निर्देशकः सुपवित्र बाबुल
कास्टः पुलकित सम्राट, अमिता पाठक
स्टारः ढाई, 2.5
मगर इसे निभाने में पुलकित सम्राट गजब के नहीं लगते हैं। उनका पंजाबी एक्सेंट लडख़ड़ाता है। चेहरे पर भाव भी एकसर ही हैं। हंसने के सीन में उनका चेहरा कॉमिकल नहीं होता और रोने के सीन में कलेजा नहीं फटता। ऐसा ही अमिता की एक्टिंग के साथ है। जब उनकी किरदार मृणालिनी बिट्टू को एक चैनल हेड से मिलवाने ले जाती है, तो ऑफिस से बाहर आने के बाद उनका लडऩे का अंदाज बड़ा ही लाउड है, कर्कष है। कान दुखने लगते हैं। दुख के साथ कहूंगा कि अमिता भावहीन अभिनय करती हैं। उन्हें कुछ दिन थियेटर और नाटकों में गुजारने चाहिए। सुपवित्र बाबुल का निर्देशन इंटरवल के बाद कमाल का होता है, पर आखिर में रफ्तार और नए तरीके के क्लाइमैक्स की गाड़ी पंचर होकर चलती है। गौतम मेहरा के डायलॉग फीके हैं। लेकिन इन सबके बावजूद कहूंगा कि एक बार 'बिट्टू बॉस’ जरूर देखें। अलग लगेगा, अच्छा भी लगेगा। शिमला में शादीशुदा जोड़ों की फिल्में बनाने गया बिट्टू कैसे एक-दो कपल्स की मदद करता है, इसका लुत्फ उठाने के लिए ही सही।
इसकी कहानी एक आदर्श वीडियोग्राफर की है। कहा जाता है कि आनंदपुर, पंजाब में किसी के घर शादी की रस्में शुरू नहीं होतीं, जब तक बिट्टू (पुलकित) वीडियोग्राफर नहीं पहुंच जाए। खुशमिजाज, टशन वाला और भले दिल का बिट्टू ऐसी ही एक शादी में मृणालिनी (अमिता) से टकरा जाता है। रुकावटों के बाद प्यार होता भी है तो मृणालिनी बिट्टू के अडिय़ल मगर सच्चे रवैये से नाराज होकर कहती है कि वह कभी सक्सेसफुल नहीं हो सकता। इन बातों को दिल पर ले वह पैसे कमाने के गलत रास्ते को चुन लेता है। मगर उसके भीतर का भला इंसान क्या उसे बुरा करने देगा? नहीं करने देगा तो अमिता कैसे मिलेगी? इन सवालों के साथ कहानी नए तरीके से आगे बढ़ती है।
मेरे कलेजे को ठंडक मिली इस फिल्म के जरिए एक निर्मल कॉमिक किरदार के फिल्मों में प्रवेश से। चाहे उन्हें आगे फिल्मों में उनके मुताबिक रोल न ही मिल पाएं, पर वो यहां लुभाते हैं। उनका निभाया किरदार शिमला में बिट्टू को टैक्सी चलाते हुए मिलता है। दुर्भाग्य से इन एक्टर का नाम नहीं पता, पर परदे पर उन्हें देख कोई हंसे बिना नहीं रहेगा।
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गजेंद्र सिंह भाटी