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Saturday, July 9, 2011

इन दिनों जो बच्चे हैं, वो इस फिल्म को संजोएंगे अपने बचपन की सुनहरी स्मृतियों में

फिल्म: चिल्लर पार्टी
डायरेक्टर: नीतेश तिवारी और विकास बहल
कास्ट: सनथ मेनन, नमन जैन, चिन्मय चंद्रांशु, रोहन ग्रोवर, आरव खन्ना, विशेष तिवारी, वेदांत देसाई, दिवजी हांडा, इरफान खान, श्रेया शर्मा
स्टार: साढ़े तीन, 3.5


बहुत दिन बात किसी मूवी से तृप्त होकर लौटा हूं। 'चिल्लर पार्टी' फिल्म का नाम जितना लापरवाह सा लगता है, इसकी स्टोरी और निर्देशन उतना ही झकास है। फिल्म में शायद ही कोई ऐसा सेकंड हो जहां आप नुक्स निकाल सकें। जहां भी हंसी (बहुत) आती है वो बासी नहीं लगती है। मुझे लगता है कि बहुत बरस के बाद बच्चों के लिए कोई अद्भुत मूवी आई है। इस मूवी को आप कैसे देखें, किसके साथ देखें... ये इस बार आपसे कहने की जरूरत नहीं पड़ेगी। हर क्लास और हर एज ग्रुप इसे जीभर के एंजॉय कर सकता है। शायद मैं 'दबंग' देखते वक्त भी उतना नहीं हंसा था, जितना 'चिल्लर पार्टी' ने हंसाया। अ मस्ट वॉच। जांगिया की भूमिका निभा रहे नमन जैन हंसाने में मामले में आज के बड़े-बड़े एक्टर्स से बहुत आगे खड़े नजर आते हैं।

इन बच्चों का परिचय
चंदन नगर कॉलोनी में ये सब बच्चे रहते हैं। कुछ-कुछ 'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' की टप्पू सेना की तरह। इन्हें पड़ोस के एक अंकल (रवि झांकल) ने नाम दिया है चिल्लर पार्टी। टप्पू सेना ड्रमैटिक है पर चिल्लर पार्टी एंटरटेनिंग, रियलिस्टिक और ठहाकेदार। खैर, कहानी पर आते हैं। ज्यादा कुछ नहीं बताऊंगा, अदरवाइज फिल्म देखने में मजा नहीं आएगा। ये सात बच्चे एक ही स्कूल में पढ़ते हैं। इनके नाम तो अर्जुन, बलवान, लकी, लक्ष्मण और रमाशंकर है, मगर दोस्त कुछ और कहकर पुकारते हैं। एनसाइक्लोपीडिया (सनथ मेनन), जांगिया (नमन जैन), पनौती (चिन्मय चंद्रांशु), अकरम (रोहन ग्रोवर), अफलातून (आरव खन्ना), सेकंड हैंड (विशेष तिवारी), साइलेंसर (वेदांत देसाई) और शाओलिन (दिवजी हांडा).. ये निक नेम इनकी फनी आदतों और अजीब लाइफ की वजह से पड़े हैं। इनकी कॉलोनी में एक दिन गाड़ी साफ करने का काम करने फटका (इरफान खान) और उसका दोस्त भीड़ू (कुत्ता) आता है। इन सबमें गहरा लगाव हो जाता है। पर इस बीच कुछ ऐसा होता है कि इन बच्चों को अपनी दोस्ती के लिए एक लोकल नेता से भिडऩा पड़ता है। बिना कोई भाषणबाजी के फिल्म क्लाइमैक्स तक पहुंचती है। कैसे, यही पार्ट सबसे इंट्रेस्टिंग है।

बहुत ही कम्युनिकेटिव
देखा जाए तो ऐसी कहानी और विषय में करने के लिए ज्यादा कुछ होता नहीं है। मगर नीतेश तिवारी और विकास बहल ने अनूठा निर्देशन किया है। कैरेक्टर इंट्रोडक्शन से लेकर, फिल्म में एंटरटेनमेंट को लगातार बनाए रखने तक कहीं एक पल भी फेल नहीं होते। पहले मुझे लगा था कि यूटीवी के एसी ऑफिस में क्रिएटिव ऑफिसर बनकर बैठने वाले विकास डायरेक्शन में भला क्या कर पाएंगे, मगर उन्होंने बहुत कुछ किया। जितनी दिखती है ये फिल्म अपने ट्रीटमेंट में उससे ज्यादा मैच्योर है। आप कहीं भी इसे बाल फिल्म समझकर इग्नोर नहीं कर सकते हैं। अपने मिशन के पूरा करते वक्त ये बच्चे 'लगान' और 'चक दे इंडिया' के किरदारों और उनकी तैयारी जैसे लगते हैं। अमित त्रिवेदी का म्यूजिक सदाबहार नहीं है तो कहीं भी फिल्म पर थोपा गया नहीं लगता।

आखिर में...
एक फिल्ममेकर के लिए चैलेंज होता है कि उसकी फिल्म किसी रिक्शॉ चलाने वाले को भी बहुत आसानी से समझ आए और वही फिल्म ज्यादा पढ़े-लिखों को भी उतनी ही अच्छी लगे। 'चिल्लर पार्टी' ये चैलेंज पूरा करती है। इस साल की सार्थक फिल्मों में से एक। निश्चित तौर पर एंटरटेनमेंट टैक्स से मुक्त कर दिए जाने लायक।

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ग़जेंद्र सिंह भाटी