बुधवार, 2 मई 2012

हम इनकी भेड़ें, ये हांकने वालेः 'रोडीज' के रघु-राजीव से बातें

 रघु राम और राजीव लक्ष्मण से मिलकर लगता है कि उनमें अब कुछ भी ईमानदार नहीं रहा। जो रोडीज के शुरू के एक-दो सीजन तक हल्का सा लगा करता था। लगता है कि वो खुद को भगवान तुल्य समझने लगे हैं। इसकी एक वजह एमटीवी में उनका बहुत अधिक बढ़ा कद हो सकती है। ऱघु के वीकीपीडिया पेज पर भी तो लिखा है कि रोडीज के जरिये एमटीवी के पुनरुत्थान का श्रेय उन्हें ही जाता है। ये सभी सेलेब्रिटी बड़े चाव से अपना वीकीपीडिया पेज पढ़ते हैं, बार-बार, लगातार और उसी से मद सिर में चढ़ने लगा है। अब किसी चैनल के पुनरुत्थान जैसी बात अगर यहां लिखी हो तो हवा में उड़ना स्वाभाविक है। दूसरी वजह ये हो सकती है कि रोडीज का ये नवां सीजन चल रहा है, हर सीजन में हरेक प्रतिभागी को ऑडिशन में जलील करके और घुटनों पर लाकर के उनमें युवाओं के सबसे लोकप्रिय सेलेब्रिटी होने की बात आ गई है। यूट्यूब पर रोडीज के पेज और एपिसोड भी लाखों से करोड़ होते दर्शकों ने लाइक किए हैं। ये सब चीजें टीवी प्रोग्रैम प्रॉड्यूसर्स में भगवान होने की भावना भर देती हैं। तो ये भगवान अब जब किसी राज्य में ऑडिशन के लिए पहुंचते हैं तो मंच पर उनके एटिट्यूट ऐसे हैं कि तीस साल पुरानी ओवर रिएक्ट करने वाली फिल्में शरमा जाएं। आंखों पर महंगा चश्मा, ब्रैंडेड जैकेट और निहायती भद्दी विदेशी स्टाइल मारते हुए दोनों भाई हर मंच पर आते हैं। संबोधन पश्चिमी होता है।

रोडीज और रघु-राजीव की एक दो अच्छी बातें (महिला सशक्तिकरण और चंद युवाओं को जलालत देकर आइना दिखाना), हालांकि ये बातें भी रुग्ण तरीकों में ही गिनूंगा, छोड़ दें तो उन्होंने समाज को कितना भीतर तक चोटिल किया है न तो वे जानते हैं और न ही बताने वाले को सुनना चाहते हैं। क्या आप यकीन करेंगे कि एक अखबार को दफ्तर में आने और दर्जनों पत्रकारों से घिरे होने के बावजूद वह गालियों का इस्तेमाल करना नहीं छोड़ते, ऐसे संदर्भों में जहां जरूरत ही नहीं है। पाठकों के सवालों पर वह कहते हैं, “उसको बोलो वो समझता क्या है खुद को, ऐसे सवाल पूछेगा, नहीं देते जवाब, जा क्या कर लेगा”। ये उस पाठक के लिए वह बोल रहे थे जिसने सैंकड़ों किलोमीटर दूर से बस सवाल भर भेजा था। बाद में दोनों कहते हैं, कोई नहीं हम तो मजाक कर रहे थे।

उनके मुंह से बार-बार साम्प्रदायिकता और भ्रष्टाचार की बातें निकलती हैं। वह कहते हैं कि गालियों पर बात मत करो, बाकी मुद्दों पर बात करो। जबकि किसी मुद्दे की बहस में उनका ढेला भर भी जमीनी योगदान नहीं रहा है। योगदान तो सोशल बुनावट का भट्टा बिठाने में रहा है। वह कहते हैं कि गालियां देनी चाहिए, बच्चों को भी देनी चाहिए, राजीव तो यहां तक कहते हैं कि उनके बेटे को स्कूल में अपने सहपाठी को एक की जगह चार झापड़ लगानी चाहिए। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में नीति निर्धारक फैसले लेने वालों (जिनके हालिया फैसले को मैं पूरी तरह खारिज नहीं करता) को रघु बिना एक बार भी सोचे विचारे 'बेवकूफ', सा*' और 'इडियट' कह देते हैं। लापरवाही की इंतहा जहां होकर रुकती है, वहां से इनकी बातों के तर्क शुरू होते हैं। इस बात से बेखबर कि एमटीवी की पूंजी, उत्पाद और ब्रैंड प्रधान संस्कृति ने भारत देश में एक भी जरूरतमंद का भला नहीं किया है उल्टे जड़ों का नाश ही किया है, पर वह महान होने का दंभ भरते हैं।

अभी की उदासीनता आने वाले तीस-चालीस बरस बाद के कुप्रभावों की वजहें बनेंगी, तब कोई आएगा, वजहों को तलाशता हुआ, जो आज हमारे बीच घट रही हैं। चेत जाना जरूरी है... कोई दिन दहाड़े किसी दूसरे को ढब्बू बनाकर चला जाए, छवियों का खेल खेलता हुआ तो मानवीय गरिमा के लिए इससे बुरी बात नहीं।

खैर, रघु और राजीव से हुई इस सामूहिक बातचीत में पूछने के बहुत कुछ था, पर सवालों की सीमाएं भी थी, जगह की मर्यादा भी, नहीं तो उन्हें भी ज्ञात होना शुरू होता कि समाज में बस भेड़ें ही नहीं रहतीं हैं.. 

आप ‘इंडियन आइडल’ के ऑडिशन में गए और जजों से बड़े अग्रेसिव तरीके से पेश आए, क्या वो रियल था?
रघु: मैं सलेक्ट हो भी जाता तो प्रोग्रैम में गाने का वक्त नहीं था। ये एक मजाक था। दरअसल इंडियन आइडल के प्रोड्यूसर हमारे दोस्त थे। उनको प्रमोशन करना था तो मैंने हिस्सा ले लिया।

कोई प्रतियोगी ऑडिशन में गलत भाषा यूज करे तो आप उसे बख्शते नहीं, लेकिन जब चाहे वहां आए लड़कों की मां और बहनों को संबोधित करके गंदी-गंदी गालियां देते हैं?
राजीवः लेकिन गालियां तो हम ब्लर और बीप कर देते हैं..

दर्शक स्मार्ट हैं, उन्हें पता है कि आप कौन सी गाली दे रहे हैं...

राजीवः अगर दर्शक स्मार्ट है तो फिर क्या प्रॉब्लम है।
रघुः आपके पास रिमोट तो होगा ही न, वो पुराना वाला टीवी तो नहीं है जिसमें पास जाकर चेंज करना पड़ता है। तो रिमोट है न, अपना चैनल चेंज कर लो। रिमोट इसी लिए तो होता है।

लेकिन जिन लड़कों की मांएं-बहनें टीवी देखती हैं वो जलील नहीं फील करती होगी कि एक प्रोग्रैम के जज उन्हें सीधी गालियां दे रहे हैं?
राजीवः लेकिन आप बस गालियों पर ही क्यों बात कर रहे हैं, देश में और भी तो मुद्दें हैं बात करने के लिए। जातिवाद, आतंकवाद, सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार उनपर बात क्यों नहीं करते। क्या कभी इनपर बात की है पहले ये बताओ...

अगर अपना मेल अड्रेस दें तो मैं भेज देता हूं कि किस चीज पर क्या बात की और लिखा है...
राजीवः वो तो ठीक है पर बाकी चीजों पर लोग बात क्यों नहीं करते...

फिलहाल तो आप जिन क्षमताओं के साथ बैठे हैं, आपने जो काम किया है उसके बारे में ही बात करूंगा न?

राजीवः देखिए, गालियां फील करके नहीं दी जाती हैं, न ही सुनी जाती हैं। उनका लिट्रल मीनिंग नहीं होता है।

रोडीज पर जो फिल्म बनाने वाले हैं, वो कैसी होगी?
रघुः फिल्म शो के किसी सीजन या एपिसोड्स के बारे में नहीं होगी, बल्कि रोडीज की अवधारणा के बारे में होगी। जैसे अभी हाल ही में रोडीज ने बड़े-बड़े सेलेब्रिटी वाले प्रोग्रैम को हराते हुए 2011 के मैशेबल अवॉर्ड्स में मोस्ट सोशल टीवी शो का खिताब जीता है। इसे इंटरनेट का ऑस्कर माना जाता है। वो एपिसोड नहीं देखते, असर देखते हैं।

लेखक खुशवंत सिंह को एक सोशलाइट महिला राइटर ने “पीनस ओब्सेस्ड ओल्ड मैन” कहा था, जबकि खुशवंत के एक दोस्त ने कहा कि दरअसल समाज की छदम मानसिकता पर चोट करने के लिए वह ऐसा आवरण ओढ़े रखते हैं, असल में वह बड़े सिंपल हैं। क्या आप दोनों भाई भी गुस्से और गालियों का आवरण जानबूझकर बनाकर रखते हैं, ताकि उसके जरिए ऑडिशन जैसी जगहों और दूसरे मंचों पर कुछ धारणाओं पर चोट कर सकें?
राजीवः हमारी पैदाइश, परवरिश और स्कूलिंग सभी हमें प्रभावित करते हैं। उसी से हम बने हैं। मुझे नहीं लगता कि हम समाज के खिलाफ चोट कर रहे हैं। यह इंडिया का पहला रिएलिटी शो है। इसने नौ साल पूरे किए हैं। शो में कई चीजें होती हैं, पैकेजिंग होती है। उसी के तहत सब होता है।
रघु: पहले तो मैं ये मानता हूं कि खुशवंत सिंह की कोई समझ नहीं है उस औरत को। ऐसा बोलकर अगर उसे लगता है कि हाथी का कद छोटा हो जाएगा तो ऐसा नहीं होगा। जिसने भी बोला वो बेकार है। मुक्केबाज बिजेंदर सिंह से कोई नहीं पूछता कि घर में मुक्का मारते हो क्या? या रिंग में ऑपोनेंट का वाइफ की तरह किस लेते हो क्या? ऐसा नहीं होता है न। घर और बाहर अलग अलग होता है।

एक लड़का है जो रोडीज के शोज का रिव्यू करता है यूट्यूब पर, क्या उसे देखते हैं?
राजीवः लोग उसके बारे में नहीं जानते, मैं भी नहीं देखता।
रघुः वो ऑडिशन पर आया था। क्या नाम था उसका... विशाल चोपड़ा नाम था उसका। हमने खूब झाड़ा। तो जाते ही उसने गुस्से में यूट्यूब पर भड़ास निकाली। पर बाद में एमटीवी ने उससे करार कर लिया। अब तो बाकायदा रोडीज पेज पर उसके रिव्यूज हैं और उसके बड़े-बड़े ऐड भी लगते हैं। हम रिव्यूज को बिल्कुल भी महत्व नहीं देते। राजीवः हम चैनल के हैड की नहीं सुनते तो रिव्यूअर की क्या सुनेंगे।

रोडीज के बारे में...
रघु और राजीवः यह अकेला ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां कोई मॉडरेशन नहीं है। जहां कोई टीवी चैनल वाला या कोई मॉरल बुड्ढा बीच में बैठ आपकी बातों को नियमित नहीं करता। ये आजादी से बोलने का अकेला प्लेटफॉर्म है। तमाम बुराइयों के बीच हमें लगता है कि दो तरह के लोग रोडीज देखते हैं। पहली तरह के लोग हार्डकोर फॉलोवर है। दूसरी तरह के लोग कहते हैं, “वो कौन से दो लड़के हैं जो गालियां निकालते रहते हैं”। इन दूसरी तरह वालों को शो के बारे में कुछ भी पता नहीं होता। पर ये वहीं लोग हैं जो यूट्यूब पर छिपकर अनसेंसर्ड एपिसोड डाउनलोड करते हैं और फिर उन्हें डिसकस करते हैं। शो पर बाकी चीजों के अलावा हम इश्यू भी डिस्कस करते हैं। जैसे मौजूदा रोडीज सीजन के ऑडिशन में एक लड़का आया था जिसे थैलेसीमिया हो रखा था।

इस शो के उलट आप दोनों भाइयों का व्यक्तिगत जीवन कैसा है?
राजीवः ये टीवी शो आपके लिए होगा पर हमारे लिए सिर्फ लाइफ है। हम ऐसे ही हैं। शो पर भी और असल में भी।

फिल्मों के ऑफर नहीं आए?
रघु: 'रोडीज-6’ के बाद आया। उससे पहले भी इंडस्ट्री के लोग छोटे-छोटे रोल के लिए बुलाते थे। ज्यादातर एंग्री यंग मैन वाले। पर मैंने किए नहीं। फिर अब्बास टायरवाला की 'झूठा ही सही’ की। फरहा 'तीसमार खां’ बना रही थी। कॉल किया और कहा कि ये फिल्म है, ये रोल है और तुम लोग कर रहे हो। बस। बात खत्म। मैंने कहा ठीक है।

ये शो नहीं कर रहे होते तो?
 राजीवः रोडीज न कर रहा होता तो? फर्क नहीं पड़ता। या बहुत मस्ती करता। अभी तो शो ऑन एयर है।
रघुः किताब लिखनी है, गाने लिखने हैं, ट्रैवल करना है और फैमिली के साथ रहना है।

सबसे बड़ा डर किससे लगता है?
राजीव: हार से।
रघु: वैसे हर चीज से। डर सबको लगता है। उस डर का आप क्या करोगे वही मुद्दा है। मुझे स्पीड, जानवरों और आंटियों से डर लगता है। आंटियों से इसलिए क्योंकि उनसे कोई जीत नहीं सकता है। अगर कोई आंटी मुझसे कुछ पूछे तो कहता हूं आप सही हो आंटी। आप क्या बोलोगे? चंडीगढ़ में एक अखबार के ऑफिस के बाहर एक आंटी मिली। गुस्से में बोली, आप पूरी जेनरेशन को खराब कर रहे हो, राष्ट्र को नष्ट कर रहे हो। मैं क्या कहता। एक बार कॉलेज में हमारी गाड़ी खड़ी थी। सैकंड हैंड डब्बा मारुति। पीछे से दूसरी गाड़ी ने ठोक दिया। पीछे से एक आंटी निकली औंर भड़क गईं। मैंने कहा कि मैं आपसे तो बात ही नहीं कर रहा हूं। पर वो नहीं मानी। बोली कि जाओ बैठो अपनी गाड़ी में और निकलो, मैं क्या करता।

क्या पहले लगता था सफल हो जाएंगे?
राजीवः हमने 1500 रुपये से शुरुआत की, वो पहली तनख्वाह थी। स्कूल टीचर और सब कहते थे कि ये भाई लोग कुछ नहीं कर सकते, बिल्कुल नहीं कमा सकते।

बेस्ट रोडीज?
रघुः बेस्ट रोडीज रहा है रणविजय। उसमें सबकुछ है। वो स्वीटहार्ट भी है, पर लोग ये जानकर क्या करना चाहते हैं।

क्या उन्हें आपके प्रोग्रैम का फायदा मिला?
रघुः अगर रोडीज के प्लेटफॉर्म से किसी को कुछ मिलता है तो वो उनकी मेहनत है, हमारा उससे कोई लेना-देना नहीं है।

आयुष्मान और रणविजय एक्टर बन गए हैं। उन्हें आगे जाते देख कैसा लगता है?
रघुः ये दोनों सबसे अच्छे लगे रोडीज में। हमने आयुष्मान की ‘विकी डोनर’ देखी है, सुपर फिल्म है। तोड़ू फिल्म। दे आर ऑसम। वो और उनकी फैमिली तो हमारी फैमिली जैसे हैं।

कभी धमकी मिली है?
राजीव: मैं तो उतना इंटरनेट पर हूं नहीं, पर वहां धमकियां मिलती हैं।
रघु: इंटरनेट पर तो सब शाहरुख खान और सलमान खान ही बैठे हैं। वहां सब शेर हैं। सामने कोई नहीं आता। हमें किसी की नहीं पड़ी। कुछ भी करे कोई।

डांट किससे पड़ती है?
राजीव: ऑफिस में तो सब हमारे अंडर काम करते हैं तो कोई डांट सकता नहीं। चूंकि अब बड़े हो चुके हैं तो घर में भी कोई नहीं डांटता।
रघु: वाइफ से। अगर आदमी छह महीने बाहर रहेगा तो घर जाकर सुनेगा ही।


ऑडिशन में राजीव आपका छह साल का बेटा कई बार साथ बैठता है, तो वो भी गालियां सुनता होगा?
राजीव: भले ही सुनो और बोलो न। मैं तो कहता हूं, स्कूल में कोई थप्पड़ मारे तो उसे चार मार।
रघु: ये गालियों से लोगों की इतनी सुलगती क्यों है। यार दो न गाली क्या होता है। भाषा के मायने क्या हैं, कम्युनिकेट करना। समझ आता है न। 
राजीव: गालियों से इंटरैक्शन रियल लगता है। ऐसा नहीं लगता कि कैमरे के सामने प्रोग्रैम रिकॉर्ड हो रहा है। असली का लगता है।

सूचना व प्रसारण मंत्रालय ने 'डर्टी पिक्चर का प्रसारण रोक दिया...
रघु: बेवकूफ हैं सा*। इडियट हैं। कौन होते हैं यार, कौन होते हैं, क्या गलत किया है उस फिल्म ने। थियेटर में लोगों ने पैसे लगाकर हिट करवाया है। तुम होते कौन हो रोकने वाले।
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गजेंद्र सिंह भाटी