शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

टापू तो रहस्यमयी, पर फिल्म का कथ्य और नौटंकी फीकी

फिल्मः जर्नी 2 - मिस्टीरियस आइलैंड (अंग्रेजी-थ्रीडी)
निर्देशकः ब्रैड पेटन
कास्टः ड्वेन जॉनसन, जॉश हचरसन, माइकल केन, लुइस गजमान, वेनेसा हजन्स
स्टार: डेढ़, 1.5/5

डायरेक्टर ब्रैड पेटन की 'जर्नी 2: द मिस्टीरियस आइलैंड' का इंतजार एडवेंचर-फैंटेसी फिल्मों के फैन्स बड़ी बेसब्री से कर रहे थे। इतना कि फिल्म लगे और सब तुरंत जाकर देखें। पर उनका मजा यहां किरकिरा हो जाता है। इन 90 मिनटों में 'इफ यू स्मेल, वॉट रॉक इज कुकिन' जुमले वाले जोरदार स्टार ड्वेन जॉनसन है, सम्माननीय ब्रिटिश एक्टर माइकल केन हैं और मिस्टीरियस आइलैंड वाली तीन खूब पढ़ी गई किताबों का मेल है, मगर सबसे जरूरी मनोरंजन गायब है।

पहले सीन से लेकर आखिरी तक में स्क्रीनप्ले लिखने वाले ब्रायन और मार्क गन ने वही लिखा है जो हर हॉलीवुड फिल्म में बारंबार लिखा गया है। वही शुरुआत, वही मध्य और वही अंत। पलाऊ में अपने पुराने से हैलीकॉप्टर से सैलानियों को सैर कराने वाले हंसोड़ गबाटो के रोल में लुइस गजमान को छोड़ दें तो हर एक्टर इमोशंस के मामले में लकड़ी का बना लगता है। शॉन (जॉश हचरसन) और हैंक (ड्वेन जॉनसन) अपनी जान पर खेलकर हजारों मील दूर जिस जादुई द्वीप को खोजने जाते हैं, वो जब उनकी आंखों के आगे होता है तो उनकी आंखें विस्मय से फटती नहीं हैं, जो कि होनी चाहिए थी। इन दोनों के बीच जो सौतेले बाप-बेटे का रिश्ता है, वो भी बेजान है। ग्रैंडफादर एलेग्जेंडर एंडरसन बने माइकल केन जब अपने ग्रैंडसन शॉन से मिलते हैं तो उनकी आंखों में कहीं कोई गीलापन नहीं दिखता। तो कुल मिलाक इमोशंस, शारीरिक मुद्राओं, डायलॉग्स और कहानी के उमड़ाव-घुमड़ाव में कहीं कोई एक्शन-एडवेंचर है नहीं, जिसका दावा ये फिल्म करती है।

कहानी है अपने सौतेले पिता हैंक से नाराज-उलझे लड़के शॉन की, जो एक रेडियो मैसेज को हल करने में लगा है। बेटे के करीब आने के लिए हैंक उस कोड को सुलझाता है। ये कोड शॉन के ग्रैंडफादर ने उस मिस्टीरियस आइलैंड से भेजा है, जिसका जिक्र तीन नॉवेल में किया गया है। ट्रैजर आइलैंड, गुलीवर्स ट्रैवल्स और वर्न का मिस्टीरियस आइलैंड। अब शॉन को उस द्वीप को ढूंढना है और हैंक उसका साथ देता है। पलाऊ आइलैंड से उन्हें बतौर गाइड मिलते हैं गबाटो और उसकी बेटी कलानी (वेनेसा हजन्स)। आगे की यात्रा है उस अद्भुत द्वीप को ढूंढने की, शॉन के ग्रैंडपा से मिलने की, तरह-तरह के जादुई जीवों से सामने की और वापिस लौटने की।

फिल्म में कुछेक विहंगम दृश्य हैं। पहला जब ये लोग विशालकाय हरी लिजर्ड के अंडों पर गलती से चढ़ जाते हैं और वो उन्हें खाने के लिए दौड़ती है, दूसरा ग्रैंडपा के जंगल में बने घर में लगा झूमर, जो उसमें जुगनू भर देने से चलता है और तीसरा जब ये भंवरों की पीठ पर बैठकर उड़ते हैं। कैप्टन नीमो की किताब और पनडुब्बी में लिखे हिंदी के शब्द देखकर गुदगुदी होती है। बच्चे इस फिल्म को एक बार देख सकते हैं, पर रेग्युलर फिल्म दर्शकों को फिल्म में बहुत सारा फीकापन और बासीपन कचोटता रहेगा।*** *** *** *** ***
गजेंद्र सिंह भाटी