Sunday, November 20, 2011

जाने को बड़ी औसत है ये शकल

फिल्मः शकल पे मत जा
निर्देशकः शुभ मुखर्जी
कास्टः सौरभ शुक्ला, रघुवीर यादव, शुभ मुखर्जी, प्रतीक कटारे, हर्षल पारेख, चित्रक बंधोपाध्याय, आमना शरीफ, जाकिर हुसैन
स्टारः ढाई, 2.5'शकल पे मत जा’ की बनावट ऐसी है कि पैशनेट काम और कुछ अच्छे पलों के बावजूद आप तृप्त होकर इसकी तारीफ नहीं कर पाते हैं। बहुत सारी कसक और बोरियत मन में रह जाती है। फिल्म शुरू होते ही क्रेडिट्स के साथ दिल्ली की सड़कों पर बहुत तेजी से कैमरा दौड़ाती है। बहुत अच्छा लगता है। फिर हम सीआईएसएफ के देसी जवानों और इन चारों अजीब से बर्ताव करने वाले लड़कों की बातों को सुनते हैं। लगने लगता है कि फिल्म किसी इमैच्योर ने बनाई है। यहां से कहानी को रोचक बनाए हुए आगे ले जाने में बहुत बार गलतियां होती हैं। खुद अंकित के रोल में डायरेक्टर शुभ ही अपने डायलॉग रिपीट करते रहते हैं। 'घासमांडू’, 'लग गई’ और 'फट गई’ जैसे उनके कर्स वर्ड बहुत बारे ठूसे हुए लगते हैं। उनके एक्सप्रेशन बहुत ही लिमिटेड हैं। फिल्म में जान आती है तो सौरभ शुक्ला के आने से, पर फिर वही होता है डायरेक्शन की दिशा का गुम जाना। अगर कुछ अच्छे डायलॉग, फनी हालात और जरा एंटरटेनिंग क्लाइमैक्स न होता तो ये फिल्म नहीं देखने लायक हो जाती। पर फ्रेंड्स के साथ एक बार देख सकते हैं। थोड़ा मजा आएगा। अगर कुछ और बेहतर देखने को है तो मूवी को टाल सकते हैं।

एक्टर कैरेक्टर और उनका असर
सौरभ शुक्ला: चौहान के रोल में उनकी वाइफ का नाम सविता होना और लड़कों के बैग से निकली सविता भाभी की कॉमिक्स का लिंक भिडऩा हंसाता है। उनकी एंट्री अच्छी होती है, मगर बाद में वो अच्छे, बुरे और ढीले लगते हैं। फिल्म की सबसे मजबूत कड़ी हैं।
रघुवीर यादव: ओमप्रकाश के रोल में उनसे हरियाणवी इतना अच्छा नहीं बना गया। पूरी मूवी में वो 'तेरी भैण का तेरी’ बोलते रहते हैं। चार-पांच बार तो बहुत हंसी आती है, उसके बाद नहीं। रघुवीर का पूरा यूज निर्देशन में
नहीं हुआ। इनका एक डायलॉग याद रहता है, 'बातें तो ऐसी कर रहे हैं जैसे लाल किले को सफेद कर देंगे रात भर में।
शुभ मुखर्जी: फिल्म बहुत बार कन्फ्यूज्ड लगती है तो अंकित के रोल में इनकी एक्टिंग और एक्सप्रेशन के कारण। तुलनात्मक रूप से डायरेक्शन ठीक-ठाक।
प्रतीक कटारे: चाइल्ड आर्टिस्ट प्रतीक अपने किरदार ध्रुव में कुछ खास नहीं कर पाते। बस उनका एक डायलॉग ही याद रहता है, 'मैं छोटा शकील नहीं, वकील बनना चाहता हूं।'
चित्रक: रोहन के रोल में अमेरिकन एक्सेंट की इनकी तुड़ी-मुड़ी हिंदी हजम नहीं होती। शुरू में तो हमें समझना पड़ता है। फिल्म बहुत आगे बढ़ जाती है तो हम कनविंस होते हैं। फिर भी इनका गेटअप और भोंदूपन कहानी को
इंट्रेस्टिंग रंग देता है।
हर्षल: बुलाई के रोल में हर्षल भी रोहन की तरह हमारी नजरों में चढऩे में वक्त लेते हैं। पर उनकी एक्टिंग में चित्रक की ही तरह कोई खामी नजर नहीं आती। हिंदी सिनेमा का एक और भोला किरदार।
आमना शरीफ: अमीना के रोल में आमना शरीफ को न भी लेते तो चलता। यूजलेस।
जाकिर हुसैन: टेरेरिस्ट ओमामा के रोल में जाकिर 'तेरे बिन लादेन’ के मजाकिया ओसामा की याद दिलाते हैं। पर उनका (आदित्य लखिया का भी) अरबी और उर्दू जैसे कुछ बने-बनाए अजीब शब्द (मसलन, अल बकायदा) बोलना पकाता है। दोष दूंगा निर्देशक और राइटर को।

ये है कहानी
दिल्ली एयरपोर्ट में सीआईएसएफ के गाड्र्स ने चार लड़कों को एक लैंड कर रही अमेरिकी एयरलाइंस का वीडियो बनाते हुए पकड़ा है। ये हैं अंकित शर्मा (शुभ मुखर्जी) उसका छोटा भाई ध्रुव (प्रतीक कटारे), लंबे बालों वाला भोला दोस्त बुलाई (हर्षल पारेख) और हिंदी कम समझने वाला भोंदू दोस्त रोहन मल्होत्रा (चित्रक बंधोपाध्याय)इंस्पेक्टर ओमप्रकाश (रघुवीर यादव) इनसे पूछ-पूछकर थक जाता है और उसे कुछ संदिग्ध लगता है तो एटीएस ऑफिसर चौहान (सौरभ शुक्ला) को बुला लेता है। इस एयरपोर्ट पर आतंकियों और बम धमाके की पक्की सूचना आती है और इस बीच ये चारों फंसे हुए हैं। फिर कहानी में असली आतंकियों की एंट्री होती है। क्लाइमैक्स भागमभाग भरा है।

आखिर में...
फिल्म में रघुवीर यादव और उनकी एयरपोर्ट सिक्योरिटी में लगी सीआईएसएफ टीम में ज्यादातर हरियाणवी हैं। रघुवीर भी तेरी भैंण की तेरी... बोलकर ही हरियाणवीपन दिखाने की कोशिश करते हैं पर असफल रहते हैं। असली हरियाणवी छाप तो हमारी फिल्मों में वो कैरेक्टर आर्टिस्ट ही ला पाया है जो 'दिल से में अमर वर्मा बने शाहरुख को थप्पड़ जड़ता है और 'रॉकस्टार में बस स्टैंड पर गिटार बजाते जर्नादन जाखड़ को।
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गजेंद्र सिंह भाटी

Sunday, November 13, 2011

अचरज भरे टिनटिन, स्नोई और हैडॉक

फिल्म: एडवेंचर्स ऑफ टिनटिन: सीक्रेट्स ऑफ यूनीकॉर्न
निर्देशक: स्टीवन स्पीलबर्ग
कास्टः जेमी बेल, एंडी सर्किस, डेनियल क्रेग, साइमन पेग, निक फ्रॉस्ट
स्टारः साढ़े तीन स्टार, 3.5


बहुत वक्त बाद स्टीवन स्पीलबर्ग का नाम बतौर डायरेक्टर बड़े स्क्रीन पर देखा। साथ में प्रॉड्यूसर बने पीटर जैकसन का भी। दोनों फिक्शन और कंप्लीट एंटरटेनिंग फिल्में बनाने वाले दिग्गज हैं। कोई शक नहीं कि 'द एडवेंचर्स ऑफ टिनटिन: द सीक्रेट्स ऑफ द यूनीकॉर्न’ में हम एक भी खामी नहीं ढूंढ पाते। शर्तिया कह सकता हूं कि परफॉर्मेंस कैप्चर एनीमेशन के जरिए बनी इस फिल्म के किरदार जितने एक्सप्रेशन दे पाते हैं उतना दुनिया के आधे से ज्यादा असल एक्टर्स भी नहीं देते। थॉम्पसन एंड थॉम्पसन ब्रदर्स (साइमन पेग और निक फ्रोस्ट) फनी हैं। इतने कि हमें किसी जिंदा जॉनी लीवर या राजपाल यादव की जरूरत हंसने के लिए नहीं पड़ती। इसमें इनका पर्स चोर के घर पहुंचकर मूर्खता करने वाला सीन कमाल है। सामने हजारों चोरी के पर्स सजे हैं और चोर के मुंह से खुद को क्लेप्टोमैनिया (चोरी की आदत) का मरीज बताने के बावजूद ये दोनों उसका मतलब कुछ और लगाते हैं। ये स्क्रीनप्ले की बारीकी और कसावट है। यही वजह है कि आप ये भी नहीं अंदाजा लगा पाते कि ये फिल्म टिनटिन की तीन बड़ी कॉमिक बुक्स कहानियों को मिलाकर बनाई गई है। फिल्म का फ्लो कमाल का है। बच्चे, बड़े और जवान सबको मूवी स्मार्ट लगती है। कैप्टन हैडॉक को अपने हाव-भाव, एक्सप्रेशन और आवाज देने वाले एंडी सर्किस वही हैं जिन्होंने 'द लॉर्ड ऑफ द रिंग्स’ में गोलम के सबसे इंट्रेस्टिंग किरदार को आवाज दी थी। बहुत अच्छी फिल्म है, फैमिली फिल्म है, बच्चों को जरूर देखनी चाहिए।

एडवेंचर टिनटिन के
टिनटिन (जेमी बेल) बहुत यंग और बहादुर खोजी जर्नलिस्ट है। पूरे घर की दीवारें उसके अचीवमेंट की कतरनों से मढ़ी हुई हैं। इन अचीवमेंट्स में बराबरी का साथी है उसका बर्फ सा सफेद डॉगी स्नोई। इस यूरोपियन कस्बे की एक दोपहरी में टिनटिन एक लकड़ी की शिप 'यूनीकॉर्न’ का मॉडल खरीदता है। यहीं से विलेन इवान सेखरीन (डेनियल क्रैग) और एक और आदमी यूनीकॉर्न को पाने के लिए टिनटिन के पीछे पड़ जाते हैं। इस शिप में छिपाए किसी कागज को पाने के लिए सेखरीन टिनटिन को किडनैप कर एक जहाज में बंद कर देता है। यहां जहाज का असली कैप्टन हैडॉक (एंडी सर्किस) भी बंद है। पर नशे में धुत्त। फिर स्नोई संग दोनों भाग निकलते हैं और एक रेगिस्तान में पहुंच जाते हैं। हैडॉक को मृगतृष्णा की वजह से अपने पुरखों की कहानियां याद आने लगती हैं। उसे दिखता है कि 17वीं सदी में उसके पुरखे सर फ्रांसिस हैडॉक असली यूनीकॉर्न जहाज के कैप्टन थे और एक लुटेरे जहाज से लड़ते हुए उन्होंने खजाने से भरा ये जहाज समंदर में डुबो दिया। और उसकी लोकेशन तीन यूनीकॉर्न मॉडल में छिपा दी। यहां से टिनटिन और हैडॉक आगे बढ़ते हैं और सेखरीन का सामना करते हुए अपने एडवेंचर को अंजाम देते हैं।

सीन, स्टंट और किरदार
# एनीमेशन वर्क किस स्तर का है ये समझने के लिए वो सीन देख लेना काफी होगा जहां टिनटिन मोटरसाइकिल पर बैठ उड़ती चील का पीछा कर रहा है और बगार शहर की गलियों, तारों और छतों पर हैरतअंगेज ढंग से स्टंट कर रहा है।
# 'अवतार’ और 'अप’ के बाद अगर कोई अचरज दिलाने वाली स्मार्ट एनीमेशन और स्क्रीनप्ले फिल्म आई है तो वो ये है।
# काले-भूरे खतरनाक से बुलडॉग को डराता सफेद सा छोटा स्नोई कितना रियल लग सकता है, देखकर हैरानी होती है। बावजूद इसके सीन सॉफ्ट और चुस्त बना रहता है।
# टिनटिन का किरदार स्टीवन स्पीलबर्ग की फिल्मों के खोजी किरदारों सा ही लगता है। इसमें 'इंडियाना जोन्स’ के हैरीसन फोर्ड जब दुर्लभ आर्टिफेक्ट्स ढूंढने निकलता है तो कैसे इस प्रोसेस पर पग-पग पर खुद से सवाल-जवाब करता है और डिस्कस करता है। वही टिनटिन भी करता है। हर स्टेप पर खुद से सवाल-जवाब।
# जब आप एनीमेशन को और परखना चाहें तो रेगिस्तान में पहुंचे कैप्टन हैडॉक की गर्दन के बाल और हाथ की बनावट को देखिएगा। मैंने इतना इंसानी हाथ आज तक किसी एनीमेशन मूवी में नहीं देखा।

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गजेंद्र सिंह भाटी

Saturday, November 12, 2011

रेनेसां पेंटिंग जैसी पर बेजान: तरसेम सिंह की इममॉर्टल

फिल्म: इममॉर्टल
निर्देशक: तरसेम सिंह धंडवर
कास्ट: हैनरी केविल, मिकी राउर्की, ल्यूक इवॉन्स, फ्रेडा पिंटो, स्टीफन डॉर्फ, जॉन हर्ट
स्टार: दो, 2.0

सुकरात की लाइन 'आत्मा सबकी अमर होती हैं, पर जो सदचरित्र होते हैं उनकी आत्माएं देवीय हो जाती हैं' से डायरेक्टर तरसेम सिंह अपनी फिल्म का आधार बनाते हैं। इंडिया मूल के हैं और अलग फिल्में बनाते हैं। न समझ आने वाले संकेतों, अब्सट्रैक्ट किरदारों और आर्टिस्टिक से फ्रेम वाली। समझना हो तो उनकी 2006 में आई फिल्म 'द फॉल' देख लीजिए। फिल्म जबरर्दस्त थी, पर आम दर्शकों की समझ से परे। खैर, जैसा उन्होंने खुद कहा था, ये फिल्म रेनेसां काल की पेंटिंग जैसी लगती है, पर इसी से दर्शक के लिए फिल्म के टाइम और कहानी को समझना कठिन होता जाता है। अगर कहूं तो इससे ज्यादा स्पष्ट फिल्म '300' थी। इस फिल्म में सबसे मजबूत पहलू है विलेन बने मिकी राउर्की, जो 'आइरन मैन 2' में वैंको के रोल में रेसट्रैक पर इलैक्ट्रिक चाबुक से कारों को पपीते की तरह काटते नजर आते हैं। 'इममॉर्टल्स' में अगर ये विलेन मजबूत है तो हीरो हैनरी कमजोर। एक तो फिल्म के स्क्रीनप्ले और डायलॉग्स में जान नहीं है और दूसरा लड़ाई वाले सीन छोड़ दें तो हैनरी की एक्टिंग में गुस्सा और इंटेंसिटी नहीं है। जिसने भी ड्रेस और सेट डिजाइन किए हैं वो बहुत बड़ा कामचोर रहा होगा। फिल्म को हम इंडिया में फ्रेडा पिंटो के एंगल से कनेक्ट कर रहे हैं, पर उन्हें देखकर आप पक जाते हैं। आपको किसी स्कूली स्टेज प्ले की रिहर्सल भी शायद इस फिल्म से बेहतर मिलेगी। रही-सही कसर थ्रीडी का अतिरिक्त अंधेरा पूरा कर देता है। काश, जैसे उम्दा कुछ बेरहमी के सीन है, उतनी ही पूरी फिल्म भी हो पाती। माइथोलॉजिकल फिल्मों को फॉलो करने वाले एक बार देख सकते हैं, बाकी न देखें तो अच्छा होगा।

इममॉर्टल होने की कहानी
ग्रीक माइथॉलजी में कहीं हजारों साल पहले की बात है। किंग हाइपरियॉन (मिकी राउर्की) ने मानवता के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया है। उसे उस धनुष की तलाश है जिसे युद्ध के देवता एरस ने बनाया था। धनुष मिलेगा तो वह टाइटन्स नाम के उन बर्बर लड़ाकों को कैद से आजाद करवा देगा जिन्हें देवताओं ने कैद कर दिया था। इनके आजाद होने पर हाइपरियॉन अजेय हो जाएगा। वहीं राज्य में थीसियस (हैनरी केविल) रहता है। गरीब, बहादुर, निडर। उसे बचपन से ही एक बुजुर्ग के वेश में रहने वाले देवता ज्यूस (जॉन हर्ट) ने तैयार किया है। पर ये थीसियस पर है कि वो मानवता की इस लड़ाई में नेतृत्व करना चाहता है कि नहीं। पर जब हाइपरियॉन उसकी आंखों के सामने उसकी मां का गला रेत देता है तो उसकी दिशा बदल जाती है। इस लड़ाई में उसके करीबी सहयोगी हैं भविष्यवाणी करने वाली ओरैकल पायेद्रा (फेडा पिंटो) और एक चोर स्टावरोस (स्टीफन ड्रॉफ)।

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गजेंद्र सिंह भाटी

Wednesday, November 9, 2011

देखें अपंग विंटर की हेल्दी कहानी

फिल्मः डॉल्फिन टेल (अंग्रेजी)
निर्देशकः चार्ल्स मार्टिन स्मिथ
कास्टः नाथन गैंबल, कोजी जूल्सडॉर्फ, हैरी कॉनिक जूनियर, मॉर्गन फ्रीमैन, एश्ले जूड, ऑस्टिन स्टोवल
स्टारः साढ़े तीन स्टार, 3.5

जापान में हर साल होते 20,000 मासूम डॉल्फिनों के गुप्त नरसंहार पर बनी थी 2009 में आई ऑस्कर विनर डॉक्युमेंट्री ' कोव'। कोव मतलब आड़, ओट, खंदक या खोह। इस फिल्म के डायरेक्टर और नेशनल जियोग्रैफिक के फोटोग्रफर लूई फिहोयो ने शुद्ध पानी में रहने वाली इस बेहद सेंसेटिव और सोशल मछली की करूण कहानी पर अदभुत फिल्म बनाई। दो साल बाद डायरेक्टर चार्ल्स मार्टिन स्मिथ लेकर आए हैं एक सच्ची घटना पर बनी 'डॉल्फिन टेल'। फिल्म बेहद पवित्र, सरल और सिनेमैटिकली संपूर्ण सी है। असल में विंटर नाम की वो डॉल्फिन आज भी जिंदा है और स्वस्थ है। शायद दुनिया की अकेली ऐसी डॉल्फिन जो अपनी तैरने वाली पूंछ कटने पर भी जिंदा है और जिसे कृत्रिम पूंछ लगाई गई। बच्चे खासतौर पर इस फिल्म को देखें। पानी और मछलियों को छूने के उस चाव को महसूस करने के लिए जो शायद बचपन वाले ही कर पाते हैं। मासूम बने रहने के लिए देखें। फिल्में सार्थक होती हैं ये मानने के लिए देखें। फैमिली के बड़े भी साथ इसलिए देखें क्योंकि ऐसी हेल्दी मूवीज बहुत कम आती हैं। ये कोई 'लूट', 'बॉडीगार्ड', 'रेडी' और 'गेम' नहीं है, पर इतना दावा है कि पूरे वक्त आप गाल पर अपनी कलाई टिकाए फिल्म में डूबे रहेंगे।

डॉल्फिन की टेल यूं है...
सोयर नेल्सन (नाथन गैंबल) दिखने में 9-10 साल का लड़का है। वैसे तो छोटे हैलीकॉप्टर बनाने का शौकीन है पर अपने स्वीमिंग चैंपियन कजिन ब्रदर काइल (ऑस्टिन स्टोवल) से बहुत प्रेरित है। चाहता है कि काइल ओलपिंक्स तक जाए। मगर काइल फौज में चला जाता है। अब बुझा-बुझा रहने वाला सॉयर एक दिन समंदर किनारे एक घायल बॉटलनोज डॉल्फिन को देखता है। उसका फंदा काटता है और सहलाता है। उसके बाद से उस मरीन हॉस्पिटल जाने लगता है जहां उसे रखा गया है। वैसे तो यहां के डॉक्टर क्ले (हैरी कॉनिक जूनियर) किसी सिविलियन को आने नहीं देते, पर चूंकि ये डॉल्फिन सॉयर को देख खुश होती है इसलिए उसे आने देते हैं। डॉ. क्ले की बेटी हैजल (कोजी जूल्सडॉर्फ) इसका नाम विंटर रखती है। घाव ज्यादा होने के कारण विंटर की पूंछ काटनी पड़ती है। कहानी आगे बढ़ती है तो विंटर को कृत्रिम पूंछ दिलाने के लिए, इस मरीन हॉस्पिटल को बिकने से रोकने के लिए और बिना अंगों के लोगों को प्रेरणा देने के लिए। फिल्म सच्ची कहानी पर बनी है।

मनोरंजन का अलग पैमाना
'डॉल्फिन डेल' जैसी फिल्मों का जॉनर बिल्कुल अलग होता है। ये पूरी तरह फिल्मी होती हैं लेकिन असली कहानी के हूबहू करीब। फिल्म के आखिर में क्रेडिट्स के साथ असली विंटर के विजुअल्स दिखाए जाते हैं। कि कैसे 2005 में वह फ्लोरिडा के तट से बचाई गई, कैसे पूंछ काटने के बाद वह बची और कैसे इस पूरे अभियान से फ्लोरिडा के लोग, विकलांग सैनिक और बच्चे जुड़े। थ्रीडी की वजह से ऐसे लगता है जैसे ये कहानी असल में हम होती देख रहे हैं। सॉयर का रोल करने वाले नाथन गैंबल 'ऑगस्ट रश' के मासूम से चाइल्ड एक्टर फ्रेडी हाइमोर की याद दिलाते हैं। हर एक्टर का इस फिल्म में संतुलित रोल है। इस तरह की फिल्मों को बना पाना इसलिए बहुत मुश्किल होता है क्योंकि इनमें इमोशन उभारने में सबसे ज्यादा जोर आता है। फिल्म के डायलॉग भी इसी तर्ज पर कम से कम शब्दों वाले और प्रभावी हैं। सबसे ज्यादा बोलते हैं तो मूवी के विजुअल्स।*************
गजेंद्र सिंह भाटी

प्युर्ते रिको की रम से लिखा नॉवेल

फिल्मः रम डायरी (अंग्रेजी)
निर्देशकः ब्रूस रॉबिनसन
कास्टः जॉनी डेप, एरॉन एकार्ट, माइकल रिस्पोली, जियोवानी रिबिसी, एंबर हर्ड
स्टारः ढाई स्टार, 2.5

ऐसी जो डायरी वाली फिल्में होती हैं, उनकी कोई मनचाही कहानी और अंत नहीं होता। ये दर्शक के भीतर छिपे नॉवेल पढऩे के इंट्रेस्ट और कुछ लिखने के लिए प्रेरणा ढूंढने की कोशिशों के कारण बहुत अच्छी लगती हैं। चाहे वो डायरेक्टर वॉल्टर सालेस की कम्युनिस्ट लीडर चे गुवेरा पर बनाई फिल्म 'मोटरसाइकल डायरीज' हो या 1961 में लिखे हंटर थॉम्पसन के नॉवेल पर बनी ये फिल्म 'द रम डायरी'। डायरेक्टर ब्रूस रॉबिनसन 19 साल बाद डायरेक्शन में लौटे हैं और शायद यही वजह है कि फिल्म में गहराई है, प्युर्ते रिको का खुरदरापन, धूल और नमी है पर कहीं-कहीं भटकाव है। तब के वक्त, जर्नलिज्म के हालात, निक्सन और अमेरिकी पूंजीवाद के रेफरेंस साफ दिखते हैं। पत्रकारिता में एड रेवेन्यू के लिए समस्याएं नहीं पॉजिटिव स्टोरी लाने की बात करता एडिटर-इन-चीफ है, जो लोगों को राशिफल बताकर राजी है। रियल एस्टेट माफिया प्युर्ते रिको के सुंदर तटों और टापुओं पर होटलें बनाने के प्लैन बना रहे हैं, उनके पास सारे साधन है और जब तक पॉल कैंप की कलम जागती है तब तक अखबार बंद हो जाता है। जॉनी डेप और जियोवानी रिब्सी को एक फ्रेम में देखना सुखद रहा। दोनों असाधारण एक्टर हैं। अफरा तफरी के सीन में ' नाइंथ गेट' के खोजी कॉर्सो की तरह लगते हैं। बाकी फिल्म में बॉब के मुर्गे की लड़ाई है, रम के जाम है, सिगरेट पर सिगरेट है और धूल मिला पसीना है। ढाई स्टार फिल्म की विस्तृत पहुंच नहीं हो पाने की वजह से है, फिल्म में किसी कमी के कारण नहीं।


रम डायरी में क्या
पॉल कैंप (जॉनी डेप) न्यू यॉर्क टाइम्स का जर्नलिस्ट है। 1960 के करीब आइजनहावर प्रशासन के वक्त की बात है। न्यू यॉर्क और अमेरिका से ऊबकर वह प्युर्ते रिको का रूख करता है। वहां एक छोटे अखबार 'द सेन जुआन स्टार' में काम करने के लिए। यहां की खुरदरी जमीन और सच्चाइयों से उसका वास्ता होता है। उसकी पत्रकारी कलम बोलना चाहती है, पर बोल नहीं पाती। बिजनेसमैन सैंडरसन (एरॉन एकार्ट) उसे अपने रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में फायदा पहुंचाने के लिए छद्म लेख लिखने को कहता है। प्युर्ते रिको में रम की आदत पालने के अलावा उसका आकर्षण सैंडरसन की मंगेतर शेनॉल्ट (एंबर हर्ड) की तरफ होता है। वह नॉवेल लिखना चाहता है। उसके अनुभवों में अखबार का फोटोग्रफर बॉब साला (माइकल रिस्पॉली) साथी है। मोबर्ग (जियोवानी रिब्सी) भी यहां पूर्व रिलीजियस कॉरसपोंडेंट था, पर रम और जर्नलिज्म की रिएलिटी ने डुबो दिया। कुल मिलाकर यहां के अनुभव पॉल के नॉवेल और उसके भविष्य के जर्नलिस्टिक सिद्धांतों का आधार बनते हैं।

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गजेंद्र सिंह भाटी

Tuesday, November 8, 2011

टावर में पड़ गया हंसी का डाका

फिल्मः टावर हीस्ट (अंग्रेजी)
निर्देशकः ब्रेट रेटनर
कास्टः बेन स्टेलर, एडी मर्फी, एलन एल्डा, टी लियोनी, केजी एफ्ले, मैथ्यू ब्रॉडरिक, माइकल पेना, गैबोरी सिडबी
स्टारः तीन स्टार, 3.0


किसी फिल्म में जब बेन स्टेलर, एडी मर्फी और मैथ्यू ब्रॉडरिक जैसे अलग-अलग किस्मों वाले कॉमिक एक्टर एक साथ हों तो फिल्म मामूली नहीं हो सकती। ये लोग अकेले कांधों पर फिल्में चला ले जाते हैं। 'टावर हीस्ट' अच्छी फिल्म है। दर्शकों को खुद से जोड़े रखती है। हंसाती है। एक्साइट करती है। रात के शो में मुंडे चिल्ला-चिल्लाकर बेन स्टेलर के कैरेक्टर से कह रहे थे कि 'मार गोल्फ स्टिक ऑर्थर की सोने की फरारी कार पर। शीशा तोड़ दे। तोड़ दे। बुड्ढे ने बड़ा धोखा किया सारे स्टाफ के साथ।' ठंडा पहलू ये है कि कहानी में 'ओशियंस इलेवन' जैसी बहुत की हॉलीवुड मूवीज के आजमाए प्लॉट और सब-प्लॉट हैं। खास है ऑस्कर के लिए नामित फिल्म 'प्रेशियस' की लीड अश्वेत अदाकारा गैबोरी सिडबी का कॉमिक रोल में होना। उनका अच्छा साथ देते हैं माइकल पेना, अपने भोले एशियाई चेहरे के साथ। एडी मर्फी शुरू के दो-तीन सीन में तो बैकग्राउंड में ही बड़बड़ाते पड़ोसी बने दिखते हैं। ये राहतभरा लगता है कि सीन में उन्हें ठूंसा नहीं जाता। उनका सटका हुआ भेजा यहां भी काम करता है। उस सीन में जब डकैती में शामिल होने के लिए वह शर्त रखते हैं कि बाकी चारों मेंबर मॉल में से 15 मिनट में 50 डॉलर की कोई चीज चुराकर लाए। फिल्म में एक-आध डायलॉग 'ए' सर्टिफिकेट वाले हैं, जो वैसे काफी स्मार्ट, फनी और नॉन-वल्गर हैं। फ्रेंड्स लोग जा सकते हैं। खूब एंजॉय करेंगे।

कहानी यूं है
न्यू
यॉर्क की इस फैंसी टावरनुमा ईमारत में वॉल स्ट्रीट का राजा ऑर्थर शॉ (एलन एल्डा) रहता है। बिल्डिंग के मैनेजर जॉश कोवेक्स (बेन स्टेलर) का काम पिछले एक दशक से भी ज्यादा वक्त में बेदाग रहा है। यहां का पूरा स्टाफ उम्दा काम करता है। पर भूचाल तब आता है जब ऑर्थर को दो बिलियन डॉलर की धांधली के आरोप में पेंटहाउस में नजरबंद कर दिया जाता है। एफबीआई एजेंट क्लैयर डेनहम (टी लियोनी) जॉश को बताती है कि अदालत में ऑर्थर का दोषी होना तय है और उसने बिल्डिंग स्टॉफ की पेंशन और इनवेस्टमेंट तक डकार ली है। पर कहीं उसने बहुत सारे पैसे छिपाकर रखे हैं। इस धोखे से नाराज जॉश ऑर्थर की आखिरी अदालती पेशी से पहले उसके पेंटहाउस में डकैती का प्लैन बनाता है। इसमें वह मदद लेता है पड़ोस में रहने वाले छोटे-मोटे चोर स्लाइड (एडी मर्फी) की। साथ हैं दरबान चार्ली (केजी एफ्लेक), दिवालिया वॉल स्ट्रीट इनवेस्टर फिट्जहग (मैथ्यू ब्रॉडरिक), लिफ्टमैन एनरीक डेवरॉ (माइकल पेना) और जमेका मूल की मेड ओडेसा (गैबोरी सिडबी)

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गजेंद्र सिंह भाटी