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Monday, November 21, 2011

हमें हैपी, हिम्मती, परोपकारी और सोशल बनाती हैपी फीट टू

फिल्मः हैपी फीट टू (अंग्रेजी, थ्रीडी, एनिमेटेड)
निर्देशकः जॉर्ज मिलर
वॉयसओवरः एलाइजा वुड, रॉबिन विलियम्स, एलिजाबेथ डेली, पिंक, ब्रेड पिट, मैट डेमन
स्टारः चार स्टार
आपको ऐसा नहीं लगता कि हम लोगों ने बहुत अरसे से एक बहुत अच्छी फिल्म नहीं देखी है? ऐसी फिल्म जो कहीं भी हमारे मनोरंजन में कमी न छोड़े, जिसमें एक पल भी उबासी न लेनी पड़े, जो आपके बच्चों पर रुई के रेशे जितना बुरा असर भी न डाले, बल्कि आपके बचपन वाली परोपकारी, हिम्मती और अच्छा बनने की सीख आपके बच्चों को भी दे और जो सिनेमैटिकली संपूर्ण हो। 'हैपी फीट टू' एक ऐसी ही फिल्म है। सबसे खास बात ये कि फिल्म हमें सोशल बनाती है। एक-दूसरे की परवाह करना सिखाती है। थियेटर में भले ही हम पलायनवादी होकर जाते हैं, पर लौटते हैं कुछ गुण खुद में लेकर। फिल्म जरूर देखें। अगर बिना उम्मीदों के देखेंगे तो ज्यादा ठीक होगा। अपनी फैमिली और बच्चों को ले जाना बिल्कुल न भूलें। साथ ही ये भी याद रखें कि फिल्म इंग्लिश में और थ्रीडी में है। फिल्म में रॉबिन विलियम्स का वॉयसओवर बहुत हंसाता है। स्क्रिप्ट बहुत कसी हुई और समझदार है। 'मैड मैक्स' फिल्मों वाली अनोखी सीरिज बनाने वाले डायरेक्टर जॉर्ज मिलर ने 'हैपी फीट' की इस सीक्वल पिक्चर में भी खरा उतरकर दिखाया है। कोई शक नहीं कि अपने समकालीन निर्देशकों के मुकाबले जॉर्ज ज्यादा सार्थक मनोरंजन रचते हैं।

कहानी जिंदगी सिखाते पेंगुइन्स की
ये एंपरर पेंगुइन लैंड है। रिद्म, नाच, गाने और खुशियों से भरी कॉलोनी। अपनी वाइफ ग्लोरिया (पिंक) और बेटे ऐरिक (एलिजाबेथ डेली) के साथ हमारा जाना-पहचाना टैप डांसर मम्बल (एलाइजा वुड) रहता है। मम्बल पिता बनना सीख रहा है तो ऐरिक बचपन के सपने और इरादे छू-तलाश रहा है। असफल कोशिशों के बाद ऐरिक के मन में न नाच पाने का डर बैठ गया है। पर उसे उडऩे वाले पेंगुइन स्वेन (हैंक अजारिया) में अपना आदर्श दिखता है। पेंगुइन उड़ नहीं सकते पर ऐरिक गलतफहमी पाले है। खैर, इसी बीच एंपरर लैंड और इसके सारे पेंगुइन बड़ी मुसीबत में फंस जाते है। अब मम्बल को कुछ करके सभी को बचाना है।

किरदारों के पीछे की वॉयस
मम्बल: 'द लॉर्ड ऑफ द रिंग्स' वाले एलाइजा वुड ने मम्बल को आवाज दी है। उन्हें सुनकर लगता भी है कि वह नए-नए पेंगुइन पिता बने हैं।
ऐरिक: एलिजाबेथ डेली ने शिशु पेंगुइन को बेमिसाल आवाज दी है। पतली सी, मासूम और दिल भर देने वाली आवाज। एलिजाबेथ ने ही 'बेब: पिग इन सिटी' में बेब पिग को चमत्कारिक आवाज दी थी।
रेमॉन: द ग्रेट रॉबिन विलियम्स। रेमॉन के साथ उन्होंने रंगबिरंगी स्वेटर वाले पेंगुइन लवलेस का वॉयसओवर भी किया है। फिल्म में जब भी रॉबिन की आवाज सुनाई पड़ती है, हर शब्द पर खासतौर पर लड़कियां हंसती है। रेमॉन के दिलफेंक आशिक के रोल को उन्होंने अमर सा किया है। बेमिसाल।
ग्लोरिया: ऐरिक की मां ग्लोरिया की आवाज बनी हैं पिंक। उनका वो सीन याद रहता है जहां वो नाराज ऐरिक को समझाने के लिए अपने हस्बैंड मम्बल को इशारे में ही दूर चले जाने को कहती है और फिर गाना गाता हैं।
विल और बिल: ये दोनों क्रिल यानी कुछ संतरी रंग के झींगे बड़े खास हैं। इवॉल्यूशन और प्रकृति को किसी क्रांतिकारी नजर से देखते पहले झींगे विल को आवाज देते हैं ब्रैड पिट और उनके भोले-पक्के दोस्त बिल बनते हैं मैट डेमन। यकीन जानिए, पूरी फिल्म में इन दोनों की आवाज ऐसी रहती है कि हम पहचान नहीं पाते कि वॉयसओवर किसका है। हां, कहीं-कहीं मैट डेमन की आवाज पकड़ में आती है।

बहुत सी कहानियां और रिश्ते
फिल्म में कई कहानियां चलती हैं। नन्हे ऐरिक से पिता का अलग रिश्ता चलता है तो मां उसे अलग तरीके से सिखाती, शांत करती है। ठीक वैसा ही जैसा हमारे घरों में होता है। फिर अपनी मुश्किलों के बीच मम्बल का पहले एलीफेंट सील की मदद करना। उसकी जान बचाना। यहां से इन दोनों का एहसान वाला रिश्ता बन जाता है। यहां तक कि सील के दो बच्चों से नन्हे पेंगुइन ऐरिक का भी नजर ही नजर में दोस्ताना हो जाता है। रेमॉन अपनी प्रेमिका ढूंढ रहा है। पहले-पहल हमें लगता है कि वह बस फ्लर्ट करने और जगह-जगह मुंह मारने वाला मूर्ख है, पर हम गलत साबित होते हैं। आखिर में वह खुद को बड़बोला मगर सच्चा साबित करता है। स्वेन पेंगुइन होकर भी उड़ता है इसके दीवाने पूरे एडली लैंड वाले पेंगुइन हैं, पर वह मन ही मन किसी उलझन से गुजर रहा है। जो मुसीबत एंपररलैंड के पेंगुइन्स पर आती है, तो सबकी कलेक्टिव कहानी बनती है। फिर दूसरे लैंड से पेंगुइन्स का एक आवाज पर मदद के लिए चले आना कमाल है।

अविस्मरणीय हैं पल
# नाचते हुए नन्हा ऐरिक फिसलकर गिर जाता है और औंधे मुंह बर्फ में धंसता है। किसी शिशु की तरह डर के मारे वह सुसु कर देता है। सब हंसते हैं और शर्म के मारे वह कांपने लगता है। विस्मयकारी। अब कांपते हुए वह हिचकियां सी लेने लगता है, जैसे अब वह फूट-फूटकर रोने लगेगा। वह खाई में छिप जाता है और उसे मां ग्लोरिया, पिता मम्बल, दोस्त बॉडिका और एटिकस और यहां तक कि रेमॉन भी अपने-अपने तरीके से मनाते हैं।
# जब वह फिर फिल्म में दूसरी बार रोने को होता है तो मां ग्लोरिया अपने पति को आंख के इशारे से दूर भेज देती है ताकि वह अकेले में एक मां की तरह उसे शांत कर सके। बताइए ऐसा आपने कितनी बार हमारी फिल्मों में देखा है।
# बीच मास्टर नाम का एलीफेंड सील जब खाई में गिर जाता है तो उसके दो बच्चे अपनी पतली सी मासूम आवाज में डैडी-डैडी पुकारते हैं। ये वॉयसओवर ऐसा है कि आपकी आंखें नम हो जाती है।
# पहले मदद के लिए हजारों पेंगुइन्स का आना और फिर सैंकड़ों एलीफेंट सील का, अद्भुत इमेज रचता है। कुछ ऐसा ही होता है जब उसी बर्फ के नीचे समंदर में लाखों झींगे रंगीन जगमगाहट पैदा करते हैं।
# मूवी में हर सॉन्ग और उसका विजुअल पिक्चाराइजेशन सम्मोहित कर देने वाला है। जिन्हें अंग्रेजी नहीं भी आती वो भी गानों की रिद्म को अपने शरीर में महसूस करते हैं।
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गजेंद्र सिंह भाटी

Saturday, September 10, 2011

सोडरबर्ग का इंफेक्शन, एक ईमानदार कोशिश

फिल्म: कंटेजियन (अंग्रेजी)
निर्देशक: स्टीवन सोडरबर्ग
कास्ट: मैट डेमन, केट विंस्लेट, ग्वेनैथ पॉल्ट्रो, जूड लॉ, मेरियन कोटिलार्ड, लॉरेंस फिशबर्न
स्टार: तीन, 3.०

'कंटेजियन' को देखने से पहले मैं फिल्म के बारे में कुछ भी नहीं जानता था, तो उसे बिना किन्हीं उम्मीदों के देख पाया। चूंकि निर्देशक स्टीवन सोडरबर्ग के सिनेमा से भी वाकिफ हूं तो यहां उनके उस एफर्ट को समझ पाया जो उन्होंने 'बबल', 'सेक्स लाइज एंड वीडियोटेप्स' और 'चे' बनाकर किया था। संक्रमण, वायरस या फ्लू पर बनने वाली हॉलीवुड़ फिल्मों में लोगों के डर और मानवता पर खतरे के इमोशन को फिल्म में लार्जर देन लाइफ बनाकर भुनाया जाता है। लोगों को जॉम्बी बनाकर, सूने हो चुके शहर की सड़कें दिखाकर, न्यूक्लियर यूज के साथ आर्मी को लाकर और एक-दो लोगों को हीरो बनाकर एक धांसू एंटरटेनिंग फिल्म बना दी जाती है। जो कोई बुरी बात नहीं है, पर यहां ऐसा नहीं है। केट विंस्लेट, ग्वेनैथ पॉल्ट्रो और मेरियन कोटिलार्ड यूं आती और चली जाती हैं जैसे सोडरबर्ग के लिए उनकी फिल्म की कहानी से जरूरी और ऊंचा कोई नहीं है। इस फिल्म में हम ऐसी भयावह बीमारियों के उभरने और फैलने के प्रोसेस को समझते हैं। जान पाते हैं कि कैसे गवर्नमेंट एजेंसियां काम करती हैं। कितनी बेइमानी और ईमानदारी से। ये भी कि सरकारों के लिए मुश्किल वक्त आने पर जनता कितनी कम जरूरी हो जाती है। ऐसे किरदार भी दिखते हैं जो हकीकत जानते हैं और लोगों की मदद कर सकते हैं पर उन्हें दबा दिया जाता है। मसलन यहां जूड लॉ का किरदार, जो मल्टीनेशनल कंपनियों पर कमेंट करता है और लगातार बोलता रहता है। इतनी जानकारी देने और मानवता पर आन पड़ी आपदा को सरल तरीके से दिखाने के गुण के बावजूद फिल्म कोई डॉक्युमेंट्री नहीं लगती, एक संपूर्ण हॉलीवुड फिल्म लगती है। पहली बात ये कि 'कंटेजियन' बोरिंग नहीं है, दूसरी ये कि ये मसाला एंटरटेनर भी नहीं है। हां, इतना जरूर है कि '28 डेज लेटर', 'रेजिडेंट ईविल' और 'आउटब्रेक' जैसी फिल्मों के बीच हमें इस फिल्म जैसी बेहद ईमानदार कोशिश नजर आती है। डैनी बॉयेल की '28 डेज लेटर' में हम देखते हैं कि चिंपाजिंयों पर हुए क्रूर मानवीय प्रयोगों से पैदा हुआ वायरस कैसे 28 दिन बाद शहर को खाली कर देता है, वहीं इस फिल्म में उन 28 दिन तक हम कैसे पहुंचते हैं, ये देखते हैं। सुलझी हुई इस बेहद मैच्योर फिल्म को एक बार जरूर देखना चाहिए।

जमीन से जुड़ी कहानी
हॉन्ग कॉन्ग में अपनी बिजनेस ट्रिप से अमेरिका लौटी बैथ (ग्वेनैथ पॉल्ट्रो) अगले दिन अपने घर में बेहोश होकर गिर जाती है। हस्बैंड मिल्च (मैट डेमन) अस्पताल ले जाता है पर डॉक्टर उसे मृत घोषित कर देते हैं। धीरे-धीरे अमेरिका और दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी लोग इस वायरस से इन्फैक्टेड होने लगते हैं और मौतें होने लगती हैं। चमगादड़ और सूअर के जरिए फैले इस वायरस की तह तक जाने में डब्ल्यूएचओ, अमेरिकी डिजीज कंट्रोल और प्रिवेंशन सेंटर और बाकी एजेंसियां एक्टिव हो जाती हैं। फिर कहानी में एक ब्लॉगर-जर्नलिस्ट एलन (जूड लॉ) आता है, जो शुरू से सब कुछ जानता है पर कोई उसकी सुनता नहीं। वैकल्पिक मीडिया में उसके लाखों फॉलोवर बनते हैं और साथ ही साथ गवर्नमेंट की फेल हो चुकी लीडरशिप, ध्वस्त शहरी ढांचा और बेबस अमेरिकी जनता दिखती है। फिल्म की कहानी में मौजूद हर मैलोड्रमैटिक संभावना को कम से कम बढ़ाने-चढ़ाने की कोशिश की गई है।

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गजेंद्र सिंह भाटी