मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

आमिर खानः मुलाकात फिल्म मार्केटिंग के सिद्ध गुरू से, बात सत्यमेव जयते, टेलीविजन में प्रवेश और प्रचार के तरीकों की

कोई पांच महीने पहले अक्टूबर में, मुंबई में, आमिर से बात-मुलाकात हुई थी। उस वक्त उन्होंने सत्यमेव जयते(तब नाम तय न हुआ था) और अपने टेलीविजन में आखिरकार प्रवेश करने के बारे में पहली घोषणा की थी। कम्युनिकेशन या सम्प्रेषण की कला में तो वह माहिरों के माहिर हैं ही। इसलिए बात करने में मिलनसार, मृदुभाषी, मुस्काते हुए और चतुर लगने ही थे। लगे भी। हालांकि इस आभा में कितना अभिनय था और कितनी असलियत ये जानता था। पर इतना भीतर तक व्यक्तित्व विश्लेषण में जाने की कोई वजह नहीं थी। हालांकि जाना। पर ये विश्लेषण बातें करने या लिखने में यहां थोपूंगा नहीं। तो इस दौरान उन्होंने सामूहिक सवालों के चतुराई से जवाब दिए और बाद में मार्केटिंग को लेकर अपनी समझ शायद पहली बार इतने विस्तार से बताई। (जो शायद आप सिर्फ यहीं पढ़ पाएंगे)। मैं नहीं समझता कि जो लोग फिल्में बनाना चाह रहे हैं, या बना रहे हैं या फिल्म लेखन के लिहाज से हैं, उन्हें प्रचार करने की मानसिकता पर इतनी बेहतरीन सीख मिल पाएगी। क्योंकि आमिर ने अपनी हर फिल्म के साथ दर्शक खींचकर दिखाए हैं। चाहे उन्हें बरगलाकर या चाहे ईमानदारी से।

लोगों नेथ्री ईडियट्स देखी।गजनीके वक्त पहली बार मार्केटिंग में फिजीकल प्रयास होते देखे। सिर मुंडाए गजनी के पुतले तो थे ही, साथ ही सिर मुंडाए लड़के भी मल्टीप्लेक्सेज में खड़े किए गए। आमिर खुद इसी लुक में जगह-जगह गए।डेल्ही बैली में उनका पैसा लगा था। उन्हें पता था कि लगान, सरफरोश और थ्री इडियट्सजैसी फिल्मों से उन्होंने एक संदेश देने वाले सामाजिक स्टार की जो छवि इतने वक्त में बनाई है, वो ‘डेल्ही बैली’ में इस्तेमाल हुई अभद्र भाषा और इशारों की वजह से रिसेगी। पर उसमें भी उन्होंने दिमाग लगाया। टीवी पर ट्रैलर्स के साथ ऐसे प्रोमो आने शुरू हुए जिनमें वह सीन में आते हैं और सोफे पर बैठ अपने दर्शकों को संबोधित करना शुरू करते हैं। वह करते हैं कि मैंने इतने साल में जो इज्जत कमाई है वो ये लड़के (इमरान, वीर, कुणाल) डुबोने वाले हैं। क्योंकि इस फिल्म में ऐसे बहुत से शब्द और सीन हैं जो बच्चों और फैमिली के देखने लायक नहीं हैं। बाद में तीनों एक्टर उनके पास आकर बैठते हैं। उनसे बात करते हैं कि आमिर भी चिढ़कर गाली देने लगते हैं। फिर कहते हैं सॉरी।

... तो ये उनका फंडा बड़ा चला। जनता की अदालत में बरी भी हो गए फिल्म की अश्लीलता को स्वीकार करके और फिल्म चल गई तो प्रॉड्यूसर के तौर पर खूब पैसे भी बना लिए। ये नमूना है उनके प्रचार करने के अनूठे तरीकों का। पीपली लाइव के वक्त फिल्म में एक किरदार पान-चिप्स की दुकान के आगे खड़ा होकर आमिर खान को मार्केटिंग और फिल्में चलाने का ज्ञान दे रहा होता है। लोगों को ये अनूठा लगा कि देखो जिसकी फिल्म है, उसी की इतनी खुलकर टांग कोई फिल्म में खींच रहा है। इस दौरान अपनी व्यक्तिगत रणनीति के तहत वो गुम हो गए। बोले ढूंढ के दिखाओ कंपीटिशन है। कोई खोजे तो सही। वो इंडिया के अलग-अलग हिस्सों में भेष बदलकर घूमते रहे और वीडियो वेब पर अपलोड करते रहे। इस तरह के किस्से खूब हैं। उनका मार्केटिंग मिजाज कयामत से कयामत तक के वक्त से है। जब वह पैदल भागकर ऑटो, टैक्सी, बस स्टैंड और मुंबई में जगह-जगह पोस्टर लगा रहे थे और लोगों से उनकी फिल्म देखने आने के लिए कह रहे थे।

अब जब बारी टीवी की आई तो उन्होंने बड़ी पूर्व स्थिति में ही लोगों को अवगत करवा दिया कि मैं टीवी पर आ रहा हूं, और इस स्ट्रॉन्ग और पावरफुल मीडियम का मुझे सही और अच्छा इस्तेमाल करना है। उनके ये कहने के कुछ महीने बाद कल अप्रैल की दो तारीख को प्रमोशन के दूसरे चरण के तहत तीन स्मार्ट वीडियो सत्यमेव जयतेकी वेबसाइट (कुछ घंटे पहले ही) बनाकर अपलोड कर दिये गए हैं।

पहले प्रोमो में वह घर में बालकनी सी किसी जगह में बैठे थाली में कुछ निवाले लिए, खाना खाते हुए, कह रहे हैं, आजकल इतना कियोस है. इतने चैनल्स, इतने टीवी चैनल्स, मीडिया। हम लोग एक दिन देखते हैं, दूसरे दिन भूल जाते हैं। आंखों से मत देखो, दिल से देखकर देखो। शो का नाम होना चहिए, दिल से देखकर देखो (आखिर में अंगुलियां चाटते हुए गुनगुनाते हैं, दिल देके देखो, दिल देके देखो...) इस पहले प्रोमो को उन्होंने बड़ा हल्का और गैर-प्रोमो जैसा रखा है। वह किससे बात कर रहे हैं ये नहीं दिखाया गया है। वह जनता को बोल रहे हैं, पर अप्रत्यक्ष तौर पर। उनकी थाली स्टील की है। आमतौर पर स्टार लोग स्टील की थाली में यूं ही घर में कहीं भी बैठकर खाना खाते होंगे, ये धारणा बन नहीं पाई है। यहां इस चीज को भुनाया गया है। दूसरा, थाली खाली ही है। दो निवाले हैं बस। खैर, इस पर दर्शक की नजर भी कहां जाती है। प्रोमो की स्क्रिप्ट बड़ी सीधी, सरल और छोटी है। मीडिया के जरिए ही प्रचार कर रहे हैं। कह रह हैं, हर दूसरे दिन जनता पहले को भूल जाती है। इसी भूल जाने – न भूल जाने के क्रम में ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि उनके प्रोग्रैम का प्रोमो लोगों को याद रहे। आखिर में लाइन तो ये आ रही थी कि दिल से देखो। जो अब एक महा घिसीपिटी लाइन फिल्मों में हो चुकी है। कि दिल से करो, दिल से देखो, दिल से सोचो, दिल से फैसला लो, दिल की सुनो। न जाने क्या-क्या। यहां ये किया गया कि दिल से देखो की बजाय आमिर कहते हैं दिल से देखकर देखो। फिर कहते हैं प्रोग्रैम का नाम भी यही होना चाहिए था। हो सकता था, बिल्कुल, किसने रोका था। आप ही बनाने वाले, पैसा लगाने वाले। पर ये तो बातें हैं साहब।


दूसरा प्रोमो कुछ यूं है कि यहां वो संभवतः अपने दोस्तों के साथ (या सत्यमेव जयते बनाने वाली टीम के सा, जिसमेंजॉकोमॉनके डायरेक्टर सत्यजीत भट्कल भी हैं, जिनसे मैं मिला था और तब उन्होंने प्रोग्रैम के बारे में कुछ भी बताने से मना कर दिया था। और, दोपहर के खाने की प्लेट थामे वहडेल्ही बैलीपर मेरे ख्याल जान रहे थे। उन्हें पसंद आई ये फिल्म, मुझे जिन आचार संहिता वाली वजहों से नापसंद आई उनपर टिप्पणी देते हुए खाना खा रहे थे। मैंने कहा फैमिली नहीं देख सकती साथ, वो बोले तो क्या हुआ। फैमिलीज को बदलना चाहिए मैंने कुछ गुस्से में कहा, भारत को किस तरह बदलना चाहिए या क्या करना चाहिए या उसका मनोरंजन कैसा हो ये मुंबई क्यों तय करे जाहिर है, वो जरा खफा हुए।) घर के किसी कमरे में बैठे हैं। उनका एक दोस्त कहता है, अरे आमिर, यार इतना रुलाएंगे क्या पब्लिक को?” आमिर कहते हैं, उल्टा बोल रहा है तू, रोने दे पब्लिक को, गुस्सा आने दे। (यहां कॉफी या ब्लैक टी का सिप लेते हुए..) एंटरटेनमेंट का मतलब ये थोड़े ही है कि बस हंसाते रहो। दिल पे लगनी चहिए। दिल पे लगेगी ना, तो बात बनेगी। अंत मैं चलते-चलते अपनी पिछली तमाम बातों से बेपरवाह होने के अभिनय के साथ (लोगों यहीं आप लोग बनते हो) वह बड़बड़ाते हैं, शक्कर नहीं डाला इसमें (मग में देखते हुए)। तो बड़ा सिंपल है इसका विश्लेषण करना। ‘सत्यमेव जयते’ में अपनी कहानियों के साथ आमिर के सामने बैठने वाले लोग खूब रोने वाले हैं, साथ में हरसंभव है कि आमिर भी आंसू बहाएंगे। सच्चे-झूठे का नहीं कह सकता है, पर एक एक्टर अपने भीतर के एक्टर को नहीं निकाल सकता। दूसरा मान मन भी तो वैसा ही है न, सामने वाले के मन की बात निकलवाने के लिए पटाकर उसके दिल में घुसता है। कुछ अपनी गम भरी कहानी सुनाता है। सामने वाला आश्वस्त हो, उसे खुद सा समझ अपनी निजी जिंदगी उसके सामने उघाड़कर रख देता है। आसुंओं का सैलाब आता है। एंकर आमिर ये सैलाब निकलवाएंगे भी और उन्हें इसके संभालना भी होगा।


तीसरा वीडियो भी घर में शूट हुआ है। इसमें भी टीशर्ट पहने वह घर में कहीं सोफे पर बैठे हैं। अपनी बिल्ली के माथे पर अंगुलियां फिरा रहे हैं। कह रहे हैं, मैं क्या चाह रहा हूं कि अम्मी और जो हमारे घर में काम करती हैं , फरजाना, वो दोनों साथ में बैठकर ये शो देखे। मेरे रिश्तेदार बनारस में, किरण के पैरेंट्स अम्मा-अप्पा बैंगलोर में (यहां उनकी आंखें तीनों प्रोमो में से पहली बार कैमरे के लेंस में सीधा देखती है, यानी हमारी तरफ) एक साथ बैठ कर देखें। हाथ में चाय के पारदर्शी क को होठों के करीब लाते हैं, फूंक मारकर सिप को कुछ ठंडा करते हैं, तभी मुट्ठी बांधकर ऊपर लाकर कह उठते हैं, सबका अपना शो हो। हर जिंदगी से टकराए। इस प्रोमो के पीछे के संकेत ये भी हैं कि चूंकि स्टार ग्रुप के तमाम चैनलों पर (कम से कम आठ) ‘सत्यमेव जयते’ एक वक्त पर एक साथ टेलीकास्ट होगा। जाहिराना तौर पर प्राइम टाइम में ही, ताकि सब लोग साथ देखें। तो यहां उन्होंने विज्ञापन की शक्ल में लोगों को ये घुट्टी पिलाई है कि मेरी अम्मी, घर में काम करने वाली फरजाना, किरण (डायरेक्टर धोबी घाट, आमिर की दूसरी बीवी) के बैंगलोर में बैठे अम्मा और अप्पा सब साथ बैठकर ये शो देखेंगे और ये हर तरह के आदमी की जिदंगी को कहीं न कहीं छूएगा। तो जरूर देखें।


तीनों प्रोमो इतने हल्के और गैरइरादतन अंदाज में बनाए गए हैं कि लोगों को भनक भी नही लगेगी कि कितनी आसानी से इस प्रोग्रैम सत्यमेव जयते को देखने का मन आपमें अबूझे ही ब चुका होगा। ये सारी बातें इस कार्यक्रम या आमिर पर कोई टिप्पणी नहीं हैं, बल्कि मार्केटिंग के गर्भ को समझने की कोशिश है। आप लोग समझें। समझेंगे तो कोई आपके मनोरंजन के टेस्ट के साथ खेल नहीं सकेगा। चूंकि ये प्रोग्रैम टीवी पर जब जून में आना शुरू होगा तो बहुत भीड़ खींचेगा। और उस दौरान होता यही है कि दुनिया की भेड़चाल शुरू हो जाती है। सब की देखादेखी आप भी कोलावेरी डी चबाने लगोगे, वो भी स्वेच्छा से नहीं, अप्रत्यक्ष मनोवैज्ञानिक आंधी के बहाव में। तो विश्लेषण करिए।

मुंबई में आमिर से मिलने के दौरान वहां मौजूद स्टार इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ उदय शंकर ने एक टिप्पणी की जो नई बात बताती है। उन्होंने आमिर के साथ काम करने के अनुभव पर कहा, मैं अपनी पूरी लाइफ में इतना चैलेंज्ड नहीं हुआ जितना आमिर के साथ काम करते हुए। मैंने मीडिया में एक ट्रैनी की तरह काम शुरू किया था। डरते हुए हर दिन मीटिंग में घुसता था, अभी आमिर के साथ मीटिंग करनी हो तो वैसे ही डरते हुए घुसता हूं। क्योंकि जिन चीजों के लिए मैं लगातार आश्वस्त रहा हूं कि ये तो ऐसे ही होता है, आमिर के साथ मीटिंग में पांच-पंद्रह मिनट में ही लगता है कि नहीं ये ऐसे नहीं होता है। मेरे सारे पूर्वानुमान और धारणाएं ध्वस्त हो जाती। उदय मीडिया की दुनिया में आगंतुकों और महत्वाकांक्षियों के लिए आदर्श हैं। कैसे स्टार न्यूज से होते हुए वो मार्केटिंग और बेचने की कला में सिद्धस्त हुए और बड़े ओहदे पर पहुंचे।

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खैर, इन तमाम बातों के बाद हम पहुंच गए हैं, उस बातचीत पर जो सबसे खास है। आलोचनात्मक होने के बाद अब समझने के नजरिए में घुसे तो बड़ी रोचक फिलॉसफी आमिर खान की है, प्रचार करने के तरीकों को लेकर। अपनी फिल्मों को आर्ट और कमर्शियल कहे जाने को लेकर। गौर से पढ़िए और एक सिद्ध फिल्मकार-एक्टर के वाकिफ होइए। उनके बातचीत के कुछ अंश:

आपकी मार्केटिंग शैलियों की बड़ी बातें होती हैं। विस्तार से बताएंगे कि प्रचार पर आपकी समझ क्या है, हर बार नया आइडिया कैसे ले आते हैं, जो चल भी पड़ता है?
....जब आप मुझे कहें कि अपनी जिंदगी का सबसे अच्छा वाकया सुनाओ, और यहां समझो पार्टी चल रही है, और हम लोग म्यूजिक सुन रहे हैं, खाना-वाना खा रहे हैं और आपको मैं बोलता हूं कि “यार कोई अपनी जिंदगी की कोई अच्छी कहानी बताएं”। तो आप सोचेंगे कि क्या बताऊं और फाइनली आप कहेंगे कि “यार हां, एक दफा मैं कैलकटा में था और वहां ये ये ये ये हु”। और आ अपनी कहानी ऐसे सुना देंगे। अब जरा कुछ अलग सिचुएशन की कल्पना कीजिए। कल्पना करिए कि वही पार्टी चल रही है, म्यूजिक चल रहा है, लोग खाना खा रहे हैं, वही जगह है। घंटी बजती है, एंड यू एंटर! मैं गेट खोलता हूं और आप आते हैं, कहते हैं “आमिर यू वोन्ट बिलीव वॉट हैपन्ड (तुम यकीन नहीं करोगे मेरे साथ क्या हुआ)! ऐसी अविश्वसनीय चीज मेरे साथ हुई। अरे, म्यूजिक बंद करो यार, मेरी बात सुनो तुम लोग”। .. वॉट योर डूंइग ऐट दैट टाइम इज मार्केटिंग (इस वक्त आ जो कर रहे होते है वही मार्केटिंग है)।

लोग मुझे हमेशा पूछते हैं कि आप नए डरेक्टरों के साथ काम करते हैं। या उन डरेक्टरों के साथ काम करते हैं जिनकी फिल्में अब तक कामयाब नहीं हुई हैं। और, आपके साथ वो इतनी कामयाब हो जाती हैं। तो क्या आ घोस्ट डायरेक्ट करते हैं? बिल्कुल, मैं घोस्ट डायरेक्ट नहीं करता हूं। मैं अपने काम का क्रेडिट किसी को नहीं दूंगा, बड़ा क्लियर हूं इस बारे में। तो कैसे वो फिल्में अच्छी बनती हैं, उसकी ये वजह है।

यहां मैंने दो चीजें कही हैं आपको।

एक ये कि डायरेक्टर वो होता है.. काम तो बहुत लोग जानते हैं, कैमरा कहां रखना है? एडिटिंग कैसे करनी है?.. टेक्नीकल चीजें बहुत सारे लोग जानते हैं और मैं आपको दस दिन में सिखा दूंगा। लेकिन क्या आपके पेट के अंदर कहानी है जो बाहर निकलने के लिए उछल रही है। वो आपको अच्छा डायरेक्टर बनाती है। तो जब आप दरवाजे से अंदर आते हैं और बोलते हैं “यार (ताली पीटते हुए), क्या मेरे साथ हुआ है, आप लोग बिलीव नहीं करोगे!” तो आपके अंदर एक कहानी है जो आप बोलना चाह रहे हो और वो आप अच्छी तरह बोलोगे। आप तरीका निकालोगे कि किस तरह अच्छी बोलूं। और जब लोग आपकी कहानी नहीं सुनेंगे और अपना खाना खाएंगे और म्यूजिक सुनेंगे तो आप सबसे बोलोगे, अरे म्यूजिक बंद करो यार! अरे नितिन मेरी बात सुन यार! सुन मेरे को। तो आप जो लोगों का ध्यान अपनी तरफ करोगे, वो क्या है, वही तो मार्केटिंग है।

तो ये मैंने बड़ा सिम्प्लीफाई करके बोला है। तो मैं फिल्में वही करता हूं जिसमें लगता है कि यार मजा आएगा करके। और, डायरेक्टर वो होता है, जिसकी कहानी होती है, जो कहानी बोलने के लिए तड़प रहा है, उसको मैं चुनता हूं। और जब तैयार होती है तो हम सब एक्साइटेड हैं और सबको बोलते हैं कि यार म्यूजिक बंद करो हमारे पास अच्छी कहानी है। वो ही तो मार्केटिंग है, और क्या मार्केटिंग है? आप समझे। तो वो एक्साइटमेंट हममें है, क्योंकि वो चीज हमनें बनाई है जो हम बनाना चाहते थे, और अब जो प्लेटफॉर्म अवेलेबल है उसका मैं इस्तेमाल कर रहा हूं। सब लोग कर रहे हैं मैं भी कर रहा हूं।

लेकिन फर्क क्या है? फर्क ये है कि मैंने कुछ बनाया है जिसके बारे में मैं एक्साइटेड हूं। अब आप ये सवाल जब ‘थ्री इडियट्स’ से पहले मुझे पूछते हैं तो कहते हैं यार ये क्लेवर जवाब दे रहा है। लेकिन अब आप सोचिए। ‘थ्री इडियट्स’ मैं बना चुका हूं। मैंने फिल्म देख ली। मैंने क्या बनाया मुझे मालूम है। हम सब ने एज अ टीम क्या बनाया है हमको मालूम है। अब हम उसको मार्केट करते हैं। तो हमारी एक्साइटमेंट लेवल जाहिर है एक लेवल की होगी और आप तक पहुंचेगी ही पहुंचेगी। और उसका और कुछ हो नहीं सकता।

इसमें स्ट्रैटजी...
स्ट्रैटजी इसमें कहां है भैया। यू गो विद योर हार्ट। जब मैंने और मेरी टीम ने ‘तारे जमीं पर’ बनाई है तो हम जानते हैं कि हमने क्या बनाया है। वी आर एक्साइटेड अबाउट इट। हां, हम नर्वस भी हैं क्योंकि कोई नहीं जानता आखिर में फिल्म कैसी होगी? लेकिन हम जानते हैं कि हमने जो बनाया है वो बहुत अच्छा मटीरियल है। जिस तरीके से आप मार्केट करते हैं वो आपको फील होता है, चाहे वो प्रोमो के थ्रू हो, चाहे वो गाने के थ्रू हो, चाहे वो इंटरव्यू के थ्रू हो। हर बार इनटेंजिबल कोई चीज है जो आपको टच करेगी।रंग दे बसंती आप ले लीजिए, लगान आप ले लीजिए। ये सब अलग-अलग वक्त थे। ‘लगान’ तो... मैं अब 12 साल की बात कर रहा हूं। मैं तो अपनी फिल्मों को शुरू से मार्केट करता आ रहा हूं। तब कोई टेलीविजन नहीं था, हम इसे छायागीत पर दिखाते थे। छायागीत पे हमने दिखाया था कयामत से कयामत तकका गाना। तब कोई एंटरटेनमेंट चैनल नहीं था तो हम कैसे बताएं लोगों को? अंततः हम एक्साइटेड हैं और वो हमारी एक्साइटमें आप तक पहुंच रही है। देखिए, हर फिल्म का प्रोमो आता है। ऐसी तो कोई फिल्म नहीं है जो हमने ताले में बंद करके रिलीज की है। या किसी भी प्रोड्यूसर ने। हर फिल्म का प्रोमो आता है, हर फिल्म का प्रेस कॉन्फ्रेंस होता है, हर फिल्म म्यूजिक रिलीज करती है। जो नॉर्मल मार्केटिंग जिसको कहते हैं वो हर आदमी करता है वो मैं भी करता हूं। क्यों लोग एक फिल्म को देखते हैं और एक फिल्म को नहीं देखते?

जिस तरीके से आप मार्केट करते हैं...
इट्स नॉट द वे यू मार्केट द फिल्म। आप गलत बोल रहे हैं। आप मुझे क्रेडिट मत दो, आप गलत आदमी को क्रेडिट दे रहे हो। मैं बोल रहा हूं, उस मटीरियल में एक चीज है जिसकी वजह से मैं इंस्पायर हो रहा हूं। अब मैं उछल रहा हूं, मैं क्या करूं। मैं इतना एक्साइट हो रहा हूं कि वो आप तक पहुंच रहा है। इसमें (फिल्म या कंटेंट) अगर पावर नहीं है न, तो वो मुझमें नहीं आएगा। तो मैं भी बुझा-बुझा सा रहूंगा और आपको भी लगेगा कि यार इस दफा कुछ एक्साइटेड नहीं लग रहा है। अभी जिस शो में काम कर रहा हूं, मैं एक्साइटेड हूं इस शो के बारे में। क्योंकि इस दफा मैं कुछ अलग कर रहा हूं, हो सकता है मैं फेल हो जाऊं। पर मैं एक्साइटेड हूं इसके बारे में इसी लिए तो कर रहा हूं।
तो मैं ये कह रहा हूं कि अगर अच्छी मार्केटिंग कर रहा हूं तो इसका मतलब ये नहीं है कि मैं क्लेवर हूं। आपको गलतफहमी हो रही है अगर आप ये सोचते हैं कि मैं क्लेवर हूं। आपको गलतफहमी हो रही है। मैं वही कर रहा हूं जो मुझे लगता है कि उस खास प्रॉडक्ट के लिए जरूरी है। ‘तारे जमीं पर’ की स्टोरी ही बिल्कुल अलग थी। मैं ‘तारे जमीं पर’ को वैसे मार्केट नहीं कर सकता था जैसे मैंने ‘गजनी’ को किया। ‘गजनी’ इज अ फिजीकल फिल्म। मेरे लिए मटीरियल हमेशा डिक्टेट करता है कि मैं कैसे मार्केट करूंगा फिल्म को। और, मटीरियल मुझसे खुद कहता है। मुझे उसके बाद सोचने की जरूरत नहीं पड़ती।

मौजूदा समाज को कैसे देखते हैं और ये कार्यक्रम उसमें कितना बदलाव लाएगा?
ज्यादा तो मैं क्या कह सकता हूं, पर ये जरूर है कि लाइफ में बदलाव आ रहा है। जब मैं लोगों से मिलता हूं तो मुझे लगता है कि खास किस्म का आइडियलिज्म लौट रहा है। ज्यादा से ज्यादा लोग ऊंचे लेवल की इंटेग्रिटी की लाइफ जीना चाहते हैं। और मैं यकीन भी करना चाहूंगा कि ऐसा हो रहा है। मैं ये नहीं कह सकता कि मैं ही कोई बड़ा बदलाव ले आउंगा, पर बदलाव हो रहा है। मैं अपने स्तर पर कु करता हूं, हो सकता है उससे लोगों की जिदंगी में कुछ चेंज आता है, कुछ नहीं आता। पर मैं इसकी घोषणा नहीं करना चाहूंगा।

किस किस्म का काम करते हैं, परिभाषित कर सकते हैं? आर्ट, कमर्शियल, प्रायोगिक?
मेरे काम को एक शब्द में डिफाइन कर पाना बड़ा मुश्किल काम होता है। लोग पूछते हैं कि आपकी फिल्म आर्ट फिल्म है कि कमर्शियल फिल्म। अब आप बताइए कि ‘तारे जमीं पर’ आर्ट फिल्म है कि कमर्शियल फिल्म। अगर आर्ट फिल्म बोलूंगा तो डिस्ट्रीब्यूटर बोलेंगे किनहीं साहब! हमने तो बहुत बनाए हैं"। कमर्शियल फिल्म बोलूंगा तो क्रिटीक्स बोलेंगे कि नहीं साब! बड़ी आर्टिस्टिक फिल्म है"। अब रंग दे बसंती’... पोस्टर में आप देखिए कि घोड़े पे आ रहा हूं मैं, अब ये बताइए कि आर्ट फिल्म है कि कमर्शियल। जब मैंने ये फिल्म साइन की तो मेरी छोटी बहन का फोन आया। औ उस वक्त भगत सिंह की कहानी चार बार आ चुकी थी, फिल्मों में। तो फरहत मेरी छोटी बहन है जो उसका फोन आया, कि क्या हो रहा है आजकल। तो मैंने बोलायार मैंने एक फिल्म साइन की है। तो मेरी फैमिली में काफी सेलिब्रेशन होता है जब मैं फिल्म साइन करता हूं। अरे, आमिर ने फिल्म साइन कर ली, मुबारक हो मुबारक हो! उन्हें बहुत कम दफा सुनने को मिलती है ये न्यूज। तो मेरी बहन ने बोला,अच्छा फिल्म साइन कर ली, कौन सी फिल्म साइन की। मैंने कहा, फिफ्ट रीमेक ऑफ भगत सिंह। तो वो बोली, नहीं नहीं हाउ कुड यू मेक फिफ्थ रीमेक ऑफ भगत सिंह। मैंने कहा नहीं, मैं तो कर रहा हूं। तो मैं कैसे डिस्क्राइब करूं।

टेलीविजन पर आजकल वही शो चलता है जिसमें तड़का लगा हो?
पता नहीं यार, पकवान भी अलग-अलग तरह के होते हैं। और, मैं तो बनाता ही अंदाजे से हूं। मेरी कोशिश ये रहती है कि उसका एक अलग डिसटिंक्ट स्वाद बरकरार रहे। अलग महक आए। वरना ये होता है कि हम जब कभी-कभी रेस्टोरेंट में जाते हैं, तो वहां हमको मसाला सेम मिलता है, हर डिश में वही मसाला है। यानी चाहे में बैंगन का भर्ता ऑर्डर करूं या कबाब, मसाला मुझे वही मिलना है। इसलिए मैं जो भी बनाता हूं कोशिश करता हूं कि उसमें अलग स्वाद आए, अलग महक आए। इस शो में भी वही कोशिश है करने की। आशा है लोगों को पसंद भी आएगा।

सत्यमेव जयते में क्या अलग है?
आज तक जितनी भी फिल्में मैंने की हैं, उनमें अलग-अलग किरदार निभाए हैं। और कुछ हद तक हर किरदार में आपको मैं भी कहीं न कहीं नजर आया होउंगा, पर ये पहली बार होगा कि मैं जो हूं, मैं जिस किस्म का इंसान हूं वैसा दिखूंगा, किसी टीवी शो के कैरेक्टर की तरह नहीं। पहली बार आपको आमिर खान यानी मेर पर्सनैलिटी देखने को मिलेगी।

खुद होस्ट बने हैं, आपका फेवरेट होस्ट कौन है?
बहुत सी चार्मिंग पर्सनैलिटी वाले लोग हैं। अमित जी, शाहरुख, रितिक, सलमान। मैं एक टाइम में सिद्धार्थ बासु के क्विज शो देखता था। खूब एंजॉय करता था। एक स्पोट्र्स होस्ट थे एस.आर. तलियाज, ऐसा ही कुछ नाम था उनका, जिन्हें मैं रियली एंजॉय किया करता था। वो अमेजिंग टेलीविजन होस्ट थे।

नहीं लगता कि अपने समकालीन अदाकारों से आप लेट हो गए हैं, टीवी पर आने में?
नहीं मैंने इसमें टाइमिंग के बारे में नहीं सोचा। मुझे नहीं लगता कि टाइमिंग लेट हो गई। पर यही सही वक्त है।
(जरा दूरी पर बैठे उदय शंकर बोल पड़ते हैं:- दो तरह की एडवांटेज लोग लेते हैं, एक तो अर्ली मूवर एडवांटेज और आमिर शायद अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जो लेट मूवर एडवांटेज लेते हैं। मैं आपको बता सकता हूं कि इस शो को लेकर मेरी आमिर के साथ क्या बातें हुईं थीं। मैं जब गया था इनके पास चार-पांच साल पहले। कि आपको भी टीवी करना चाहिए। तो उन्होंने कहा कि हां, मैं टीवी देखता हूं कभी-कभी, और मेरे मन में ये आता है कि बड़ा पावरफुल मीडियम है, और मैं करना भी चाहता हूं, पर मैं करूंगा तभी जब मुझे समझ में जाएगा कि टीवी पर करना क्या चाहिए। और आप अपने कोई प्लैन मेरे लिए रोकिए मत। क्योंकि कई बार ये सोचते हुए मुझे बहुत टाइम लग जाता है। और हुत टाइम लिया। दो साल लिए। तो उनका फैसला बिल्कुल सही है, क्योंकि टीवी पर ना बहुत बड़ी बात है पर टीवी पर आकर आप क्या करेंगे ये उससे भी बड़ी बात है। और टाइम का इतना फर्क नहीं पड़ता क्योंकि टीवी कोई ऐसा मीडियम नहीं है जो कल ही पैदा हुआ था और कल ही खत्म हो जाएगा।)

सत्यमेव जयते के बारे में...
# 22 सालों में मेरा सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है।
# अगर जो सोचा है उसका दसवां हिस्सा भी पा लिया तो निहाल हो जाऊंगा।
# शो में मैं ट्रैवल करूंगा, कभी नहीं कर पाया तो लोग मुझ तक आएंगे।
# अगर शो के दौरान मेरे अंदर का असली आमिर फूट पड़े तो मुझे कोई एतराज नहीं है।
# मैंने उदय से कहा कि यार उदय, हम ये शो तो करेंगे पर आई वॉन्ट ऑल योर चैनल्स। क्योंकि इसे हर व्यक्ति देखे। और उसे देखना भी चाहिए। जिस वक्त हिंदी इंग्लिश में आएगा, उसी वक्त बाकी भाषाओं में भी साथ-साथ प्रसारित होगा।

कुछ केसर के पत्ते जो रह गए...
# अम्मी मुझे कहती है कि अभी तुम जो कमा रहे हो उसका चार गुना ज्यादा कमा सकते हो। पर मुझे प्राइस में इंट्रेस्ट नहीं है, मुझे काम इंट्रेस्ट करना चाहिए।
# अभी ‘द ड्यून सीरिज’ पढ़ रहा हूं।
# मैं चैनल बदलता रहता हूं। रुकता वहीं हूं जहां गोविंदा जी की फिल्में आ रही होती हैं। उनकी फिल्मों में ह्यूमर बहुत होता है।
# कभी अपनी ऑटोबायोग्रफी लिखना चाहूंगा। बहुत सी ऐसी चीजें भी उसमें लिखूंगा जो लोगों को नहीं पता हो।
# अभी (कुछ वक्त पहले) मेरे घर पर कंस्ट्रक्शन हो रहा है, इसलिए मैं और किरण अम्मी के साथ रह रहे हैं। टीवी पर जो अम्मी देखती हैं, वही देख लेता हूं।

भूली बिसरी पहली फिल्महोलीपर
सच मैं कहूं तो मुझे कोई आइडिया नहीं है। मैं तो ये भी भूल चुका हूं कि उसका पोस्टर कैसा दिखता था। वो फिल्म रिलीज ही नहीं हुई न। उसे नेशनल अवॉर्ड मिला तो वो टीवी पर दिखाई गई। जबरदस्ती (मजाकिया अंदाज में)। क्योंकि कोई देखना ही नहीं चाहता था। केतन ने और हमने बड़े प्यार से, चाव से बनाई थी।
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गजेंद्र सिंह भाटी