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Tuesday, February 14, 2012

ड्रैगन टैटू वाली लड़की सशक्त है, श्रेय जाता है नॉवेल लिखने वाले स्टीग लारसन कोः स्वीडिश फिल्म 2009

ये "औरतों से नफरत करने वाले मर्द" अर्थ वाले इस नॉवेल की ख्याति ही है कि दो साल के अंतराल में ' गर्ल विद ड्रेगन टैटू' नाम की दो फिल्में (2009 में स्वीडिश निर्देशक नील आर्डेन ऑप्लेव की, 2011 में अमेरिकी डेविड फिंचर की) बन गईं. स्वीडन के पत्रकार, लेखक और कम्युनिस्ट विचारधारा वाले स्टीग लारसन जब गुजरे तब 'मिलेनियम सीरिज' नाम के उनके तीन अप्रकाशित नॉवेल प्रकाशित हुए. फिर न जाने क्या हुआ कि ढिंढोरा पिट गया और ये नॉवेल बहुत बिके. मूल विचार क्राइम का रहा, औरतों के खिलाफ होने वाला अपराध और उसके इधर-ऊधर थ्रिल रची गई. ये तीन नॉवेल रहे ' गर्ल विद ड्रैगन टैटू', ' गर्ल हू प्लेड विद फायर' और ' गर्ल हू किक्ड हॉर्नेट्स नेस्ट.'

एक लेखक चाहे तो कुछ भी रच सकता है, कुछ भी कर सकता है. स्टीग लारसन ने अपने इस नॉवेल में लीजबेथ सेलेंडर नाम की इस नाटी सी भीतर ही भीतर रहने वाली लड़की को कई कुशलताएं दी हैं. आखिर स्टीग ने ऐसा क्यों किया. 15 बरस की उम्र में उनकी आंखों के आगे एक लड़की की आबरू लुटती रही और वह कुछ न कर पाए, ये इसी बात की पीड़ा थी जो उन्हें ताउम्र कचोटती रही. इसी का नतीजा था कि उनके नॉवेल और दुनिया के दो बहुत उम्दा फिल्म निर्देशकों की फिल्मों में नायक एक तरह से लीजबेथ है, मिकाइल ब्लॉमकोविस्ट नहीं. आखिर में वही उसे मरने से बचाती है, हांस एरिक वॉनस्ट्रॉम के खिलाफ मिलेनियम मैगजीन में अगली बड़ी खुलासे वाली स्टोरी के लिए (पहले नॉवेल और फिल्म में) सारे कागजात वही लाकर देती है. आखिर में मिकाइल अपने मुंह से खुद कहता है कि अगर तुम नहीं होती तो मैं ये केस कभी नहीं सुलझा पाता। असल जीवन में न सही, किताबी और फिल्मी दुनिया में लीजबेथ सशक्त है, चतुर है और अपने अपमान का बदला लेने में सक्षम है.

खैर, 2009 में आई स्वीडिश फिल्मकार नील आर्डेन ऑप्लेव की 'द गर्ल विद द ड्रैगन टैटू' देखी. फिल्म ने जिगरा तो नहीं जलाया पर, इज्जत कमाने वाली फिल्म है. खासतौर पर इसकी जान है स्वीडिश एक्ट्रेस नूमी रेपेस. इनका अभिनय इतना सटीक है कि पहचानने में धोखा होता है कि क्या ये वही हैं जो हाल ही में आई फिल्म 'शरलॉक होम्सः गेम ऑफ शेडोज' में मदाम सिम्जा बनी थीं. पर फिर पहचान हो ही जाती है. नूमी यहां लिजबेथ बनी हैं. अजीब सी वेशभूषा वाली बेस्ट रिसर्चर. पूरी फिल्म में लिजबेथ की जिंदगी इज्जत और बेइज्जती के न जाने कौन कौन से पड़ावों से गुजरती है, पर उसके पास अंततः हर चीज का जवाब है, हर अपमान का बदला है. इसमें नूमी खरी उतरती हैं. मुझे किसी एंगल से नहीं लगता कि ये कोई अभिनेत्री थी जो लिजबेथ की भूमिका अदा कर रही थी, ये तो कोई असल लिजबेथ ही थी, जो कहीं जीवित है. यही इनके अभिनय की खासियत रही. उनकी किरदार लिजबेथ के कानूनी गार्जियन नील जुरमैन बने स्वीडन के ही एक्टर पीटर एंडरसन परपीड़ा में सुख भोगने वाले सेडिस्ट बने, और छककर बने. जलालत उनके चेहरे से लगातार टपकती रही. लिजबेथ को थप्पड़ जड़ने, शारीरिक या यौन क्रूरता करने के क्षणों में कैमरा जैसे हमारे इनके बीच से बिल्कुल गायब ही हो जाता है. पर हम दर्शक भी इतने बर्बर से हो गए हैं कि अगर इन सीन में बैचेनी न हो तो ये चिंता की बात है.

मुख्य
अभिनेता यानी मिकाइल ब्लॉमकोविस्ट के किरदार को निभाने वाले माइकल नाइकविस्ट के चेहरे को देख लगता है कि पिछले साल वाली द गर्ल विद ड्रैगन टैटू में डेविड फिंचर ने डेनियल क्रैग को इन्हीं के चेहरे मोहरे से मिलता जुलता देख लिया या ढूंढा. अगर किसी को इन दो फिल्मों का न पता हो और वो इस स्वीडिश फिल्म को ही देखने लगे तो पहले पहल नाइकविस्ट को ही डेनियल समझ बैठेगा. इनके अभिनय के बारे में क्या कहा जाए. फिल्म में कोई गहन क्षण तो थे नहीं, हां कुछेक थे, मसलन फिल्म के आखिर में मौत से लड़ना. फांसी पर चढ़ते हुए जूझना. इन क्षणों में और जंगल में कोई बंदूक की गोली जब कनपटी से छूकर निकल जाती है तो, ये ऐसे पल हैं जहां नाइकविस्ट को गहन होना पड़ता है, अन्यथा नहीं.

ऑप्लेव का निर्देशन कच्चा नहीं है. फिंचर की फिल्म में जाहिर है म्यूजिक, फ्रेम का रंग और हीरो-हीरोइन की भूमिकाओं में कुछ कमर्शियल हेर-फेर होगा ही, पर ऑप्लेव ने दो साल पहले ही अच्छी क्राइम थ्रिलर बना दी थी. 'मिलेनियम सीरिज' की बाकी दो फिल्में हालांकि उन्होंने नहीं की, पर ये फिल्म निश्चित तौर पर मजबूत बनावट रही.

मसाला फिल्म में औरतों के खिलाफ हिंसा के सामाजिक संदर्भ को रखना और कहानीनूमा अंदाज में रखना सही था. सीधे तौर पर न सही पर लोगों को संदेश जाता है. न सिर्फ लिजबेथ की जिंदगी की कहानी में जो कि इस नॉवेल को लिखने वाले स्टीग लारसन ने खास उन्हीं को ध्यान में रखते हुए लिखा, बल्कि धनी वांगर फैमिली में हुई रहस्यमयी मौतों के पीछे छिपे औरतों पर अत्याचार के पहलू में भी.

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गजेंद्र सिंह भाटी

Saturday, December 17, 2011

इस एलीट एक्शन में कुछ हंसी लाए हैं रैटाटूई वाले ब्रेड बर्ड

फिल्मः मिशन इम्पॉसिबल-घोस्ट प्रोटोकॉल (अंग्रेजी)
निर्देशक: ब्रेड बर्ड
कास्ट: टॉम क्रूज, पॉला पैटन, जैरेमी रेनर, साइमन पेग, माइकल नेक्विस्ट, अनिल कपूर, व्लादिमीर माशकोव
स्टार: तीन, 3.0'मिशन: इम्पॉसिबल-घोस्ट प्रोटोकॉल' का सबसे थ्रिलिंग सी है। ईथन बने टॉम क्रूज दुबई की 2,717 फुट ऊंची ईमारत बुर्ज खलीफा की एक सौ चौबीसवीं मंजिल पर, कांच पर सिर्फ चुंबकी दस्तानों के सहारे चढ़ रहे हैं। बिना कोई सिक्योरिटी वायर पहने। नीचे गिरे तो मौत पक्की। तभी कुछ बुरा होता है। एक दस्ताने की बैटरी खत्म हो जाती है। वो उस दस्ताने को फैंक देते हैं। मौत से बाल-बाल बचते हुए कुछ ऊप चढ़ते हैं तो देखते हैं कि हवा से उड़कर वो दस्ताना जरा दूर कांच पर चिपक गया है। जैसे हीरो को चिढ़ा रहा हो। सीन में यहां ऐसा कॉमिक सेंस बनता है कि ऑडियंस हंस पड़ती है। यकीन नहीं होता कि मिशन इम्पॉसिबल जैसी एलीट एक्शन सीरिज में, सबसे रौंगटे खड़े करने वाले सीन में भी हमें हंसाने की कोशिश हो सकती है। चुस्त एक्शन में चुटकी काटने भर की कॉमेडी की एंट्री इस फ्रैंचाइजी में डायरेक्टर ब्रेड बर्ड की एंट्री से ही हो जाती है। इन्होंने 'रैटाटूई' और 'द इनक्रेडेबल्स' जैसी फनी फन फिल्में बनाई है। अगर दुबई, मुंबई और मॉस्को में ईथन के जेम्स बॉन्डनुमा सनसनीखेज एक्शन सीन कहीं कम नहीं होते तो बीच-बीच में चपल हास्य भी घुलता रहता है।

अस्पताल से भागने की कोशिश में खिड़की से बाहर हवा में टंगा ईथन फंस गया है, तो मुंह में सिगरेट दाबे रूसी इंटेलिजेंस ऑपरेटिव सिदिरोव (व्लादिमीर माशकोव) खिड़की पर कुहनियां टिकाए कहता है, '(इशारे में) अब कूदो। नॉट गुड आइडिया।' ईथन वापिस कहता है, 'एक मिनट पहले तो लगा था।' इसी तरह बुर्ज खलीफा वाले स्टंट में मरते-मरते बचे ईथन और ब्रैंट को हांफते देख बस कुछ टेक्नीकल काम करके कमरे में लौटा बेंजी कहता है, 'ओह, ड़ा टफ काम है। (फिर) तुम लोग हांफ क्यों रहे हो, डि आई मिस समथिंग।'

उपलब्धि के नाम पर फिल्म में डायरेक्टर बर्ड का ये सेंस ऑफ ह्यूमर ही है। बाकी 'एम.आई.-4' में जो दावे स्टंट्स को लेकर किए गए थे, वो हैं। आप थियेटर में जाकर देख सकते हैं। फिल्म एंगेज करके रखती है। पर सीक्वल में हमारी उम्मीदें बिलाशक बहुत ज्यादा थी, जो पूरी नहीं हुईं। इसके अलावा स्क्रिप्ट के स्तर पर कुछ अनोखा सोचने की जरूरत है। क्या प्रॉड्यूसर लोग पढ़ रहे हैं? बीच में हमें लगता है कि उसी पुराने 'रूसी बुरे और विलेन होते हैं, अमेरिकी अच्छे होते हैं' ट्रैक पर फिल्म दौड़ रही है, पर कहानी कुछ बदल जाती है। पर अंत में वही होत़ा है, एक अमेरिकी हीरो हो जाता है और एक रूसी उसे थैंक यू बोल रहा होता है। हद है भई।

खैर, जैरेमी रेनर फिल्म में स्मार्टनेस लाते हैं और क्रोएशिया के अपने मिशन के बारे में बताते हुए इंटेंस लगते हैं। अच्छा है। साइमन पेग सबसे इंट्रेस्टिंग हैं। अगली फिल्म में भी वो जरूर रहेंगे। वो हर सीन में राहत देते हैं। अनिल कपूर का रोल सबसे कमजोर है। तकरीबन न के बराबर। पर अचरज क्या करना, एशियन कलाकारों का कद अमेरिकी फिल्मों में इतना ही तो रखा जाता है।

एम.आई. 4 की कहानी
आईएमएफ की एजेंट कार्टर (पॉला पैटन) और टेक्नीकल फील्ड एजेंट बेंजी (साइमन पेग) मॉस्को की एक जेल में बंद मशहूर एजेंट ईथन हंट (टॉम क्रूज) को निकालते हैं। अब ये ईथन की नई टीम है और उन्हें अगला मिशन मिलता है रूस के मशहूर क्रेमलिन पैलेस से सीक्रेट डॉक्युमेंट चुराने और 'कोबाल्ट' कोड नेम वाले शख्स का पता लगाने का। उनके इस मिशन के बीचोंबीच के्रमलिन का एक हिस्सा बम से उड़ा दिया जाता है। इसका आरोप अमेरिका पर लगता है। ईथन को आईएमएफ सेक्रेटरी (टॉम विल्किनसन) बताते हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने ऑपरेशन 'घोस्ट प्रोटोकॉल' घोषित कर दिया है। इसका मतलब होता है कि पूरी संस्था आईएमएफ को बंद कर दिया जाए। पर ईथन और उसकी टीम को सरकार के हाथों में पडऩे से पहले कोबाल्ट का पता लगाना है और क्रेमलिन पर हमले का दाग अमेरिका के सिर से धोना है। इस टीम में अब आईएमएफ का डेस्क एनेलिस्ट विलियम ब्रैंट (जैरेमी रेनर) भी शामिल है। इन लोगों का लक्ष्य दुबई से होता हुआ मुंबई तक जाता है। कहानी के प्रमुख किरदारों में रूसी न्यूक्लियर रणनीतिकार कर्ट हैंड्रिक्स (माइकल नेक्विस्ट) भी है। अनिल कपूर मुंबई के मशहूर रईस बृजनाथ बने हैं।


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गजेंद्र सिंह भाटी