सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

बेरंग बेआवाज हो फिल्म बनाने निकले मिशेल हैजेनिविशस की ऐतिहासिक चिट्ठी 'कलाकार'

फिल्मः आर्टिस्ट (मूक, श्वेत-श्याम, अंग्रेजी)
निर्देशकः मिशेल हैजेनिविशस
कास्टः जॉन दुजॉर्दों, बेरनीस, जॉन गुडमैन, जेम्स क्रॉमवेल, अगी (कुत्ता)
स्टारः साढ़े तीन, 3.5/5

ऐसा सिर्फ मिशेल हैजेनिविशस ही कर सकते थे। उस वक्त में जब मार्टिन स्कॉरसेजी जैसे पारंपरिक सिनेमा के दिग्गज ने रिटायर होने की उम्र में 'ह्यूगो बनाई, वो भी थ्रीडी में, फ्रेंच निर्देशक मिशेल ने एक साइलेंट फिल्म बनाई, वो भी बिना कलर की। इस बात की पूरी गांरटी के साथ कि फिल्म ज्यादा से ज्यादा लोग नहीं ही देखेंगे। मगर लोग देख रहे हैं। हिम्मत और जोखिम उठाना काम आया और फिल्म तमाम पुरस्कारों में छाई ही। मैंने ऑस्कर समारोह से पहले ही कहा था कि 'ह्यूगो’ को हरा 'द आर्टिस्ट’ बेस्ट पिक्चर हो जाएगी। तो युवाओं आपकी जिंदगी की पहली मूक फिल्म हो सकती है, क्योंकि लैपटॉप पर तो आप देखेंगे नहीं। बीच में फिल्म रोककर सो जाएंगे। तो, करीब के सिनेमाघरों में देख आइए।

खैर, फिल्म बहुत अच्छे से लिखी और बनाई गई है। बाकियों की क्या बात करें, आप तो जॉर्ज के पपी जैक (यूगी) की अदाकारी भी नहीं भूल पाएंगे। जॉर्ज अपनी अंगुली कनपटी पर लगाकर ठांय करता है और दोनों पैरों पर खड़ा जैक मजाकिया अंदाज में एक ओर लुढ़क जाता है। निर्देशक मिशेल ने कई प्रयोग-प्रस्तुतियां बहुत अच्छी की हैं। पेपी सुपरस्टार कैसे बनती है, ये दिखाने के लिए क्रेडिट्स का इस्तेमाल किया जाता है। पहले उसका नाम सबसे नीचे लिखा होता है और आखिर में सबसे ऊपर। जॉर्ज अपने होम थियेटर के प्रोजैक्टर के सामने खड़ा है औ उसकी परछाई परदे पर पड़ रही है। फिर ये परछाई भी परदे से चली जाती है। यानी दुर्भाग्य में साया भी साथ छोड़ जाता है। शराब पीते हुए टेबल पर गिराते जाना। ऐसी बहुत सारी कमाल की चीजें है। जॉं दुजॉर्दों इस बार बेस्ट एक्टर होंगे, कहा था और वो हो गए। वो कमाल हैं। अद्भुत टैप डांस करते हैं। लंबी सी स्माइल के साथ साइलेंट दौर के स्टार लगते हैं। चलना-फिरना एकदम बेदाग। फिर कंगाली के दौर में तनाव और दुख से भरा चेहरा। भंयकर गुस्सा, जब वो अपनी फिल्मों की रील निकाल-निकालकर जलाने लगते हैं। फ्रेंच अदाकारा बेरनीस की एक्टिंग और किरदार ने मुझे 'अकेले हम अकेले तुम’ की मनीषा कोइराला याद दिला दी। वह सुपरस्टार बनने के बाद कार में से जैसे अपने नाकामयाब पति को देख दुखी होती है, आंसू छलकाती है, ठीक वैसे ही बेरनीस भी करती है। अपनी पहली फिल्म में वह टुच्चा सा रोल करती है पर उसे देखने के लिए थियेटर जाती है, हमारी 'द डर्टी पिक्चर’ की रेशमा की तरह। और जब सीन आता है तो वो फ्रेम में होती ही नहीं है।

एक सीन जो साथ लाया: जॉर्ज पेपी को सफलता का मूलमंत्र देता है, अंग्रेजी में कहता है कि अगर तुम एक एक्ट्रेस बनना चाहती हो तो तुममे कुछ ऐसा होना चाहिए जो दूसरों में न हो। फिर वह उसके गाल पर होठों के करीब एक काला टीका लगा देता है। मुझे लगता है कि ये फिल्म का सबसे शानदार सीन था, जिसपर सबसे कम बात की गई। बताइए, कौन कहता है कि हम सब अलग-अलग हैं, या स्क्रिप्ट या कहानियां या भाव सीमा रेखाओं के साथ ही भिन्न हो जाते हैं। जो काले टीके वाली बात मैं बरसों से हिंदी फिल्मों में देखता हूं, जो काला टीका मेरी मां अपनी दोहिति (बेटी की बेटी) के गाल पर उसे नहलाकर बड़े अनुशासन, ममता और अपणायत के साथ हमेशा लगाती है, उसी काले टीके के बारे में फ्रांस में बैठा एक फिल्मकार सोचता है और अपनी फिल्म के नायक-नायिका के बीच एक दृश्य में रखता है।

कलाकार खुद से या कला सेः द आर्टिस्ट
1927 का वक्त है। साइलेंट फिल्मों का सुपरस्टार है जॉर्ज वैलेंटीन (जॉं दुजॉर्दों)। अपनी फिल्म 'द रशियन अफेयर’ के प्रीमियर पर उससे उसकी बड़ी फैन पेपी मिलर (बेरनीस) टकरा जाती है। वह जॉर्ज को किस करती है और ये तस्वीर अगले दिन सब अखबारों की मुख्य खबर बनती है। इन दिनों कीनोग्राफ स्टूडियोज का मालिक ऐल (जॉन गुडमैन) साइलेंट फिल्मों को अलविदा कह, बोलने वाली फिल्में बनाने का फैसला करता है। पर जॉर्ज इसे स्वीकार नहीं करता और अपनी खुद की साइलेंट फिल्म बनाकर सबको गलत साबित करने की कोशिश करता है। पेपी जूनियर आर्टिस्ट से स्टार एक्ट्रेस बनती जाती है, और जॉर्ज कंगाल हो जाता है। दोनों के बीच शुरू से ही एक अनजाना सा प्यार है। आगे की कहानी गहरे इमोशंस और उतार-चढ़ाव से गुजरती है।

मूक रंगों और स्वरों के निर्माता
# अमेरिकी कॉस्ट्यूम डिजाइनर मार्क ब्रिजेस ने 70 साल पहले के हॉलीवुड फैशन को जिंदा किया।
# फ्रेंच कंपोजर लुडविक बोर्स ने 24 गाने बनाए। सभी बैकग्राउंड स्कोर हैं और फिल्म की नब्ज की तरह बजते चलते हैं।
# कैमरे की प्रति सैकेंड फ्रेम दर कम रखी गई, जैसी कि पुरानी फिल्मों में होती थी। इसे 24 तस्वीर प्रति सैकेंड की बजाय 22 फ्रेम प्रति सैकेंड रखा गया। इससे किरदार ज्यादा तेजी से हिलते हैं जैसा कि चार्ली चैपलिन की श्वेत-श्याम मूक फिल्मों में होता था।
# सिनेमैटोग्राफर गियोम शिफमैन ने अपने कैमरे की आंखें बनने में काफी माथा-पच्ची की है, इस वजह से फिल्म सीन दर सीन बहुत क्लीन और सरल बनी है।
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गजेंद्र सिंह भाटी