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Sunday, March 4, 2012

अच्छा है अब भारत के भीतर से पान सिंह तोमरों की कहानी सुनाने कुछ इरफान, कुछ धूलिया आए हैं

फिल्मः पान सिंह तोमर
निर्देशकः तिग्मांशु धूलिया
कास्टः इरफान खान, माही गिल, विपिन शर्मा, राजेंद्र गुप्ता, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, इमरान हस्नी
स्टारः चार, 4.0/5कई सुनहरे दृश्यों में ये एक अटककर साथ चला आया है। पान सिंह नेशनल बाधा दौड़ के ट्रैक पर दौड़ रहा है। कोच रंधावा (राजेंद्र गुप्ता) को जब लगता है कि वह धीरे दौड़ रहा है तो चिल्लाकर कहते हैं, "ओए पान सिंह, मा**** याद रखना, अगर हार गया तो तुझे मार-मारकर यहीं के यहीं गाड़ दूंगा।" जब पान सिंह जीत जाता है तो रंधावा बड़े राजी होते हैं, शाबासी देते हैं, पर वह कुछ नाराज है। रंधावा जब उससे पूछते हैं, तो वह रुआंसा होकर कहता है, "कोच साब आप गुरू हैं, लेकिन दोबारा मां की गाली नहीं देना। हमारे गांव में मां की गाली देने वाले को हम गोली मार देते हैं।" इतना कहकर वह रंधावा के पैर छू लेता है। और वो उसे गले लगा लेते हैं।
अब देखिए कि कितना सहज लेकिन धमाकेदार सीन है। ये फिल्म कुछ ऐसी ही है। हालांकि मैं पान सिंह की विचारधारा से सहमत नहीं हूं, हालांकि ट्रैक पर दौड़ने वाले सीन में इरफान की कमजोर शारीरिक क्षमता साफ दिखती है पर तिग्मांशु का कुशल निर्देशन और आरती बजाज की चतुर एडिटिंग उस हिस्से को छिपाते रहते हैं, पर फिल्म बहुत पंसद आई। रॉ, सुंदर, कथ्यात्मक, रुलाने वाली, बांधे रखने वाली और अनुभवों से भरी हुई।

निर्देशक तिग्मांशु धूलिया पान सिंह नाम के इंसान को कितना गहराई से समझते और हमें समझाते हैं, फिल्म यहीं पर सबसे पहले जीतती है। उनके सभी किरदार कैमरे के अस्तित्व को जैसे नकारकर अभिनय करते हैं। पत्रकार बने बृजेंद्र काला, इरफान खान और माही हमारी सिनेमा देखने वाली इंद्रियों को भीतर तक तृप्त करते हैं। बृजेंद्र का अभिनय, अभिनय कम और किसी महीन डिजाइन वाले स्वेटर की बुनावट ज्यादा लगता है। पान सिंह का इंटरव्यू लेने का उनका पूरा सीक्वेंस यादगार है। इरफान के आर्मी वाले दिनों के जितने भी सीन हैं, बेहतरीन हैं। उनमें वह अपने ही अभिनय में नई परतें जोड़ते हैं। ये उनकी जिंदगी की सबसे कठिन फिल्म है। माही को मैं अब 'देव डी' के लिए नहीं 'पान सिंह तोमर' के लिए याद रखूंगा। ये फिल्म इंडस्ट्री में उनकी इज्जत बहुत बढ़ा जाएगी। इरफान-माही का सबसे कच्चा और पिघला देने वाला सीन है, जब इरफान घर के एक कोने में उनकी पीठ पर बच्चे की तरह अपना सिर टिका देते हैं। मैंने इससे ज्यादा रॉ सीन बरसों से किसी हिंदी फिल्म में नहीं देखा है। फिल्म के आखिर में मुल्क के उन खिलाडिय़ों को ट्रिब्यूट दी गई है, जिन्होंने ताउम्र देश को खेलों में मेडल दिलाए, पर जरूरत के वक्त मुल्क और सरकारों ने उनका साथ छोड़ दिया। फिल्म से 'आओ घर आओ चंदा' और 'जाओ ढल जाओ' जैसे गाने याद आते हैं। कर्णप्रिय और कहानी को रोचक बनाते हुए। फिल्म में पान सिंह तोमर जरूर देखें। प्रभावित होंगे।

कहानी एक तकड़े तोमर की
बहुत स्पष्ट, मेहनती और आम आदमी है पान सिंह तोमर (इरफान खान)। कब का गया 1950 में गांव लौटता है तो फौजी वर्दी में। घर में मां और बीवी इंदिरा (माही गिल) हैं। दौडऩे को वह एंजॉय करता है, इसलिए अपने साथी सैनिकों में सबसे अलग लगता है। वहां मेजर मसंद (विपिन शर्मा) उसकी मदद स्पोट्र्स में जाने में करते हैं। स्टीपलचेज में उसे कोच करते हैं रंधावा (राजेंद्र गुप्ता)। वह जीतता भी है। मगर फिर उसकी जिंदगी उसे खेलों से दूर कर, हाथ में राइफल और नसीब में चंबल के बीहड़ थमा देती है। ये कहानी जितनी औसत लग रही है, परदे पर उतनी ही इंट्रेस्टिंग लगती है। हर पल।*** *** *** *** ***
गजेंद्र सिंह भाटी

Saturday, February 26, 2011

एक फेरा तनु-मनु और पप्पी जी का

फिल्मः तनु वेड्स मनु
निर्देशकः आनंद एल. रॉय
कास्टः आर. माधवन, कंगना रानाउत, दीपक डोबरियाल, स्वरा भास्कर, एजाज खान, राजेंद्र गुप्ता, जिमी शेरगिल
स्टारः तीन स्टार 03

अच्छी बात ये है कि 'तनु वेड्स मनु' बॉलीवुड की कोई फिक्स फॉर्म्युला वाली लव स्टोरी नहीं है। ये अरैंज्ड मैरिज वालों की फिल्म है, जिन्हें कॉलेज या बस स्टॉप पर प्यार नहीं होता। होता है तो सूरज बड़जात्या की 'विवाह' की तरह पहली बार लड़की देखने उसके घर जाने के वक्त से होता है, फिर टूटता-बिखरता रहता है। गुंजाइश थी कि ये इंटरवल के बाद 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' जैसी ड्रमैटिक या लंबे-लंबे डायलॉग वाली फिल्म हो जाती, पर डायरेक्टर आनंद राय ने तनु-मनु के प्यार की जर्नी को उससे बिल्कुल अलग रखा है। ये फिल्म 'ब्रेक के बाद' और 'आई हेट लव स्टोरीज' की तरह फेक या कॉस्मेटिक्स में दबी परतों वाली मूवी भी नहीं है। हां, इतना जरूर है कि कम उम्र वाली जेनरेशन के मन में पप्पीजी, मन्नू, तनु और पायल की कई अदाएं हमेशा के लिए बस जाएंगी। कुछ फिल्में ऐसी होती हैं जिन्हें एक बार देखा जा सकता है, मगर 'तनु वेड्स मनु' एक ऐसी फिल्म है जिसे एक बार तो जरूर देखना चाहिए। फिल्म का एक भी सेकेंड बासी नहीं लगता, ये मनोरंजन के मामले में कम-बेशी लग सकती है। जो भी हो ऐसी फिल्में जरूर बनती रहनी चाहिए।

आशकां दा दरस
एक बड़ी इनोवेटिव सी स्टार्ट के बाद हम पहुंच जाते हैं चमनगंज कानपुर। लंदन में डॉक्टर मनोज शर्मा उर्फ मनु (आर. माधवन) अपने मां-पिता और दोस्त पप्पी (दीपक डोबरियाल) के साथ आया है त्रिवेदी जी (राजेंद्र गुप्ता) के घर उनकी लड़की तनुजा उर्फ तनु (कंगना रानाउत) को देखने। लड़की को जैसे-तैसे देखने के बाद वह हां कर देता है, पर शादी नहीं होती। अब हम पहुंचते हैं कपूरथला। यहां मनु के दोस्त जस्सी (एजाज खान) और तनु के साथ दिल्ली में पढ़ी बिहार की पायल (स्वरा भास्कर) की शादी है। बगावती और रॉकेट से तेज तनु और भलाई पुरुष मनु यहां भी मिलते हैं। फिर कुछ दिक्कतें सामने आती हैं। अपने अलग ही रंग के साथ मूवी आगे बढ़ती है। फिल्म की प्रेजेंटेशन और फिल्म की कॉमन मैन वाली दुनिया सबसे खास है, जो कहीं भी ग्लैमर-एंटरटेनमेंट कोशंट को कम नहीं होने देती।

एक्सक्लूसिव कॉमन लोग
कानपुर, दिल्ली और कपूरथला की छतें एक्सक्लूसिवली आपको यहां दिखेंगी। छतों पर पप्पी और मनु की खाट दिखती हैं। इनके साथ घर का सामान, छत पर बने कमरे का पुराना घिसा हुआ लकड़ी का दरवाजा, रस्सी पर और इधर-उधर सूखते रोजमर्रा के फीके कपड़े इस घर को फिल्मी नहीं असल रिहाइश बना देते हैं। ऐसी ही मेहनत कैरेक्टर्स पर हुई है। मूवी को खास लोकल और कॉमन कैरेक्टर्स वाली बनाने में मदद करते हैं आस-पास मोहम्मद रफी के पुराने गाने, गोविंदा के टिपिकल ट्रक-टैक्सी छाप गाने, ओल्ड मॉन्क का पव्वा, टीवी पर चलता सीरियल 'बालिका वधू', डिस्कवरी पर घोड़े-घोड़ी
के प्रेम और सहवास की बातें, विविध भारती पर अमीन सयानी की आवाज में फिल्मी गानों का फरमाइशी प्रोग्रैम और क्लाइमैक्स में किसी असल अंधेरी सड़क पर आमने-सामने खड़ी दो बारातें। इन दिनों 'बैंड बाजा बारात' और 'दो दूनी चार' जैसी कई फिल्में आई हैं जिनमें कहानी, किरदार, लोकेशन और घरों की डीटेल्स पर ईमानदारी से काम किया गया। ये फिल्म उनमें से एक है।

ये तो हम हैं
फिल्म की एक खास बात ये रही कि इसमें कोई भी परफैक्ट मॉडल जैसे चेहरे-मोहरे वाला नहीं है। आर. माधवन, दीपक डोबरियाल, कंगना, स्वरा, एजाज, जिमी शेरगिल और फिल्म के सभी साइड आर्टिस्ट अपने-अपने कैरेक्टर की खामियों-खूबियों के साथ हैं। इनमें से कुछ तो दीवाना कर देते हैं। कंगना का दीपक के कैरेक्टर को ओए पप्पी जी... कहने का अंदाज हो या स्वरा का बिहारी एक्सेंट में लगाएंगे दो लप्पड़ अभी... .. दोनों ही अदाओं के साथ आते हैं। शादी के संगीत में कंगना ने नाचते वक्त जो ब्रोकेड का सूट पहना है या क्रेडिट्स के वक्त जुगनी...सॉन्ग में उनकी फुल स्लीव्ज ब्लाउज वाली लाल साड़ी जरूर औरतों और लड़कियों का ध्यान खींचेगी। माधवन कुछएक जोड़ी टी-शर्ट-पैंट और लोअर में पूरी फिल्म कर लेते हैं, ये भी एक तथ्य है।

खास जिक्र
अपने कैरेक्टर को पकड़ने में खुद के मैनरिज्म, बर्ताव, शरीर के ढंग और आवाज में सबसे ज्यादा बदलाव किया है दीपक डोबरियाल ने। दीपक ने अपनी आवाज को यूपी की मूल टोन वाली आवाज सा बनाया है। हालांकि सीधे-सीधे देखने पर इसमें कोई एफर्ट नहीं दिखता है, पर लगा बहुत है। इससे पहले उस प्रदेश की आवाज वाले जिन कॉमेडी करते फिल्मी इंसानों को दिखाया जाता था, वो किरदार नपे-तुले और सांचों में ढले होते थे। दीपक ने अपने इस कैरेक्टर से उन सब किरदारों को इस घिसे-पिटे मजाक से मुक्त किया है।

हैपी मूमेंट
मनु घर की छत पर चारपाई पर लेटा मोहम्मद रफी के सैड सॉन्ग सुन रहा है। पप्पी बात करते हुए कहता है, 'अगर तनु जी आपकी किस्मत में लिखी हैं तो आप उनको लंदन साथ लेकर जाओगे, वरना भईय्या जितने चाहे मोहम्मद रफी के गाने गा लो, कुछ नहीं होना।' ये फिल्म का दूसरा सबसे अच्छा डायलॉग है। पहले नंबर पर भी है दीपक डोबरियाल का ही सीन और डायलॉग। अपना नाम बताने से पहले पप्पी का झूमकर शरमाकर कहना कि नाम लिखकर बताएं कि दे कर... शायद 'तनु वेड्स मनु' का सबसे मनोरंजक और उम्दा सिचुएशनल डायलॉग है।

रंगरेज संगीत
ट्रेन में तनु और मनु की फैमिली पिकनिक पर जा रही है और लड़कियां शादी-ब्याह के गीत की तरह ..तब मन्नू भइय्या का करिहें .. गाना ट्रेन में गा रही हैं। फिल्म के नएपन और थीम को बेहतर करते हैं इस गाने के बोल। फिल्म की धड़कन का काम करता है वडाली ब्रदर्स की आवाज में गाया राजशेखर का लिखा गीत। कृष्णा ने इसके म्यूजिक को फोक-फिल्मी तेवर का ही रखा है। बोल हैं...ए रंगरेज मेरे, ये बात बता रंगरेज मेरे, ये कौन से पाणी में तूने, कौन सा रंग घोला है.. के दिल बन गया सौदाई।

आखिर में...
बेस्ट परफॉर्मर मुझे लगे दीपक डोबरियाल। 'दाएं या बाएं' इनकी पिछली फिल्म का नाम था, जिसे मौका मिले तो डीवीडी पर जरूर देखें। कोई एक दशक पहले तक टेली सीरिज 'स्टार बेस्टसेलर' में पहली बार नजर आए दिल्ली के इस थियेटर एक्टर ने इस कमर्शियल फिल्म में भी खुद को प्रूव करके दिखाया है। उनको देखना एक डिलाइट है।
(प्रकाशित)
गजेंद्र सिंह भाटी