रविवार, 15 अप्रैल 2012

जब रचनात्मक उधारी क्लीशे हो जाए तो बात जैसी-तैसी हंसी को ही मौलिकता मानकर करनी पड़ती है

फिल्मः हाउसफुल 2: डर्टी डजन
निर्देशकः साजिद खान
कास्टः अक्षय कुमार, जॉन अब्राहम, मिथुन चक्रवर्ती, रितेश देशमुख, जॉनी लीवर, असिन, जैक्लिन फर्नांडिस, श्रेयस तलपड़े, जरीन खान, शहजान पदमसी, चंकी पांडे, बोमन ईरानी
स्टारः तीन, 3.0

शुरू करने से पहलेः अपने व्यक्तिगत स्वाद, ज्ञान, पसंद, नापसंद, विचारधारा और मनोरंजन के पैमाने के लिहाज से मैं इस फिल्म को आधा स्टार भी दे सकता था, पर इस खास फिल्म में मैंने थियेटर में बैठे तकरीबन 95 फीसदी दर्शकों की हंसी का ख्याल भी रखा। जिनमें ऐसे भी बहुत थे जो दुनियादारी की टेंशन लेकर और कुछ रुपये खर्च करके थियेटर में आए थे, सिर्फ मनोरंजन पाने के लिए। मुझे लगा कि उस मनोरंजन को देने के लिए यहां तकरीबन तीन घंटे से कुछ कम की इस फिल्म में मेहनत की गई। बाकी पहलुओं की बात करूं तो तकनीकी रूप से भी फिल्म में कहीं कोई नजर आने वाली खामी नहीं है। अदाकारों की अदाकारी भी पर्याप्त रूप से की गई है। कहीं कोई दिखता शून्य नहीं है।

एक काल्पनिक सीन है। ब्रिटेन के मशहूर उद्योगपति जेडी बने मिथुन अपनी नौकरानी (नाटे कद की एक अंग्रेज महिला) के पीछे पेड़ के इर्द-गिर्द भाग रहे हैं। वह नाटी महिला अपने छोटे-छोटे कदमों से दौड़ रही है, दर्शक हंस रहे हैं। मिथुन अपनी धोती उठाए कुछ हल्के वहशियाना अंदाजा में पीछे-पीछे कूदते चल रहे हैं। दो चक्कर लगाने के बाद वह पेड़ के पीछे उस नौकरानी को पकड़ लेते हैं। यहां सीन खत्म हो जाता है और निर्देशक साजिद खान ने अपने अंदाज में एक पर्याप्त थोथा सीन गढ़ दिया होता है। दर्शक लापरवाह हंसी की जुगाली करते हुए अगले सीन में बढ़ जाते हैं। फिल्म में इस सीन ने मुझे जितना दर्द दिया, किसी दूसरे सीन ने नहीं। हालांकि हाउसफुल-2 की कहानी में इस सीन का कोई महत्वपूर्ण संदर्भ नहीं था, ये सीन नहीं होता तो कुछ भी फर्क नहीं पड़ता। पर इसे रखा गया। दरअसल, अक्षय कुमार और जॉन अब्राहम का किरदार अपने-अपने ससुर (ऋषि-रणधीर कपूर) को ये बताने में लगा हुआ है कि वह ही उद्योगपति जेडी के असली बेटा है, दूसरा वाला तो नाजायज है (उस नाटे कद की ब्रिटिश नौकरानी से)। बस, ये नाजायज वाला फिकरा दुरुस्त करने के लिए सीन में बौने कद वालों पर यह भद्दा मजाक किया जाता है। तो इस फिल्म में वाहियात होने की यह एक सबसे चरम मनस्थिति है।

व्यक्तिगत तौर पर मैं हे बेबी या हाउसफुल का भी प्रशंसक नहीं रहा हूं। साजिद खान के बॉलीवुड के सबसे सफल निर्देशक होने के दंभ भरने और उनकी फिल्मों में नजर आने वाली सौ फीसदी रचनात्मक उधारी मुझे भविष्य में भी उनकी फिल्मों से उदासीन करती है। हाउसफुल-2’ में भी हिंदी, अंग्रेजी और एनिमेटेड फिल्मों के कई रचनात्मक पहलू उधार लिए लगते हैं, पर साजिद की फिल्म है इसलिए ये नई बात नहीं है और न ही करने की बात है, वक्त जाया होगा। एक सबसे बुरे सीन के अलावा फिल्म में फूहड़पना भी है, पर उसकी माफी भी इसलिए दी जा सकती है क्योंकि आखिर में किरदारों को नैतिक रखा गया है। मसलन, अक्षय और जॉन अपने पिता रणजीत के पास जाते हैं। अक्षय और उनके पिता के व्याभिचारी होने को इतने वक्त तक फिल्म में सेलिब्रेट किया जा रहा होता है, मगर तभी हम सुनते हैं कि रणजीत जॉन से कह रहे हैं,
मुझे इसे (अक्षय) अपना बेटा कहने में शर्म आती है।
आज तक इसने किसी लड़की को हाथ तक नहीं लगाया

जॉन चौंकते हुए अक्षय का चेहरा देखता है, कि ये अय्याश लगने वाला मर्यादित कैसे हो सकता है। दर्शकों को भी तसल्ली हो जाती है कि भई लड़का तो नैतिक है। अब सवाल है कि रणजीत तो अय्याश ही ठहरा। तो तभी, ये दोनों अपने इस डैडी को बताते हैं कि कैसे अपने दोस्त के बाप की बेइज्जती का बदला ये दोनों ले रहे हैं और चिंटू-डब्बू की बेटियों को फंसाने के बाद वो दोनों पूरी दुनिया के सामने रिश्ता तोड़ देंगे। इतना सुनते ही रणजीत अक्षय के चेहरे पर एक तमाचा जड़ देता है। अब चौंकने की बारी दर्शकों की
रणजीत कहता है,
देखो बेटा, मैंने तुम दोनों को जिदंगी में बहुत सी चीजें सिखाई हैं। लेकिन धोखा देना नहीं सिखाया। याद रखो। जिंदगी में किसी का कितना भी बुरा कर देना, लेकिन उसका भरोसा मत तोड़ना। इससे बुरा कुछ नहीं होता

कैसेनोवा की छवि वाले और आउ... जैसी वहशी ध्वनियां मुंह से निकालने वाले इस किरदार के मुंह से इतनी ऊंची बातें सुनकर हम फिल्म के प्रति आश्वस्त हो जाते हैं। दो नैतिक चीजें अब तक हो चुकी होती हैं। अब आते हैं अस्पताल, जहां श्रेयस तलपड़े के किरदार जय के पिता (वीरेंद्र सक्सेना) दिल के दौरा आने के बाद से भर्ती हैं। यहां जय और जॉली (रितेश) आए हैं, और जय अपने पिता को बताता है कि वह कैसे उनके अपमान का बदला ले रहा है। इतना सुनने के बाद वह कहते हैं कि मैंने तुम्हें ये नहीं सिखाया था। ऐसा मत करो, ये गलत है। और, जय-जॉली भी बुरा रास्ता छोड़ देते हैं।

हैंगओवर जब आई तो बाथरूम में शेर होने के सीन को देख साजिद ने ‘हाउसफुल’ में भी घर में शेर वाला सीन रखा। उन्होंने नाइट एट म्यूजियम से वह सीन लिया जहां छोटा सा बंदर हीरो को थप्पड़ें मारता है, फिर उनकी फिल्म में बंदर अक्षय को यूं ही हंसाने वाले अंदाज में थप्पड़ मारता है। मैंने शुरू में ही कहा था कि रचनात्मक उधारी पर मैं कोई बात नहीं करना चाहता, इसलिए अगर ‘हाउसफुल-2’ में जॉन के हाथ और रितेश के जननांग को मुंह से पकड़ने वाला अजगर दिखता है, या अक्षय और श्रेयस के पिछवाड़े को काटने वाला मगरमच्छ होता है, तो नकल की चिंता करने के बजाय उस पर प्राकृतिक हंसी हंसना ही चतुर विकल्प बचता है। यहां मौलिकता की तो बात करनी ही नहीं है। इसके अलावा फिल्म में हंसी जरूर आती है। बार-बार आती है। जो किरदार अपनी बाकी फिल्मों में पत्थर का चेहरा बनाए रखते हैं, वो यहां भाव निकालते हैं। इन जानवरों वाले सीन में चारों अभिनेता पसीना-पसीना हो चेहरे पर अनेकों भाव लाते हैं।

फिल्म में चारों हीरोइन (असिन, जैक्लिन, शहजान, जरीन) हैं, पर सिर्फ व्यस्क फिल्मों की नजर आने वाले कामुक तत्वों जैसी जरूरतों को पूरा करने के लिए। उनके कपड़े भी वैसा ही होते हैं। इस लिहाज से फिल्म का मनोरंजन धीमा-धीमा एडल्ट ही होता जाता है। जाहिर है परिवार वाले दर्शकों के लिए कुछ गानों में नजर आऩे वाले उभार और झटके उनके सपरिवार फिल्म देखने के चुनाव को कठिन बनाते हैं।

फिल्म में किरदारों के हाव भाव और शारीरिक मुद्राओं से मुझे लगता है साजिद ने 'हाउसफुल-2’ बनाने से पहले चार्ली चैपलिन की फिल्में जरूर देखी हैं। उन्होंने शारीरिक कॉमेडी के अब तक ज्यादा इस्तेमाल नहीं हुए पहलू को भुनाने की कोशिश की है। जैसे, मगरमच्छ और अजगर वाले सीन में सब हीरो हैं। जैसे, आखिरी पास्ता (चंकी पांडे) एक घर के टॉयलट की खिड़की से लटककर, छत पर चढ़कर दूसरे घर में जाते हैं, फिर दूसरे से वापिस पहले में आते हैं। ये कुछ वैसा ही हास्य है। मसलन, मैंने अजगर वाले सीन जितना एक्सप्रेसिव चेहरा जॉन अब्राहम की किसी दूसरी फिल्म में नहीं देखा है। इसी धार पर श्रेयस-रितेश का भी चेहरा भी है। ये भाव एक्टर्स से निकलवाने की बधाई साजिद को जा सकती है। अगर 'पापा तो बैंड बजाएं गाने को भी देखें तो उसमें भी चारों एक्टर्स का लाइन में घुटने मोड़ते और सीधे होते हुए चलने का डांस स्टेप मूक कॉमेडी के ब्लैक एंड वाइट युग की कुछ यादें ताजा करता है।
सतही मगर तात्कालिक खिलखिलाहट के पल
# 'क्यों थक री है’ बोलते अक्षय। या बाद में मुट्ठी बांधकर उनका 'जय भद्रकाली’ बोलना।
# 'आई एम जोकिंग’ कहने का चंकी का अंदाज।
# जॉली बनकर धोखा दे रहे चारों एक्टर्स को देख दुविधा में पड़ चुके जॉनी लीवर का इंटरवल के बाद अंग्रेजी बोलने वाला सीन। और, क्लाइमैक्स में जग्गा डाकू की बंदूक से छिपे इन चारों को ढूंढते हुए अलग-अलग भाषाओं में जॉनी का बात करना। काश, जॉनी लीवर का सही इस्तेमाल हमारी फिल्मों में हो।
# सफेद रुमाल लेकर जग्गा के सामने आए चिंटू (ऋषि कपूर) गोली चलने के बाद वापिस खंभे के पीछे छिप जाते हैं और बोलते हैं, बुड्ढा पागल हो गया है। ये पूरा संवाद।
# फिल्म में असली रणजीत की एंट्री और उनका ट्रेडमार्क लार टपकाने वाला तरीका।

अगर कहानी का अंदाजा लेना हो
लंदन में रहने वाले चिंटू (ऋषि) और उनके नाजायज भाई डब्बू (रणधीर) हमेशा एक-दूसरे को नीचा दिखाने में लगे रहते हैं। इसी चक्कर में दोनों अपनी-अपनी बेटियों हेना (असिन) और बॉबी (जेक्लीन) के लिए लंदन का सबसे रईस लड़का ढूंढने का जिम्मा मैरिज ब्यूरो वाले आखिरी पास्ता (चंकी पांडे) को सौंपते हैं। अनजाने में चिंटू रिश्ता लेकर आए जय (श्रेयस) के पिता का इतना अपमान करते हैं कि उन्हें हार्ट अटैक आ जाता है। बदला लेने के लिए जय अपने दोस्त जॉली (रितेश) के साथ मिलकर चिंटू को सबक सिखाने की ठानता है। इसमें वह अपने पुराने दोस्तों सनी (अक्षय) और मैक्स (जॉन) को भी शामिल कर लेता है। मगर नाटक कुछ लंबा खिंच जाता है और बाद में चार पिता, उनकी चार बेटियां, चार लड़के और ढेर सारा असमंजस पैदा हो जाता है।
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गजेंद्र सिंह भाटी