर पर बोरियत होना, फिल्म को कमजोर बनाता है। आप फिल्म देख सकते हैं, उसके साधारण होने में हो सकता है खूबियां भी पाएं, पर मोटा-मोटी दर्शकों को कुछ खास नहीं मिलता। मिली-जुली प्रतिक्रिया लेकर थियेटर से निकलेंगे। पर फिल्म बुरी नहीं है। एक बार ट्राई कर सकते हैं। एक बड़ी अच्छी बात आखिर में कही जाती है। रूसी सोल्जर सा दिखने वाला मातवेई जब बचे हुए उन लोगों को अमेरिका जाने के लिए पनडुब्बी तक पहुंचाता है और खुद अपनी मातृभूमि में ही रहकर मरना पसंद करता है तो बड़ा बदलाव नजर आता है। जो हमेशा फिल्मों में नहीं होता। मातवेई कुछ-कुछ यूं कहता है, 'मैं यहीं रुकूंगा। तुम जाओ और उन एलियंस से बचने का जो रास्ता तुमने यहां रहकर सीखा है वो बाकी मानवता को सिखाओ, ताकि वो भी लड़ सकें। सामना कर सकें।'

यूं होता है परग्रही हमला

सीन और बेन अमेरिका से रूस सोशल नेटवर्किंग के अपने आइडिया पर कोई डील करने आए हैं। दोनों जिंदगी में कुछ बनना चाहते हैं, सबकुछ हासिल करना चाहते हैं। पर जब वो तय जगह पर पहुंचते हैं तो पता चलता है कि स्काइलर (जोएल किनामैन) ने उन्हें धोखा दिया और अब वो दोनों इस योजना का हिस्सा नहीं हैं। रात किसी पब में बिता रहे ये दोनों वहां दो अमेरिकी लड़कियों एनी और नटाली से मिलते हैं। स्काइलर भी यहां होता है। तभी सारी बत्तियां चली जाती हैं और सब लोग सड़कों पर आकर देखते हैं कि आसमां से रंगीन तंतुओं और इलैक्ट्रिक किरणों सी कुछ चीजें गिर रही हैं। थोड़ी देर में सबको पता चल जाता है कि ये एलियन अटैक है। मानवता को अब इस अटैक से बचना है और इन किरदारों को भी।
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गजेंद्र सिंह भाटी