रविवार, 15 अप्रैल 2012

वीडियोगेम्स में भावप्रवणता नहीं होती, फिल्मों में होती है, बैटलशिप में भी नहीं है

फिल्म: बैटलशिप
निर्देशकः पीटर बर्ग
कास्टः टेलर किच, लियाम नीसन, ब्रुकलिन डेकर, रिहाना, एलेग्जेंडर स्कार्सगार्द, तदानोबू असानो, पीटर मेकनिकोल, जेसी प्लीमोन्स
स्टारः दो, 2.0'बैटलशिप किसी वीडियोगेम की तर्ज पर बनी (असल में बच्चों के वीडियोगेम पर) फिल्म है इसलिए इसमें बहुत सी जगहें, शिप, किरदार, एलियन और एक्शन सीन है। तो हो सकता है कि बहुतेरी चीजों में बहुत असमंजस लगे, इसलिए आसान हो वही बात करेंगे। शुरू करने से पहले कह दूं कि 'डिस्ट्रिक्ट 9’ आज भी एलियंस को लेकर बनी मेरी पसंदीदा फिल्म है। 'बैटलशिप’ पर आएं तो ये अब तक की सभी कमर्शियल एलियन अटैक और अमेरिकी सेनाओं की जवाबी कार्रवाही पर बनी फिल्मों का मिला-जुला रूप है। ऐसे में जैसे इसकी कहानी चलती है उसमें कुछ नए की उम्मीद करना व्यर्थ है।

खैर, अमेरिका में हवाई के समंदर में नेवल एक्सरसाइज चल रही है। एडमिरल शेन (लियाम नीसन) चीफ हैं। इसी एक्सरसाइज में लेफ्टीनेंट एलेक्स हूपर (टेलर किच) भी हैं जो भरपूर टेलंट के बावजूद अपने खराब बर्ताव और बड़े लापरवाह रवैये की वजह से सबकी हताशा का कारण बनते हैं। वह एडमिरल शेन की बेटी समांथा (ब्रुकलिन डेकर) से प्यार करते हैं, शादी करना चाहते हैं, पर एडमिरल को कैसे कहें, ये दुविधा है। उन्होंने नौसेना का इतना अनुशासन तोड़ा है कि सस्पेंड किए जाने वाले हैं। पर तभी ब्रम्हांड में ब्रम्हास्त्र सी तेज गति से सैटेलाइट्स को तबाह करते हुए आ रहे तीन एलियन विमान समंदर में इन नेवल शिप के बीचों-बीच आ धमकते हैं। वो ऊर्जा जुटा रहे हैं और अपने ग्रह से संपर्क करना चाह रहे हैं। इन्होंने समंदर में दो शिप तबाह कर दिए हैं। अब हूपर, ऑफिसर कोरा (रिहाना, पहली फिल्म इस पॉप सिंगर की), उनके दो-तीन दूसरे साथी और कई जापानी नौसैनिक ही बीच समंदर रह गए हैं और जिन्हें बेहद ताकतवर एलियंस का मुकाबला करना है।

मैं जिन फालूदा चीजों की बात कर रहा था उनमें वो संदर्भ भी हैं, जहां रक्षा मंत्रालय में अफरा-तफरी मची हुई है और दूसरे मुल्क पर भी हमला हो गया है। ये सीन भी हमले के बाद इसी अंदाज में दिखाए जाते हैं। एक ओर हूपर और उसका दल एलियंस के सामने फंसे हुए हैं, वहीं उसकी गर्लफ्रेंड समांथा भी बाहर से एक रिटायर्ड अपाहिज अश्वेत सैनिक की मदद से कुछ करने में लगी है। पहले एलियन सर्वशक्तिमान लग रहे होते हैं, बाद में उन्हें हराने का तोड़ ढूंढ ही लिया जाता है। एक-एक चीज पहले की देखी-भाली है।

फिल्म के विजुअल इफैक्ट बिलाशक कमाल के हैं। इतने झक्कास कि क्या कहें। सिर्फ इन विजुअल्स को देखने के लिए फिल्म थियेटर में देखी जा सकती है। मगर कुल मिलाकर ये कुछ पकाती है। क्योंकि इसकी कहानी बड़ी कमजोर है। इमोशन बिल्कुल नहीं हैं। अमेरिकी देशभक्ति का जो हर बार वाला डोज यहां दिया जाता है, वो भी असर नहीं करता। निर्देशक पीटर बर्ग की इस फिल्म में स्पेशल इफैक्ट इतने उत्तम तरीके से बनाए गए हैं कि अफसोस होता है कहानी पर मेहनत क्यों नहीं की गई।

कहीं न कहीं यही गलती पीटर ने अपने पूरे फिल्मी करियर में की है। उन्होंने ड्वेन जॉनसन, जो रॉक के नाम से मशहूर हैं, को लेकर 'वेलकम टू जंगल' नाम की फिल्म बनाई। मुझे तब पसंद आई थी। खासतौर पर ड्वेन का जंगल में लोकल आदिवासी मगर कूल डूड जैसे लगने वाले फाइटर लड़ाकों के साथ द्वन्दयुद्ध। उन सीन में ड्वेन के स्टंट वाकई में कमाल कच्चे थे। 'बैटलफील्ड' में एलियंस के धातु से बने कवच उनका आकर्षण खत्म करते हैं। फिल्म में एलियन से हूपर के लड़ने का एक सीन है, जो तमाम खर्चे और विजुअल वजन के बावजूद भावहीन है। इसी तरह पीटर की विल स्मिथ के साथ 2008 में एक नवीन किस्म की सुपरहीरो फिल्म 'हैनकॉक' आई थी। टीशर्ट-हाफ पेंट और हाथ में दारू की बोतल लिए ये सुपरहीरो कमाल के यथार्थ के साथ उड़ता है। फिल्म की कहानी भी नई थी कि एक सुपरहीरो है पर वो इतना लापरवाह है कि उसका अच्छा काम भी लोगों को बुरा लगता है। ठीक वैसे ही जैसे बैटलफील्ड में हूपर को सब पोटेंशियल वाला ऑफिसर कहते हैं पर उसमें अनुशासन न होना, सबकी नजरों में उसे बुरा बना देता है। एक तरह से हैनकॉक और हूपर दोनों एक ही पिता की संतान हैं। वो पिता है डायरेक्टर पीटर बर्ग। पीटर नए तरीके जरूर खोजते हैं, पर कहानी और किरदारों का भावहीन अभिनय सारी मेहनत पर पानी फेर देता है। 'बैटलफील्ड' में हल्का-फुल्का हास्य भी है, समंदर में एलियन विमानों से बढ़िया लड़ाई भी है पर मनोरंजन की निरंतरता और कहानी में दर्शकों को फुसलाने वाले मनोवैज्ञानिक मोड़ नहीं हैं।

ये कैसी अजीब बात है कि जैसा डायरेक्टर पीटर बर्ग के साथ है कि उनके किरदारों की तरह उनमें भी प्रतिभा है पर आज तक उस प्रतिभा से वो खुद को साबित नहीं कर पाए हैं। ठीक ऐसा ही फिल्म के मुख्य कलाकार टेलर किच के साथ है। टेलर ही इस साल आई बेहद शानदार स्पेशल इफैक्ट्स वाली मगर अच्छे से नहीं बन पाई फिल्म 'जॉन कार्टर' में महायोद्धा जॉन कार्टर बने थे। मगर देखिए, समृद्ध तकनीकी प्रयोग से भरी दोनों ही फिल्मों में टेलर किच का काम दब गया।

बैटलफील्ड को वीडियोगेम के दीवाने देख सकते हैं, विजुअल इफैक्ट्स के दीवाने भी, पर जो फिल्मी कथ्य के दीवाने हैं उन्हें रास नहीं आएगी।*** *** *** *** ***
गजेंद्र सिंह भाटी