गुरुवार, 15 मार्च 2012

"रचनात्मकता इंग्लिश लिट्रैचर होनी चाहिए, सब फिल्में हिट होने लगीं तो मैथेमैटिक्स हो जाएंगी"

कहानी की रिलीज और सफलता से पहले भारत देश की जनता को इनका नाम भी नहीं पता था। अब लोग जानना चाह रहे हैं कि विद्या बालन को लेकर एक बेहतरीन बंगाली जायके वाली थ्रिलर बनाने वाला ये बंदा कौन है। ये हैं यंग राइटर-डायरेक्टर सुजॉय घोष। 2003 में आई इनकी पहली फिल्म झनकार बीट्स.डी.बर्मन उर्फ पंचमदा के म्यूजिक को याद करती उनकी इस फ्रैश फिल्म को लोगों ने, खासतौर पर युवाओं ने चाहा, पसंद किया। इसके बाद सुजॉय विवेक ओबेरॉय, बोमन ईरानी और आयशा टाकिया के अभिनय वाली च्छी फिल्म होम डिलीवरी लेकर आए, पर न जाने क्यों फिल्म को तारीफ के बजाय दुत्कार मिली। फिर बारी थी अमिताभ बच्चन, रितेश देशमुख और श्रीलंकाई अभिनेत्री जैक्लीन फर्नाडिस के साथ बच्चों की कहानी अलादीन के मॉडर्न-एनिमेटेड-बॉलीवुड संस्करण की। फिल्म थी अलादीन। फिल्म नहीं चली। तो अब कुछ वक्त के बाद सुजॉय लौटे हैं ‘कहानी’ के साथ। लंदन से अपने पति की तलाश में कोलकाता आई विद्या बागची की इस कहानी में एक सशक्त स्क्रिप्ट और चतुर निर्देशन छिपा है। फिल्म रिलीज होने से पहले सुजॉय से ये वार्ता हुई। इस संक्षिप्त बातचीत में हालांकि उनके फिल्मकार बनने की यात्रा और फिल्म लेखक होने की गहराई में नहीं जाया जा सका, पर उन्होंने तकरीबन हर सवाल और विश्लेषण का हल्का और तुरत उत्तर दिया। उन्होंने मेरे शहर आने की इच्छा भी जताई, हां, शर्त या अनुरोध एक ही था कि मक्के की गरमा-गरम रोटी पर सफेद बटर चाहिए, जो वो दबाकर खाएंगे। बातचीत के कुछ अंशः

जर्नी डायरेक्टर बनने की?
मुंबई आया काम के लिए तो सबकी तरह मैंने भी एक स्क्रिप्ट लिखी। ये झंकार बीट्सथी। लोगों ने पढ़कर भगा दिया कि आ गया अजीब सी स्क्रिप्ट लेकर। कुछ ने कहा खुद ही बनाओ। तो नौकरी छोड़ी और फिल्म बनाई। सिर्फ यही कहूंगा कि डोन्ट गिव अप। दूसरों पर कभी निर्भर नहीं रहो। आप अकेले पचास बराबर हो।

कहानी की कहानी कहां से आई?
आपकी मां, मेरी मां और सबकी मां की कहानी है। औरत को कुछ होता है जब वो मां बन जाती है। अजीब सा चेंज आता है उसमें। जिसने कभी खाना नहीं बनाया वो खाना बनाना सीख जाती है, जो कभी पढ़ी नहीं वो पढ़ना सीख जाती है। हर काम वो खुशी-खुशी करती है। लड़की पहले कुछ और होती है और मां बनने के बाद कुछ और हो जाती है। वो अपने बच्चे को प्रोटेक्ट करने के लिए कुछ भी करेगी। आप अंगुली भी दिखाएंगे, तो आपकी गां* मा*** रख देगी। भगवान के करीब मां ही होती है। तो मुझे देखना था कि एक औरत में ये चीज कहां से आता है। एक प्रेग्नेंट औरत को आप अनजाने माहौल में डाल देंगे, अलग भाषा, शहर और लोगों के बीच... तो वो इसका सामना कैसे करेगी। यहीं से फिल्म का ख्याल आया। जब इश्किया की शूटिंग शुरू होने को थी तब मैंने और विद्या ने सोचा था। तब ये सिर्फ आइडिया था। मैं अलादीन की कहानी पर भी काम कर रहा था। फिर ‘अलादीन’ बनी थी, बुरी तरह फ्लॉप भी हुई।

इसमें बहुत से बंगाली थियेटर एक्टर्स भी हैं...
सब कोलकाता से हैं। फिल्म की डिमांड थी। कोलकाता की खूबी इसमें है कि आप परदे पर उसे कैसे दिखाते हैं और उसमें जो इंसान बसते हैं वो उस शहर का दिल हैं। बॉलीवुड में बंगाली दिखाए जाते हैं पर असल में बंगाली वैसे नहीं होते। तो मुझे असली बंगाली दिखाने थे। फिल्म में जो यंग सा एक्टर विद्या के साथ भागदौड़ करता दिखता है वो कोलकाता का ही एक्टर है परमब्रत चैटर्जी। बहुत टैलेंटेड है।

स्क्रिप्ट लिखते वक्त क्या मैनस्ट्रीम हिंदी मूवीज में अलग बंगाल दिखाना चाहते थे?
जब मैंने लिखा तो एक चीज क्लीयर थी कि फिल्म में दो हिरोइन है, एक विद्या, दूसरा कोलकाता। अब विद्या को तो स्क्रीन पर दिखा सकता हूं, कोलकाता को कैसे दिखाऊं, ये चैलेंज था। ऐसा कोलकाता दिखाना कि लोगों को उससे प्यार हो जाए। तो जो मेरा तजुर्बा था, पढ़ते, खेलते-कूदते और बड़े होते वक्त, तब जो कोलकाता मैंने देखा और जिया वो मैंने फिल्म में दिखाया है। यहां बहुत सी जगह शानदार हैं, पर ये देखना था कि वो शूटिंग फ्रेंडली भी हो। तो पहले मैं जाकर रहा वहां और देखा कि कहां पर शूटिंग आसान रहेगी।

‘होम डिलीवरी’ और ‘अलादीन’ नहीं चली, उसके बाद क्या था दिमाग में?
कुछ नहीं। सबने बोला कि ऐसी फिल्में मत बनाओ। कमर्शियल बनाओ। पर मैं वही बनाता हूं जो बनाना चाहता हूं। फ्लॉप होनी भी जरूरी है। वरना तो सभी हिट बना देगे। नहीं तो क्रिएटिविटी का मतलब क्या होगा रचनात्मकता इंग्लिश लिट्रेचर होनी चाहिए, सब हिट होने लगी तो मैथ बन जाएंगी।

फेवरेट फिल्में और फिल्ममेकर?
ऑलटाइम फेवरेट सत्यजीत रे। फिर स्टीवन स्पीलबर्ग। मनमोहन देसाई और यश चोपड़ा की फिल्में देखकर बहुत कुछ सीखा।घायल बहुत पसंद,अंदाज अपना-अपना बहुत पसंद। अमिताभ बच्चन की कोई भी फिल्म। मुझे तो हजारों फिल्में पसंद हैं। अभी फ्लाइट से लौटा हूं तो पूरे रास्ते कालीचरणदेखी। मुझे उसका एक-एक डायलॉग याद है। मूवी में कुछ न कुछ होना चाहिए। ऋषिकेश मुखर्जी जैसे लोग हुए। ये सब लोग क्या फिल्में बनाते थे। दिल में घुस जाती थीं।

इन दिनों आई फिल्मों में?
बेस्ट स्क्रीनप्ले मेरे हिसाब से ‘लगे रहो मुन्नाभाई’। मेरी बहुत-बहुत फेवरेट मूवी है।

सबको राजकुमार हीरानी ही क्यों पसंद हैं?
वो सिंपल स्टोरीटेलर हैं। हार्ट जो होता है न उनकी पिक्चर में, वो मैं पसंद करता हूं। मुझे बहुत पसंद हैं उनकी फिल्में, पर न तो मैं वैसी बनाऊंगा, न बना सकता हूं। उसके लिए कुछ धारणा और टेलंट चाहिए। परलगे रहो...’ अच्छी है तो इसका मतलब ये नहीं कि ‘सलाम नमस्ते’ अच्छी नहीं है, कि ‘जॉनी गद्दार’ या ‘एक हसीना थी’ अच्छी नहीं है। ये सब बहुत अच्छी हैं। मुझे तो ‘कल हो न हो’ भी बड़ी पसंद हैं। करण जौहर भी मेरे फेवरेट्स में से हैं।

कैसी फिल्में बनाना चाहते हैं?
मुझे बस वही कहनी-बतानी हैं जो मैं कहना चाहता हूं। ऐसी कहानी जो मैंने सुनाई और किसी ने सुनी।

सुनील गांगुली की कहानी ‘अरण्येर दिन रात्रि’ पर फिल्म बनाएंगे क्या? क्या है कहानी और कास्टिंग वगैरह के बारे में बताइए?
उसके राइट्स लिए हैं। हिंदी में। फिलहाल तो उस नॉवेल के साथ एक साल बिताना है, फिर बाकी चीजें होंगी। कुछ मैच्योर उलझी सी स्टोरी है।

‘झनकार बीट्स’ का सीक्वल बन रहा है, आप ही डायरेक्ट करेंगे?
ये तो प्रीतिश नंदी साहब प्रोड्यूसर हैं, वही तय करेंगे।

अपनी पहली फिल्म तक तो आप बेहद प्राकृतिक, निर्मल और ईमानदार लग रहे थे, फिर ऐसा क्यों हुआ कि ‘अलादीन’ तक आते-आते नजर आने लगा कि आप बहुत ज्यादा प्रयास कर रहे हैं, लेकिन लोगों से जुड़ नहीं पा रहे हैं?
मैंने कभी कुछ साबित करने को मूवी नहीं बनाई। अलादीन बहुत बड़ी फिल्म थी। उसने डिमांड किया कि अगर बच्चों की मूवी बना रहा हूं तो कहीं उसका बैंचमार्क तो होना ही चाहिए। इंडिया में जो बच्चे आज ‘हैरी पॉटर’ देखते हैं, उन्हें मैं पुराने स्टूपिड से स्पेशल इफैक्ट्स तो नहीं दिखा सकता था न। तो ‘अलादीन’ में कुछ बनाने का प्रैशर था कि इसमें मैं वो दिखाऊं जो पहले किसी फिल्म में नहीं दिखाया गया है। और ऐसा हुआ भी। मेरी इ फिल्म में ऐसे सीन और विजुअल इफैक्ट्स थे जो इंडिया में तो क्या वर्ल्ड सिनेमा में भी कहीं नहीं दिखाए गए थे। और, ये सब इस फिल्म की कहानी की मांग थी। अगर ये आगे भी किसी फिल्म में करना पड़ा तो मैं करूंगा। अगर कहानी की डिमांड है कि मैं रस्ते में जाकर नंगा हो जाऊं, तो हो जाऊंगा। जैसेअरण्येर दिन रात्रि मैं हमें जंगल के अंदर की जिंदगी को शामिल करना है, तो मैं जाऊंगा और बहुत दिन जंगल में रहूंगा, वहां शूट करूंगा।
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गजेंद्र
सिंह भाटी