रविवार, 4 दिसंबर 2011

डर्टी एक्ट्रेस पर बनी अच्छी पिक्चर

फिल्म: द डर्टी पिक्चर (ए सर्टिफिकेट)
निर्देशक: मिलन लूथरिया
कास्ट: विद्या बालन, इमरान हाशमी, नसीरुद्दीन शाह, तुषार कपूर, अंजू महेंद्रू, राजेश शर्मा
स्टार: तीन, 3.0

कोलायत के मेरे उस घर में अस्सी के दशक की मेरे कुंवरसा की खरीदी वो ढेरों 'सत्यकथाएं' या 'मनोहर कहानियां' आज भी रखी हैं। जेहन में धुंधली सी जो ब्लैक एंड वाइट सिल्क स्मिथा आज भी है, वो उन्हीं मैगजीन में कहीं मैंने देखी थी। तब से लगता था कि हमारीं हिंदी फिल्मों में ये कहानियां क्यों नहीं आती? खासतौर पर बायोपिक। डायरेक्टर मिलन लुथरिया की 'द डर्टी पिक्चर' सही मायनों में एक अच्छी शुरुआत है। हालांकि 'वेलू नायकन' और 'रक्त चरित्र' भी बायोपिक थी, पर ये फिल्म अलग है। 'डर्टी पिक्चर' गंदी फिल्मों की एक्ट्रेस पर बनी एक अच्छी फिल्म है। पूरी फिल्म में विद्या बालन का क्लीवेज बहुत ज्यादा दिखता रहता है, पर फिल्म वल्गर या एडल्ट होने से ज्यादा डिबेट करती है। कहीं भी खुद को मिले 'ए' सर्टिफिकेट को कहीं नाजायज कमर्शियल फायदा नहीं उठाती। हां, डायलॉग जहां-जहां आते हैं, शॉक करते हैं, स्मार्ट लगते हैं, पर ज्यादातर बेहद एडल्ट होते हैं। समाज में मर्दों के दोगले चेहरे पर फिल्म कई तो ऐसे कमेंट करती है कि मर्दों के पैरों तले जमीन खिसक जाती है। जाहिर है बच्चों के लिए ये फिल्म कतई नहीं है, पर वयस्क लोग जा सकते हैं। कहानी, डायलॉग, निर्देशन और प्रस्तुति में फिल्म एंगेजिंग है। क्लाइमैक्स तक फिल्म सारे सवालों के जवाब दे देती है। एंटरटेनमेंट में कहीं-कहीं रुकती है, पर उतना जरूरी है। रजत अरोड़ा के डायलॉग चौंकाते हैं। विद्या की एक्टिंग और उलाला गाने का बेहतरीन स्ट्रॉन्ग म्यूजिक मन मोहते हैं।

कहानी डर्टी पिक्चर की
बचपन से फिल्मों का चाव लिए रेशमा (विद्या बालन) बड़ी होती है तो शादी के एक दिन पहले मद्रास भाग जाती है। फिल्मों में काम करना है, खिलंदड़ है और खुद को बहुत जल्दी वह बदलती है। चीनी खा-खाकर एक्स्ट्रा कलाकारों की लाइन में काम तलाशते हुए समझ जाती है कि सीधी-सादी लड़की को कोई काम नहीं देगा। एक गाने में उसे नाचने का छोटा मौका मिलता है और वो अपने बोल्ड अंदाज से छा जाती है। हालांकि अच्छी फिल्में बनाने के सिद्धांत रखने वाला डायरेक्टर अब्राहम (इमरान हाशमी) इस 'मोटी' का ये गाना नापसंद करता है, पर प्रॉड्यूसर सेल्वा गणेश (राजेश शर्मा) गाना डलवाकर फिल्म रीरिलीज करता है और नोटों की झड़ी लग जाती है। यहां से सेल्वा रेशमा को 'सिल्क' नाम देता है। आगे की कहानी सिल्क की सी ग्रेड फिल्मों की ऊंचाइयों को छूने और गिरने की है। कहानी रोचक है और इसमें हिस्सा बनते हैं साउथ की फिल्मों का सुपरस्टार सूर्या (नसीरुद्दीन शाह), जो हर नई एक्ट्रेस के साथ 'ट्यूनिंग' करता है। उसका छोटा भाई रमाकांत (तुषार कपूर), जो सिल्क का फैन है।

रजत अरोड़ा का लिखे बुम्बाट डायलॉग
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ह** सा*, तेरे बारे में मेरी घरवाली सही बोलती है।
तेरे बारे में भी वो ठीक बोलती है। होली खेलने का शौक है और पिचकारी में दम नहीं।
# सा* पब्लिक कहीं और खुजाना चाहती है और तू उन्हें दिमाग खुजाने के कह रहा है।
# तूने सिर्फ पॉजिटिव जलाया है, नेगेटिव मेरे पास है। तू देखना, ये लड़की ऐसे ही आग लगाएगी।
# फल अगर बड़ा है तो जरूरी नहीं कि मीठा भी है।
# मैगजीन पढ़ती हो तुम? उनमें लिखा है कि मैं 500 लड़कियों के साथ ट्यूनिंग कर चुका हूं।
पर क्या आपने एक लड़की के साथ 500 बार ट्यूनिंग की है।
# लिखना पड़ता है सूर्या सर। आदमियों को साधू बनाने के लिए औरतों को शैतान बनाना पड़ता है।
# तुम हमारी रातों का वो राज हो जिसे दिन में कोई नहीं खोलता। यू आर आवर डर्टी सीक्रेट।
# कमाल है। आप लोग मेरी फिल्में बनाते भी हैं, उन्हें देखते भी है, मुझे अवॉर्ड भी देते हैं, पर फिर मैं बुरी हो जाती हूं।
# तुम ऐसी ही रहना, आंधी की तरह। सोचना मत। सोचा तो हवा हो जाओगी।
# ...और फिर जब शराफत के कपड़े उतरते हैं तो सबसे ज्यादा मजा शरीफों को ही आता है।
# वो फ्लॉप एक्ट्रेस, हीरो का डायलॉग मारकर निकल गई। अगर वो दुनिया की आखिरी लड़की होती तो मैं नसबंदी कर लेता।
# कितने लोगों ने तुम्हें टच किया है?
टच तो बहुतों ने किया है, छुआ किसी ने नहीं।
# इससे ज्यादा अब तेरा हाल और बुरा क्या होगा सिल्क... तेरे दुश्मन भी अब तुझसे खफा नहीं है।
# जिंदगी मायूस होती है, तभी महसूस होती है।
# हर कोई कमर में हाथ डालना चाहता है, पर कोई सिर पर हाथ क्यों नहीं रखना चाहता है।

कौन एक्टर कैसा
विद्या बालन: शायद पहली फिल्म जिसमें वो कहीं भी विद्या बालन नहीं लगती हैं। सिल्क ही लगती हैं। हां, उनका एक्सेंट जरूर सिल्क के कैरेक्टर से मेल नहीं खाता, पर क्या करें, अभी हम अपने एक्टर्स से इतने परफेक्शन की उम्मीद कर भी तो नहीं सकते।
नसीरुद्दीन शाह: सटीक एक्टिंग। इनकी कास्टिंग बिल्कुल सही रही। इस उम्र में भी वो 'उलाला' जैसे गानों पर नंगे बदन नाच लेते हैं, बिना किसी हिचक के। कमाल है।
इमरान हाशमी: जहां-जहां सूत्रधार के तौर पर इमरान का वॉयसओवर आता है, अच्छा लगता है। करियर के यादगार रोल्स में से एक।
तुषार कपूर: कहानी में फिट होते हैं। हालांकि तुषार की एंट्री वाले दस मिनटों में लोग कुछ बोर होते हैं, पर फिर भी ठीक-ठाक काम।
अंजू महेंद्रू: गॉसिप क्वीन और फिल्म जर्नलिस्ट नायला के रोल में एकदम फिट। उनका वॉयसओवर कुछ आगे-पीछे होता है, पर सिल्क के कैरेक्टर पर कमेंट करते हुए वो फिल्म को आसान करती चलती हैं।
राजेश शर्मा: स्मार्ट कास्टिंग। वरना खतरा था कि साउथ के प्रॉड्यूसर सेल्वा गणेश के रोल में किसी साउथ के एक्टर को ले लिया जाता। याद हो तो राजेश 'नो वन किल्ड जेसिका' में भी इंस्पेक्टर को जरूरी रोल में दिखे थे।
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गजेंद्र सिंह भाटी