शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

“यार, लगता है विज्ञापन फिल्में नहीं करने के मेरे फैसले को सब ने गलत साबित कर दिया हैः अनिल कपूर”

इतनी सारी और इतनी भिन्न-भिन्न प्रकृति की फिल्में करने के बावजूद घोषित तौर पर अनिल कपूर शीर्ष अभिनेता नहीं कहे जाते। जबकि मैं मानता हूं कि मौजूदा वक्त में जिन्हें शीर्ष के दो-तीन अभिनेता माना जाता है, उनके मुकाबले अनिल लाख बेहतर हैं। कोई मुकाबला नहीं है। एक ओर “साहेब”, “वो सात दिन”, “चमेली की शादी” और “ईश्वर” जैसी हर सदी में पसंद की जाने वाली सदाबहार कृतियां हैं। समाज का प्रतिबिंब खुद में समाए ये फिल्में सादगी और स्वस्थ अभिनय से भरी हुई हैं। वहीं दूसरी ओर दिन के चारों पहर और सहस्त्रों मूडों में लगाकर देखी जा सकने वाली “राम लखन”, “कर्मा”, “मशाल”, “लाडला”, “बेटा”, “जमाई राजा”, “मिस्टर इंडिया”, “मेरी जंग”, “लोफर” और “तेजाब” हैं। हंसोड़, मसालेदार, गरिष्ठ, नमकीन, नशीली, इंद्रिय सुख देने वाली और न जाने क्या क्या। संपूर्ण फिल्में। वैसे तो ये टिकिट खिड़की पर भी खूब चलीं, पर करियर के किसी भी मोड़ पर ऐसा नहीं हुआ कि किसी फिल्म में अनिल कपूर की एक्टिंग और समर्पण पर किसी ने अंगुली उठाई हो। इस दौरान “परिंदा”, “लम्हे”, “1942: अ लव स्टोरी”, “विरासत” और “रूप की रानी चोरों का राजा” को कैसे भूल सकता हूं। कुछ और शानदार फिल्में। उम्दा फिल्में। “रूप की रानी चोरों का राजा” व्यक्तिगत बात है फिर कभी करेंगे, तभी समझ पाएंगे कि मेरी नजर में शानदार क्यों है। अनिल कपूर के बारे में काफी विस्तार से बातें की जा सकती हैं। 30-33 साल लगातार काम कर रहे हैं और छरहरे बने हुए हैं। “स्लमडॉग मिलियनेयर” तक आते आते उन पर उम्र का असर नहीं है। और “तेज” जैसी फिल्मों में इनके मनोरंजक प्रतीत होते चरित्र किरदारों ने सबकुछ ठीक माना जाए तो अभिनय के नए आसमान खोल दिए हैं। जितनी भांति की भूमिकाएं उतनी ही रोचक फिल्में आ सकती हैं। फिलहाल तो निर्देशक प्रियदर्शन की फिल्म “तेज” आज रिलीज हो रही है। इसमें अनिल कपूर के साथ अजय देवगन, मोहनलाल, कंगना रनौत, बोमन ईरानी, जायद खान और समीरा रेड्डी की भूमिकाएं हैं। इसी संदर्भ में अनिल से एक सामूहिक बैठक में बातचीत हुई। सामूहिक और तरह-तरह के सवालों के बीच अपने पोज और आवरण को लेकर वह पूरी तरह सचेत दिखे तो हर सवाल को जवाब उन्होंने श्रद्धा से देने की कोशिश की। कभी अत्यधिक विश्लेषणपरक सवाल-जवाबों का दौर चले तो बातों का खजाना निकलकर आ सकता है। फिलहाल के लिए पढ़िए बातचीत के कुछ अंशः

“स्पीड” और “द टेकिंग ऑफ फेलम 123” जैसी फिल्मों में जैसी गति और मनोरंजन है, क्या “तेज” में वैसा ही है या अलग है?
मुझे लगता है कि “तेज” में उन दोनों फिल्मों से ज्यादा है। “स्पीड” मैंने देखी है, फैनटेस्टिक फिल्म है। “टेकिंग ऑफ फेलम 123” भी अच्छी फिल्म है। ये दोनों अच्छी हैं, पर पक्के तौर पर “तेज” ज्यादा अच्छी है।

आपने बहुत सारी हिंदी फिल्मों में भी काम किया है, हॉलीवुड में भी काम कर चुके हैं। ऐसे में “तेज” क्या स्टाइल, एडिटिंग और लुक के लिहाज से एक चेंज है?
मैं हाल ही में लॉस एंजिल्स में था, वहां मैंने कुछ फिल्ममेकर्स को “तेज” के पोस्टर दिखाए तो उनको शॉक लगा। वो बोले, कि क्या वाकई ये हिदुंस्तानी फिल्म है। इतनी अच्छी है, तो उन्हें बढ़िया लगा। जब मैंने बताया कि इस फिल्म का बजट सौ करोड़ भी नहीं है, तो उन्हें और हैरानी हुई। कि इतने कम बजट में कैसे बन गई, वही फिल्म अगर हॉलीवुड में होती तो इसका बजट कम से कम होता 100 मिलियन। हमने कोशिश ये की कि कम से कम पैसे में एक ऐसी फिल्म बनाएं कि लोग देखें तो कहें कि ये किसी इंटरनेशनल फिल्म से कम नहीं है।

आप विज्ञापन क्यों नहीं करते हैं? क्या इसके पीछे एक वजह ये होती है कि एक एक्टर की छवि का रहस्य बना रहे?
यार मुझे तो अब लगता है कि ये सब लोगों ने मुझे गलत साबित कर दिया है। अमिताभ बच्चन, आमिर खान, शाहरुख खान अब मुझे लगता है कि सारे स्टार एड कर रहे हैं खूब पैसे भी कमा रहे हैं और इनकी पॉपुलैरिटी भी कम नहीं हो रही है। तो इन लोगों ने मुझे गलत साबित कर दिया है।

हाल ही में मैंने इमरान हाशमी से पूछा कि अनिल कपूर हैं वो विज्ञापन नहीं करते हैं, तो उन्होंने भी माना कि रहस्य बना रहे तो लंबे वक्त बाद आपकी फिल्म देखकर दर्शक भी खुश होता है। रोज-रोज देखेगा तो उसे क्या खुशी होगी?
सही बात है। मैंने भी यही सोचकर विज्ञापन नहीं किए। मगर बच्चे बोलते हैं कि आप चूक गए। मेरा बेटा बोलता है कि पापा आपने किया होता तो...।

“तेज” और उसका स्टायलाइज्ड एक्शन...
हम पहले की स्पष्ट थे कि हमें एक्शन इंटरनेशनल स्टैंडर्ड का चाहिए था। इसलिए इंटरनेशनल स्टंट डायरेक्टर लिया और डीओपी हमने लिया।

अजय देवगन की एक्शन स्टार वाली इमेज...
अजय शानदार फाइट एक्टर हैं। देखो, किसी खास परसोना और पर्सनैलिटी वाले इंसान पर ही एक्शन अच्छा लगता है और अजय उनमें से एक हैं।

शुरू में आपने भी किया है...
मैंने अपने करियर में काफी एक्शन किया है। “मशाल” मेरी पहली फिल्म थी जिसमें मैंने एक्शन किया था। उसमें एक्शन बड़ा रॉ और असरदार था। फिर मैंने कुछ ग्रेट टेक्नीशियन्स के साथ काम किया जो जैकी चैन और ब्रूस ली किस्म के एक्शन से प्रेरित थे, जिसे हमारे साउथ इंडियन कोरियोग्राफर्स ने बहुत अच्छे से सीख लिया। इनमें विजयन जैसे नाम है। जिन्हें आपने हाल ही में “दबंग” का एक्शन करते हुए देखा होगा। पर मैं तो विजयन के साथ 87-88 में “इंसाफ की आवाज” जैसी फिल्मों में काम कर चुका था। उनके साथ काम करने वाले मैं पहला हिंदी फिल्मों का एक्टर था। उनके और कई दूसरे एक्शन डायरेक्टर्स के साथ कई फिल्में कीं।

पुकार, ऩायक और अब तेज में...
“पुकार” स्टिक एक्शन था। “नायक” में साउथ इंडियन फिल्मों का मिक्स सा एक्शन था। अब “तेज” में जो एक्शन है वो कुछ ऊंचे स्तर का है, मेरे लिए भी। हैंड टू हैंड फिस्ट फाइट भी है मेरी और अजय की “तेज” में। एक्शन हमेशा इमोशन के साथ ही अच्छा लगता है। सिर्फ एक्शन ही करेंगे तो बड़ा बोरिंग हो जाएगा। जैसे “टशन” थी। उसमें एक्शन था पर वैसा इमोशन नहीं था, तो इफैक्टिव नहीं हो पाई। “परदेस” में एक्शन के पीछे इमोशन था। उसमें लड़ने के पीछे बहुत बड़ा उद्देश्य रहता है। अब ये मोटिवेटिंग फैक्टर कुछ भी हो सकता है। ये लव हो सकता है, फैमिली हो सकती है या देशभक्ति हो सकती है।

“तेज” में अपने रोल की तैयारी कैसे की?
हालांकि मेरे पास ऐसे रोल निभा चुके लोगों से मिलने का विकल्प भी था, पर मैंने अपने किरदार के लिए बहुत सारी किताबें पढ़ीं। जिनमें रियल पुलिस अफसरों, एंटी टैरेरिस्ट स्क्वॉड और कॉप्स के एक्सपीरियंस थे। मैंने जानने की कोशिश की कि अपराधियों से सवाल-जवाब करते हुए या दूसरे हालातों में वह कैसे व्यवहार करते हैं। मैंने किताबों से कई लाइनें बोली हैं। अपने कैरेक्टर के लिए मैंने स्क्रिप्टराइटर को भी कुछ लाइनें सुझाई, तो पूरे कैरेक्टराइजेशन में आप वो देखते हैं। कुछ बदलाव भी किए गए।

रोजाना आपको काम करने के लिए कौन सी चीज प्रोत्साहित करती है?
अगर आप प्यार और पैशन से कोई काम करते हैं तो एंजॉय करते हैं। कुछ लोग शराब एंजॉय करते हैं, कुछ सिगरेट पीना तो कुछ औरतों के साथ रहना या और भी बहुत कुछ। तो मेरे प्रफेशन में ये सब हैं। इन सब कामों को करने का मजा मुझे एक साथ इस जॉब में मिलता है। कोई जरूरी नहीं कि मैं ये सब करूं ही, पर इन सबका आनंद मिलता है। मतलब मैं ऐसे काम में हूं जहां मुझे ट्रैवल करने और नए-नए लोगों से मिलने का मौका मिलता है। जैसे अभी तुर्की जाऊंगा। फिर इस्तांबुल जहां मैं पहले कभी नहीं गया हूं, साइप्रस जाऊंगा। लॉस एंजिल्स में काम शुरू करने वाला हूं। तो ये प्रफेशन मुझे दुनिया भर में इतने लोगों से मिलने का मौका देता है। यही प्रोत्साहित करता है।

अजय के साथ काम करना...
मैंने सब शीर्ष एक्टर्स के साथ काम किया है। जब अपना करियर शुरू किया तो सबसे पहले जिन एक्टर्स के साथ काम किया उनमें जैकी श्रॉफ थे। हमने संभवतः 13-14 फिल्में साथ कीं। फिर सनी देओल के साथ, संजय दत्त, शाहरुख, अक्षय खन्ना... इन सबके साथ। सलमान के साथ मैंने तीन फिल्में की। टॉम क्रूज के साथ। और अब मैंने काम किया है अजय देवगन के साथ। तो जब आप इनके साथ होते हो तो आपको पता चलता है कि ये सब इतने बड़े स्टार क्यों हैं। क्यों लोग इन्हें इतना ज्यादा पसंद करते हैं? मुझे लगता है कि अपनी प्रफेशनल इमेज और बढ़िया एक्टिंग के इतर इनमें जो ऊंची ह्यूमन क्वालिटी है वो कहीं न कहीं लोगों से जुड़ती है, उन्हें छूती है। मैंने बहुत से लोगों और हीरो के साथ काम किया है। लोग उन्हें सराहते हैं और वो काम करते हैं। लेकिन ऐसा क्यों होता है कि उनमें से कुछ 15-20 ही लीडिंग मैन बनते हैं? क्यों ये ही लोगों से जुड़ते हैं? क्यों? कारण क्या है? क्यों ये इतने मैसिव स्टार्स बन जाते हैं? और लोग इन्हें देखने के लिए थियेटर में जमघट लगाते हैं? ये नॉर्मल लोग ही तो हैं। जब आप असल जिंदगी में इनसे मिलते हो तो ये बड़े साधारण इंसान हैं। ये भी बात करते हैं, इनके दो आंखें हैं, दो कान हैं, एक नाक है। वैसे ही खाना खाते हैं, पानी पीते हैं। उनके भी बीवी है बच्चा है। कुछ अलग होगा न उनमें, जो उन्हें कहीं न कहीं अलग खड़ा कर देता है। अजय वैसे ही एक्टर्स में से एक है। वह फैमिली मैन है। विवादों से दूर रहता है। अपने तक ही रहता है। एक स्टार के तौर पर अपनी पोजिशन को लेकर असुरक्षित नहीं है। भला ऐसे आदमी के साथ काम करके मजा क्यों नहीं आएगा। मुझे तो बड़ा शानदार लगा उसके साथ काम करके। एक कम्फर्ट लेवल था हम दोनों के बीच।

हर एक्टर अलग-अलग तरीके से अपनी फिल्म चुनता है। किसी फिल्म में काम करना है कि नहीं ये चुनने का आपका मापदंड क्या है?
ये स्टेट या परिस्थिति पर निर्भर करता है जिसमें आप हैं। जब करियर शुरू किया तो भिखारी था। ‘बैगर्स कान्ट भी चूजर्स’। तब मैंने बहुत कुछ किया। इंस्टॉलमेंट में काम किया, कई-कई कैरेक्टर एक साथ किए, छोटे रोल भी। मगर बाद में लाइफ की स्टेज बदली। बाद में अलग रोल आने लगे। आप खुशकिस्मत होते हो फिर आप बदलने लगते हैं। फिर आपके पास चुनने के विकल्प और अधिकार बढ़ जाते हैं। आप एक्सपेरिमेंट कर सकते हैं। कोई नया आदमी आता है स्क्रिप्ट लेकर तो पढ़कर शुरू कर सकते हैं। जैसे मेरे पास “विरासत” की स्क्रिप्ट आई। फिर मैं प्रियन (प्रियदर्शन) को बोर्ड पर लाया। बाकी टीम जुटाई। मैं प्रोड्यूसर को लाया। प्रोड्यूसर ने मुझे साइन नहीं किया मैंने प्रॉड्यूसर को साइन किया। तो ये निर्भर करता है कि आप कैसे हालात में हैं और फिल्म कैसी है। ये भी कि फिल्म को मार्केट और डिस्ट्रीब्यूट कौन करने वाला है।

मार्केटिंग वगैरह कितना मायने रखता है?
बहुत। क्या कंपनी मार्केटिंग कर सकती है? उनके पास क्या पूरे संसाधन हैं? पैसे हैं? क्या वो पूरे थियेटर ला पाएंगे? आपकी फिल्म पर जिसका हाथ है वो स्टूडियो कितना शक्तिशाली है ये बात बहुत मायने रखती है। अगर आपने एक गजब की शानदार फिल्म बना दी पर मार्केट करने के लिए सही इंसान नहीं है, तो सब खत्म हो जाएगा। जैसे “तनु वेड्स मनु” थी, कई दूसरी फिल्में रहीं या “पान सिंह तोमर”, ये डिब्बों में पड़ी थीं, कोई रिलीज नहीं कर रहा था। “खोसला का घोसला” जैसी फिल्में यूटीवी ने बनाई नहीं हैं, वो ट्रैडर्स हैं। फिल्में बनाने वाला और थियेटर ढूंढकर रिलीज करने वाला हो तो सब ठीक है। यश चोपड़ा फिल्में बनाते भी हैं और रिलीज भी करते हैं। लेकिन सब ऐसा नहीं कर सकते हैं न।

सोनम को बतौर अदाकारा आप कैसे आंकते हैं?
मैं सही इंसान नहीं हूं उसे अंकों में आंकने के लिए। क्योंकि अगर सच कहूंगा तो आप कहोगे कि बाप है इसलिए ऐसे कह रहा है। पिता के परिपेक्ष्य से कह रहा है। फिल्ममेकर के तौर पर भी कहूंगा तो आप मानेंगे नहीं। तो बेहतर यही है कि आप देखो, वह कैसी अभिनेत्री है, उसका परफॉर्मेंस कैसा रहा है, ऑब्जेक्टिवली देखो और तय करो। इसके बाद भी अगर मुझे आप एक फिल्ममेकर के तौर पर पूछें तो मैंने बहुत सारी लड़कियों के साथ काम किया है, उनकी तुलना में सोनम की संभावनाओं को खपाया नहीं गया है। वो बहुत कुछ कर सकती है। उसने अभी सिर्फ पांच फिल्में की, लेकिन इन पांच फिल्मों से खुद का नाम बनाया है। उसने अपनी स्थिति खुद बनाई है। बाकी की लड़कियों से वह बिल्कुल अलग है। अपने दिखने के लिहाज से या जिस तरह की फिल्में उसने की है उस लिहाज से। अभी उसे मेहनत करनी है और बहुत आगे जाना है।

क्या वह आपके पास किसी चीज को लेकर सलाह मांगने आती हैं या आप मार्गदर्शन करते हैं?
मैं मैंटोर नहीं हूं। ये कई चीजों का मेल है। मैंने बहुत तरह की फिल्में की हैं, मैं उसका पिता भी हूं, मैं उसका दोस्त भी हूं। और अभी जेनरेशन भी ऐसी है जो आजाद है अपने फैसले खुद ले सकती है। तो उन्हें वैसे ही रहने देना चाहिए।

प्रियदर्शन स्क्रिप्ट के साथ काम नहीं करते?
नहीं, ऐसा नहीं है। और इस बार तो स्क्रिप्ट दी थी उन्होंने। वह अच्छे निर्देशक हैं और उनके साथ ये मेरी तीसरी फिल्म है।

कुछ एक्सेंट इश्यू थे फिल्म में?
हां, मैंने सोचा कि मेरा किरदार ब्रिटिश कॉप है तो उसे कुछ एक्सेंट दूं। फिर सोचा कि नहीं यार, वो इंग्लिश है, पर उससे ज्यादा इंडियन है। और जब फाइनल रिजल्ट आया तो मुझे लगा कि मेरा फैसला सही था।

पद्मिनी कोल्हापुरे से लेकर मल्लिका सेहरावत तक के साथ काम किया है। पहले की अभिनेत्रियों और अब की अभिनेत्रियों में क्या फर्क नजर आता है?
मैं ऐसे नहीं सोचता हूं। जो अच्छा काम करती है वो अच्छी लगती है, जो अच्छा काम नहीं करती वो अच्छी नहीं लगती है। मैं खुशनसीब रहा हूं। मैंने काफी अच्छी एक्ट्रेस के साथ काम किया है। मैंने रेखा जी के साथ काम किया है, मैंने हेमामालिनी जी के साथ काम किया है, मैंने माधुरी, श्रीदेवी, ऐश्वर्या राय, काजोल, अमृता सिंह, पद्मिनी कोल्हापुरे, रति अग्निहोभी, पूनम ढिल्लों के साथ काम किया है। मैंने स्मिता पाटील जी के साथ काम किया है। कुछ इंटरनेशनल एक्ट्रेसेज के साथ काम किया है। कई एक्ट्रेस के साथ अभी काम कर रहा हूं, नई लड़कियों के साथ काम कर रहा हूं तो सारी अच्छी हैं। सारी अच्छी हैं।

अपनी फिल्म का रीमेक बनाना चाहेंगे?
मैं.....। काफी फिल्में हैं। शुरुआती फिल्में हैं। पर उनमें रीमेक में मैं तो 27-28 साल के नौजवान का रोल कर नहीं सकूंगा। इसलिए मुझे लगता नहीं कि मैं करना चाहूंगा रीमेक अपनी ही फिल्म का। क्योंकि इतने अच्छे-अच्छे सब्जेक्ट हैं, लोग हैं, डायरेक्टर हैं, तो मैं उनके साथ काम करना चाहूंगा। अभी कोई ऐसा ख्याल नहीं है। हां, दूसरे लोग कर सकते हैं मेरी किसी भी फिल्म का रीमेक। अगर उन्हें पसंद आता है तो।

चुस्त, तंदुरुस्त और ऊर्जावान कैसे रहते हैं इतना?
क्योंकि मैं ऐसा ही होना चाहता हूं। मैं एंजॉय करना चाहता हूं। और जो जितने ज्यादा साल फिट रहेगा वो उतना ही ज्यादा एंजॉय कर सकेगा। मैं चुस्त इसीलिए रहता हूं कि काम अच्छा कर सकूं और एंजॉय कर सकूं। ताकि कभी परांठे खाने हो तो परांठे का सकूं। मीठा खाना हो तो मीठा खा सकूं। बिरियानी दबाकर खा सकूं। कभी मन कर लिया तो थोड़ी शराब, ज्यादा नहीं, एक-दो पैग पी सकूं। मैं सारी जिदंगी ये सब कर सकूं। ये नहीं हो कि यार इसको डायबिटीज हो गया, हार्ट प्रॉब्लम हो गया, अभी ये नहीं खा सकता, वो नहीं खा सकता। अब मैं चल नहीं सकता, अब मैं वहां नहीं जा सकता, मैं एक्टिंग नहीं कर सकता, मैं ये नहीं कर सकता। मेरा एनर्जेटिक रहने का मकसद बहुत स्वार्थी सा है। लंबी से लंबी उम्र तक ये सब कर सकूं। मैं डायबिटीज का पेशंट नहीं होना चाहता। मेरे दादाजी जब 94 के थे तो वो छिपके मीठा खाते थे, तो मैं चाहता हूं कि मैं भी वही कर सकूं।
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गजेंद्र सिंह भाटी