निर्देशक: शॉन लेवी
कास्ट: ह्यू जैकमेन, डकोटा गोयो, इवेंजलीन लिली
स्टारः साढ़े तीन, 3.५

'...एज द डेज कीप टर्निंग इनटू नाइट' गाने की धीमी सूदिंग आवाज के साथ चार्ली का ग्रे ट्रक दौड़ा जा रहा है, पीछे अपने रोबॉट को लादे। ओल्ड अमेरिका की सड़कों, खाली खेतों और कस्बों से गुजरता हुआ। बीच में मेलों में जगमगाते तंबू आ रहे हैं। दरअसल ये वो कंट्रास्ट है जो एक रोबो या मशीनी मानव वाली फिल्मों में हम नहीं देख पाते हैं। कुछ ऐसा ही झक्कास मशीनी सा हमने 1979 में आई 'मैड मैक्स' में देखा था। रेगिस्तान में चीथड़ों और लेदर के न जाने कौन से जमाने के फैशनेबल कपड़े पहने जंगली से मगर इंसान, उनकी गाडिय़ां और तेल की लूट। हीरो मेल गिब्सन। हथियारों के साथ ये बीहड़ का कंट्रास्ट था। हाल ही में डेनियल क्रेग की 'काऊबॉयज वर्सेज एलियंस' आई। उसमें भी स्पेसशिप में आए एलियंस से घोड़ों पर गायें टोरने वाले चरवाहों का मुकाबला था। कम से कम अत्याधुनिक हथियार और बस दुनाली बंदूकों के साथ। चाहते तो डायरेक्टर शॉन लेवी 'रियल स्टील' में उड़ते स्पेसशिप, अल्ट्रा मॉडर्न डिजाइन के शहर, गैजेट्स और कॉम्पलैक्स रोबो लैंग्वेज रख सकते थे
। पर उन्होंने नहीं रखकर इस फिल्म को स्पेशल बनाया। इससे फिल्म इंसानी होकर दर्शकों के ज्यादा करीब हो जाती है। यही तो वजह है कि इमोशन के इस निचोड़ से 'एटॉम' की जापानी रोबॉट 'ज्यूस' से बॉक्सिंग फाइट आंखों में आंसू ले आती है। यही तो वजह है कि एटॉम 2011 का रॉकी बेलबोआ लगने लगता है। पीपुल्स चैंपियन हो जाता है। अपनी सरलता, आरामदायक वॉचिंग और ट्रीटमेंट की वजह से ये फिल्म एक मस्ट वॉच बन जाती है। जो लोग फिल्मों के नाम पर उलझा हुआ मांझा छोड़ जाते हैं उन्हें देखना चाहिए कि एक अच्छी फिल्म बनाने में बस इतना ही कॉमन सेंस लगता है, डेढ़ होशियारी नहीं। बिना उम्मीदों के जाएं, मगर जरूर देखें। फैमिली, फ्रैंड्स और खुद के साथ।चार्ली और मैक्स की कहानी
पूरी रात अपना ट्रक ड्राइव करके चार्ली केंटन (ह्यू जैकमेन) अपने रोबॉट एमबुश को 2020 के अमेरिका में कहीं बॉक्सिंग करवाने ले जा रहा है। पर उसका रोबॉट भिड़ता है बहुत वजनी सांड सिक्स शूटर से और ध्वस्त हो जाता है। कर्ज में डूबे चार्ली की लाइफ कुछ ऐसी ही है। अपने बॉक्सिंग करियर में कुछ नहीं कर पाया है, अब पता चलता है कि उसकी पूर्व गर्लफ्रेंड मर गई है और पीछे चार्ली का 11 साल का बेटा मैक्स (डकोटा गोयो) छोड़ गई है। इन बाप-बेटे को कुछ वजहों से साथ रहना है। मैक्स रोबो बॉक्सिंग को अलग नजरिए से देखता है और फिर उसे पुरानी जेनरेशन का रोबो एटॉम मिलता है। यहीं से आगे की एक्साइटिंग हार-जीत की जर्नी शुरू होती है।

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गजेंद्र सिंह भाटी
'थर्टी मिनट्स ऑर लेस' के पोस्टर पर बड़े अक्षरों में लिखा था 'फ्रॉम द मेकर्स ऑफ जॉम्बीलैंड।' बता दूं कि 'जॉम्बीलैंड' डायरेक्टर रुबिन फ्लैश्चर की पहली और सबसे मजेदार फिल्म थी। इसमें भी जेसी आइजनबर्ग थे। तो वो जो डरपोक, निराश और फेल लड़के की इमेज मजबूती से जेसी के करियर में बनी उसमें रुबिन की इस पहली फिल्म का भी हाथ था। फिर 'द सोशल नेटवर्क' ने जेसी का रुतबा बदला। अब आई है 'थर्टी मिनट्स...।' इस फिल्म में उतना और वैसा एंटरटेनमेंट नहीं है जिसके होने की अनिवार्य शर्त हॉलीवुड की फिल्मों में बड़ी बेदर्दी से रखी जाती है। जिसमें ताबड़तोड़ स्पीड, लच्छेदार डायलॉग और हमारे प्रियदर्शन की फिल्मों जैसी भागमभाग हो। 'थर्टी मिनट्स...' में ये सब नहीं है। जो लोग स्क्रिप्ट के नेचरल और सिंपल होने की अहमियत समझते हैं, उन्हें ये तीन स्टार वाली अच्छी फिल्म लगेगी, बाकियों के लिए आधा स्टार कम। जेसी और अजीज का तालमेल जितना हंसोड़ और सुहावना है, उतना ही ढीला तालमेल है डैनी और निक स्वॉर्डसन का। फिल्म की पहली और सबसे अरुचिकर चीज यही है। दोस्त लोग जा सकते हैं, एंजॉय करेंगे। फैमिली के साथ इसलिए नहीं जा सकते क्योंकि इसे 'ए' रेटिंग मिली है। आप फिल्म में कहीं अचानक असहज हो उठेंगे। जो दर्शक कन्फ्यूज हैं वो डीवीडी का इंतजार कर सकते हैं या फिर फिल्म के टीवी पर आने का। फिल्म का एक फनी डायलॉग मुझे वो लगा जब निक के शरीर पर बम बंधा है और शेट उसे निकालने के उपाय ढूंढ रहा है और बोलता है, 'वॉट डिड दे डू इन हर्ट लॉकर।'



