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Saturday, February 5, 2011

बुलेट और इश्क में मिला मनोरंजन

फिल्मः ये साली जिंदगी
डायरेक्टरः सुधीर मिश्रा
कास्टः इरफान खान, अरुणोदय सिंह, सौरभ शुक्ला, अदिति राव हैदरी, चित्रागंदा सिंह, यशपाल शर्मा, प्रशांत नारायणन, सुशांत सिंह, विपिन शुक्ला, विपुल गुप्ता
डायलॉगः मनु ऋषि और सुधीर मिश्रा
स्टारः 3.5

सुधीर मिश्रा की ये फिल्म अच्छी मिसाल है इस बात की कि ग्रे शेड्स में कभी 'कमीने’ जैसी फिल्म बनाना चाहें, तो आप उसे सौ फीसदी एंटरटेनिंग भी रख सकते हैं। फिल्म के क्रेडिट 'सिन सिटी’ और 'जेम्स बॉन्ड’ मूवीज के अंदाज में स्कैची से आते हैं। छूटते ही सौरभ शुक्ला की जबान में ठेठ हरियाणवी डायलॉग आ लगता है... रे घुस गी ना पुराणी दिल्ली अंदर और आ गे ना प्रैण भार (प्राण बाहर)... यहां जो सिनेमा शुरू होता है वो आखिर तक बांधे रखता है। फिल्म में बहुत बार हिंदी के कर्स वर्ड इस्तेमाल हुए हैं। हालांकि ये रेग्युलर और फनी लगते हैं, बाकी फैमिली के साथ जाना न जाना अपनी पसंद पर है। बेस्ट ऑप्शन है अपने फ्रेंड्स के साथ जाना। काफी दिन बाद कोई रिपीट वेल्यू वाली फिल्म आई है जिसे आप दूसरी और तीसरी बार देख सकते हैं। सौरभ शुक्ला, इरफान, अरुणोदय, अदिति, यशपाल शर्मा और किडनैपिंग गैंग के मेंबर्स खासे याद रहेंगे।

ये साली... क्या है कहानी?
अरुण (इरफान खान) को गोली लगी है, प्रीति (चित्रागंदा सिंह) उसे थामे है। यहीं से अरुण फ्लैशबैक में अपनी कहानी में हमें ले जाता है। पेशे से सीए अरुण अपने दोस्त और दुश्मन मेहता (सौरभ शुक्ला) की फर्म में ब्लैक-वाइट मनी इधर-उधर करता है। इस काम में उसका कोई मुकाबला नहीं। जब से सिंगर प्रीति से मिला है धंधे पर असर पड़ रहा है। उधर तिहाड़ में बंद है कुलदीप सिंह चौधरी (अरुणोदय सिंह), अपनी बीवी शांति (अदिति राव हैदरी) से बहुत प्यार करता है, पर शांति को कुलदीप का धंधा पसंद नहीं। वह बड़े (यशपाल शर्मा) के साथ काम करता है। जेल में बंद बड़े का रूस में बैठा सौतेला भाई छोटे (प्रशांत नारायणन) बड़े के खातों की डिटेल लेने के बाद उसे मारने का प्लैन बना रहा है। आगे की कहानी मैं नहीं बताउंगा। इतना बता देता हूं कि प्रीति कैबिनेट मिनिस्टर वर्मा के होने वाले दामाद श्याम सिंघानिया (विपुल गुप्ता) से प्यार करती है। बड़े को जेल से छुड़ाने के लिए श्याम को किडनैप होना है। बस इतना ही। मूवी देखने जाएं तो ये कहानी भूल जाएं। नए सिरे से देखें। ढेर सारे कैरेक्टर हैं, पर ढेर सारे एंटरटेनमेंट के साथ।

कच्ची कैरी, अरुणोदय अदिति
अरुणोदय हिंदी फिल्मों के उन बाकी भारी डील-डौल वाले लड़कों की तरह नहीं हैं, जो मेट्रोसेक्सुअल तो दिखते हैं, पर रोल के मुताबिक ऑर्डिनरी नहीं लग पाते। पर अरुणोदय यहां खुद में ठेठपन लेकर आते हैं। फिल्म में बीवी शांति से बार-बार थप्पड़ खाते हैं, और अपने पत्थर जैसे चेहरे पर अपनी रूठी बीवी को तुरंत मनाने का भाव ले आते हैं। अरुणोदय के जेल वाले इंट्रोडक्टरी सीन देखिए। यहां वो इतने बलवान शरीर के होने के बावजूद एक आम कैदी की तरह डरे-डरे और रियलिस्टिक से रहते हैं। इस फिल्म के साथ वो इंडस्ट्री के कई नए लड़कों से आगे निकले हैं। इसमें सुधीर के उन्हें प्रस्तुत करने के तरीके को भी श्रेय जाता है। अदिति दिल्ली की चाल-ढाल वाली लड़की लगती हैं। एक ऐसे बच्चे की मां भी लगती हैं जिसका पिता जेल में है और सब जिम्मेदारी का बोझ उसी पर है। वो जब गुस्से में कुलदीप को साला कुत्ता कमीना... बोलती हैं तो उनके एक्सप्रैशन ओवरएक्टिंग नहीं लगते। चेहरे पर मुस्कान ले आते हैं। सिर्फ इस कपल की स्टोरी देखने के लिए ही मैं फिल्म दो बार और देख सकता हूं। जब भी दोनों फ्रेम में आते हैं तो फिल्म में कच्ची कैरी का सा स्वाद और खूबसूरती घुल जाती है। ये कपल झगड़ते हुए भी इतना रोमैंटिक लगता है, कि शादी से पहले के प्यार की गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड वाली कोई फिल्म नहीं लगी है। हम नए जमाने के 'राजों' और 'सिमरनों' से खुद को कनेक्ट शायद न कर पाएं, पर शांति और कुलदीप से कर पाते हैं।

अब हिंदी के एफ वर्ड
फिल्म में कर्स वर्ड और आम बोलचाल वाली गालियां खूब हैं। पर ये थोपी हुई नहीं लगतीं। इस बार सुधीर मिश्रा की फिल्म का एक मुख्य कैरेक्टर ये फाउल लेंग्वेज है। ज्यादातर वक्त पर परिस्थितियों के हिसाब से खुद-ब-खुद सामने आते बुरे शब्द हंसाते हैं। संभावना यही है कि फैमिली के साथ देखने आई ऑडियंस को ये पसंद नहीं आए, पर हिंदी बोलने-समझने वाली यंग ऑडियंस को सब बहुत नेचरल और मजेदार लगेगा। फिल्म की कहानी ही हरियाणा-दिल्ली के बीच डोलती है इसलिए वहां की बसों, गलियों, रोड़ों, फॉर्म हाउसों और मॉन्युमेंटों, सब जगह देसी एफ-सी-जी-एम-बी वर्ड घुले हैं। इस वजह से फाउल लेंग्वेज की ज्यादा शिकायत नहीं कर सकता। वैसे इन शब्दों का फिल्मों में न होना तो हमेशा ही स्वस्थ रहता है।

मोटा मोटी बातें
एक सीन में दूसरा सीन पूरी तरह गुंथा हुआ है, कहीं भी कट या एडिटिंग में खामी नहीं दिखती। किसी सिचुएशन में जो भी अपने आप मुंह में आ जाए वही सुधीर और मनु ऋषि के डायलॉग बन गए हैं। मनु ने ही दिबाकर बेनर्जी की 'ओए लक्की लक्की ओए’ के डायलॉग लिखे थे। आपने उन्हें मजेदार कॉमेडी 'फंस गए रे ओबामा’ में अन्नी के रोल में देखा होगा। 'ये साली जिंदगी’ की हाइलाइट है दिल्ली-हरियाणा की टोन और ठेठ देसी गालियां.. जो कैरेक्टर्स की एक-एक सांस के साथ बाहर निकलती रहती हैं। इंटरवल से पहले किडनैपिंग के प्रोसेस में फिल्म थोड़ी धीमी लगने लगती है, पर हर दूसरा-तीसरा डायलॉग गुदगुदी चालू रखता है। जब गाड़ियां छतरपुर के फार्म हाउसों और हरियाणा बॉर्डर की कच्ची सड़कों पर धूल उड़ाती चलती हैं तो पृष्ठभूमि में चल रहा सारारारारा.. गाना अलग ही असर पैदा करता चलता है।

कुछ कैरेक्टर अलग से
फ्लैशबैक में इरफान अपनी कहानी सबसे आसानी से सुनाते हैं। चाहे फिल्म का शुरुआती सीन हो जब मेहता के आदमी उन्हें बालकनी से लटका देते हैं या फिर क्लाइमैक्स से पहले कुलदीप से करोलबाग का पता बताकर बात करने का सीन, इरफान अपनी 'प्यार में साली हो गई जिंदगी’ वाला शेड बरकरार रखते हैं। वो एक परफैक्ट फिक्सर-सीए लगते हैं और बार-बार लगते हैं। चित्रागंदा ने अपने रोल में कोई कसर नहीं छोड़ी है, पर जो तल्खी और अभिनय-रस अदिति के कैरेक्टर को मिलते हैं उनके कैरेक्टर को नहीं मिलते। कुछ मूमेंट खास हैं फिल्म में। इंस्पेक्टर सतबीर बने सुशांत सिंह का पहले-पहल बावळी बूच.. कहने का अंदाज। बड़े के रोल में यशपाल शर्मा का कुलदीप से कहना क्या हुआ? डर लग रहा है? अबे जान ही तो जाएगी ना, पर कर्जा तो उतर जाएगा ना। इन पलों के अलावा पूरी की पूरी किडनैपिंग गैंग एक विस्तृत कैरेक्टर है। इसमें कोई प्योर हरियाणवी लोकगीत गाता है, तो कोई खास लहजे में अंग्रेजी बोलता है। सब फिल्मों के लिहाज से बिल्कुल ताजा लगता है।

आखिर में...
अरुणोदय का अपने बेटे के स्कूल जाना और प्रिंसिपल की शिकायत पर कि इसने दूसरे बच्चे को मारा उससे पूछना कि क्यों मारा? बड़ा इंट्रेस्टिंग सीन है। बच्चा कुछ-कुछ ऐसे जवाब देता है मेरी खोपड़ी घूम जाती है फिर मुझे कुछ दिखता नहीं है। बस दे घपा घपा.. बोलते वक्त बच्चे का हाव भाव और पिता अरुणोदय को उसमें दिखता अपना अक्स कुछ असहज जरूर लगे पर कमाल है। यहां अगर सुधीर इस सीन को न भी लाते तो उनसे कोई पूछने नहीं आता। मगर यहीं पर आकर, ऐसे ही एंटरटेनिंग पलों से ये साली जिंदगी बाकी क्राइम-थ्रिल-लव वाली स्टोरीज से अलग हो जाती है। (प्रकाशित)
गजेंद्र सिंह भाटी

Friday, February 4, 2011

थियेटर से खुश निकलेंगे, मेरी गांरटीः सुधीर मिश्रा

एक छोटा सा साक्षात्कार...
अब तक की बेस्ट कॉमेडी कही जाने वाली 'जाने भी दो यारों’ से सुधीर मिश्रा ने फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा। बाहैसियत स्क्रिप्टराइटर। उन्हें सबसे ज्यादा पसंद किया गया उनकी निर्देशित फिल्म 'चमेली’ और 'हजारों ख्वाहिशें ऐसी’ के लिए। कुछ खास सिनेमाई भाषा वाली फिल्में भी उन्होंने बनाई। अब सुधीर तैयार हैं अपनी फिल्म 'ये साली जिंदगी’ के साथ, जो इस शुक्रवार यानी चार फरवरी को रिलीज हो रही है। उनके मुताबिक ये उनकी सबसे एंटरटेनिंग फिल्म है। प्रस्तुत हैं उनसे मेरी बातचीत के कुछएक अंश:

अभी एक महीने पहले तक जब मैं आप तक पहुंचने की कोशिश कर रहा था, आप अपनी फिल्म 'तेरा क्या होगा जॉनी’ को रिलीज करने की तैयारी कर रहे थे। अब देखने में आया कि रिलीज हो रही है 'ये साली जिंदगी’?
हां, सही है। पहले और बाद का चक्कर था। पर मैं 'ये साली जिंदगी’ का को-प्रॉड्यूसर भी हूं। इसलिए इसकी रिलीज को लेकर श्योर हूं। ये आखिरकार चार फरवरी को रिलीज हो रही है। होर्डिंग लगे हुए हैं, पोस्टर लगे हुए हैं। प्रिंट-रिलीज सब फाइनल है। बस अब आपको थियेटर में जाकर देखनी है।

क्या ये दोनों ही फिल्में आपने साथ-साथ बनाई हैं?
नहीं, पहले मैंने 'तेरा क्या होगा जॉनी’ बनाई थी। उसमें पोस्ट प्रोडक्शन और दूसरी किस्म की दिक्कतें थीं। इसकी शूटिंग पूरी होने के बाद मैंने 'ये साली जिंदगी’ का शूट शुरू किया।

हर बार आप कुछ-कुछ डार्क और ब्लंट सी फिल्में बनाते हैं। इस फिल्म को देखना कैसा अनुभव होगा?
'ये साली जिंदगी’ के साथ मैंने पहली शर्त ही एंटरटेनमेंट की रखी। इस बार कोई एक्सपेरिमेंट नहीं, कोई डार्क शेड्स नहीं, सिर्फ एंटरटेनमेंट मिलेगा। ये लव स्टोरी और थ्रिलर है। इसमें एक डायलॉग है इसी से फिल्म को समझ सकते हैं ...लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे चू** आशिकी के चक्कर में मर गया और लौंडिया भी नहीं मिली। इश्क के खतरे क्या हैं इसी पर एक मनोरंजक टेक है। जब बुलेट और लव में से एक चीज चुननी हो तो आप क्या चुनेंगे यही सार है।

प्रोमो में अरुणोदय और अदिति के साथ वाले सीन काफी आकर्षक लग रहे हैं। इनका काम कैसा रहा है?
मूवी में इन दोनों का कपल काफी रोचक सा है। अरुणोदय ने तो बहुत ही बढिय़ा परफॉर्मेंस मूवी में दी है। देखिएगा, ये एक बहुत बड़ा स्टार बनेगा। इंडस्ट्री में ऐसा लड़का मैंने नहीं देखा। इसका बल्की और फिट शरीर भी है और गजब की एक्टिंग भी। ये लड़का छाएगा।

अदिति का 'दिल्ली-6’ में ग्लैमरस लुक नहीं था। क्या इस मूवी में भी ऐसा ही है?
यहां अदिति का कैरेक्टर बड़ा आजाद और कलरफुल है। कैरेक्टर से अलग देखें तो वो एक अच्छी डांसर है, सिंगर है, एक्ट्रेस है। बहुत आगे जाएगी। मैं हमेशा बोलता हूं, चूंकि मैं टैलेंट की कद्र करता हूं इसलिए प्रतिभा को तुरंत पहचान लेता हूं।

आप अपने हिसाब की मूवीज बनाते हैं और ऐसा लगता है कि उन्हें रिलीज करने में आपको हमेशा मुश्किलों का सामना करना पड़ता है?
देखिए, जहां तक सवाल 'ये साली जिंदगी’ का है तो उसे रिलीज करने में कोई दिक्कत नहीं हुई। क्योंकि ये एक एंटरटेनिंग मूवी थी। जब आप अपनी पसंद की फिल्म बनाएंगे तो इन दिक्कतों से तो गुजरना ही पड़ेगा।

जब एंटरटेनमेंट पर ही ध्यान दिया गया है तो फिर फिल्म का टाइटल 'ये साली जिंदगी’ कुछ एक्सपेरिमेंटल सा क्यों लगता है?
ये एक मुहावरे के तौर पर लिया है मैंने। दिल्ली की कहानी है और वहां इन्हीं मुहावरों में बात होती है। ये 'साली’ शब्द मैंने किसी गाली या गलत मतलब में नहीं लिया है। साली कोई गाली नहीं है। ये एक फनी वे में कहा गया है। जहां तक फिल्म से इसका कनेक्शन है तो मैं आपको गारंटी देता हूं कि आप थियेटर से खुश होकर, मुस्कराते और हंसते बाहर निकलेंगे।

आपकी हर फिल्म में मुंबई किसी न किसी रोल में मौजूद रहती है। क्या यहां भी है?
ये कहानी दिल्ली की है। इसलिए खासतौर पर इसमें यहीं की चीजें शूट होनी थीं। हमनें करोलबाग, गुड़गांव, हरियाणा बॉर्डर और पुरानी दिल्ली को चुना। यहां शूटिंग करके बड़ा मजा आया। मैं कह सकता हूं कि दिल्ली को इस अंदाज में आपने किसी भी फिल्म में नहीं देखा होगा।

पहले टाइटल आपने 'दिल दर-बदर’ रखा था। उसे बदल क्यों दिया?
जब फिल्म के लिए एक गाना लिख रहे थे तो ये सूझा। इसमें लाइन थीं,

जिंदगी पे तेरा मेरा किसी का न जोर है,
हम सोचते हैं कुछ वो साली सोचती कुछ और है,
हम चाहते यहां है साली जाती कहीं ओर है,
लम्हे और लम्हों के बीच ये टेढ़े मेढ़े मोड़ है,
ये जिंदगी, ये साली जिंदगी।


तो मुझे ये टाइटल पसंद आ गया। और फिर ये टाइटल मूवी की थीम को एक्सप्रेस भी करता है।

आप बड़े अंतराल लेकर फिल्में बनाते हैं। इस कहानी में ऐसी क्या बात थी कि आपने इसी पर फिल्म बनाई?
क्योंकि ये मनोरंजक थी। मैं भी काफी वक्त से ऐसी फिल्म बनाना चाहता था जिसे ज्यादा से ज्यादा लोग देख सकें। ऐसी फिल्म जो मजेदार हो। इसी वजह से मैं आकर्षित हुआ इस कहानी की तरफ। ये एक अलग सी लव स्टोरी है। इसमें थ्रिल का पहलू साथ-साथ चलता है।

इरफान, अरुणोदय, अदिति और चित्रांगदा में तो आपके दो यंग कपल हो गए। पर साथ-साथ सुशांत सिंह, यशपाल शर्मा, प्रशांत नारायणन और विपिन शर्मा जैसे मंझे हुए एक्टर भी फिल्म में हैं। क्या इसलिए कि एंटरटेनमेंट के साथ-साथ सीरियस एक्टिंग भी चलती रहे?
हां, कुछ-कुछ ऐसा ही है। सुशांत, विपिन और यशपाल फिल्म की वेल्यू और कंटेट क्वालिटी को बढ़ा देते हैं। सौरभ शुक्ला भी हैं, सौरभ तो बड़े कमाल हैं। ये सब मिलकर फिल्म को मजबूत करते हैं।

फिल्म में सितार प्लेयर निशात खां साब ने म्यूजिक दिया है। कैसा एक्सपीरिंयस रहा?
निशात साब बहुत बड़े आदमी हैं। उन्होंने कार्लोस सेनटाना, एरिक क्लेप्टन और जॉन मैकलॉफ्लिन जैसे बड़े आर्टिस्टों के साथ परफॉर्म किया है। लंदन के अलबर्ट हॉल तक उनका आर्ट पहुंचा है। म्यूजिक बहुत ही राहत भरा दिया है। क्यूं अलविदा... मेरा फेवरेट गाना है इस फिल्म के एलबम में से।
गजेंद्र सिंह भाटी (प्रकाशित)