डायरेक्टरः राज कुमार गुप्ता
कास्टः विद्या बालन, रानी मुखर्जी, मोहम्मद जीशान, माइरा, राजेश शर्मा
स्टारः तीन***
पोस्टर देखने से ये अंदाजा नहीं होता कि 'नो वन किल्ड जेसिका' किस किस्म का एंटरटेनमेंट है। एजुकेट करने वाला, एंटरटेनमेंट देने वाला, सिनेमैटिकली संतुष्ट करने वाला या फिर चटख एक्टिंग और मजबूत स्क्रीनप्ले की खुशी देने वाला। जब 2011 की जनवरी का पहला शुक्रवार आता है, तो जवाब मिल जाता है। 'आमिर' के

तो किसने मारा जेसिका को?
पोकरण में परमाणु परीक्षण हुए ही हैं, मीरा गैती (रानी मुखर्जी) एक रिपोर्टर के तौर पर अपने पहले बड़े असाइनमेंट करगिल वॉर के बारे में बता रही हैं। कहती हैं कि '1999 में करगिल की तोपें अभी शांत नहीं हुर्इं थी कि देश की राजधानी दिल्ली में एक फूट पड़ी।' इशारा है दिल्ली की मॉडल जेसिका लाल (माइरा) की ओर। मीरा कहानी कहती चलती है। सोशलाइट मल्लिका सहगल (बबल्स सब्बरवाल) के रेस्टोरेंट 'केनोज' में 29 अप्रैल 1999 को यहां की गेस्ट बारटेंडर जेसिका को गोली मार दी जाती है। मारने वाला हरियाणा सरकार की केबिनेट में मंत्री प्रमोद भारद्वाज (शिरीष शर्मा) का बेटा मनीष भारद्वाज (मोहम्मद जीशान) है। जेसिका की बहन सबरीना (विद्या बालन) रोते-बिलखते अपनी बहन के हत्यारों को न्याय दिलाने की ठान लेती है, पर एक-एक करके उसकी मुश्किलें बढ़ती रहती हैं। जेसिका का दोस्त और प्रमुख चश्मदीद गवाह विक्रम जयसिंह (नील भूपलम) बयान से मुकर जाता है। बाद में मूवी में मीरा की फुल एंट्री होती है और जाना-पहचाना क्लाइमैक्स उभरता है। मूवी का ट्रीटमेंट, डायरेक्शन और बड़ी सी कास्ट के नए चेहरे फिल्म को फ्रैश बनाए रखते हैं।
'आईसी 814' के कंधार हाइजैक वाले सीन में रानी के न्यूज पढ़ने का सीन रद्दी क्वालिटी का है। उन जैसी एक्ट्रेस से इतनी सतही एक्टिंग की उम्मीद नहीं थी। सिगरेट पीती, न्यूजरीडिंग करती, एफ..वर्ड बोलती, खुद को बिच कहती रानी इन सीन में ठीक तो लग सकती हैं, पर अपने रोल में वो

मूवी में बारीकियों का इतना ध्यान रखा गया है कि केस के शुरुआतों दिनों में न्यूज चैनल की स्क्रीन बार पर सेंसेक्स 3,128 पॉइंट पर दिखता है। कोर्टरूम ड्रामा का जितना हिस्सा भी है बिल्कुल असली है। कोर्टरूम की

बेटे मनीष को सजा से बचाने के लिए घर पर अंकल लोग बात कर रहे हैं, रेफरेंस है जेसिका केस से जुड़े असली वकीलों का, अंदाजा लगाइए कौन है। डायलॉग है ..भाई साहब, बी. एल. पंडित को ले लेते हैं। 50 पर्सेंट सक्सेस का रिकॉर्ड है। और वो दूसरा 100 पर्सेंट रिकॉर्ड वाला? सुरेश दुलाऩी। अरे अब वो केस नहीं लेता।.. जेसिका लाल बनी माइरा की एक्टिंग शुरू के सीन में 'हजारों ख्वाहिशें ऐसी' की चित्रांगदा सिंह की याद दिलाती है। मूवी का दूसरा बेस्ट डायलॉग उनके हिस्से आया है। सड़क किनारे जेसिका-सबरीना जा रही हैं। पास से गुजरी बाइक पर पीछे बैठा आदमी सबरीना पर हाथ मारता है और जेसिका उसके पीछे दौड़ती है, उसे पकड़कर पीटती है और उस आदमी के माफी मांगकर भाग जाने के बाद सबरीना से कहती हैं ... भेंजी तू भेन्जी ही रहेगी, लड़ना सीख। ये दिल्ली है दिल्ली, आज छूकर गया है, कल रेप करके जाएगा.... माइरा की ये इंटेंस डायलॉग डिलीवरी खास है। मनीष भारद्वाज के कैरेक्टर का एक डायलॉग कल्ट है। उसके बोलने का अंदाज मोहम्मद जीशान के डायलॉग पर किए अपने काम को दर्शाता है। '...सर, सर गुस्सा आ गया था मुझे। हजार रुपए तक देणे के लिए तैयार था मैं, वो फिर भी ड्रिंक्स देणे के लिए मना कर रही थी सर। .... फिर ? ...फिर मैंने पिस्टल निकाल ली।' सिंपली ब्रिलियंट। मनीष की मां के कैरेक्टर में एक्ट्रेस का बार-बार पति से कहना... कुछ भी हो जी, मेरे मोनू को कुछ नहीं होना चाहिए.. फनी तरीके से ही सही, ज्यादातर माओं की अंधी ममता को अच्छे से साथ लेकर चलता है।
फिल्म की आधी जान है अमित का म्यूजिक। अमिताभ भट्टाचार्य के लिखे गाने पूरे वक्त फ्रैश रखते हैं। टेंस इश्यू होने के बावजूद मूवी में आप टेंस नहीं होते, बल्कि अपनी रगों में एंटरटेनमेंट और स्टोरीटेलिंग को फील करते

# ये पल, जो हैं वो हादसे हैं... बहुत ही सॉफ्ट और मार्मिक गाना है।
# जार जार हुआ एतबार, टुकड़े हजार हुआ एतबार... मूवी के एक हिस्से को एक्सप्लोर करता है। केस के मजबूत विटनेस पुलिस को दिए अपने बयान से कोर्ट में पलट गए हैं। एक कमजोर बहन सबरीना का एतबार टूट गया। अब वो दिल्ली की सड़कों पर से इन इमोशंस के साथ गुजर रही है। एक रुपए की पानी की गिलास पीते हुए, डीटीसी की बस में लटककर चलते हुए, राह पर हाथी से टकराते हुए। इन्हीं भावों को आगे बढ़ाती गाने की एक लाइन देखें... झुलसी हुई रुह के, चिथड़े पड़े बिखरे हुए.. उड़ती हुई उम्मीद, रोंदे जिन्हें कदमों तले।