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Thursday, June 9, 2011

कुछ बन गया तो भी ऐसे ही मिलूंगा और समय से मिलूंगाः प्रवेश राणा

गजेंद्र सिंह भाटी

इन मुलाकातों के साथ मुश्किलें ये हैं कि आपको इनको जहर मुंह लगे सवाल नहीं पूछने होते हैं। ये और बात है कि अपने कार्यक्रमों में ये खूब इमोशनल अत्याचार करते हैं, एक्स फैक्टर वाले बनते हैं, खुद को बिंदास कहते हैं। फिर होता ये है कि अगर चैनल के प्रोग्रामिंग हैड को आप एक ढंग का सवाल पूछ लो तो उन्हें चक्कर आने लगता है। यकीन मानिए, इस वक्त मैं खुद को अपराधी मानने लगा था। सोचा ये फील्ड छोड़ दूं, क्योंकि यहां सतही बातें हैं और सब उसमें राजी हैं, सार्थक को यहां जगह नहीं है। आइए, मोफत का मीठा खाइए, मुस्कराइए, चाशनी भरे सवाल करिए और चले जाइए। ये प्रारुप तो बड़ा डरावना लगता है। पर है भी तो यही। आखिर 'दादागिरी अगेंस्ट टैरेरिज्मः ग्लैमराइज्ड देशभक्ति (चार साल में कैप्टन-मेजर की रेंक लेकर भारतीय सेना छोड़ चुके लड़कों की मदद से)', 'इमोशनल अत्याचारः यूथ का रिश्ता सुधारों बीप बीप अभियान' और कई मिडिल फिंगर दिखाते कार्यक्रम आप ही ने तो बनाए हैं। आप इन प्रोग्राम की योजना बनाती हैं, इन्हें न्यायोचित ठहराती हैं, चैनल के करोड़ों रुपए इन तथाकथित भारत के युवाओं के प्रतिनिधि कार्यक्रमों पर खर्च करती हैं, तो एक सवाल नहीं संभलता। कमाल है। बातें बहुत हैं, होनी और भी ज्यादा चाहिए। फिलहाल तो इतने संकेतों को ही समझ जाइए। समझदार हैं।

खैर, मौका था प्रवेश राणा से मिलने का। सामूहिक सवालों में वो बिदक गए और टालने लगे। फिर अलग से जो नौ मिनट की बातें हुई, वो अलग रहीं। शुरू के तीन सवाल में उनके मन में मेरी इमेज कूल वाली नहीं थी, फिर चौथे सवाल तक सुविधाजनक महसूस करने लगे। जब बातचीत अच्छी होने को थी, तब खत्म हो गई। मॉडलिंग में आने के बाद बिग बॉस मिला, फिर टीवी के कई डांस रिएलिटी शोज, इमोशनल अत्याचार वगैरह में एंकरिंग की। अब इमोशनल अत्याचार के तीसरे मौसम के प्रस्तोता तो हैं ही, तिग्मांशु धूलिया की हैमलेट उपन्यास पर बनी एक फिल्म में भी काम कर रहे हैं। जमीन से जुड़े नौजवान हैं, पर मुंबई रहते-रहते कुछ-कुछ आसमानी होने लगे हैं।

1. एंकरिंग के दौरान के एक्सपीरियंस कैसे रहे। वेस्ट में इमोशनल अत्याचार का मूल प्रोग्रेम है चीटर्स, उसमें ऐसा हुआ कि एंकर पर एक बार किसी ने चाकू से हमला कर दिया था। अब तक आपके साथ भी ऐसा कुछ हुआ?
पता नहीं मेरे साथ तो कभी ऐसा हुआ नहीं। शायद मेरी कद-काठी देखकर कोई ऐसी कोशिश करता नहीं। हां, माहौल कई बार टेंस जरूर होता है, पर अभी तक तो हुआ नहीं आगे देखते हैं।

2. आपको नई मूवी मिल गई है?
नई नहीं पहली मिली है।

3. लेकिन सॉलिड मिली है...तो क्या तैयारी है?
बहुत अच्छा लगा और तैयारी काफी जोर-शोर से चल रही है। सेशंस होंगे। शूट स्टार्ट होने से पहले डायरेक्टर को समझना और अपने कैरेक्टर को समझना बहुत ज्यादा जरूरी है। उस पर बहुत काम होगा। डायरेक्टर तिग्मांशु के साथ बहुत समय बिताना भी जरूरी है। क्योंकि एक एक्टर तब तक अच्छा एक्टर नहीं है जब तक वो डायरेक्टर का एक्टर नहीं है। और होपफुली चंडीगढ़ में ही आएंगे, यहीं शूट होना है। आस-पास के इलाकों में ही, क्योंकि ब्रैंडस्मिथ मोशन पिक्चर्स के राहुल मित्रा जो प्रोड्यूसर हैं वो यहीं के ही हैं।

4. डायरेक्टर तिग्मांशु की आपने हासिल या कोई और फिल्म देखी है?
मैंने उनकी सारी मूवीज देखी हैं। हासिल, चरस, शागिर्द देखी है और आई फील वैरी लकी कि मुझे मौका दे रहे हैं वो और इतना भरोसा किया। और मैं निराश नहीं करूंगा।

5. बहुत करंट वाले डायरेक्टर हैं वो?
एकदम, फ्लैवर उनका अलग है। एंटरटेनिंग रियलिज्म दिखाते हैं। वो अलग जॉनर दिखाते हैं, वैसा जॉनर किसी और के पास है नहीं।

6. बहुत से फैशन डिजाइनर्स के लिए वॉक किया है आपने तो उनमें आपके फैवरेट्स कौन हैं?
मैन्स वियर का जहां तक सवाल है तो रोहित बल, अर्जुन खन्ना और नरेंद्र कुमार ये तीन मेरे फेवरेट डिजाइनर्स हैं।

7. एकदम ग्रामीण बैकग्राउंड से हैं, और अब बिल्कुल एक्ट्रीम मेट्रो कल्चर में हैं और प्रोग्रैम को होस्ट कर रहे हैं। दोनों जगहों के लोगों को देख चुके हैं तो इस बात को कैसे देखते हैं आप?
बहुत खुशकिस्मत हूं। मेरे पेरंट्स ने मेरी एजुकेशन बेस्ट ऑफ द बेस्ट इंस्टिट्यूट में करवाई है। पैदाइश मेरी गांव की है तो मुझे गांव की भी सब जानकारी है। मेरठ में पढ़ा हूं, इलाहाबाद में पढ़ा हूं, बरेली में पढ़ा हूं, मुरादाबाद से पढ़ा हूं। इतनी सारी जगहों से मेरी स्कूलिंग हुई है। फिर मैं दिल्ली में आ गया। दिल्ली में ग्रेजुएशन की रामजस कॉलेज से। वहां नॉर्थ-ईस्ट के, साउथ के, हिंदुस्तान के हर पार्ट के लोग मिले। बॉम्बे में मुझे चार साल हो गए हैं। तो मेरे ख्याल से जब आप इतनी सारी जगहों पर जाते हैं और इतने तरीके के लोगों से मिलते हैं तो एक्सपोजर इंसान को हो जाता है। फिर इतनी जगह जाना और नए लोगों से मिलना मुश्किल नहीं लगता। आप बहुत ही जल्दी किसी की साइकॉलजी को समझ जाते हैं।

8. इस शो इमोशनल अत्याचार में ऐसा मूमेंट आता है जब आप लॉयल्टी टेस्ट करवाने वाले को उसके चीटिंग करने वाले पार्टनर से मिलवाने ले जाते हो। तब माहौल बड़ा टेंस हो जाता होगा। एक एंकर के तौर पर आप बाहर से तो बड़े कूल नजर आते हो पर अंदर क्या चल रहा होता है?
यही चल रहा होता है कि यार चीटर निकल न जाए। बस रंगे हाथों पकड़ा जाए। क्योंकि वही तो क्लाइमैक्स होता है, उसी पर तो सबकुछ निर्भर करता है। क्योंकि जो वो कर रहा है वो कैमरे पर न पकड़ा जाए तो जो लॉयल्टी करवा रहा है उसको शांति नहीं मिलती है।

9. लॉयल्टी टेस्ट में फेल होने वाले के व्यवहार को लेकर आशंका नहीं होती कि वो कैसे व्यवहार करेगा। कहीं हिंसक तो नहीं हो उठेगा?
देखिए वॉयलेंस होता है तो उसको उसी लैवल में कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं जिस लैवल तक किया जा सकता है। पर जहां प्यार होता है वहां रिएक्शन होते हैं और इंटेंस प्यार के रिएक्शन भी इंटेंस होते हैं दोनों तरफ से। तो चीटर को रंगे हाथों पकड़ा सबसे जरूरी है, मेरे दिमाग में बस यही चल रहा होता है।

10. शो को हम पूरा आधे घंटे में देख लेते हैं, पर जो क्लाइमैक्स वाला दिन होता है वो असल में कितने घंटे चलता है?
छह घंटे। पूरा शूट छह घंटे तक चलता है। क्योंकि जो ट्रैक कर रहे होते हैं और जो अंडरकवर एजेंट होते हैं, उनके काम के प्रोसेस में इतना वक्त लग जाता है।

11. अभी इस वक्त बॉलीवुड में कौन से डायरेक्टर्स सबसे ज्यादा पसंद हैं?
मैं तो बहुत बड़ा फैन हूं राजकुमार हीरानी का। मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि हिंदी सिनेमा को हिंदी सिनेमा कहलवाने का काम अगर किसी ने किया है तो राजू हीरानी ने वरना तो सब बॉलीवुड कहते थे। ऑरिजिनल स्क्रिप्ट्स जिस हिसाब से बन रही है उसमें विशाल भारद्वाज, अनुराग कश्यप, दिबाकर बैनर्जी या रोहित शेट्टी और इम्तियाज अली बहुत पसंद हैं।

12. नए टेलेंटेड हमउम्र आए हैं जैसे कि एक हैं रणवीर सिंह, और पुराने एक्टर जो अभी भी काम कर रहे हैं उनमें आप किसके काम की तारीफ करते हैं (अमरीश पुरी को छोड़कर)?
(अमरीश पुरी का नाम सुनते ही हंसने लगते हैं) मैं धरम जी का बहुत बड़ा फैन हूं और नाना पाटेकर का भी। अजय देवगन के काम को आई लव अजय। सलमान भी है और अमित जी तो हैं ही। रितिक भी हैं, एक स्टार सन होने के बावजूद उन्होंने खुद को प्रूव किया है और बहुत ऊंचाइयों तक पहुंचाया है।

13. जैसे ही आप बंबई से बाहर निकल कर ऐसे इलाकों में आने लगते हैं वैसे ही इस शो को लेकर सोशल कंसर्न के सवाल बहुत आने लगते हैं, उसे सुनकर कभी इरीटेट होते हैं कि क्या हर वक्त सोसायटी और मैसेज की बातें..?
नहीं, देखिए बात ऐसी है कि मैं इरीटेट नहीं होता हूं। प्रॉब्लम है अंडरस्टैंडिंग की। एक छोटी सी प्रॉब्लम है कि अगर कोई आपसे ज्यादा पढ़ा लिखा है, जिसने किताबें आपसे ज्यादा पढ़ी हो या आप उससे कम पढ़े-लिखे हो, अगर वो कोई बात कहता है तो आप उसे मान लेंगे। लेकिन अपने नजरिए से हर किसी को सोचना चाहिए। कि मेरे लिए क्या है। और कोई भी चीज हम थोड़ी अलग बना दें ना तो कहने लगते हैं अरे सोसायटी का क्या। अरे, लोग देख रहे हैं उसको, उनके पास रिमोट है वो चेंज कर देंगे। लोग देखेंगे भी तभी ना जब उनका इंट्रेस्ट होगा उस चीज में। और अगर उनको एंटी-सोशल लग रहा है, उनके मां-बाप को लग रहा है कि उनके बच्चों पर गलत असर पड़ रहा है, यूथ को लग रहा है कि मेरे रिलेशन पर फर्क पड़ रहा है तो वो चैनल चेंज कर देंगे। ऐसे बहुत सारे शोज बनते हैं लोग उन्हें तो नहीं देखते हैं।

14. स्टार बनेंगे तो ऐसे ही मिलेंगे कि बदल जाएंगे। एटिट्यूड आ जाएगा?
अरे यार, मैं तो ऐसे ही मिलूंगा। मैं तो ऐसा ही हूं। स्कूल टाइम से ही, कॉलेज टाइम से ही। ऐसे ही मिलूंगा और समय से मिलूंगा इस बात की गारंटी है।