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Tuesday, July 17, 2012

पर्याप्त जिज्ञासाओं वाली रिडली स्कॉट की अपर्याप्त फिल्म

फिल्मः प्रोमेथियस
डायरेक्टरः रिडली स्कॉट
कास्टः नूमी रेपेस, माइकल फासबैंडर, गाय पीयर्स, इदरिस एल्बा, लोगन मार्शल ग्रीन, चार्लीज थैरॉन
स्टारः तीन, 3.0
संक्षिप्त टिप्पणी
इंजीनियर
डायरेक्टर रिडली स्कॉट की 1979 में आई फिल्म ‘एलियंस’ का पिछला भाग है 'प्रोमेथियस’। यानी एलियंस फ्रैंचाइजी की फिल्मों में पृथ्वी (अमेरिका) पर आए एलियंस आखिर कहां से आए? मानव उत्पत्ति और इंसानी डीएनए से एलियंस किस तरह जुड़े हुए हैं? ऐसे बहुत सारे सवालों को जानने की कोशिश। मेरे लिए सम्मोहक है फिल्म की शुरुआत। चट्टानों, पर्वतों, झरनों, जंगलों और धरती का हैलीकॉप्टर व्यू जैसे-जैसे आगे बढ़ता है, सृष्टि की रचना में हमारी जिज्ञासा भी बढऩे लगती है। फिर एक भयंकर झरने के सिरे पर खड़े एक सफेद मानव (ग्रीक देवताओं जैसा तराशा शरीर) का आना। वह आता है, एक डिबिया खोलता है और उसे पी जाता है। धीरे-धीरे उसका शरीर भरभरा कर बिखरते हुए झरने के पानी में मिल जाता है। यानी कहानी के मुताबिक हमारा डीएनए उसी से आया, वो हमें बनाने वाली इंजीनियर्स में से एक है। ये एक पर्याप्त जिज्ञासा है।

फिल्म आधी हो जाती है तब तक आकर्षण बना रहता है, पर उसके बाद हमारे सवालों के जवाब नहीं मिलते। ऐसा लगता है कि ‘प्रोमेथियस’ के सीक्वल के लिए सारी रुचिकर बातें छिपा ली गई हैं। निस्संदेह हम सीक्वल देखेंगे पर यहां ये सबसे बड़ी खामी है। 2009 में जर्मन भाषा में बनी ‘द गर्ल विद द ड्रैगन टैटू’ में जानदार अभिनय करने वाली नूमी रेपेस और एक अत्याधुनिक इंसानी रोबॉट बने माइकल फासबैंडर फिल्म की जान हैं। हालांकि ये जान कहानी को होना था, स्क्रिप्ट को होना था, जो उतनी नहीं हो पाती। अमेरिकी टीवी की मशहूर लॉस्ट सीरिज लिखने वाले डेमन लिंडेलॉफ को अपने सपनों के स्टार रिडली स्कॉट के साथ काम करने का मौका मिला, उन्होंने और जॉनाथन स्पैथ्स ये फिल्म लिखी, पर आधी होने के बाद उनकी लिखी रामकहानी दिव्य नहीं रह जाती, जैसे कि शुरुआती हिस्सा है। संवादों में भी ह्यूमर की और चतुराई की कमी है। फिल्म उम्मीदों के लिहाज से कुछ अधूरी है, पर समझने के लिए दो बार तक देखी जा सकती है।

मानवता की खोज और प्रोमेथियसः ये 2089 है। स्कॉटलैंड की गुफाओं में मानव उत्पत्ति के निशान खोज रहे हैं हस्बैंड-वाइफ एलिजाबेथ (नूमी रेपेस) और चार्ली (लोगन मार्शल ग्रीन)। फिर हम 2093 में पहुंचते हैं। अंतरिक्ष में 17 क्रू मेंबर्स के साथ उड़ रहा है यान प्रोमेथियस। इसे चला रहा है इंसानी रोबॉट यानी एक एंड्रॉयड। नाम है डेविड (माइकल फासबैंडर)। जब एक चांदनुमा ग्रह एलवी-223 नजर आने लगता है तो तकरीबन तीन साल से स्लीप चैंबर में सोए सब मेंबर उठते हैं। वेलैंड कॉरपोरेशन नाम की कंपनी के इस यान का मिशन है इंसानों को बनाने वालों को ढूंढना, जो उन्हें इस ग्रह पर मिलने हैं। मगर जब मिलते हैं तो कुछ भी अच्छा नहीं होता।
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गजेंद्र सिंह भाटी

Tuesday, February 14, 2012

ड्रैगन टैटू वाली लड़की सशक्त है, श्रेय जाता है नॉवेल लिखने वाले स्टीग लारसन कोः स्वीडिश फिल्म 2009

ये "औरतों से नफरत करने वाले मर्द" अर्थ वाले इस नॉवेल की ख्याति ही है कि दो साल के अंतराल में ' गर्ल विद ड्रेगन टैटू' नाम की दो फिल्में (2009 में स्वीडिश निर्देशक नील आर्डेन ऑप्लेव की, 2011 में अमेरिकी डेविड फिंचर की) बन गईं. स्वीडन के पत्रकार, लेखक और कम्युनिस्ट विचारधारा वाले स्टीग लारसन जब गुजरे तब 'मिलेनियम सीरिज' नाम के उनके तीन अप्रकाशित नॉवेल प्रकाशित हुए. फिर न जाने क्या हुआ कि ढिंढोरा पिट गया और ये नॉवेल बहुत बिके. मूल विचार क्राइम का रहा, औरतों के खिलाफ होने वाला अपराध और उसके इधर-ऊधर थ्रिल रची गई. ये तीन नॉवेल रहे ' गर्ल विद ड्रैगन टैटू', ' गर्ल हू प्लेड विद फायर' और ' गर्ल हू किक्ड हॉर्नेट्स नेस्ट.'

एक लेखक चाहे तो कुछ भी रच सकता है, कुछ भी कर सकता है. स्टीग लारसन ने अपने इस नॉवेल में लीजबेथ सेलेंडर नाम की इस नाटी सी भीतर ही भीतर रहने वाली लड़की को कई कुशलताएं दी हैं. आखिर स्टीग ने ऐसा क्यों किया. 15 बरस की उम्र में उनकी आंखों के आगे एक लड़की की आबरू लुटती रही और वह कुछ न कर पाए, ये इसी बात की पीड़ा थी जो उन्हें ताउम्र कचोटती रही. इसी का नतीजा था कि उनके नॉवेल और दुनिया के दो बहुत उम्दा फिल्म निर्देशकों की फिल्मों में नायक एक तरह से लीजबेथ है, मिकाइल ब्लॉमकोविस्ट नहीं. आखिर में वही उसे मरने से बचाती है, हांस एरिक वॉनस्ट्रॉम के खिलाफ मिलेनियम मैगजीन में अगली बड़ी खुलासे वाली स्टोरी के लिए (पहले नॉवेल और फिल्म में) सारे कागजात वही लाकर देती है. आखिर में मिकाइल अपने मुंह से खुद कहता है कि अगर तुम नहीं होती तो मैं ये केस कभी नहीं सुलझा पाता। असल जीवन में न सही, किताबी और फिल्मी दुनिया में लीजबेथ सशक्त है, चतुर है और अपने अपमान का बदला लेने में सक्षम है.

खैर, 2009 में आई स्वीडिश फिल्मकार नील आर्डेन ऑप्लेव की 'द गर्ल विद द ड्रैगन टैटू' देखी. फिल्म ने जिगरा तो नहीं जलाया पर, इज्जत कमाने वाली फिल्म है. खासतौर पर इसकी जान है स्वीडिश एक्ट्रेस नूमी रेपेस. इनका अभिनय इतना सटीक है कि पहचानने में धोखा होता है कि क्या ये वही हैं जो हाल ही में आई फिल्म 'शरलॉक होम्सः गेम ऑफ शेडोज' में मदाम सिम्जा बनी थीं. पर फिर पहचान हो ही जाती है. नूमी यहां लिजबेथ बनी हैं. अजीब सी वेशभूषा वाली बेस्ट रिसर्चर. पूरी फिल्म में लिजबेथ की जिंदगी इज्जत और बेइज्जती के न जाने कौन कौन से पड़ावों से गुजरती है, पर उसके पास अंततः हर चीज का जवाब है, हर अपमान का बदला है. इसमें नूमी खरी उतरती हैं. मुझे किसी एंगल से नहीं लगता कि ये कोई अभिनेत्री थी जो लिजबेथ की भूमिका अदा कर रही थी, ये तो कोई असल लिजबेथ ही थी, जो कहीं जीवित है. यही इनके अभिनय की खासियत रही. उनकी किरदार लिजबेथ के कानूनी गार्जियन नील जुरमैन बने स्वीडन के ही एक्टर पीटर एंडरसन परपीड़ा में सुख भोगने वाले सेडिस्ट बने, और छककर बने. जलालत उनके चेहरे से लगातार टपकती रही. लिजबेथ को थप्पड़ जड़ने, शारीरिक या यौन क्रूरता करने के क्षणों में कैमरा जैसे हमारे इनके बीच से बिल्कुल गायब ही हो जाता है. पर हम दर्शक भी इतने बर्बर से हो गए हैं कि अगर इन सीन में बैचेनी न हो तो ये चिंता की बात है.

मुख्य
अभिनेता यानी मिकाइल ब्लॉमकोविस्ट के किरदार को निभाने वाले माइकल नाइकविस्ट के चेहरे को देख लगता है कि पिछले साल वाली द गर्ल विद ड्रैगन टैटू में डेविड फिंचर ने डेनियल क्रैग को इन्हीं के चेहरे मोहरे से मिलता जुलता देख लिया या ढूंढा. अगर किसी को इन दो फिल्मों का न पता हो और वो इस स्वीडिश फिल्म को ही देखने लगे तो पहले पहल नाइकविस्ट को ही डेनियल समझ बैठेगा. इनके अभिनय के बारे में क्या कहा जाए. फिल्म में कोई गहन क्षण तो थे नहीं, हां कुछेक थे, मसलन फिल्म के आखिर में मौत से लड़ना. फांसी पर चढ़ते हुए जूझना. इन क्षणों में और जंगल में कोई बंदूक की गोली जब कनपटी से छूकर निकल जाती है तो, ये ऐसे पल हैं जहां नाइकविस्ट को गहन होना पड़ता है, अन्यथा नहीं.

ऑप्लेव का निर्देशन कच्चा नहीं है. फिंचर की फिल्म में जाहिर है म्यूजिक, फ्रेम का रंग और हीरो-हीरोइन की भूमिकाओं में कुछ कमर्शियल हेर-फेर होगा ही, पर ऑप्लेव ने दो साल पहले ही अच्छी क्राइम थ्रिलर बना दी थी. 'मिलेनियम सीरिज' की बाकी दो फिल्में हालांकि उन्होंने नहीं की, पर ये फिल्म निश्चित तौर पर मजबूत बनावट रही.

मसाला फिल्म में औरतों के खिलाफ हिंसा के सामाजिक संदर्भ को रखना और कहानीनूमा अंदाज में रखना सही था. सीधे तौर पर न सही पर लोगों को संदेश जाता है. न सिर्फ लिजबेथ की जिंदगी की कहानी में जो कि इस नॉवेल को लिखने वाले स्टीग लारसन ने खास उन्हीं को ध्यान में रखते हुए लिखा, बल्कि धनी वांगर फैमिली में हुई रहस्यमयी मौतों के पीछे छिपे औरतों पर अत्याचार के पहलू में भी.

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गजेंद्र सिंह भाटी