Showing posts with label sushant singh. Show all posts
Showing posts with label sushant singh. Show all posts

Saturday, March 10, 2012

समीर कर्णिक का इक गैर-जिम्मेदार हंसी-ठट्ठा

फिल्मः चार दिन की चांदनी
निर्देशकः समीर कर्णिक
कास्टः कुलराज रंधावा, तुषार कपूर, ओम पुरी, अनुपम खेर, राहुल सिंह, सुशांत सिंह, चंद्रचूड़ सिंह, मुकुल देव, अनीता राज, जॉनी लीवर
स्टारः ढाई, .5

फिल्म की हाइलाइट हैं ओमपुरी, उनका मा की गाली बोलने का तरीका, चंद्रचूड़ सिंह-सुशांत सिंह-मुकुल देव की रॉयल-भोली गुस्ताखियां और सुंदर कुलराज रंधावा। पर दिक्कत वही हो जाती है। सबकुछ है। खूबसूरत खींवसर फोर्ट, बेहद रंगों भरी राजपूती पोशाकें, नमकीन जिंदादिल पंजाब और पंजाबी, तकरीबन दर्जन भर उम्दा अदाकार, उनके फनी तरीके से गढ़े गए किरदार, म्यूजिक और कॉमेडी भी। मगर स्क्रिप्ट जगह-जगह झूल जाती है। हम जॉनी लीवर को शुरू में अनुपम खेर के किरदार चंद्रवीर सिंह से नाराज होकर जाते हुए देखते हैं, फिर वह एक-दो सीन में भी दिखते हैं मगर उसके बाद वह आखिर तक नजर नहीं आते।

फिल्म में शुरू में एक बैग दिखाया जाता है जो वीर (तुषार) की शादी करने जा रही बहन का है, जो उसने चांदनी (कुलराज) से लंदन से मंगवाया है, जिसमें कुछ सुहागरात से जुड़ा हॉट सामान है। वह बैग यशवंत (सुशांत सिंह) के हथियारों से भरे बैग से बदल जाता है, पर फिल्म के आखिर तक फिल्म से यह संदर्भ गायब ही हो जाता है। पूरी फिल्म स्क्रिप्ट की बजाय फिट किए गए चुटकुलों के सहारे आगे बढ़ती है। इससे चीजें और किरदारों की गति बदलती लगती है। ओम पुरी अपने सबसे पहले सीन में जितने ज्यादा प्रभावी हैं बाकी फिल्म में उतनी ही ढीले कर दिए गए हैं। अनुपम खेर का किरदार भी ऐसा गढ़ा गया है कि वह कब चार्ली चैपलिन जैसे हो जाते हैं और कब एक गुस्सैल पूर्व राजा समझ नहीं आता। मामोसा बने राहुल सिंह का किरदार फिल्म में सबसे अनफिट है। अनीता राज के सर्जरी करवाए हुए होठ और गाल आंखों में किसी चीनी मिट्टी के बर्तन के नुकीले टुकड़े की तरह चुभते हैं।

खैर, फिल्म एक बार देख सकते हैं, बोर नहीं होंगे।

बचकाना, बुरा और बद्तमीज
# एक गे इंटीरियर डिजाइनर का कैरेक्टर गढ़कर पूरी फिल्म में उसका भद्दा मजाक उड़ाना।
# अनुपम खेर जोधपुर की एक रियासत खींवगढ़ (असल में वह खींवसर नाम का रॉयल ठिकाणा है और वहीं के खींवसर फोर्ट में फिल्म की शूटिंग हुई है) के पूर्व महाराज हैं, पर शराब के एक ब्रैंड के संदर्भ में वह बांसवाड़ा जिले का नाम सुनकर उसे भोंसवाड़ा कहते हैं, एक मुख्यधारा की फिल्म में इससे घटिया और बचकाना कुछ हो नहीं सकता। राजस्थान में किसी के लिए बांसवाड़ा फनी नाम नहीं है।
# यहां आते-आते निर्देशक समीर कर्णिक का थोथापन दिखने लगता है। सरदारों या पंजाबियों का जैसा चित्रण यहां है, वह फिल्मों में अब तक इस्तेमाल होती रही उनकी बारह बजने वाली, संता-बंता या कॉमेडी सर्कस के सुरिंदर जैसी बुरे सांचे में बंधी इमेज जैसी ही है। ये खराब बात है। पंजाब में तो सब हंस लेते हैं, पर बाहर के राज्यों में दर्शक सरदारों के प्रति एक असम्माननीय धारणा बना लेते हैं।

चांदनी और वीर की कहानी कुछ यूं है
जोधपुर में एक रियासत है खींवगढ़। यहां के पूर्व राजा हैं चंद्रवीर सिंह राठौड़ (अनुपम खेर)। इनकी वाइफ महारानी देविका (अनीता राज) और चार बेटे हैं। सबसे बड़े पृथ्वी सिंह (चंद्रचूड़ सिंह) के हाथ में हर पल जाम रहता है, उनसे छोटे उदयभान (मुकुल देव) रसिया किस्म के हैं, तीसरे नंबर पर काउबॉय अंदाज वाले गुस्सैल यशवंत (सुशांत सिंह) और चौथे सबसे छोटे हैं वीर विक्रम सिंह (तुषार कपूर) जो ऑक्सफोर्ड, लंदन से अपनी लुधियाना से ताल्लुक रखने वाली माशूका चांदनी (कुलराज रंधावा) को साथ लेकर लौटे हैं। चूंकि गढ़ में वीर की बहन की शादी का माहौल है और पिता हिज हाइनेस चंद्रवीर सिंह को अपनी किसी भी औलाद की शादी किसी गैर-राजपूती गैर-रॉयल खून के साथ कतई बर्दाश्त नहीं है, इसलिए वीर और चांदनी अपने रिश्ते को शुरू से ही छिपाकर सबकुछ ठीक करने की कोशिश करते हैं। पर हालात बिगड़ते जाते हैं और हास्य उत्पन्न होता जाता है। कहानी में वीर के शक्की मामा (राहुल सिंह), चांदनी के मां-पिता (फरीदा जलाल – ओम पुरी) और कान सिंह (जॉनी लीवर) आते जाते हैं। अब पेंच ये है कि वीर-चांदनी क्या चंद्रवीर सिंह को मनाकर शादी कर पाते हैं।
*** *** *** *** ***
गजेंद्र सिंह भाटी