सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

यहां फिल्में हैं, पर उनमें तुम नहीं हो टैरी: कुछ बातें

"Life's a mess dude, but we're all just doing the best we can. you know. You, me and samantha. we're just doing what we can." - मिस्टर फिट्जगेरॉल्ड, फिल्म टैरी में

टैरी.
तुम कैसे किसी को प्यारे नहीं लग सकते. हालांकि ये और बात है कि तुम लगना नहीं चाहते, फिर भी लगते हो. क्योंकि हम फिल्में देखते हैं. तरह-तरह की देखते हैं. ब्रिटेन से, अमेरिका से, इटली से, फ्रांस से, कोरिया से, चीन से, जापान से, ईरान से, यूरोप से, पाकिस्तान से और भारत से. हम जिन्हें ज्यादा देखते हैं, वो सोती हुई आती हैं और हमें नींद दिलाकर चली जाती हैं. सुबह होती है और कुछ नहीं बदलता. बदलना तो दूर हम खुद को भी 35 या उससे भी कम होते जा रहे एमएम आईने में नहीं देख पाते.

तुम ऐसे वक्त में आए हो टैरी, जब स्टार रेटिंग के सिस्टम में कोई तुम्हें पांच में से डेढ़ स्टार भी नहीं दे, पर मैं तुम्हें चार दूंगा. साढ़े चार दूंगा. देना पड़ा तो उससे भी ज्यादा दूंगा. पर तुम्हें उसकी दरकार नहीं है. तुम जिस ईमानदारी से बात करते हो, जिस निडरता के साथ कदम उठाते हो, जिस बेझिझकी से डर जाते हो, तुम्हें जितनी आसानी से गुस्सा आ जाता है, तुम जितनी बेफिक्री से जमाने की फिक्र नहीं करते हो... ये सब तुम्हें भीतर से पवित्र बनाता है. एक आम इंसान सा पवित्र. क्योंकि आज खास तो सब हैं, आम कोई नहीं. न ही कोई रहना चाहता है. तुममें जो एकांत है, वो सकल विश्व की सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था की बदौलत है. अभी अमेरिका में है. फिर भारत में आएगा. और, आएगा क्यों, आ ही गया है. आज तुम तमाम जींस ब्रैंड छोड़कर पजामाज पहनने लगे हो, स्कूल तक में, बिना किसी की परवाह के. वेल, हमें अभी तुम्हारी तरह पजामाज पहनने की बात सीखने में बरसों लगेंगे. चाहें तो अभी भी पहन सकते हैं, पर जब तक ठोकर नहीं खाएंगे, संभलेंगे नहीं. हमारी हिंदी फिल्मों में मॉल हैं, ब्रैंड्स हैं, आइटम सॉन्ग हैं, गोरे रंग वाले इंसान हैं, सुंदरता के पैमाने हैं, फिगर के फीते हैं, मनोरंजन नाम का म्यूटेंट हैं, पूंजी है, प्रॉफिट है, अंग्रेजी है, सफलता की बदरंग समझाइश है, आगे बढ़ने के झांसे हैं, ऊंचा उठने के जल्द फटने वाले गुब्बारे हैं, झूठ हैं, गुमराह करने वाले किस्से हैं, चरस चुभोए रखने वाले मोटे इंजेक्शन हैं. और भी बहुत कुछ है. पर तुम नहीं हो टैरी. पर हम नहीं हैं टैरी.

काश हम समझ पाते कि हम राह भटक रहे हैं, पर अब तो भटकना ही है. भटकेंगे नहीं तो तुममे जैसा एकांत है, वह कैसे पाएंगे. आखिर होगा वही, कि जब सबकुछ लुटाकर-खोकर और समाज को सूंतकर हम वह एकांत, वह गुमनामी पाएंगे, तभी हम एक टैरी बना पाएंगे. तभी हम एक टैरी अपने यहां देख पाएंगे. अब यह प्रक्रिया बुरी है कि सही मैं नहीं जानता पर, दोनों ही बात है. हम अभी टैरी देखने लगें, टैरी बनाने लगें, तो हमारी ही भलाई है. हमारे समाज में संवेदनशीलता नाम की बेशकीमती चीज के बचे रहने की भलाई है. अगर हम अभी संभलें तो. अन्यथा होगा वही. पूरी प्रक्रिया से गुजरकर बहुत बरसों बात हममे से कोई अजाजेल जेकब्स आएगा और ममाज मैन बनाएगा, टैरी बनाएगा.

तो टैरी अब हो तो भला, या तब हो तो भला... हम तय करेंगे टैरी. अब तुम्हें देख लिया है न तो तय करेंगे.

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शुक्रिया, जेकब वायसोस्की, टैरी बनने के लिए. तुम्हारा काम जाया नहीं जाएगा. तुम्हारे बारे में खूब बातें होंगी. शुक्रिया जॉन रायली, मिस्टर फिट्जगेरॉल्ड बनने के लिए, और इतना सच्चा फिट्जगेरॉल्ड बनने के लिए. आप वाकई में बेहद बारीक हैं. आपका अभिनय जो बेसिर-पैर की बेपरवाह हंसी वाली फिल्मों को देख लोग पहले किनारे कर दिया करते थे, उन्हें टैरी देखनी चाहिए, आपकी कद्र करेंगे. और, अजाजेल. न जाने तुम दिमाग के किस कोने से सोचते हो यार. समझ नहीं आता. लाखों फिल्में बन गई दुनिया में, और लोग शिकायत करते हैं कि दर्शकों को क्या दें, क्या सरप्राइज करें. तुम फिर भी टैरी ले आए यार. फिल्म में कुछ भी नहीं है. कुछ भी नहीं. पर सबकुछ है. बने रहो.

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गजेंद्र सिंह भाटी