फिल्मः बैटलः लॉस एंजेल्स और वर्ल्ड इनवेजनः बैटलफील्ड लॉस एंजेल्स
डायरेक्टरः जोनाथन लीब्समैन
कास्टः एरॉन एकार्ट, मिशेल रॉड्रिग्स, माइकल पेना, नजिंगा ब्लेक, ने-यो, ब्रिजेट मॉयोनाहन
स्टारः ढाई स्टार 2.5
जब 1971 के भारत-पाकिस्तान वॉर की ब्लैक एंड वाइट क्लिप्स दूरदर्शन पर नजर आती थी तो उसमें रेगिस्तान सी जमीन पर गोलियां चलाते बहुत सारे सैनिक दिखते थे, किसी की शक्ल या कोई एक कहानी नहीं दिखती थी। ये एक बात है जो हॉलीवुड फिल्म 'बैटल: लॉस एंजेल्स' में भी है। फिल्मी माध्यम के लिए ये एक घातक पहलू हो जाता है जब इस तरह के विषयों वाली फिल्म में कोई व्यक्तिगत मुकाबला हीरो और विलेन में नहीं होता। पूरी फिल्म में एलियन हमलावरों की शक्ल नहीं दिखती या किसी अमेरिकन सैनिक से सीधा मुकाबला नहीं दिखता है। सब ग्रुप्स में है। उधर से भी गोलिया चल रही हैं, इधर से भी। बस बीच में आधा दर्जन दूसरी हॉलीवुड फिल्मों के प्लॉट हैं, जो किसी फटे पैजामे पर पैबंद की तरह लगते रहते हैं। सब-कुछ किसी वीडियोगैम जैसा है। कम ह्यूमन और ज्यादा मशीनी। फिल्म का एक और निराशाजनक पहलू है, किसी ऑरिजिनल बैकग्राउंड स्कोर या म्यूजिक का न होना। अगर डर, हमले, मुकाबले, साहस और जीत के इमोशन से जुड़ी कोई धुन इनवेंट की जाती तो लॉस एंजेल्स का ये नकली बैटल असली लगता। टाइम पास से जरा सी कम मूवी है, कोई दूसरा ऑप्शन नहीं हो तो ही देखिएगा।
एलियन कहां से आएः कथा
कहानी आज ही के वक्त की है। अब से पहले की जितनी अफवाहें एलियंस को लेकर थी वो लॉस एंजेल्स की धरती पर सच हो गई हैं। बाहरी ग्रह की अंजानी ताकतों ने हमला कर दिया है। मरीन स्टाफ सार्जेंट माइकल (एरॉन एकार्ट) को एक नई प्लाटून के साथ कुछ सिविलियंस को बचाने और वहां बम फटने से पहले इवैक्यूएशन करने का काम सौंपा जाता है। प्लाटून में एक यंग ऑफिसर के अंडर उन्हें काम करना है। एक्सपीरियंस और क्षमता उनकी ज्यादा है। ये उलझन है, तो सिर पर बड़ी मुसीबत है एलियन अटैक की। आखिर में उनका उद्देश्य सिर्फ इस छोटे मिशन से बढ़कर पूरे अमेरिका और पूरी दुनिया की रक्षा करना हो जाता है। इस फिल्म में अगर सबसे ज्यादा सही अनुमान लगाने लायक कुछ है तो वो है इसकी कहानी।
विश्व तबाही पर फिल्में
इसमें कोई नई बात नहीं कि इन फिल्मों में हर बार एलियन का अटैक अमेरिका पर ही होता है, और फिर अमेरिकन उन्हें हराकर पूरी दुनिया को बचा लेते हैं। मुझे लगता है कि अगर इस मूल रवैये में बदलाव न भी हो, तो कम से कम हमले के तरीके और दुनिया को बचाने के तरीके में तो कुछ नया किया ही जा सकता है। स्टीवन स्पीलबर्ग की 'सेविंग प्राइवेट रायन' में टॉम हैंक्स की प्लाटून के जिम्मे युद्ध क्षेत्र से एक यंग सैनिक को बचाकर लाने काम आता है, तो यहां एरॉन एकार्ट को चंद पुलिसवालों (जो मारे जा चुके हैं) को बचाना है। 'ब्लैक हॉक डाउन' में भी सोमालिया में भेजी अमेरिकी टुकड़ी की यही कहानी होती है। दोनों ही फिल्मों और 'बैटल: लॉस एंजेल्स' में सेना की टुकड़ी मिशन पर निकली है और सामने खतरे बहुत बड़े हैं। क्लाइमैक्स में लॉस एंजेल्स से एलिंयस का सफाया करने के बाद एरॉन एकार्ट का कैरेक्टर प्लाटून के साथ कैंप में लौटता है और बिना आराम किए फिर दूसरे शहर के लिए निकलने को तैयार होने लगता है। अपना असला भरने लगता है। ये सिचुएशन बिल्कुल 'ब्लैक हॉक डाउन' के क्लाइमैक्स से मिलती है।
इस सब्जेक्ट पर खास काम
इस विषय पर बनी फिल्मों में 'डिस्ट्रिक्ट नाइन' सबसे अलग रही है। ये पहली एलियन विषय वाली मूवी थी जो अमेरिकन एंगल से नहीं बनी थी। इसकी कहानी साउथ अफ्रीका की धरती पर करवट लेती है। जेम्स कैमरून की 'अवतार' का एक एंगल हॉलीवुड मूवीज के लिहाज से समाजवादी रहा और ये 'बैटल:लॉस एंजेल्स' से भी मिलता है। उसमें अमेरिकी पैंडोरा ग्रह पर जाते हैं, वहां के नेचरल रिर्सोसेज पर कब्जा करने और वहां की लोकल कौम को मिटाने। 'बैटल: लॉस एंजेल्स' में अमेरिकी मीडिया के विजुअल्स दिखते हैं। इनमें एक विशेषज्ञ का कमेंट होता है, 'हर विदेशी अटैक सबसे पहले रिर्सोसेज के लिए होता है। अटैक करने वाले वहां की मूल जनता, देशज जनता को खत्म करते हैं। ऐसे ही उपनिवेश यानी कॉलोनाइजेशन शुरू होता है। अमेरिका का कॉलोनाइजेशन शुरू हो चुका है।'
एंटरटेनमेंट वाली बात
'इंडिपेंडेंस डे', 'मैन इन ब्लैक', 'ट्रांसफॉर्मर्स' और 'टर्मिनेटर' इस कैटेगरी की सबसे एंटरटेनिंग मूवीज हैं। इनमें कॉमेडी, देश पर खतरा, एलियन से डर, वीक कॉमन मैन और मजबूत कॉमन मैन जैसे तत्व है, जो इस तरीके से मिलाए गए हैं कि इन फिल्मों की एक रिपीट वैल्यू बन गई है। 'बैटल: लॉस एंजेल्स' में इन सब तत्वों की कमी पड़ती है। एरॉन एकार्ट और टेक्नीकल सार्जेंट एलेना सेंटोज बनी मिशेल रॉड्रिग्स इस फिल्म के दो ऐसे चेहरे हैं जो फिल्म से जोड़े रखते हैं। वजह शायद ये रही एरॉन हाल ही में बहुत पसंद की गई 'रैबिट होल' में दिखे थे और मिशेल 'रेजिडेंट ईविल' और 'अवतार' जैसी फिल्मों में खुद को ऐसी फिल्मों की खास एक्ट्रेस साबित कर चुकी हैं। इस फिल्म में एक ह्यूमन आस्पेक्ट जो आकर्षित करता है वो है एरॉन के कैरेक्टर का एक्सपीरियंस्ड होते हुए भी एकेडमी से नए निकले लुटेनेंट के अंडर में काम करना। पर बाद में ये अनुभवी स्टाफ सार्जेंट हीरो बनकर उभरता है। डायरेक्टर जोनाथन ने टेक्नीकली फिल्म में नई चीजें की है। उन्होंने थ्री-डी कैमरा से शूट नहीं किया है। ये दिखता भी है। इससे गली के शॉट और बाकी सीन रॉ लगते हैं। एक दो जगहों पर ही सही दर्शक कुर्सियों के सिरों पर रहते हैं।
आखिर में...
फिल्म देखते वक्त मुझे 'द सोशल नेटवर्क' के ओपनिंग बैकग्राउंड स्कोर की याद आई। उस म्यूजिक ने मार्क जकरबर्ग की फिल्मी कहानी को एक नई पहचान दे दी थी। काश, जोनाथन लीब्समैन ने अपनी लॉस एंजेल्स पर हमले वाली इस फिल्म में म्यूजिक पर कुछ ऐसा ही भरोसा किया होता। (प्रकाशित)
गजेंद्र सिंह भाटी