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Thursday, January 26, 2023

Pathaan Film REVIEW

सत्यजीत रे ने कहा था कि वे इतनी फिल्में देख चुके थे कि हॉलीवुड की फिल्मों के विशिष्ट गुण देखकर बता देते थे कि किस स्टूडियो ने प्रोड्यूसर की है. एमजीएम ने कि पैरामाउंट ने, वॉर्नर ने या ट्वेंटीथ सेंचुरी फॉक्स ने. किस डायरेक्टर ने बनाई है - जॉन फोर्ड ने कि विलियम वाइलर ने. फ्रैंक कापरा से कि जॉर्ज स्टीवन्स ने. यशराज स्टूडियो के साथ भी यही बात है. उनकी फ़िल्मों को पहचानना बड़ा आसान है. इस लिहाज से पठान में कुछ ऐसी ताजगी और करार दिखता है जो यशराज से चला गया था.

पठान में प्रडिक्टेबिलिटी नहीं है. कुछ जगहों को छोड़कर आप गेस नहीं कर पाते कि क्या होगा. जो आप गेस करते हैं, वो होता नहीं है. विलेन अपने हर फैसले से दर्शक को आउटस्मार्ट करता है. ह्यूमर और डायलॉग्स वर्क करते हैं. घिसे पिटे नहीं है. जैसे - सलमान और शाहरुख का ओपनिंग सीन बहुत सहज और विटी राइटिंग का बढ़िया एग्जांपल है. क्रेडिट जाता है श्रीधर राघवन और अब्बास टायरवाला को. 

Full Review at Lallantop Cinema:


Saturday, December 17, 2022

Avatar The Way of Water Movie Review

जेम्स कैमरॉन पुराने प्रिय हैं. 2009 में पहली अवतार के वक्त भी उन्होंने अचरज में डाला था, इस बार फिर. ये भी हैरान करने वाली बात है कि कोई अपने जीवन के इतने अमूल्य वर्ष सिर्फ एक फ़िल्म या एक फ़िल्म सीरीज पर कैसे लगा सकता है? आखिर वो क्या चीज है जो ड्राइव करती होगी? पैसा? प्रसिद्धि? फिल्म आविष्कार? टॉप पर होने की हसरत? अमरत्व? जो भी वजह हो, वे लगा रहे हैं और भी समय. दुनिया की सिनेमा तकनीक में अवतार-2 कमाल की तब्दीलियां लाई है. सिनेमा को इसने अपनी थ्रीडी और मोशन कैप्चर तकनीक से इतना सक्षम किया है कि न जाने कितनी ही कहानियां कही जा सकती हैं, जो पहले मुमकिन न थीं. ख़ासकर यकीनी तरह से कह पाना. इसके इतर फ़िल्म अपनी लेखनी में औसत है. ये बात सिर्फ अवतार 2 पर ही लागू नहीं होती है, पूरा अमेरिकी फिल्म उद्योग ही इस चलन से ग्रस्त है. जैसे, इसकी पूरी फिल्ममेकिंग बड़ी सुव्यवस्थित और मैकेनिकल है, उसी तरह बीते काफी वक्त से इसकी तमाम फ़िल्म एक ही तरह के फ़िल्म लेखन से जूझ रही हैं. जिसे शायद जूझना मान भी नहीं रहे हैं. 

फ़िलहाल ये समीक्षा.

 "अवतार 2" / "अवतार द वे ऑफ वॉटर" रिव्यू - The Lallantop के लिए. 


Saturday, February 5, 2011

बुलेट और इश्क में मिला मनोरंजन

फिल्मः ये साली जिंदगी
डायरेक्टरः सुधीर मिश्रा
कास्टः इरफान खान, अरुणोदय सिंह, सौरभ शुक्ला, अदिति राव हैदरी, चित्रागंदा सिंह, यशपाल शर्मा, प्रशांत नारायणन, सुशांत सिंह, विपिन शुक्ला, विपुल गुप्ता
डायलॉगः मनु ऋषि और सुधीर मिश्रा
स्टारः 3.5

सुधीर मिश्रा की ये फिल्म अच्छी मिसाल है इस बात की कि ग्रे शेड्स में कभी 'कमीने’ जैसी फिल्म बनाना चाहें, तो आप उसे सौ फीसदी एंटरटेनिंग भी रख सकते हैं। फिल्म के क्रेडिट 'सिन सिटी’ और 'जेम्स बॉन्ड’ मूवीज के अंदाज में स्कैची से आते हैं। छूटते ही सौरभ शुक्ला की जबान में ठेठ हरियाणवी डायलॉग आ लगता है... रे घुस गी ना पुराणी दिल्ली अंदर और आ गे ना प्रैण भार (प्राण बाहर)... यहां जो सिनेमा शुरू होता है वो आखिर तक बांधे रखता है। फिल्म में बहुत बार हिंदी के कर्स वर्ड इस्तेमाल हुए हैं। हालांकि ये रेग्युलर और फनी लगते हैं, बाकी फैमिली के साथ जाना न जाना अपनी पसंद पर है। बेस्ट ऑप्शन है अपने फ्रेंड्स के साथ जाना। काफी दिन बाद कोई रिपीट वेल्यू वाली फिल्म आई है जिसे आप दूसरी और तीसरी बार देख सकते हैं। सौरभ शुक्ला, इरफान, अरुणोदय, अदिति, यशपाल शर्मा और किडनैपिंग गैंग के मेंबर्स खासे याद रहेंगे।

ये साली... क्या है कहानी?
अरुण (इरफान खान) को गोली लगी है, प्रीति (चित्रागंदा सिंह) उसे थामे है। यहीं से अरुण फ्लैशबैक में अपनी कहानी में हमें ले जाता है। पेशे से सीए अरुण अपने दोस्त और दुश्मन मेहता (सौरभ शुक्ला) की फर्म में ब्लैक-वाइट मनी इधर-उधर करता है। इस काम में उसका कोई मुकाबला नहीं। जब से सिंगर प्रीति से मिला है धंधे पर असर पड़ रहा है। उधर तिहाड़ में बंद है कुलदीप सिंह चौधरी (अरुणोदय सिंह), अपनी बीवी शांति (अदिति राव हैदरी) से बहुत प्यार करता है, पर शांति को कुलदीप का धंधा पसंद नहीं। वह बड़े (यशपाल शर्मा) के साथ काम करता है। जेल में बंद बड़े का रूस में बैठा सौतेला भाई छोटे (प्रशांत नारायणन) बड़े के खातों की डिटेल लेने के बाद उसे मारने का प्लैन बना रहा है। आगे की कहानी मैं नहीं बताउंगा। इतना बता देता हूं कि प्रीति कैबिनेट मिनिस्टर वर्मा के होने वाले दामाद श्याम सिंघानिया (विपुल गुप्ता) से प्यार करती है। बड़े को जेल से छुड़ाने के लिए श्याम को किडनैप होना है। बस इतना ही। मूवी देखने जाएं तो ये कहानी भूल जाएं। नए सिरे से देखें। ढेर सारे कैरेक्टर हैं, पर ढेर सारे एंटरटेनमेंट के साथ।

कच्ची कैरी, अरुणोदय अदिति
अरुणोदय हिंदी फिल्मों के उन बाकी भारी डील-डौल वाले लड़कों की तरह नहीं हैं, जो मेट्रोसेक्सुअल तो दिखते हैं, पर रोल के मुताबिक ऑर्डिनरी नहीं लग पाते। पर अरुणोदय यहां खुद में ठेठपन लेकर आते हैं। फिल्म में बीवी शांति से बार-बार थप्पड़ खाते हैं, और अपने पत्थर जैसे चेहरे पर अपनी रूठी बीवी को तुरंत मनाने का भाव ले आते हैं। अरुणोदय के जेल वाले इंट्रोडक्टरी सीन देखिए। यहां वो इतने बलवान शरीर के होने के बावजूद एक आम कैदी की तरह डरे-डरे और रियलिस्टिक से रहते हैं। इस फिल्म के साथ वो इंडस्ट्री के कई नए लड़कों से आगे निकले हैं। इसमें सुधीर के उन्हें प्रस्तुत करने के तरीके को भी श्रेय जाता है। अदिति दिल्ली की चाल-ढाल वाली लड़की लगती हैं। एक ऐसे बच्चे की मां भी लगती हैं जिसका पिता जेल में है और सब जिम्मेदारी का बोझ उसी पर है। वो जब गुस्से में कुलदीप को साला कुत्ता कमीना... बोलती हैं तो उनके एक्सप्रैशन ओवरएक्टिंग नहीं लगते। चेहरे पर मुस्कान ले आते हैं। सिर्फ इस कपल की स्टोरी देखने के लिए ही मैं फिल्म दो बार और देख सकता हूं। जब भी दोनों फ्रेम में आते हैं तो फिल्म में कच्ची कैरी का सा स्वाद और खूबसूरती घुल जाती है। ये कपल झगड़ते हुए भी इतना रोमैंटिक लगता है, कि शादी से पहले के प्यार की गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड वाली कोई फिल्म नहीं लगी है। हम नए जमाने के 'राजों' और 'सिमरनों' से खुद को कनेक्ट शायद न कर पाएं, पर शांति और कुलदीप से कर पाते हैं।

अब हिंदी के एफ वर्ड
फिल्म में कर्स वर्ड और आम बोलचाल वाली गालियां खूब हैं। पर ये थोपी हुई नहीं लगतीं। इस बार सुधीर मिश्रा की फिल्म का एक मुख्य कैरेक्टर ये फाउल लेंग्वेज है। ज्यादातर वक्त पर परिस्थितियों के हिसाब से खुद-ब-खुद सामने आते बुरे शब्द हंसाते हैं। संभावना यही है कि फैमिली के साथ देखने आई ऑडियंस को ये पसंद नहीं आए, पर हिंदी बोलने-समझने वाली यंग ऑडियंस को सब बहुत नेचरल और मजेदार लगेगा। फिल्म की कहानी ही हरियाणा-दिल्ली के बीच डोलती है इसलिए वहां की बसों, गलियों, रोड़ों, फॉर्म हाउसों और मॉन्युमेंटों, सब जगह देसी एफ-सी-जी-एम-बी वर्ड घुले हैं। इस वजह से फाउल लेंग्वेज की ज्यादा शिकायत नहीं कर सकता। वैसे इन शब्दों का फिल्मों में न होना तो हमेशा ही स्वस्थ रहता है।

मोटा मोटी बातें
एक सीन में दूसरा सीन पूरी तरह गुंथा हुआ है, कहीं भी कट या एडिटिंग में खामी नहीं दिखती। किसी सिचुएशन में जो भी अपने आप मुंह में आ जाए वही सुधीर और मनु ऋषि के डायलॉग बन गए हैं। मनु ने ही दिबाकर बेनर्जी की 'ओए लक्की लक्की ओए’ के डायलॉग लिखे थे। आपने उन्हें मजेदार कॉमेडी 'फंस गए रे ओबामा’ में अन्नी के रोल में देखा होगा। 'ये साली जिंदगी’ की हाइलाइट है दिल्ली-हरियाणा की टोन और ठेठ देसी गालियां.. जो कैरेक्टर्स की एक-एक सांस के साथ बाहर निकलती रहती हैं। इंटरवल से पहले किडनैपिंग के प्रोसेस में फिल्म थोड़ी धीमी लगने लगती है, पर हर दूसरा-तीसरा डायलॉग गुदगुदी चालू रखता है। जब गाड़ियां छतरपुर के फार्म हाउसों और हरियाणा बॉर्डर की कच्ची सड़कों पर धूल उड़ाती चलती हैं तो पृष्ठभूमि में चल रहा सारारारारा.. गाना अलग ही असर पैदा करता चलता है।

कुछ कैरेक्टर अलग से
फ्लैशबैक में इरफान अपनी कहानी सबसे आसानी से सुनाते हैं। चाहे फिल्म का शुरुआती सीन हो जब मेहता के आदमी उन्हें बालकनी से लटका देते हैं या फिर क्लाइमैक्स से पहले कुलदीप से करोलबाग का पता बताकर बात करने का सीन, इरफान अपनी 'प्यार में साली हो गई जिंदगी’ वाला शेड बरकरार रखते हैं। वो एक परफैक्ट फिक्सर-सीए लगते हैं और बार-बार लगते हैं। चित्रागंदा ने अपने रोल में कोई कसर नहीं छोड़ी है, पर जो तल्खी और अभिनय-रस अदिति के कैरेक्टर को मिलते हैं उनके कैरेक्टर को नहीं मिलते। कुछ मूमेंट खास हैं फिल्म में। इंस्पेक्टर सतबीर बने सुशांत सिंह का पहले-पहल बावळी बूच.. कहने का अंदाज। बड़े के रोल में यशपाल शर्मा का कुलदीप से कहना क्या हुआ? डर लग रहा है? अबे जान ही तो जाएगी ना, पर कर्जा तो उतर जाएगा ना। इन पलों के अलावा पूरी की पूरी किडनैपिंग गैंग एक विस्तृत कैरेक्टर है। इसमें कोई प्योर हरियाणवी लोकगीत गाता है, तो कोई खास लहजे में अंग्रेजी बोलता है। सब फिल्मों के लिहाज से बिल्कुल ताजा लगता है।

आखिर में...
अरुणोदय का अपने बेटे के स्कूल जाना और प्रिंसिपल की शिकायत पर कि इसने दूसरे बच्चे को मारा उससे पूछना कि क्यों मारा? बड़ा इंट्रेस्टिंग सीन है। बच्चा कुछ-कुछ ऐसे जवाब देता है मेरी खोपड़ी घूम जाती है फिर मुझे कुछ दिखता नहीं है। बस दे घपा घपा.. बोलते वक्त बच्चे का हाव भाव और पिता अरुणोदय को उसमें दिखता अपना अक्स कुछ असहज जरूर लगे पर कमाल है। यहां अगर सुधीर इस सीन को न भी लाते तो उनसे कोई पूछने नहीं आता। मगर यहीं पर आकर, ऐसे ही एंटरटेनिंग पलों से ये साली जिंदगी बाकी क्राइम-थ्रिल-लव वाली स्टोरीज से अलग हो जाती है। (प्रकाशित)
गजेंद्र सिंह भाटी